मुस्लिम पोषित राजनीति को मुहंतोड़ जबाव

उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के विधान सभा चुनावों में जो अभूतपूर्व जीत बीजेपी को मिली है उसके पीछे कौन सी गुप्त शक्तियां काम कर रही है उससे समाचार जगत संभवत अनभिज्ञ हो सकता है।क्या कोई मीडिया प्रदेश में एक ही समुदाय की अराजकता व आतंकवादी घटनाओं से उत्पीड़ित समाज की पीड़ा को समझ पाया ? बहुसंख्यक हिन्दू समाज उदार व सहिष्णु है तो इसका अर्थ यह नहीं कि उसके ऊपर अत्याचार होते रहे और उन अपराधों को न्याय की परीधि में ही न लाया जाये। वैसे तो तुष्टिकरण की आत्मघाती राजनीति ने सदैव हिन्दुओं का दोहन किया और उसकी प्रतिरोधात्मक क्षमता का भी दमन करा है।आज राष्ट्र के साथ साथ प्रदेश की जनता भी राष्ट्रवाद व हिंदुत्व के प्रति अधिक सतर्क व जागरुक हो गयी है ।

उसने अराजकता व आतंकवाद के लिए उत्तरदायी समुदाय के सहयोगियों व उनको वोटों के लालच में उन्हें प्रोत्साहित करने वाले सभी अन्य दलों को नकार कर अपनी राष्ट्रभक्ति का लोकतांन्त्रिक तरीके से परिचय दिया है। यह “मोदी-शाह” जोड़ी की जीत नहीं यह उन करोड़ो सहनशील हिन्दुओं की जीत है जो दंगों में पिटते है, लुटते है पलायन करते है तभी वे इनसे बचने के लिये बीजेपी से अपेक्षा करते है कि वे उनकी रक्षा करेंगे इसीलिये इनको जिताते है।राष्ट्रवादियों ने विधानसभा चुनावों में लोकसभा चुनाव (2014) की भांति एक बार पुनः मुस्लिम वोट बैंक की धज्जियां उड़ा दी है। बहुसंख्यक हिन्दुओं ने जात-पात से ऊपर उठकर अपने अस्तित्व व स्वाभिमान की रक्षार्थ संगठित मताधिकार का सदुपयोग किया। लोकतांन्त्रिक मूल्यों के आधार पर अपनी उदार व सहिष्णु संस्कृति का परिचय कराते हुए राष्ट्रवादियों ने मुसलमानो के मताधिकारकोष की वर्षो से चली आ रही ब्लैकमेलिंग को तहस- नहस कर दिया है। जिन राजनैतिक दलों की एकमुश्त खुराक ही मुस्लिम वोट बैंक है उन सबकी वास्तविकता अब खुल गयी है। अब देश की जनता ‘धर्मनिरपेक्षता’ , ‘सांप्रदायिकता’, ‘अल्पसंख्यकवाद’ व ‘मानवाधिकार’ जैसे भारी-भरकम लुभावने शब्दों की परिभाषा अच्छे से समझने लगी है । वे इस आधार पर ढोंग रचने वाले राजनेताओं की मुस्लिम चाटुकारिता के लिए चली जा रही कुटिल चालो के चक्कर से बाहर आ रही है।

देश की स्वतंत्रता से पूर्व व पश्चात हिन्दुओं की उदारता व सहिष्णुता को अच्छे से ठगा गया। ध्यान रहें कि 1947 में विभाजन के समय लगभग 24% मुस्लिम आबादी को भारत का लगभग 30% भूभाग दिया गया परंतु केवल 16% मुसलमान ही वहां ( अविभाजित पाकिस्तान) में बस पायें। इस प्रकार अखंड भारत के विभाजन द्वारा 16% मुसलमानों को हमारे अदूरदर्शी नेताओं की मुस्लिम भक्ति के कारण लगभग दुगना भू भाग मिल गया । गांधी-नेहरु की भयंकर भूलों को हम आज भी भुगत रहें है।क्योंकि पाकिस्तान जाने वाले अधिकांश मुसलमान भारत में ही रुक गये । तत्पश्चात मुसलमानो ने अपने को भारतीय राजनीति में पुनः स्थापित करने के लिए जनसँख्या वृद्धि के मार्ग को अपनाया। मुसलमानों को विभिन्न राजनैतिक दलों में सक्रिय रह कर राजनीति में घुसपैठ बनाये रखने का सुझाव भी उस समय के मुस्लिम नेताओं द्वारा ही दिया गया था । तभी तो 1947 से ही संविधान के विरुद्ध जाकर अनेक लाभकारी योजनायें अल्पसंख्यकों के नाम पर चलाई जाती आ रही है। इनमें मुख्य रुप से मस्जिदों, मदरसों, हज यात्राओं, हज हाऊसो व कब्रिस्तानों का निर्माण व छात्रवृतियों में भरपूर आर्थिक सहायता की जाती आ रही है। इसके अतिरिक्त, उच्च शिक्षण केंद्रों की निशुल्क व्यवस्था, बैंको से कम व्याज पर आर्थिक सहायता, लड़कियों के लिए आर्थिक सहयोग आदि भी राजकोष पर निरंतर बोझ बने हुए है।

