बहुआयामी प्रतिभा के धनी सूर्यकृष्ण जी

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सूर्यकृष्ण जी
सूर्यकृष्ण जी
सूर्यकृष्ण जी

प्रायः लोग किसी एक काम के विशेषज्ञ होते हैं; पर सूर्यकृष्ण जी ने कई कामों में अपनी विशेषज्ञता सिद्ध कर दिखायी। उनका जन्म 23 मई, 1934 को मिंटगुमरी (पाकिस्तान) में सिंचाई विभाग में ओवरसियर श्री इंद्रनारायण जी एवं श्रीमती विद्यावती जी के घर में हुआ था।

उन्होंने ओकारा (पाकिस्तान) से माध्यमिक शिक्षा, नीलोखेड़ी (हरियाणा) से विद्युत विभाग में डिप्लोमा तथा पंजाब वि.वि. से ‘प्रभाकर’ की उपाधि प्राप्त की। छह वर्ष की अवस्था से ही वे मिंटगुमरी में अपने बड़े भाई के साथ शाखा जाने लगे थे। विभाजन के बाद उनका परिवार उ.प्र. के सहारनपुर में आ गया। 1954 से 1960 तक सूर्यकृष्ण जी सहारनपुर में ही प्रचारक रहे। फिर वे एटा, बिजनौर, देहरादून आदि में भी रहे।

आपातकाल में वे देहरादून में विभाग प्रचारक थे। आपातकाल के बाद ‘जनता पार्टी’ की सरकार बनने पर सूर्यकृष्ण जी उसकी उ.प्र. इकाई के महामंत्री बने। जनता पार्टी टूटने पर बनी भारतीय जनता पार्टी की उ.प्र. इकाई के भी वे 1984 तक महामंत्री रहे। फिर वे हरियाणा में भा.ज.पा. के संगठन मंत्री बनाये गये। उस दौरान भा.ज.पा. को चुनाव में अभूतपूर्व सफलता मिली। 1987 में उन्हें विश्व हिन्दू परिषद में प्रचार, संपर्क और समन्वय का काम दिया गया।

उन दिनों श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन जोरों पर था। सूर्यकृष्ण जी ने इतिहास, गजेटियर तथा राजस्व अभिलेखों को व्यस्थित कर 1991 में हुई सरकारी वार्ताओं में भाग लिया। आंकड़े और अभिलेख उनके दिमाग में ऐसे बसे थे कि लोग उन्हें जीवंत अभिलेखागार कहते थे। फिर उन्होंने मंदिर का नक्शा और उसका लकड़ी का प्रारूप बनवाकर जनता और संतों के बीच रखा। राजस्थान जाकर मंदिर के लिए पत्थर तलाशा। उसकी मजबूती की जांच केन्द्रीय भवन अनुसंधान संस्था (सी.बी.आर.आई), रुड़की में करायी। फिर अयोध्या में मंदिर के शिलान्यास के लिए निर्विवाद स्थान को चुनकर पूरे कार्यक्रम को सम्पन्न कराया।

बाबरी ढांचे के ध्वंस के बाद शासन ने संघ तथा वि.हि.प. पर प्रतिबंध लगा दिया। ध्वंस की जांच के लिए एक आयोग भी बना; पर सूर्यकृष्ण जी ने इन दोनों मामलों को इतने अच्छे ढंग से संभाला कि शासन को प्रतिबंध हटाना पड़ा।

सूर्यकृष्ण जी हर काम बड़ी गहराई से करते थे। 1994 में वे ‘अ.भा.साहित्य परिषद’ तथा 1998 में ‘अ.भा.अधिवक्ता परिषद’ के संगठन मंत्री बनाये गये। वे न लेखक थे और न वकील; पर उन्होंने देश भर में घूम कर साहित्यकारों को जोड़ा। साहित्य से वामपंथी खेमे को बाहर करने के लिए उन्होंने नये लेखकों को प्रेरणा दी कि वे अपने लेखन की दिशा शुरू से ही देश, धर्म और समाज के हित में रखें। उन्होंने वकीलों को संगठित कर हिन्दुत्व सम्बन्धी कई विषयों को कानूनी स्तर पर सुलझाने में भागीदारी की। इनमें संघ पर लगे प्रतिबंध, लिब्राहन आयोग तथा रामसेतु विवाद मुख्य हैं। उन्होंने वकीलों से विधि प्रणाली को सरल, सस्ता तथा सर्वसुलभ बनाने के लिए काम करने का आग्रह किया।

सूर्यकृष्ण जी की निर्माण कार्य में भी बड़ी रुचि थी। वि.हि.प. का केन्द्रीय कार्यालय (संकटमोचन आश्रम) उन्होंने स्वयं खड़े होकर बनवाया। वे दिल्ली के सुप्रसिद्ध श्री बद्रीभगत मंदिर समिति, झंडेवाला के न्यासी थे। इसकी ओर से गाजियाबाद जिले के ग्राम बेहटा हाजीपुर तथा दिल्ली के मंडोली ग्राम में बने देवी मंदिर एवं वेद विद्यालयों के भवन भी उनकी देखरेख में ही बने।

वृद्धावस्था, मधुमेह तथा रक्तचाप आदि रोगों के कारण पिछले कई साल से उन्होंने सब कामों से मुक्ति ले ली थी। उनके हृदय की बाइपास सर्जरी हो चुकी थी। 13 मार्च, 2016 को दिल्ली में संघ कार्यालय, झंडेवाला पर हुए भीषण हृदयाघात से उनका निधन हुआ। वे अपनी देहदान का संकल्प पत्र भर चुके थे। अतः ‘दधीचि देहदान समिति’ के माध्यम से उनके नेत्र तथा फिर पूरी देह छात्रों के प्रशिक्षण के लिए सफदरजंग चिकित्सालय को दे दी गयी। (संदर्भ: श्रद्धांजलि सभा में वितरित पत्रक/चंपत जी, वि.हि.प)

विजय कुमार

1 COMMENT

  1. मा. सूर्यकृष्ण जी के निधन का समाचार पढ़कर मन दुखी हो गया. यहाँ दुबई में ऐसे दुखद समाचार सिर्फ प्रवक्ता या पांचजन्य से ही प्राप्त होते हैं. एक-एककर पुराने कार्यकर्ता जाते जा रहे हैं. सूर्यकृष्ण जी से परिचय 1970 के संघ शिक्षा वर्ग, अलीगढ़ में हुआ था. मैं प्रथम वर्ष का शिक्षार्थी था. घोष-कक्षा में वंशी सूर्यकृष्ण जी ही सिखाते थे. वंशी में मेरी निपुणता उन्ही के कारण हुई. स्वभाव से बहुत ही विनम्र थे. बाद में दिल्ली में उनसे मिलना होता रहा. आज भी जब घोष-कक्षा में यहाँ वंशी सिखाता हूँ तो सूर्यकृष्ण जी की याद आ जाती है. मेरी विनम्र श्रद्धांजलि.

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