-तनवीर जाफ़री
मध्यम एवं निम्न मध्यम वर्ग के प्रेमी युगल इन दिनों काफी संकट के दौर से गुजर रहे हैं। कहीं खाप पंचायतों के ‘तालिबानी’ फरमानों के तहत उनकी हत्याएं की जा रही हैं तो कहीं उन्हें अपने प्रेम की सजा भुगतने के अंतर्गत अपने पुश्तैनी गांव छोड़कर अन्यत्र चले जाने के ‘आदेश’ दिए जा रहे हैं। और तो और कभी-कभी प्रेम विवाह कर चुके इन्हीं शादीशुदा युगल को पति-पत्नि का रिश्ता छोड़कर भाई-बहन जैसे पवित्र बंधन में बंधने के लिए भी जबरन बाध्य किया जा रहा है। इसी रूढ़ीवादी एवं अतिवादी समाज के भय से आतंकित प्रेमी जोड़े कहीं-कहीं आत्महत्या करने को भी मजबूर हो रहे हैं। इन दिनों तो ऐसी घटनाओं की मानो बाढ़ सी आ गई है। बड़े आश्चर्य की बात है कि प्रेमी अथवा प्रेम विवाह कर चुके ऐसे कई युगलों के दोनों ही पक्षों अर्थात् लड़की एवं लड़के के परिजनों ने एक राय होकर अपने बच्चों की हत्या करवाने तक की साजिश रची है और हत्या करवाई भी है। अब यह मामला कश्मीर तथा माओवादियों जैसे देश के वलंत मुद्दों के स्तर का बन चुका प्रतीत हो रहा है। क्योंकि इन मामलों पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी न केवल अपनी दिलचस्पी दिखलाई है बल्कि उच्चतम न्यायालय, कई रायों के उच्च न्यायालय तथा केंद्रीय मंत्रिमंडल की इस मुद्दे पर बुलाई गई विशेष बैठक में भी अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
गत् दिनों केंद्रीय मंत्रिमंडल की एक विशेष बैठक इसी तथाकथित ऑनर किलिंग के विषय को लेकर नई दिल्ली में बुलाई गई। केंद्रीय मंत्रिमंडल की यह बैठक तथाकथित ऑनर किलिंग रोकने हेतु सख्त कानून बनाए जाने के विषय पर बुलाई गई थी जिसमें यह तय किया गया कि इस विषय पर संबंधित रायों से भारतीय दंड संहिता में परिवर्तन किए जाने के विषय में सलाह मांगी जाए। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा एक विशेष मंत्रिमंडलीय समूह गठित करने का भी निर्णय लिया गया। इसमें भारतीय साक्ष्य अधिनियम को संशोधित किए जाने की भी बात की गई। ऐसा कानून बन जाने के बाद अब किसी तथाकथित ऑनर किलिंग के बाद खाप पंचायतों को अपने आप को निर्दोष प्रमाणित करना होगा अन्यथा उनके विरुद्ध भी हत्या में शामिल होने संबंधी धारा के अंतर्गत् मुंकद्दमा चलाया जाएगा।
आधुनिक तथा उदारवादी सोच रखने वाला भारतीय समाज भले ही इस प्रकार की हत्याओं अथवा आत्म हत्याओं से बेहद दुखी क्यों न हो परंतु खाप पंचायतों का हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान के कुछ सीमित क्षेत्रों में इतना दबदबा है कि वोट बैंक के चलते न तो किसी भी राजनैतिक दल के नेता की इतनी हि मत दिखाई देती है कि वह ऑनर किलिंग के फरमान अथवा प्रेमी युगल के विरुध्द अन्य बेतुके ‘तुंगलकी’ फरमान जारी किए जाने का विरोध कर सकें। और न ही इनके विरुद्ध अदालती अथवा प्रशासनिक आदेशों को अमल में लाए जाने की पुलिस कर्मी हि मत जुटा पाते हैं। बजाए इसके यही देखा जा रहा है कि कई बड़े से बड़े नेता इन्हीं आधुनिक ‘तुगलकों’ की पंचायत के पक्ष में ही अपना बयान देते रहते हैं। लगभग सभी राजनैतिक दलों के नेतागण इस विषय पर जाति विशेष के वोट बैंक अपने हाथों से निकल जाने के भय से प्राय: खाप की ही भाषा बोलने लग जाते हैं। ऐसे में भले ही पूरा देश क्यों न चिंतित हो, देश के न्यायालय इस विषय पर कितने ही गंभीर क्यों न हों परंतु खाप पंचायतों के अड़ियल रुंख पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उल्टे खाप पंचायतें अपने विरुध्द उठाए जाने वाले किसी भी कदम के विरुद्ध तरह-तरह की चेतावनियां भी जारी करती रहती हैं।
