मेरा ईश्वर सबसे महान है

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मनमोहन कुमार आर्य

इससे पूर्व कि हम ईश्वर की महानता की चर्चा करें, हम यह जान लें कि ईश्वर है क्या? ईश्वर वह है जो इस संसार की रचना करता है, इसका पालन करता है और अवधि पूरी होने पर इसकी प्रलय करता है। यह कार्य स्वतः नहीं हो सकता। जड़ पदार्थों में स्वमेव किसी उद्देश्यपूर्ण रचना करने की क्षमता वा सामर्थ्य नहीं होती। कोई भी ज्ञानपूर्ण रचना किसी चेतन सत्ता के द्वारा ही होती है जिसे उसका ज्ञान, अनुभव होने के साथ उसके निर्माण की शक्ति व सामर्थ्य भी उसमें हो। ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ आदि गुणों वा स्वरूप वाला है। उसके पास सृष्टि रचना, पालन व प्रलय करने का ज्ञान भी है, अनुभव भी व सामर्थ्य भी है। अतः ईश्वर अपने सहज स्वभाव से इस सृष्टि की रचना कर इसका संचालन करता है। हमारा यह ईश्वर महान किस कारण से है? इसका उत्तर हमें यह लगता है कि इस वृहद संसार को बनाकर ईश्वर ने संसार के सभी जीवों, मनुष्यों एवं प्राणिमात्र पर महान उपकार किया है। माता, पिता अपनी सन्तानों के लिए घर बनाते हैं व उनका भोजन एवं शिक्षा द्वारा पालन करते हैं। इससे वह महान कहलाते हैं। माता-पिता तो केवल एक से तीन चार सन्तानों व कई मामलों में कुछ अधिक भी सन्तानों का पालन करते हैं परन्तु सृष्टिकर्ता ईश्वर तो अनन्त जीवों के सुख के लिए इस महान संसार को बनाता है व सभी को उनके कर्मानुसार एक एक शरीर देकर उन्हें भोजन, बल, ज्ञान, ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रियों द्वारा सुख प्रदान करता है। हमारी यह सृष्टि जिसमें सूर्य, पृथिवी, चन्द्र व अन्य ग्रह आदि अनन्त संख्या में है, ईश्वर ने ही बनाई है। यह पृथिवी सूर्य की परिक्रमा कर रही है। चन्द्रमा पृथिवी की परिक्रमा कर रहा है। हमें यह पता भी नहीं चलता कि हम 30 किमी. प्रति सेकेण्ड अर्थात् 1800 किमी. प्रति मिनट या 1,08,000 किमी. प्रति घंटा की गति से सूर्य की ओर पृथिवी रूपी बस में बैठे हुए यात्रा कर रहे हैं। एक दिन में हम बिना कुछ किये ही 25,92,000 किमी. की यात्रा करते हैं और हमें इसका अहसास भी नहीं होता जबकि यदि हमें बस में एक घंटा ही यात्रा करनी पड़े तो हमें थकान अनुभव होती है। हमारी यह यात्रा जन्म के दिन से ही आरम्भ हुई थी और मृत्यु के दिन तक जारी रहेगी। इससे भी अनुमान लगता है कि वह ईश्वर कितना महान है जो हमें प्रतिदिन 25.92 लाख किमी. की यात्रा कराता है। हम पृथिवी रूपी मां की गोद, बस या रेलगाड़ी में बैठे हुए यात्रा कर रहे होते हैं और जीवन भर सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं। इससे यह भी सन्देश मिलता है कि जिस प्रकार पृथिवी अपने पिता सूर्य की परिक्रमा निरन्तर करती रहती है उसी प्रकार हमें भी अपने माता व पिता उस ईश्वर की ध्यान आदि साधनों के द्वारा निरन्तर उपासना रूपी परिक्रमा करनी चाहिये। इनसे विचार सबसे महान सिद्ध होता है।

ईश्वर ने न केवल इस सृष्टि को बनाया है एवं वह इसका पालन कर रहा है अपितु उसने इस सृष्टि में ऋतुओं को भी बनाया है। समय पर वर्षा होती है। पर्वतों पर हिमपात होता है। उससे जल बनता है और नदियां बहती हैं जो हमारे खेतों की सिंचाई ही नहीं करती अपितु हमें पीने के लिए जल भी प्रदान करती हैं। वृक्ष हमें प्राण वायु देते हैं। अग्नि जब हमारे शरीर के भीतर होती है तो वह हमारे भोजन को पचाती है तथा हमारे प्राणों के द्वारा शुद्ध वायु को पूरे शरीर में पहुंचाती हैं। अशुद्ध वायु बाहर आती है तो वह भी परमात्मा द्वारा बनाये गये हमारे प्राणों द्वारा ही सम्भव होता है। इसी प्रकार से इस सृष्टि में परमात्मा ने हमारे सुख व उपभोग के लिए नाना प्रकार के पदार्थ बना रखे हैं जो हमें उसकी ओर से निःशुल्क प्राप्त होते हैं। इन कार्यों से भी परमात्मा महान सिद्ध होता है क्योंकि ऐसे कार्य अन्य कोई नहीं कर सकता।

