चीन के मुस्लिम विरोधी दृष्टिकोण पर मुस्लिम देशों का मौन

राकेश कुमार आर्य

अजहर मसूद को लेकर चीन का दृष्टिकोण अब सबकी समझ में आ चुका है ।वह मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित नहीं होने दे रहा है । अब अमेरिका नए सिरे से यूएन में मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने के लिए प्रस्ताव लेकर आया है । जिस पर चीन की भौंहें तन गई हैं । वह हर स्थिति में भारत को नीचा दिखाने और पाकिस्तान का साथ देकर पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध भड़काने का हर संभव कार्य कर रहा है । जबकि वह स्वयं मुस्लिम आतंकवाद का ही नहीं अपितु इस्लाम का भी विरोधी है । यही कारण है कि उसने अपने यहां पर साधारण मुसलमानों के मौलिक अधिकारों का भी हनन करके रख दिया है । चीन में धार्मिक स्वतंत्रता को समाप्त कर मुस्लिमों को ‘चीनी ‘ बनाने का अभियान बड़े जोरों पर है ।यह बहुत ही हास्यास्पद तथ्य है कि जो लोग अपने यहां इस्लाम का चीनीकरण कर रहे हैं वही हमें देशद्रोही आतंकवादियों तक के विरुद्ध उदार दृष्टिकोण अपनाने की शिक्षा देते हैं ।
पिछले वर्ष बीबीसी ने अपनी एक पड़ताल में पाया था कि चीन ने अपने पश्चिमी प्रांत शिनजियांग में वीगर मुसलमानों के लिए नज़रबंदी बस्ती बना रखी है ।
चीन ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसी ही तमाम जेल सरीखी इमारतें शिनजियांग सूबे में बना डाली हैं ।
बीबीसी उस नज़रबंदी कैम्प को देखने से पहले दबानचेंग क़स्बे मे भी पहुंचा था ।चीन ने इस बात पर अपनी निरंतर असहमति व्यक्त की है कि उसने मुसलमानों को बिना मुकदमा चलाएं कैद करके रखा हुआ है। इस झूठ को छुपाने के लिए ही तालीम का पर्दा चीन ने लगा दिया है ।
विश्व भर में उठ रहे आलोचना के सुरों को दबाने और उनका सामना करने के लिए चीन ने बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान छेड़ दिया है. चीन का कहना है कि इन केंद्रों का प्रमुख उद्देश्य उग्रवाद का सामना करना है ।
विश्व के किसी भी देश में मुसलमानों पर कथित अत्याचार होता है तो मुस्लिम बहुल देश खुलकर इस पर आपत्ति जताते हैं ।भारत में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध होने वाली हिंसा को लेकर भी पाकिस्तान समेत कई मुस्लिम देश उंगली उठाते रहे हैं ।
यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि चीन में वीगर मुसलमानों के विरुद्ध उसकी क्रूरता को लेकर मुस्लिम देशों में चुप्पी रहती है । पहली बार तुर्की ने इसी वर्ष 10 फ़रवरी को चीन के विरुद्ध आवाज़ उठाई और कहा कि चीन ने लाखों मुसलमानों को नज़रबंदी शिविर में बंद कर रखा है । तुर्की ने चीन से उन शिविरों को बंद करने की मांग की ।तुर्की के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हामी अक्सोय ने कहा कि चीन का यह क़दम मानवता के विरुद्ध है । तुर्की के अतिरिक्त विश्व के किसी भी मुस्लिम देश ने चीन के इस दृष्टिकोण के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठाई ।
पाकिस्तान में इस्लाम के नाम पर कई चरमपंथी संगठन हैं ,लेकिन ये चरमपंथी संगठन भी चीन के विरुद्ध कोई बयान नहीं देते हैं ।
अभी कुछ समय पूर्व सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान ने पाकिस्तान, भारत और चीन का दौरा संपन्न किया था । सलमान से चीन में मुसलमानों को नज़रबंदी शिविरों में रखे जाने पर प्रश्न पूछे गए तो उन्होंने चीन का बचाव किया ।सलमान ने कहा, ”चीन को आतंकवाद के विरुद्ध और राष्ट्र सुरक्षा में क़दम उठाने का पूरा अधिकार है.” सलमान ने इसे आतंकवाद और अतिवाद के विरुद्ध 3:00 का उद्घोष कहकर इसका महिमामंडन और कर दिया।