 

देश व प्रदेश में साम्प्रदायिकता के जहर कौन फैलाता है कौन उन शक्तियों को प्रोत्साहित करता है ? कौन है जो उनकी अनेक उचित- अनुचित मांगों को भी स्वीकार करके उनके वोटों की फसल काट कर बहुसंख्यकों को अपमानित करता है ? अधिक पीछे न जायें तो भी उ.प्र. में केवल पिछले 5 वर्षो (2012-17) की मुलायम-अखिलेश-आज़मख़ाँ की सरकार ने जिस प्रकार हिन्दुओं का खुलकर तिरस्कार किया गया है वह अपने आप में अत्यंत दुःखद है। यहां मै कुछ अति गंभीर घटनाओं के विवरण देना चाहूंगा जिनसे आप समझ सकेंगे कि पूरे प्रदेश में कैसा वातावरण रहा होगा ? सर्वप्रथम 14 सितंबर 2012 की एक मुख्य घटना डासना-मसूरी (ग़ाज़ियाबाद) राष्ट्रीय मार्ग 24 की है जिसमे मुस्लिम दंगाईयों ने इस मार्ग को 5-6 किलोमीटर लंबा घेर कर खुलेआम देर रात लगभग 6 घंटे तक आगजनी व लूटमार करते रहें। वहां से निकलने वाले हजारों राहगीरों को मौत्त का साया नज़र आने लगा, बहिन-बेटियों के साथ भी दुर्व्यवहार भी किया। साथ ही मसूरी थाने पर हमला बोल कर वहां 12 पुलिसकर्मियों सहित दर्ज़नो लोगो को गोलियों व पत्थरो से घायल करके वहां आग भी लगा दी।अपने बचाव में जब पुलिस कर्मियों ने गोलियां चलाई उससे 6 मुस्लिम दंगाई मारे गये। परंतु प्रदेश सरकार ने इन मारे गये उपद्रवियों को 5-5 लाख रुपये की सहायता ही नहीं करी उल्टा वहां के कुछ पुलिसकर्मियों को निलंबित भी कर दिया। इस भयानक एकतरफा मुस्लिम साम्प्रदायिकता के नंगे नाच में घायल व मरे हुए पुलिसकर्मी व उनके परिवार सहित अन्य लोगों को कोई सरकारी सहायता नहीं मिली। प्रदेश सरकार की मुस्लिम तुष्टीकरण की एक और मुख्य घटना 2 मार्च 2013 की प्रतापपुर जिले में कुंडा के सीओ डीएसपी जियाउल हक जोकि अपनी डयूटी करते समय दो गुटों के आपसी झगड़े में गलती से मारे गये तो उनकी पत्नी को डीएसपी बनाया व 50 लाख रुपये भी दिये इसके अतिरिक्त उसके भाई को भी सरकारी नौकरी दी गयी। जबकि 8 जनवरी 2013 को देश की रक्षा में तैनात लांसनायक हेमराज जो पाकिस्तानी सेना के हाथों मारे गए और उनका सिर भी काट कर वे दरिंदे अपने साथ ले गये थे। उसकी पत्नी को केवल 2 लाख रुपये देकर भारतभूमि के लिये बलिदान हुए हिन्दू वीर पर मुख्य मंत्री अखिलेश यादव की क्या कोई अनचाही विवशता थी।यहां अब सितंबर 2013 के मुजफ्फनगर दंगों का उल्लेख करना भी आवश्यक है क्योंकि आज़म खान के अप्रत्यक्ष संकेतों पर उस क्षेत्र के प्रशासन ने साम्प्रदायिकता का नंगा नाच होने दिया समय रहते उसे नियंत्रित नहीं किया गया जिससे वह दंगा कवाल गाँव से निकल कर कुछ और गावों तक फैल गया था। दंगे के विस्तार में यहां नहीं लिखूगां फिर भी इतना अवश्य समझ लो कि जब मुज़फ्फरनगर के केवल 32 गाँव ही दंगे से प्रभावित थे तो वहां मेरठ, सहारनपुर आदि व कुछ पानीपत ( हरियाणा) के कुल 147 गार्मो के तथाकथित दंगा पीड़ित मुसलमान कहां से आ गए ? कुछ समाज सेवी संस्थाओं ने मतदाता सूचियों से हिन्दुओं के नामों में झूठे सामूहिक बलात्कार व अन्य झूठे आरोप लगा कर रिपोर्ट लिखवाकर उनको दंगो का अपराधी बनाया व मुसलमानों को मुआवज़े दिलवायें। इसप्रकार अरबो रुपया राजकोष से मुस्लिम तुष्टिकरण की भेंट चढ़ गया परंतु दंगा पीड़ित हिन्दुओं को उनकी वास्तविक हानि का भी भाग नहीं मिला। उल्टा सैकड़ो हिन्दू युवाओं को पुलिस भर्ती के लिए अपनी बेकसूरी के शपथ पत्र देने पड़े थे। इन दंगा पीड़ित शिविरों में बच्चे भी पैदा हुए व जल्दी में सैकड़ो नाबालिग लड़कियों के निकाह हुए जिस पर करोडो रुपया प्रदेश सरकार ने बाटा था। राहत शिविरों में लगभग 50000 मुस्लिमों ने लाभ उठाया था। यहां यह कहना अनुचित नहीं होगा कि सरकार की मुस्लिम पोषित नीतियों के कारण साम्प्रदायिक दंगे “दंगा उद्योग” बन जाते है जिसमें पीड़ित कम दलाल अधिक लाभ उठाते है।

उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री आजम खान का रौब मुख्यमंत्री से कम नहीं समझा गया। लेकिन उनकी मानसिकता को समझने के लिए 8 फरवरी 2012 को पिछले चुनावों की गोरखपुर में चुनावी सभा में मुसलमानों को भड़काते हुए उन्होंने जो कहा था वह पर्याप्त है कि “बदलाव लाओ और सपा सरकार के गुजरे उस कार्यकाल (2002 से 2007) को याद करो जब थाने के लोग “दाढ़ी” पर हाथ धरने से डरते थे”।( दैनिक जागरण 08.02.2012)। आज़म खान प्रदेश में दादागिरी दिखाते हुए मुसलमानों को भी दबंग बने रहने के लिए कहते थे। वे अधिकारियों के लिए उनसे कहते थे कि “अधिकारी न आपके रिश्तेदार है और न मेरे, आप चाबुक हाथ मे रखिये वह सब सुनेंगे “।( दैनिक जागरण 31.01.2013) । भारत माता को डायन कहने वाले नगर विकास मंत्री आजम खान हिन्दू अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ दुर्व्यवहार करते हुए कभी किसी को मुर्गा बनाते है तो किसी को कान पकड़ कर बैठक लगवाते है और चांटा मारना व डाट-डपट करना तो उनके लिये सामान्य बात है।
उत्तर प्रदेश की सरकार मुसलमानों की चापलूसी के नये नये ढंग ढूंढती है जैसे प्रतिवर्ष नवम्बर माह में “अल्पसंख्यक कल्याण सप्ताह” व दिसम्बर माह में “अल्पसंख्यक अधिकार दिवस” मनाये जाते है।
समाजवादी पार्टी को कुछ लोग नामाज़वादी पार्टी भी कहने लगे थे।इनके कार्यकाल में बरेली, लखनऊ, कानपुर,इलाहाबाद, आगरा, मेरठ, मुज़फ्फरनगर,सहारनपुर मुरादाबाद आदि के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर छोटे बड़े लगभग हज़ार से ऊपर साम्प्रदायिक विवाद व दंगे हुए जिनमें हिन्दुओं का ही अधिक उत्पीड़न हुआ । इन सबमें सारा सरकारी वातावरण मुसलमानों के पक्ष में रहा जिससे बहुसंख्यक हिन्दू समाज को अरबो की आर्थिक हानि उठाने के बाद भी अपमानित व तिरस्कृत होना पड़ा । कैराना व कांधला जैसे अनेक स्थानों से इन मुस्लिम दरिंदों व कुशासन के कोप के कारण हिन्दुओं को पलायन होने को भी विवश होना पड़ा।

