संगीत, साहित्य और कला ने समाज को हमेशा से दिशा देकर एकता और सौहार्द के मखमली डोर में पिरोने का काम किया है। संगीत को सरहदों में कैद नहीं किया जा सकता। आम जीवन में देखा जाए तो इंसान मानसिक सुकून के लिए संगीत का सहारा लेता है। जब हम अच्छा संगीत सुनते हैं और उसकी तरफ खिंचते है तो उतनी देर के लिए अपनी हर तकलीफ, परेशानी और समस्या से दूर हो जाते हैं। बावजूद इसके अब कुछ लोग संगीत पर भी सतही सियासत करने से बाज नहीं आ रहे हैं। वजह साफ है शिवसेना के विरोध की वजह से पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली का मुम्बई और पुणे में होने वाला संगीत का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा है। इससे एक तरफ जहां संगीत प्रेमियों को धक्का लगा है वहीं संगीत की आत्मा भी मायूस हुई है। आखिर हम किधर जा रहे हैं? विरोध के किस सीमा तक पहुंच जाएंगे हम? सवाल एक गुलाम अली के गजल गाने और न गाने से नहीं है सवाल ये है कि हम चांद और मंगल तक पहुंच चुके तो संगीत की धुन से हमें परहेज क्यों है? खाने, पहनने और अब सुनने का भी पैमाना तय करने का अधिकार भी चन्द लेगों की मुठ्ठी में है? कई सवाल सबके जेहन में हैं और लोगों के अपने तर्क भी।
गुलाम अली के संगीत कार्यक्रम रद्द करने के पीछे शिवसेना ने तर्क दिया है कि सीमा पर पाकिस्तान की तरफ से हो रही गोलाबारी के बीच पाकिस्तान से सांस्कृतिक सम्बन्ध रखना ठीक नहीं। शिवसेना प्रवक्ता ने यह भी कहा कि विरोध गुलाम अली का नहीं है। आखिर हम किस दौर में जी रहे हैं। क्या हमें संगीत से भी खतरा महसूस होने लगा है? तबला, वायलिन और हारमोनिया के धुनों से आखिर हमें नफरत कयों होने लगे? संगीत कार्यक्रम रद्द होने पर बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने ट्वीट किया कि ‘भारत भी सउदी अरब बनता जा रहा है। लोगों को समझना चाहिए कि गुलाम अली कोई जिहादी नहीं हैं। जिहादी और सिंगर में फर्क समझना चाहिए।’ दिल्ली के पर्यटन मंत्री कपिल मिश्रा ने गुलाम अली को दिल्ली में कार्यक्रम करने का न्यौता देते हुए कहा कि ‘कला और संस्कृति की कोई सीमा नहीं होती। कोई क्या खाएगा, क्या पहनेगा, क्या सुनेगा इस पर कोई पाबंदी लगाए तो गलत है। देश आजाद है और अगर आप किसी पर पहरेदारी बिठाओगे तो इसका विरोध होगा।’ उधर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी गुलाम अली को कोलकाता में संगीत कार्यक्रम करने का निमंत्रण दिया। इस बीच मीडिया से बात करते हुए भाजपा नेता और केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बसा नकवी ने शिवसेना के इस कृत्य पर विरोध जताया। अब सवाल यह है कि क्या संगीत से समाज और देश को किसी तरह का नुक्सान का खतरा है है महज सतही राजनीति का नमूना? बात अगर गुुलाम अली की है तो अभी कुछ अरसा पहले ही इन्होने ने वाराणसी के संकटमोचन मन्दिर में आयोजित संगीत समारोह में शिरकत कर लोगों की खूब वाह-वाही लूटा।
एक टीवी चैनल से बातचीत में पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली ने कहा कि मैं कार्यक्रम रद्द होने से नाराज नहीं हूं बल्कि इस बात का दुःख है कि मुझे सुनने वालों को मायूसी होगी। गुलाम अली ने यह भी कहा कि वो अपने दोस्त गजल गायक स्व0 जगजीत सिंह की याद में कार्यक्रम करने वाले थे। हालांकि इससे शिवसेना को कितना सियासी फायदा हासिल होगा यह तो बाद की बात है मगर इस तरह के कृत्य से संगीत को तो जरूर ठेस पहुंचा है। एक तरफ पूरा विश्व कट्टरता के खिलाफ शान्ति की तलाश कर रहा है तो दूसरी तरफ शान्ति और सुकून के सबसे बड़े नुस्खे संगीत के लिए सरहद की परिधि तय की जा रही है। डिजिटल इण्डिया के जरिये विश्व को समेटने का प्रयास चल रहा है तो वहीं कुछ लोगों के द्वारा संगीत के लिए सरहद और दायरा तय किया जा रहा है। बेहतर तो यही होता कि संगीत की धुन से पूरे विश्व को गुंजायमान कर लोगों के दिलों को मोहब्बत की धुन से सराबोर कर भाईचारे का नग्मा गुनगुनाया जाए। जेहन के बन्द दरवाजों को संगीत की धुन से चकनाचूर कर सद्भाव की राग भैरवी गायी जाए।