पिछले दिनों इस विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में एक भुक्तभोगी प्रेमी जोड़े ने एक बड़ा ही गंभीर एवं विचारणीय प्रश् यह किया कि यदि हमारे परिजन या हमारी बिरादरी की पंचायतें यह महसूस करती हैं कि हमारा मान-सम्मान अमुक प्रेमी युगल ने नष्ट-भ्रष्ट कर दिया है तो वे अपने कथित अपमान के चलते स्वयं अपनी ही हत्या क्यों नहीं कर लेते? अपना खोया सम्मान उन्हें अपने बच्चों की हत्या करने से आख़िर वापस आता हुआ कैसे दिखाई देता है? देश की प्रथम महिला आई पी एस अधिकारी किरण बेदी की शिक्षा-दीक्षा, योग्यता व क्षमता का लोहा कौन से खाप वाले नहीं मानते। क्या कोई ऐसा खाप का नेता अथवा प्रमुख या इन्हें बरग़लाने वाला बातूनी नेता ऐसा है जो अपनी तुलना किरण बेदी के व्यक्तित्व से कर सके। वह भी अपने एक लेख में यह सवाल पूछ चुकी हैं कि ऐसी हत्याओं में सम्मान अथवा ऑनर की कौन सी बात नजर आती है? जाहिर है एक तो हत्या करने के बाद यह रूढिवादी लोग अपने बच्चों की जान से भी हाथ धो बैठते हैं तो दूसरी ओर सारी उम्र जेल काटने के लिए भी यह तैयार रहते हैं। ऐसे में इन लोगों को ऑनर या स मान का कौन सा पहलू दिखाई देता है यह बात समझ से परे है।
काफी पहले मैं ट्रांसपोर्ट के कारोबार से जुड़ा था। उस समय मेरा लगभग 45 वर्षीय एक ट्रक ड्राईवर था। वह ड्राईवर निहायत ही शरीफ ,ईमानदार व बेऐब था। परंतु इत्तेफाक़ से वह कुंआरा था। मैंने जब उससे उसके कुंआरेपन का कारण पूछा तो उसका उत्तर सुनकर हैरान रह गया। उसने बताया कि मेरे पास खेती की जमीन बिल्कुल नहीं है, इसलिए हमारी बिरादरी का कोई भी व्यक्ति हमें अपनी लड़की नहीं ब्याहता। मैं उसका उत्तर सुनकर हैरान हो गया। क्योंकि इस प्रकार की बात सुनने का शायद वह मेरा पहला अवसर था। आगे चलकर पता लगा कि यह एक कड़वा सच है कि उसके समुदाय का लड़का कितना ही योग्य, सुशील क्यों न हो परंतु कन्या पक्ष द्वारा रिश्ता करने के समय उससे सबसे पहला सवाल यही किया जाता है कि उसके पास आखिर जमीन कितने किले (एकड़) है? मैंने अपने ड्राईवर से तब यह कहा था कि क्या तुम्हारी बिरादरी की पंचायत तुम्हारी शादी के लिए कोई मदद या प्रयास नहीं करती। इस पर उसका जवाब था कि बिना जमीन वाले के लिए तो हरगिज नहीं। अब यहां प्रश्न यह उठता है कि ऐसे विषयों पर यही पंचायतें क्या रुख अख्तियार करती हैं।
अब आईए, आपको इन्हीं ऑनर किलिंग का फरमान जारी करने वालों के समुदाय से जुड़ी एक और हकीकत से अवगत कराता हूं। इसी समाज के मेरे कई जानने वाले ऐसे हैं जो गरीब होने के कारण या उनके पास कम जमीन होने के कारण उन्हें किसी अपनी बिरादरी वाले ने अपनी लड़की का रिश्ता नहीं दिया। ऐसे में मजबूर होकर उन्होंने हिमाचल प्रदेश जाकर वहां की गरीब लड़कियों से विवाह कर उन्हें अपने घर ले आए। ऐसे मामलों में यह लोग लड़की की जाति तो दूर उसका धर्म तक पूछना जरूरी नहीं समझते। क्योंकि आखिरकार उन्हें अपना घर बसाना होता है। किसी बिरादरी वाले से कोई सम्मान पत्र नहीं प्राप्त करना होता। मुझे पता चला है कि केवल हरियाणा राज्य में ही ऐसे सैकड़ों लोगों ने हिमाचल प्रदेश की विभिन्न धर्मों व जातियों की गरीब कन्याओं से अपना विवाह रचाया है। ऐसी जगहों पर भी पंचायत खामोश रहती है तथा इसमें उन्हें ‘डिसऑनर’ अथवा असम्मान जैसी कोई बात नजर नहीं आती?