आपको स्मरण होगा कि पिछले चुनावों (2012) में समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम आतंकवादियों को रिहा करने का वायदा किया था।इससे प्रेरित होकर कुछ मुस्लिम नेताओं ने “रिहाई मंच” का भी गठन किया था। प्रदेश सरकार के अनेक प्रयासों के उपरान्त भी उच्च न्यायालय के उनको रिहा न करने के निर्णय ने राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बंधित अत्यंत संवेदनशील कार्य को राजनीति की भेंट चढने से बचा लिया । इसी संदर्भ में एक और घटना है जिसमें 23 नवम्बर 2007 में लखनऊ , वाराणसी व फैज़ाबाद के न्यायलय परिसर में एक साथ हुए बम धमाकों के सिलसिले में जौनपुर का खालिद मुजाहिद को विस्फोटकों सहित एसटीएफ ने 22 दिसम्बर 2007 को गिरफ्तार किया था। लेकिन इस बीमार आतंकी की 18 मई 2013 को फैज़ाबाद न्यायालय में सुनवाई के बाद वापस लखनऊ लाते समय बाराबंकी के पास तबियत बिगड़ने पर इलाज़ के लिए अस्पताल ले जाते समय मौत्त हो गयी थी । परंतु उसी दिन इसके परिवार वालों व राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल ने जगह जगह उत्पात मचा कर सरकार पर दबाव बनाया और 7 अधिकारियों सहित कुल 42 पुलिस कर्मचारियों के विरुद्ध बिना जांच-पड़ताल के तुरंत हत्या आदि के आपराधिक विवादो की एफ.आई.आर. लिखवाई गयी । इस आतंकी के परिवार वालों को 6 लाख रुपये की आर्थिक सहायता की भी घोषणा की गयी थी।

आपको सोच कर आश्चर्य होगा कि अनेक स्वाभाविक सड़क दुर्घटनाओं में भी मुस्लिम समुदाय साम्प्रदायिकता का नंगा प्रदर्शन करके वहां लूटमार, आगजनी व सड़क घेरते है। वे जान-माल की हानि पर सरकार से 20 से 30 लाख रुपये की सर्वथा अनुचित मांग करते है । जैसे एक घटना जुलाई 2015 की है जब हापुड़ के पास सपनावत गाँव में एक हिन्दू ट्रेक्टर वाले की टक्कर से मुस्लिम तांगे वाले की दुर्घटना वश हुई मौत पर कुछ कट्टरपंथियों ने वाहन जलाये, पथराव व फायरिंग भी की तथा शव को सड़क पर रख कर जाम लगा कर दंगे की भयंकर स्थिति बना दी फिर 20 लाख रुपये की सरकार से मांग रख दी थी। सर्वाधिक कुप्रचारित 28 सितंबर 2015 की रात में विसाहड़ा (ग्रेटर नोएडा) की घटना तो केंद्रीय सरकार को ही घेरने का असफल षड्यंत्र बनी थी । जिसमें गोवंश का दोषी अख़लाक़ के परिस्थितिवश मारे जाने पर राज्य सरकार ने लाखों के फ्लैट व लगभग 45 लाख रुपये की सहायता से अपनी मुस्लिम चापलूसी का एक प्रमाण और दिया था।दिल्ली-उ.प्र. की सीमा पर स्थित ग़ाज़ियाबाद की ऐतिहासिक हिंडन नदी के डूब क्षेत्र में करोड़ों रुपये की लागत से अनावश्यक विशाल “हज़ हाऊस” बना कर अखिलेश सरकार ने पुरे प्रदेश के हिन्दुओं को ठेंगा दिखाया है । भविष्य में यह कभी आतंक़ियों की शरणस्थली न बन जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं ? ध्यान रहें इस बहुविवादित हज़ हाउस से सम्बंधित विवाद संभवतः अभी भी न्यायालय में उचित निर्णय की प्रतीक्षा कर रहा हो।

