म्यांमार ऑपरेशन के दूरगामी परिणाम

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army in myanmar  मणिपुर में सेना पर आंतकी हमले के बाद भारत सरकार ने आतंकियों को मुंहतोड़ उत्तर देने की जो रणनीति अपनाई है,उससे देश की जनता और सेना में यह संदेश गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आत्मबल मजबूत हैं और इनमें निर्णय लेने की क्षमता है। वैसे भी मोदी को इतना बड़ा बहुमत केवल विकास के लिए नहीं मिला,उसमें देश की सीमाई सुरक्षा और आतंकवाद को निर्मूल करना भी मतदाता की मंशा भी शामिल है। म्यांमार के सफल ऑपरेशन से जहां पाकिस्तान बौखलाहट की हद तक उतर आया है,वहीं चीन सहमा है। क्योंकि उसने आतंकियों को मदद देने वाली खबरों का खंडन किया है। जाहिर है,उग्रवाद के विरूद्ध इस एक सख्त कार्रवाई से भारत के प्रति दुनिया का नजरिया बदलने लगा है। बावजूद कांग्रेस की परेशानी हैरानी में डालने वाली है। सरकार की इस अहम् कार्रवाई की अलोचना करके वह अपने सिकुड़ते राजनीतिक दायरे को और संकीर्ण करने की भूमिका रच रही है,जबकि उसे रचनात्मक विपक्ष के रूप में पेश आने की जरूरत थी ?

किसी दूसरे देश की सीमा में घुसकर आतंकवादियों और उनके शिविरों को नष्ट करना कोई मामूली काम नहीं है। क्योंकि हरेक देश के सीमाई देशों से मैत्री संबंध होते हैं। म्यांमार की सीमा चीन से जु़ड़ी हैं और यहां बड़ी संख्या में चीन के प्रशंसक लोग भी रहते हैं। वैसे उग्रवादियों के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति मिली हुई है। भारत और म्यांमार के बीच भी ऐसी कार्रवाइयां करने की संधि है। इन सैद्धांतिक सहमतियों के चलते ही भारतीय सेना म्यामांर की सीमा में 5 किलोमीटर तक घने जंगलों में घुसती चली गई और चंद मिनिटों में 38 उग्रवादियों को मौत के घाट उतार दिया। ये सभी एनएससीएन संगठन के सदस्य थे। इन्हीं ने मणिपुर के चंदेल जिले में सेना के काफिले पर हमला करके 18 सैनिकों को मार दिया था। इस हमले से देश को चितिंत होना इसलिए जरूरी था,क्योंकि पूर्वोत्तर में तीन दशक बाद सेना पर इतना बड़ा हमला हुआ था। इस हमले को लेकर आश्चर्य इसलिए भी था,क्योंकि भारतीय गुप्तचर संस्थाओं को हमले की भनक भी नहीं लग पाई थी ? अब जाकर खुफिया सूत्र बता रहे हैं कि म्यांमार कार्रवाई के बाद भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में खापलांग गुट के 20 उग्रवादी घुस आए हैं,जो कभी भी हमला कर सकते हैं। देश में बड़े आतंकी हमले के बाद ऐसी सूचनाएं देना हमारी खुफिया एजेंसियों की आदत बन गई है।

भारतीय खुफिया एजेंसियों ने सेना पर आतंकी हमले के बाद ऐसी आशंका जताई थी कि चीन उत्तर पूर्व में आतंकी संगठनों की मदद करके गड़बड़ी फैलाने की साजिश रच रहा है। पहले तो चीन ने इस आशय की खबरों को कोई तवज्जो नहीं दी,लेकिन जैसे ही म्यांमार ऑपरेशन सफलतापूर्वक समाप्त हुआ,चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग लेई का बयान आ गया कि ‘चीन सरकार दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती। और वह किसी देश में सक्रिय सरकार विरोधी ताकतों को समर्थन नहीं देता।‘ इससे साफ होता है कि चीन ऑपरेशन की कामयाबी से सहमा है। जबकि भारत सरकार के पास ऐसे पुख्ता सूत्र हैं कि चीन पुर्वेत्तर के उग्रवादी संगठनों के अलावा नेपाल और भारत में सक्रिय माओवादी नक्सलियों को धन व हथियार देता रहा है।

असम समेत पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में बांग्लादेश भी घुसपैठ कराने और आंतक को बढ़ावा देने में उग्रवादियों का मददगार रहा है। लेकिन यहां शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद और मोदी की बांग्लादेश यात्रा के बाद हालात बदले हैं। उल्फा को यहां से मदद और पनाह मिलती रही है,लेकिन अब लगभग विराम लग गया है। एक समय उल्फा की शरणगाह भूटान भी रहा है। यहां अटल बिहारी वाजपेयी के नुतृत्व वाली राजग सरकार के दौरान 2003 में भारतीय सेना और भूटान की सैन्य टुकड़ियों ने मिलकर उल्फा तथा नेशनल डेमोके्रटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैंड संगठनों की कमर तोड़ दी थी। तब से इनके बचे-खुचे उग्रवादी भूटान की सीमा लांघने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं। इधर मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद भूटान की पहली विदेश यात्रा करके इसे अपना खास मित्र बना लिया है।

