मुसलमान और हिंदुत्व

मुसलमान और हिंदुत्व

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुखों की मुलाकात को जितना महत्व खबरपालिका में मिलना चाहिए था, नहीं मिला। मेरी राय में श्री मोहन भागवत और मौलाना अर्शद मदनी की इस भेंट का महत्व ऐतिहासिक है। ऐसा इसलिए भी है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान इधर कई बार कह चुके हैं कि आरएसएस और नरेंद्र मोदी हिटलर और मुसोलिनी के नक्शे-कदम पर चल रहे हैं। वे कश्मीरी मुसलमानों को खत्म करने पर आमादा हैं। संघ के बारे में यह विचार बद्धमूल है कि वह उग्रवादी हिंदुओं का संगठन है और वह पूरी तरह से मुस्लिम-विरोधी है। भारत के मुस्लिम संगठन भी पानी पी-पीकर संघ को कोसते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में दोनों पक्षों के रवैयों में कुछ सुधार हुआ है। भागवत और मदनी की भेंट इसका प्रमाण है। यह काम सबसे पहले संघ-प्रमुख कुप्प सी. सुदर्शनजी ने शुरु किया था।  सुदर्शनजी अब से 50-55 साल पहले जब इंदौर में शाखा चलाते थे, तब मैं उनसे कहा करता था कि देश के करोड़ों मुसलमानों को हम यदि अराष्ट्रीय और अछूत मानते रहेंगे तो भारत न तो कभी महाशक्ति बन पाएगा और न ही संपन्न हो पाएंगा। सर संघचालक बनने पर उन्होंने ‘राष्ट्रीय मुस्लिम मंच’ की स्थापना की। उन्होंने मुझसे अनुरोध किया था कि मैं ही उसका उदघाटन करुं। मैं तो वह दिन देखना चाहता हूं जबकि संघ की शाखाओं में मुसलमान, ईसाई, यहूदी भी जमकर भाग लें।

विदेशों में जन्मे मज़हबों या विचारधाराओं के अनुयायिओं को हम विदेशी मानने लगें या उनकी देशभक्ति पर शक करने लगें, यह सर्वथा अनुचित है। यदि मेरे इस विचार से मोहन भागवत सहमत हैं कि हिंदुत्व ही भारतीयता है और भारतीयता ही हिंदुत्व तो मैं कहूंगा कि संघ के दरवाजे समस्त भारतीयों के लिए खोल दिए जाने चाहिए। इसका उल्टा भी लागू होना चाहिए। याने अपने मुसलमान, ईसाई और यहूदी भाइयों से हम यह क्यों नहीं चाहें कि वे अपने नाम, वेश-भूषा, खान-पान, तीज-त्यौहार, नाते-रिश्तों में बाहरी मुल्कों की आंख मींचकर नकल न करें। भारतीयता को मजबूती से पकड़े रहें। वे इंडोनेशिया के मुसलमानों से सबक लें। राष्ट्रपति सुकर्ण, उनकी बेटी मेघावती और उसके पिता अली शास्त्रविदजोजो क्या अपने नाम संस्कृत में या ‘भाषा इंडोनेशिया’ में रखने के कारण काफिर हो गए ? क्या वे मुसलमान नहीं रहे ? सच्चे भारतीय होने और सच्चे मुसलमान होने में कोई अन्तर्विरोध नहीं है।

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