दूसरी ओर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन में सऊदी अरब भारत प्रशासित कश्मीर में भारतीय सुरक्षाबलों की कार्रवाई की कड़ी निंदा करता रहा है । अब प्रश्न है कि सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस ने चीन का बचाव क्यों किया? सऊदी अरब में मक्का-मदीना है और यह विश्व भर के मुसलमानों के पवित्र स्थल है । सऊदी स्वयं को मुसलमानों का प्रतिनिधि देश भी मानता है ।ऐसे में सऊदी चीन में मुसलमानों के विरुद्ध अत्याचार का समर्थन क्यों कर रहा है?
वॉशिंगटन पोस्ट ने अपने संपादकीय में लिखा है कि क्राउन प्रिंस सलमान का चीन का बचाव करना सर्वथा स्वाभाविक है ।संपादकीय में लिखा है, ”इस बचाव को बड़ी सरलता से समझा जा सकता है । चीन ने हाल ही में सऊदी के गोपनीय रूप से हत्या के अधिकार का समर्थन किया था और इसे उसका आंतरिक मामला कहा था । आपका नज़रबंदी शिविर आपका आंतरिक मामला है और हत्या के लिए मेरी साज़िश मेरा आंतरिक मामला है. कमाल की बात है. हमलोग एक दूसरे को बख़ूबी समझते हैं ।” कुछ महीने पहले तुर्की में सऊदी मूल के पत्रकार जमाल ख़ाशोगी की हत्या कर दी गई थी । यह हत्या सऊदी के दूतावास में हुई थी । इस मामले में सऊदी ने कई झूठ बोले और बाद में सारे झूठ पकड़े गए । ख़ाशोग्जी की हत्या के बाद ऐसे कई तथ्य सामने आए जिनसे पता चलता है कि सऊदी अरब की सरकार इसमें सम्मिलित थी ।इसी वर्ष जनवरी महीने में जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से पूछा गया कि वे चीन में मुसलमानों के विरुद्ध अत्याचार पर कुछ बोलते क्यों नहीं हैं , तो वह असामान्य रूप से मौन रह गए ।
पूर्व क्रिकेटर से पाकिस्तान के पीएम बने इमरान ने कहा कि वे इस बारे में बहुत नहीं जानते हैं ।दूसरी ओर इमरान ख़ान म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के विरुद्ध अत्याचार की निंदा कर चुके हैं । उन्हें रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में तो सारी जानकारी है और चीन अपने यहां मुसलमानों के साथ क्या कर रहा है ? – उसके बारे में कोई जानकारी नहीं है । ‘बेचारे इमरान ‘ सचमुच ‘ देहाती औरत ‘ बनकर रह गए हैं।
पाकिस्तान और चीन की मित्रता को और सारा विश्व जान रहा है । चीन पाकिस्तान में चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर के तहत 60 अरब डॉलर का निवेश कर रहा है । दूसरी ओर पाकिस्तान पर चीन के अरबों डॉलर के क़र्ज़ भी हैं ।तीसरी बात ये कि पाकिस्तान कश्मीर विवाद में चीन को भारत के विरुद्ध एक अच्छे सहयोगी के रूप में देखता है । ऐसे में पाकिस्तान चीन में वीगर मुसलमानों के विरुद्ध चुप रहना ही ठीक समझता है ।सारे विश्व के मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया, मलेशिया, सऊदी और पाकिस्तान पूरे मामले पर मौन रहे हैं । दूसरी ओर ये देश रोहिंग्या मुसलमानों के विरुद्ध म्यांमार में हुईं हिंसा की निंदा करने में मुखर रहे हैं ।
पाकिस्तान ने तो यहां तक कहा है कि पश्चिमी मीडिया ने चीन में वीगर मुसलमानों के मामले को रहस्यमयी बनाकर प्रस्तुत किया है ।ऑस्ट्रेलियन यूनिवर्सिटी में चाइना पॉलिसी के विशेषज्ञ माइकल क्लार्क मुस्लिम देशों के मौन का कारण चीन की आर्थिक शक्ति और पलटवार के डर को मुख्य कारण मानते हैं ।
