बहु प्रतिभा शाली : भारतीय पुलिस

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तनवीर जाफ़री
हमारे देश में पुलिस विभाग को समाज आम तौर पर अच्छी नज़रों से नहीं देखता। पुलिस को प्रायः बर्बरता,रिश्वतख़ोरी,जुर्म को ख़त्म करने के बजाए उसे बढ़ावा देने, जनता से अभद्र व्यवहार करने जैसे दृष्टकोण से देखा जाता है। ज़ाहिर है पुलिस की इस तरह की छवि अनायास ही नहीं गढ़ी गयी है बल्कि इसके पीछे पुलिस विभाग में ही सेवा देने वाले अनेक अधिकारी व कर्मचारी हैं जिनकी नकारात्मक  ‘कारगुज़ारियों ‘ के चलते पुलिस विभाग काफ़ी हद तक बदनाम हुआ है। इनमें दो मुख्य आरोप ऐसे हैं जिसपर प्रायः बहस भी होती रही है। जहाँ तक भ्रष्टाचार व रिश्वतख़ोरी का प्रश्न है तो शायद ही देश का कोई विभाग ऐसा हो जहाँ भ्रष्ट व रिश्वतख़ोर लोग मौजूद न हों। लिहाज़ा अकेले पुलिस विभाग पर भ्र्ष्ट व रिश्वतख़ोर विभाग होने का ठीकरा फोड़ना भी सही नहीं। ऐसे अनेक उदाहरण भी मिलेंगे जिनसे पता चलेगा कि पुलिस भर्ती के लिए लाखों रूपये ख़र्च करने वाला युवक जिसने ब्याज/सूद पर लाखों रूपये लिए हैं या अपनी ज़मीन गिरवी रखी है। ज़ाहिर है ऐसा युवक भर्ती के बाद अपने उन पैसों कि उगाही  ज़रूर करना चाहेगा। कई घटनाएं ऐसी भी सामने आईं जिनसे पता चला कि आला अधिकारियों द्वारा अपने मातहतों को रिश्वत के लिए बाध्य किया जाता है। मलाईदार ‘थाना बेचने’ की कहानी तो पूरा देश जानता ही है। अनेक संकटकालीन अवसरों पर पुलिस कर्मी व अधिकारी खुल कर यह बातें कह भी चुके हैं। उधर आला अधिकारी भी किसी न किसी भ्र्ष्ट राजनैतिक नेटवर्क से जुड़े रहते हैं।  लिहाज़ा भ्रष्टाचार का ठीकरा केवल पुलिस विभाग पर फोड़ना भी उचित नहीं।
                        रहा सवाल अभद्र व्यवहार का तो यह भी सही है कि पुलिस कर्मियों की भाषा प्रायः सख़्त होती है। वे अपने से भी आगे अपना डण्डा रखने की कोशिश करते हैं। गली गलोच भी इनके लिए आम बात है। परन्तु यह भी सच है की इनका मुख्य कार्य या प्रशिक्षण क़ानून व्यवस्था को बनाए रखना होता है। जबकि क़ानून व्यवस्था को बिगाड़ने का काम आम तौर पर वह लोग करते हैं जिन्हें या तो क़ानून पर भरोसा नहीं होता या क़ानून से खिलवाड़ करना जिनकी आदतों में शामिल होता है। ऐसे लोग अपराधियों की श्रेणी में गिने जाते हैं। मुझे यहां मेरे एक मित्र आई पी एस अधिकारी की बात याद आती है। उन्होंने पुलिस के उद्दंड होने के सवाल पर एक बार कहा था कि ‘यदि किसी अपराधी को पकड़ कर कुर्सी पर  बिठाकर इज़्ज़त से पूछिए कि -‘भाई साहब क्या आपने अमुक अपराध,चोरी या डकैती अथवा क़त्ल किया है ‘? तो आप क्या समझते हैं ? वह स्वीकार करेगा कि उसने कोई अपराध किया है? शायद कभी नहीं। हाँ पुलिस कहीं भी किसी के भी साथ नाजायज़ करती है किसी के साथ अकारण बदतमीज़ी से पेश आती है या बिना ज़रुरत के थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करती है तो वह पूरी तरह से ग़लत व अस्वीकार्य है।
                            परन्तु पुलिस की इस छवि से अलग पुलिस की दूसरी छवि भी है जिसके चलते इतनी बदनामियों के बावजूद न केवल इस विभाग का अब भी रुतबा क़ायम है बल्कि आम लोगों को संकट के समय इसी विभाग की और निहारते भी देखा जाता है। उदाहरण के तौर पर इन दिनों कोरोना के संकट काल में ही पुलिस की भूमिका को देखिये। सरकार ने कोरोना योद्धाओं के नाम पर देश के अस्पतालों व स्वास्थ्य संस्थानों पर तो हवाई जहाज़ व हेलिकॉप्टर्स से फूल बरसाए परन्तु उनसे भी महत्वपूर्ण भूमिका हमारे देश की वह पुलिस अदा कर रही थी जिसने कोरोना को पूरी रफ़्तार से देश में फैलने से रोकने  में अपनी भरपूर ज़िम्मेदारी निभाई। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि जिन स्वास्थ्य कर्मियों पर सरकार ने पुष्प वर्षा कराई उन्हीं  स्वास्थ्य कर्मियों ने पुलिसकर्मियों पर पुष्प वर्षा कर उनके योगदान को सराहा।दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स व सफ़दरजंग अस्पताल के डॉक्टर्स , नर्सिंग स्टाफ़ व वैज्ञानिकों द्वारा लॉक डाउन के दौरान दिल्ली के हौज़ख़ास स्थित डीसीपी ऑफ़िस पहुंचकर दिल्ली पुलिस के जवानों पर फूलों की वर्षा की गयी । इतना ही नहीं बल्कि डॉक्टरों ने पुलिस कर्मियों का अभिवादन करते हुए उनकी शान में कविता पढ़ी तथा उनकी सुरक्षा के मद्देनज़र उन्हें फ़ेस शील्ड और मास्क भी भेंट किए। इस अवसर पर एम्स के अधिकारियों ने कहा  कि लॉकडाउन को सफल बनाने में पुलिस का योगदान सराहनीय है।