हम जीवात्मा हैं और हमारी जैसी जीवात्मायें ही सभी प्राणियों में विद्यमान हैं। हमारे जो शरीर हैं वह हमारे पूर्व जन्म के कर्मानुसार अर्थात प्रारब्ध के अनुसार परमात्मा ने हमें बनाकर दिये हैं। हमें जो माता-पिता, आचार्य एवं कुटुम्बीजन प्राप्त होते हैं उन्हें भी परमात्मा ही हमें प्राप्त कराता है। हमारे शरीर की रक्षा के लिए भी परमात्मा ने प्रबन्ध कर रखे हैं। परमात्मा ने हमारा व अन्य प्राणियों का शरीर ऐसा बनाया है कि यह बहुत कम रुग्ण होता है। यदि कभी होता भी है तो इसका कारण हमारा कुपथ्य करना होता है। इस पर भी परमात्मा ने हमें स्वस्थ करने के लिए प्रायः सभी रोगों की औषधियां सृष्टि में उत्पन्न कर रखी हैं। यह बात और हैं कि हम वेद और आयुर्वेद आदि शास्त्रों का अध्ययन कर नई नई औषधियों की खोज नहीं करते। यदि हमने प्रयत्न किये होते तो कोई कारण नहीं की हमारे पास सभी रोगों की औषधियां होती। आज भी हम प्रयत्न करें तो सभी रोगों की चिकित्सा सम्भव है। हमें स्वस्थ रहने के लिए अल्प मात्रा में पौष्टिक भोजन करने सहित व्यायाम, योगाभ्यास व ध्यान आदि क्रियाओं पर भी ध्यान केन्द्रित करना चाहिये। इससे हमें यह लाभ होगा कि हम रोगी नहीं होंगे और स्वस्थ रहते हुए दीर्घायु को प्राप्त करेंगे। र्प्यावरण को शुद्ध रखना सभी का कर्तव्य है। जो प्रदुषण करता है वह पाप करता है। हमें ऐसी नयी व्यवस्था का निर्माण करना है जिसमें वायु प्रदुषण आदि न हो, तभी यह देश व विश्व रोगरहित व दुःखों से मुक्त होकर स्वस्थ हो सकता है।

परमात्मा की एक अन्य कृपा सभी मनुष्यों पर और भी है। वह यह है कि उसने सृष्टि की आदि में चार वेदों का ज्ञान दिया था। सृष्टि की उत्पत्ति से अब तक 1.96 अरब वर्षों का समय बीत जाने पर भी वेद ज्ञान आज भी सुरक्षित है। इससे हमें ईश्वर व जीवात्मा सहित सृष्टि का भी यथार्थ ज्ञान प्राप्त होता है। हमारा जन्म क्यों हुआ, हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है, जीवन के लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के साधन क्या हैं, हमें अपना जीवन कैसे व्यतीत करना चाहिये, ईश्वर उपासना कैसे व क्यों करें तथा उपासना से हमें क्या लाभ होता है, परोपकार व सेवा की महिमा आदि सभी पर वेद, वेदांग और उपांगों में हमें मार्गदर्शन दिया गया है। ऋषि दयानन्द ने विद्या प्राप्त कर अपना जीवन पूर्ण वैदिक रीति से व्यतीत कर हमारे सामने आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है। हमें भी उस आदर्श के अनुरूप स्वयं को बनाना है। बनायेंगे तो लाभ में रहेंगे और नहीं बनायेंगे तो हमें हानि उठानी होगी। ईश्वर का हर कार्य व पुरुषार्थ जीवात्माओं के सुख लाभ के लिए होता दिखाई देता है। वह एक, दो या तीन सन्तानों का नहीं अनन्त जीवात्माओं का माता-पिता व आचार्य है व सबके साथ न्याय का व्यवहार करता है। सज्जनों को सुख व दुष्टों को दण्ड देता है। अतः उस ईश्वर जैसा कोई महान नहीं हो सकता और न अन्य किसी के ईश्वर के समान महान होने की कल्पना ही की जा सकती है। अतः मेरा वा हम सबका ईश्वर सबसे महान पुरुष है। वह अन्धकार से रहित और सूर्य के समान प्रकाशमान है। उसी को जानकर हम मृत्यु रूपी दुःख पर विजय प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त हो सकते हैं। दुःखों से मुक्त होने व मोक्ष प्राप्ति का अन्य कोई मार्ग नहीं है। हमें अपने जीवन का पर्याप्त समय वेदाध्ययन व वेदानुकूल जीवन व्यतीत करते हुए वेद प्रचार में लगाना चाहिये। ऐसा करके ही हम महान ईश्वर के सच्चे पुत्र व पुत्री कहे जा सकते हैं। इसी के साथ इस चर्चा को विराम देते हैं। ओ३म् शम्।

 

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