बावजूद पूर्वोत्तर में उग्रवादियों की ताकत इसलिए बढ़ गई,क्योंकि यहां बिखरे तमाम उग्रवादी संगठनों ने मिलकर एक साझा संगठन कुछ समय पहले बना लिया है और तभी से सेना पर हमले तथा अन्य हिंसक वारदातें निरंतर देखने में आ रही हैं। इनमें मणिपुर में सक्रिय गुटों के अलावा कामतापुर लिबरेशन आॅर्गनाइजेषन,नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आॅफ नगालिम का खापलांग गुट,एनडीएफ का सोनबिजित गुट और उल्फा का परेश बरूआ गुट शामिल हैं। इस समय इनमें सबसे ताकतवर गुट एनएससीएन है। इसमें 1500 लड़ाकू जवान हैं और करीब 1000 शिविरों में नए उग्रवादी तैयार किए जा रहे हैं। फिलहाल इस आकस्मिक ऑपरेशन से ये उग्रवादी तितर-बितर भी हुए और इनका मनोबल भी टूटा है,क्योंकि इन्हें इतनी त्वरित और निर्णायक सैन्य कार्रवाई की उम्मीद नहीं थी,वह भी म्यांमार की सीमा में !

इस ऑपरेशन की कामयाबी से पाकिस्तान में हड़कप मच गया है। इस आग में घी डालने का काम सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्द्धन सिंह राठौर के बयान ने भी किया है। राठौर ने कहा है ‘म्यांमार में भारतीय सेना की कार्रवाई उन देशों के लिए संदेश है,जो आतंकवादी इरादे रखते हैं। चाहे वो पश्चिम में हों अथवा उस खास देश में जहां अभी हम गए हैं। ‘इस बयान के जारी होने के बाद पाकिस्तान लगभाग बौखला गया है। नतीजतन वहां सभी विपरीत ध्रुवों में एकता देखने में आ रही है। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने आनन-फानन में सीनेट की बैठक बुलाकर भारत के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया है। पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने तो ‘पाकिस्तान म्यांमार नहीं है‘ कहने के साथ परमाणु बम के इस्तेमाल की धमकी भी दे दी है। दूसरी तरफ पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना भी सक्रिय दिखाई देने लगे हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि पाकिस्तान म्यांमार नहीं है। और न भारत को पाकिस्तान को म्यांमार समझने की भूल करनी चाहिए। क्योंकि पाकिस्तान भारत का खुला दुश्मन है,जबकि म्यांमार मित्र देश है। भारत-पाक सीमा पर न केवल पाक सेना मुस्तैद है,बल्कि सेना की वर्दी में बड़ी संख्या में हथियारवंद आतंकवादी भी तैनात हैं। जबकि म्यांमार सीमा पर सेना की निगरानी नहीं है। लिहाजा अमेरिका की वायु सेना ने जिस तरह से पाक के ऐबाटाबाद में उतरकर ओसामा बिन लादेन को निपटा दिया था, उसी तर्ज पर भारत का दाऊद या लखवी को निपटाना मुश्किल है ? पाक की परमाणु हथियार के इस्तेमाल की धमकी को महज गीदड़ भवकी मान लेना एक भूल होगी ? क्योंकि पाक इन हथियारों को इस्तेमाल आतंकवादियों के हस्ते कर सकता है ? इसलिए परवेज मुशर्रफ ने कहा भी है कि परमाणु बम शब-ए-बारात में फोड़ने के लिए नहीं है। बावजूद आंतकियों के हाथ परमाणु बम देने इसलिए मुश्किल है,क्योंकि पाक आतंकियों का संरक्षक देश होने के साथ आतंक से पीड़ित देश भी है। ऐसी परिस्थिति में आतंकियों के हाथ परमाणु हथियार लगते हैं,तो ये उसके स्वंय के लिए भी घातक साबित हो सकते हैं ? एक अंतरराष्ट्रिय एजेंसी द्वारा परमाणु हथियारों की उपलब्धता पर किए सर्वे के मुताबिक भारत के पास जहां 93 सं 100 परमाणु बम है,वहीं पाक के पास 100 से 110 परमाणु बम हैं। शायद इन सब जानकारियों से वाकिफ होने के कारण ही रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कांटे से कांटा निकालने की बात कही थी। पाकिस्तान और पाक-परस्त आंतकियों से निपटने का यही उपाय कारगार है। बहरहाल यह ऑपरेशन कालांतर में व्यापक और दीर्घकालिक असर छोड़ेगा,इसलिए इसके दूरगामी परिणामों को गंभीरता से लेने की जरूरत है।

 

प्रमोद भार्गव

 

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  1. मोदीजी के मंत्रियों का बड़बोलापन मोदीजी को भारी पड़ेगा. वैसे भी कुछ सांसद और मंत्री यदा कदा उलुल जुलूल और उटपटांग बयान कभी जनसँख्या को लेकर कभी योग को लेकर देते रहते हैं. यदि सभी सफलताओं के बाद भी मोदीजी को बिहार में और आगे दिल्ली की तर्ज पर सीटें मिली तो ये साधु,साध्वियां ,सांसद, और मंत्री ही जवाबदार होंगे. अभी भी समय है.

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