                             यहाँ एक बार फिर दोहराना होगा कि इनका प्रशिक्षण आम तौर पर क़ानून व्यवस्था को बनाए रखना,अराजकता पर क़ाबू पाना,अपराध व अपराधियों पर अंकुश लगाना आदि है। परन्तु कोरोना जैसी महामारी को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक न पहुँचने देना जैसा कठिन कार्य जिसका इन्हें प्रशिक्षण भी नहीं है,पूरे देश की पुलिस ने रातों रात जाग कर अपनी यह ड्यूटी निभाई। इस दौरान पूरे देश में अनेक पुलिस कर्मी व अधिकारी न केवल संक्रमित हुए बल्कि कई पुलिस कर्मियों व अधिकारियों को उनकी सक्रियता की वजह से कोरोना ने जान भी ले ली। निश्चित रूप से कोरोना ड्यूटी पर अपनी जान गंवाने वाले पुलिस कर्मियों व स्वास्थ्यकर्मियों को भी शहीद के बराबर का दर्जा दिया जाना चाहिए।
                              इसी कोरोना काल में एक वीडिओ ऐसी भी देखने को मिली कि एक पुलिस अधिकारी भीषण गर्मी में बावर्दी स्वयं रिक्शा रेहड़ी चलाकर लोगों के घर घर जाकर राशन की थैलियां बाँट रहा है और कुछ पुलिसकर्मी भी उसके साथ चलकर सामग्री बाँटने में सहायता कर रहे हैं। इसी लॉक डाउन के दौरान दिल्ली में अनेक लोग भूख प्यास से परेशान थे। पैसों के अभाव में तथा होटल आदि बंद होने के चलते उन्हें भोजन नसीब नहीं हो रहा था उस समय आम लोगों की इस मजबूरी को समझते हुए दिल्ली सहित और भी कई राज्यों की पुलिस ने बाक़ाएदा  विशेष रसोई की शुरुआत की जिसमें अपनी ड्यूटी निभाने के साथ साथ अनेक पुलिस कर्मी वर्दी पहने हुई खाना बनाते व भूखे व निराश्रय लोगों की भूख मिटाते । कहीं दिल्ली पुलिस के कर्मचारी दिल्ली के स्लम क्षेत्रों में भोजन का पैकेट बांटते देखे गए तो कहीं सूचना मिलने पर भूखे कुत्ते व बिल्लियों के लिए भी खाना पहुंचाते नज़र आए। गुरद्वारे द्वारा की जा रही अखंड लंगर सेवा का शुक्रिया अदा करने के लिए दिल्ली पुलिस के जवान सम्मान स्वरूप दिल्ली के गुरुद्वारा बंगला साहिब की  फेरा लगाते  दिखाई दिए और भारी संख्या में पुलिस बल ने इकठ्ठा होकर गुरद्वारे का आभार जताया। पुलिस की यह कारगुज़ारी कोरोना संकट काल में  दिल्ली से लेकर लगभग पूरे देश के सभी केंद्र शासित प्रदेशों व सभी राज्यों व आर पी एफ़ व जी आर पी में भी देखने को मिलीं। भोपाल में आर पी एफ़ के एक जवान इन्दर यादव ने पिछले दिनों मानवता की एक मिसाल उस समय पेश की जबकि कर्नाटक से गोरखपुर जाने वाली एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन में एक 4 वर्ष के बच्चे को दूध का पैकेट देने के लिए वे एक हाथ में राइफ़ल व एक हाथ में दूध का पैकेट लेकर दौड़ते हुए दिखाई दिए। दरअसल सफ़िया हाश्मी नमक एक श्रमिक परिवार की महिला ने भोपाल में ट्रेन रुकने पर स्टेशन पर तैनात इन्दर यादव से कहा की उसके 4 वर्षीय बच्चे को पीने के लिए किसी भी पिछले किसी स्टेशन पर दूध नहीं मिला और वह दूध के बिना बहुत परेशान है। यह सुनकर जब सिपाही इन्दर यादव दूध लेने स्टेशन के बाहर गया तो वापसी में वह ट्रेन छूट चुकी थी। परन्तु उस जांबाज़ सिपाही ने पूरी क्षमता के साथ ट्रेन के बराबर दौड़ लगा दी और आख़िरकार उसने सफ़िया को दूध का पैकेट पकड़ा ही दिया। कोरोना काल में पुलिस की इन्हीं कारगुज़ारियों ने यह साबित कर दिया है कि दरअसल पुलिस की छवि  केवल वही नहीं है जो जनता ने अपने मस्तिष्क में बना रखी है बल्कि भारतीय पुलिस एक उदार ह्रदय व मानवीय संवेदनाओं की क़द्र करने वाली एक बहु प्रतिभाशाली पुलिस भी है।

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