यहां यह भी लिखना उचित ही है कि अपने ही देश में उसके भूमि पुत्रो के अस्तित्व को ही नष्ट करने का एक बड़ा विभाजनकारी असंविधानिक “साम्प्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक 2011” को सोनिया गांधी ने विशेष रुप से तैयार करवाया था। इस विधेयक के 67 पृष्ठों का सार संक्षेप यह था कि “अल्पसंख्यक (ईसाई,मुसलमान आदि) दोषी नहीं हो सकते और बहुसंख्यक (हिन्दू) निर्दोष नहीं हो सकता “। एक रिटायर्ड वरिष्ठ आई ए एस ने तो इस प्रस्तावित विधेयक पर अपनी टिप्पणी करते हुए कहा था कि “भारत हिन्दुओ के लिए एक बड़ा कारागार हो जायेगा और मुसलमानों व ईसाईयों के लिये स्वर्ग बन जायेगा”। हालांकि इस अलोकतांत्रिक व अत्याचारी विधेयक के प्रस्ताव को लाने वाली कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों को 2014 के लोकसभा चुनाव में ही राष्ट्रवादी बहुसंख्यक हिन्दुओं ने धूल चटा दी थी । लेकिन अन्य क्षेत्रीय पार्टियां जो जीतती तो है बहुसंख्यको की वोटो से पर काम ऐसा करती है जैसे उनकी सरकार बनी ही केवल अल्पसंख्यक मुसलमानों के लिये, को भी विधान सभा चुनावो में राष्ट्रवादियों ने पुनः उचित पाठ पढ़ाया है।
इन सबके अतिरिक्त आपको 17 दिसम्बर 2006 की राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक याद होगी जिसमें उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने बड़ी बेशर्मी से कहा था कि ” देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों (मुसलमानो) का है।”

यह विषय अति गंभीर व राष्ट्रीय अस्मिता एवं स्वाभिमान का है जिस पर जितना चाहो लिखा जा सकता है पर प्रकाशक की सीमायें होती है ।अतः अंत में जो लिख रहा हूं वह भी आवश्यक है नहीं लिखूंगा तो कुछ अधूरा लगेगा।क्योंकि जब जिहाद के नाम पर सिम्मी, इंडियन मुजाहीदीन, लश्करे-ए-तोइबा, अलक़ायदा आदि ने तो बम ब्लास्ट करके हज़ारो निर्दोष नागरिको का रक्त बहाया तो मुस्लिम पोषित राजनीति के उदासीन होने रहने का दुष्परिणाम यह हुआ कि विश्व का सबसे खूंखार आतंकी संगठन आई एस ने हमारे देश भारत में 2020 तक निज़ामे-ए-मुस्तफा स्थापित करके “खुरासान” बनाने की धमकी ही दे दी है। इस्लामिक स्टेट की घिनौनी मानसिकता उसके आतंकियों द्वारा भगवा/नारंगी चोला पहना कर गैर मुस्लिमों (काफिरो) की गर्दन काट कर, पशु की भांति उल्टा लटका कर, पिंजरे में जला कर व पानी में डुबों कर आदि अनेक वीभत्स तरीको से सामूहिक कत्लेआम किये जाने से समझी जा सकती है। जिससे भारत सहित विश्व के अनेक देशों का सभ्य समाज आतंकित हो रहा है।उनके द्वारा कॉफिरो की लड़कियों , युवतियों व महिलाओं को मंडियों में आयु वर्ग के अनुसार फल-सब्ज़ी के समान बेचना अमानवीय अत्याचार नहीं तो और क्या है ? इन क्रूरतम हिंसक जिहादियों से बचने के लिये मुस्लिम पोषित राजनीति पर अंकुश (ब्रेक) लगाना भी हम सब का सामूहिक उत्तरदायित्व है।

इस प्रकार अनेक असंवैधानिक व साम्प्रदायिक वैमनस्य बढ़ाने वाली राजनेताओं की योजनाओं से हिन्दू हृदय कब तक द्रवित होता रहेगा। उसका घर-दूकान लुटे , जले, बहन-बेटियों का अपहरण हो तो मुस्लिम समुदाय पर लुटाने वाली राजस्व की राशि देने वाले हिन्दू कब तक ऐसे अत्याचार को सहे ? आज सोशल मीडिया में जागरुक समाज ने हिन्दुओं को उन सभी दुराचारियों व देशद्रोहियों के साथ साथ कट्टरपंथी मुसलमानों के अन्याय पूर्ण दुर्व्यवहारो से अवगत करा दिया है।अतः इन चुनावो में बीजेपी की महा विजय के लिये मोदी जी व उनकी टीम के विशेष प्रयासो के अतिरिक्त उन लाखों राष्ट्रवादियों का भी सतत प्रयास रहा जो वर्षो से नींव में रहकर अपना राष्ट्रीय कर्तव्य निभा रहें है। भारत के राष्ट्रवादी समाज को कुशल प्रशासक व साहसिक निर्णय लेने की क्षमता रखने वाले प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी से बहुत आशायें है तभी तो उन्होंने मोदी जी के “सर्जिकल स्ट्राइक” का मान बढ़ाते हुए राजनैतिक चालबाजों को “मुंहतोड़ जबाव” दिया है ।

विनोद कुमार सर्वोदय

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