अपनी परंपराओं का सम्मान करना तथा उसे सहेज कर रखना कोई बुरी बात नहीं बल्कि अच्छी बात है। परंतु उन परंपराओं को अति सीमित, संकीर्ण व सूक्ष्म नारों से देखना कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। हम यदि अपनी परंपरा को सहेजने की बात भी करें तो उसकी सीमाएं निर्धारित करने का अधिकार किसे है? हमारी परंपराओं की सीमाएं क्या हैं? हमारा गोत्र, हमारा गांव, हमारी बिरादरी, हमारा कस्बा, हमारा शहर, हमारा प्रदेश, हमारा देश अथवा हमारी वैश्विक मानवीय सभ्यता? हम किसके रक्षक हैं और इनमें से कौन सी परंपरा या सीमाओं की रक्षा करने की बात करते हैं। यदि हमें भारतीय होने पर गर्व है तो हमें अपने जेहन को राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में रखकर यह सोचना होगा कि हम सम्राट अकबर, अरुणा आसिफ अली, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी तथा इन जैसे तमाम आदर्श व्यक्तियों के देश के वासी हैं। अत: यदि हम इन्हें अपना आदर्श मानते हैं तो हमें इनकी परंपराओं का भी अनुसरण करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
इस देश में जब फ़ारुख अब्दुल्ला अपनी बेटी की शादी सचिन पायलट से कर सकते हैं, फिरोज ख़ान तथा संजय ख़ान अपनी बेटियों के विवाह हिंदू धर्म के लडकों से कर सकते हैं, शाहरुख़ ख़ान, उमर अब्दुल्ला, आमिर ख़ान जैसे न जाने कितने प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित लोग हिंदू धर्म की लड़कियों से अपने विवाह रचा सकते हैं ऐसे में मात्र गोत्र अथवा गांव जैसी सीमित व संकीर्ण बाधाओं को बहाना बनाकर अपने ही बच्चों की हत्रया तक कर डालना भारतीय परंपराओं का मज़ाक उड़ाने तथा उसका अपमान करने क सिवा और तो कुछ नज़र नहीं आता। और यदि यह तथाकथित अति सीमित पारंपरिक सोच रखने वाले रूढिवादी बुजु़र्ग स्वयं को अपनी इस दकियानूसी सोच से उबार नहीं सकते तो वे अपने मासूम बच्चों की हत्या करने के बजाए बचपन से ही अपने बच्चों में ऐसे संस्कार डालें कि वे जवानी की दहलीज़ में क़दम रखने के बाद विरासत में मिली अपनी उन परंपराओं के खिलाफ़ जाने की बात कभी अपने जे़हन में ला ही न सकें। परंतु प्रेमपाश में बंधकर यदि कोई बच्चा ऐसा क़दम उठा भी लेता है तो उनकी हत्या कर देने या उन्हें पुन: भाई-बहन का रिश्ता क़ायम करने या गांव छोड़कर चले जाने जैसे तुग़लकी फ़रमान जारी करने का किसी भी समूह अथवा पंचायत को कोई भी हक़ क़तई नहीं है। इस प्रकार के फ़रमान सरासर अमानवीय, मानवाधिकार विरोधी तथा मानवता को शर्मसार करनेवाले हैं।
आलेख की प्रासंगिकता के सन्दर्भ युगानुरूप प्रस्तुत कर एक और राष्ट्र व्यापी सामाजिक क्रांति का आह्वान तथा पुरातन मरण धर्मा प्रतिगामी वर्जनाओं पर वैज्ञनिक दृष्टिकोण से पुन; विचार के हेतु निरंतर प्रवाहमान संस्कृति का सूत्रपात अभिनंदनीय है .