क्लार्क ने एबीसी से कहा है, ”म्यांमार के विरुद्ध मुस्लिम देश इसलिए बोल लेते हैं क्योंकि वह एक निर्बल देश है । उस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना सरल है । म्यांमार जैसे देशों की तुलना में चीन की अर्थव्यवस्था 180 गुना अधिक बड़ी है ।ऐसे में आलोचना करना भूल जाना अपने पक्ष में अधिक होता है।”मध्य-पू्र्व और उत्तरी अफ़्रीका में चीन 2005 से अब तक 144 अरब डॉलर का निवेश किया है. इसी काल में मलेशिया और इंडोनेशिया में चीन ने 121.6 अरब डॉलर का निवेश किया ।चीन ने सऊदी अरब और इराक़ की सरकारी तेल कंपनियों ने भारी निवेश कर रखा है ।इसके साथ ही चीन ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना बन बेल्ट वन रोड के तहत एशिया, मध्य-पूर्व और अफ़्रीका में भारी निवेश का वादा कर रखा है चीन में वीगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार को लेकर अमरीका के अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के देश बोलते रहे हैं , परंतु मुस्लिम देश मौन रहना ही ठीक समझते हैं ।सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस ने तो चीन का बचाव कर इस मौन को और मान्यता दे दी है ।
हिंदी में एक मुहावरा है कि — जिसकी लाठी उसकी भैंस । चीन के पास लाठी है और उस लाठी से सारे मुस्लिम देश में भय खाते हैं , इसलिए लाठी के सामने सब मौन हैं । इधर भारत में यदि आप मुस्लिम समाज की कुछ बुराइयों पर आधुनिकता के नाम पर भी प्रहार करें या उनको आधुनिक शिक्षा देकर आधुनिकता के परिवेश में ढालने का प्रयास करें तो भी इतना भारी शोर हो जाता है कि जैसे उन पर कोई पहाड़ ही टूट गया हो। चीन इस्लाम को कभी पनपने नहीं देगा ,यह सत्य है। और यह भी सत्य है कि वह जितने भी अत्याचार करेगा कोई मुस्लिम देश उधर बोलेगा भी नहीं । इसके उपरांत भी भारत की कम्युनिस्ट पार्टियां मुस्लिमों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करती हैं तो यह केवल इसलिए है कि हमारे देश का भीतरी परिवेश बिगड़ा रहे और उसका लाभ इन पार्टियों को मिलता रहे। हम सबको ही इन सारे षडयंत्रों से सावधान रहना होगा।
चीन मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी क्यों नहीं घोषित होने देना चाहता ? उसका कारण एक ही है कि वह अपने यहां मुसलमानों के विरूद्ध जो दमनचक्र चला रहा है , वह चलता रहे और पाकिस्तान सहित सारे मुस्लिम देश उस पर मौन रहें । इसी में उसका राष्ट्रीय हित है । राज भी गहरा है और बात भी गहरी है। बस हमारे समझने की आवश्यकता है।

2 COMMENTS

  1. The issue is simple enough. Islam is not a spiritual system but a militarization of the society. Thus, all their agenda and actions are militancy. Islam will attack weak infidels, but practice ‘Taquiyya – lying’ against strong. Their attack is not about some universally accepted principles, but determined by the fighting motive and means of infidels. Thus, appeasing Islam is like appeasing a tiger with a morsel of meat. It will simply come for more. The solution is to teach what actually Islam is to all Muslims and non-Muslims, and keep a stout Lathi on the side for the defense. China learned about Islam long ago and have correct policy. Thus, Islam will bother India but not China. Islam attacked USA in 2001. Do you see any attack after American bombs up the behind Al Quida\Taliban?
    Read Quran: Al Taubah (9 – 29): Fight those who believe not in Allah nor the Last day, nor hold the forbidden which hath been forbidden by Allah and his messenger, nor acknowledge the Religion of Truth from among the People of the Book, until they pay the Jaziyah with willing submission. And feel themselves subdued.

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