म्यांमार में सैनिक अभियान से पाक में भय और बेचैनी का आलम

-अशोक प्रवृद्ध”-

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चोरी-छुपे छद्म रूप से घात लगाकर मणिपुर के चंदेल जिले में भारतीय सेना के अठारह जवानों की हत्या करने वाले आतंकवादियों का भारतीय सेना ने म्यांमार में घुसकर साहसिक कमांडो कार्रवाई के माध्यम से जो दुर्गति की है,उससे न केवल भारतीय सेना की सक्रियता और विदेशी धरती में उसके साहस और शक्ति का अदम्य प्रदर्शन हुआ है, बल्कि उससे पडोसी देश पाकिस्तान थर्राया हुआ है और दोनों देशों में प्रतिक्रियाओं का एक नया दौर चल पडा है। भारतवर्ष में जहाँ मणिपुर में भारतीय सैनिकों के हत्यारों को म्यांमार में मार गिराए जाने से देश की जनता और सेना का मनोबल ऊँचा हुआ है, वहीं भारतीय मंत्रियों के बयान और भारतीय सेना के बुलन्द हौसले के समक्ष पाकिस्तानी सेना, वहाँ की सरकार के नेताओं और हुक्मरानों में भारी भय, बेचैनी, हताशा व थरथराहट व्याप्त है। भय, हताशा व थरथराहट का आलम यह है कि पाकिस्तान के आन्तरिक मामलों से जूझ रही पाकिस्तानी सेना और जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के छद्म अभियान से जुड़े आतंकवादियों, विघटनकारियों में बड़ी अफरा-तफरी और खलबली मच गई है और पाक को अपना सुरक्षित शरणगाह बनांये हुए उग्रवादी संगठन अपने ठिकाने बार-बार बदलने लगे हैं। म्यांमार में सैनिक कार्रवाई से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है और उसके सामने यह संकट आन खड़ा हुआ है कि वह अपने देश और अपनी सेना के धराशायी मनोबल को कैसे ऊपर उठाये? पाकिस्तान मान रहा है कि भारतवर्ष उसके यहाँ भी म्यांमार जैसी सैनिक कार्रवाई कर सकता है, और इस बेचनी में पाकिस्तानी नेता भारत को परमाणु बम इस्तेमाल करने की धमकी देने लगे हैं।

म्यांमार में उग्रवादियों के विरूद्ध भारतीय सैनिक अभियान के पश्चात् पाकिस्तानी नेताओं और हुक्मरानों के बयानों में बौखलाहट स्पष्ट देखी जा सकती है। भारतवर्ष की इस सैनिक कार्रवाई ने पाकिस्तान को झकझोर कर रख दिया है, जिसकी प्रतिक्रिया में पाकिस्तान के रक्षा मंत्रालय से जुड़े मंत्री राणा तनवीर हुसैन ने एक आधिकारिक बयान में भारत को चेतावनी देते हुए कहा है कि हम म्यांमार नहीं हैं, क्या आपको हमारी सैन्य शक्ति का एहसास नहीं है? पाकिस्तान एक न्यूक्लियर नेशन है, इस कारण भारत को दिन में सपने देखना बन्द कर देना चाहिए। उधर पाकिस्तान के गृहमंत्री चौधरी निसार अली खान ने भी तिलमिलाकर चेतावनी भरे लहजे में कहा कि पाकिस्तानी सुरक्षा बल विदेशी हमलों का जवाब देने में पूरी तरह सक्षम है। पाकिस्तान की थरथराहट का ही यह परिणाम है कि म्यांमार में सैनिक कार्रवाई के पश्चात् वहाँ के हुक्मरान, पाकिस्तानी मंत्री, नेताओं के साथ ही पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने चेतावनी देते हुए कहा कि भारत का एजेन्डा पाकिस्तान को दबाने का है अगर भारत से बराबरी करके मुकाबला नहीं किया जाएगा तो वो और दबाएगाभारत हमारी सीमा में ना घुसे क्योंकि हम छोटी ताकत नहीं बल्कि न्यूलियर पॉवर हैं अगर हमारा वजूद खतरे में आता है तो ये किसलिए रखे हैं? हम पर हमला नहीं कीजिए क्योंकि हम एक बड़ी और परमाणु शक्ति हैं। इस कमाण्डो अभियान अर्थात आपरेशन ने चीन और पाकिस्तान समेत शेष भारतवर्ष विरोधी उग्रवादी संगठनों के संरक्षक विदेशी संसार को चौकन्ना कर चिंतित कर दिया है कि भारतवर्ष आतंकवाद के विरूद्ध इस पराकाष्ठा तक भी जा सकता है। जबकि चीन आज तक म्यांमार में ऐसा आपरेशन करने में नाकाम रहा है, हालाँकि वहाँ के कोकांग विद्रोही अतिवादियों ने चीन की नाक में दम कर रखा है।

 पाकिस्तान की थरथराहट, तिलमिलाहट व बौखलाहट का एक कारण यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतवर्ष के विरूद्ध खड़े सभी उग्रवादी गुटों पर सख्त कार्रवाई के लिए सेना को छूट दे दी है। उस पर तुर्रा यह कि भारतीय सेना को इधर प्रधानमंत्री ने तत्काल म्यांमार में आतंकवादियों के खिलाफ सैनिक कार्रवाई की मंजूरी दी और उधर सेना ने अपने चालीस मिनट के उग्रवाद विरोधी अभियान में न सिर्फ सौ से अधिक उग्रवादियों को मौत के घाट उतार दिया, अपितु उग्रवादियों के म्यांमार में दूर तक फैले दो बड़े शिविरों को भी पूरी तरह से तहस-नहस और ध्वस्त कर दिया। सम्पूर्ण संसार के समक्ष यह सैनिक कार्रवाई इसलिए और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, क्‍योंकि माना यह जाता है कि इन सशस्‍त्र उग्रवादियों को चीन का समर्थन प्राप्त है और ये उग्रवादी चीन में निर्मित घातक हथियारों का इस्तेमाल करते हैं। विदेशी भूमि पर भारतीय सैनिक कार्रवाई के संदेश का एक संकेत यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा कोई भी बड़ा और अहम फैसला कभी भी ले अथवा कर सकते हैं, जो भारतवर्ष की पूर्ववर्ती सरकारें नहीं कर पाईं। सरकार की इसमें एक कूटनीतिक सफलता यह भी है कि उसने न केवल म्यांमार सरकार का इस सैनिक अभियान के लिए समर्थन हासिल किया, वरन म्यांमार सरकार ने भी मोदी की पहल पर सुर ताल मिलाते हुए सम्पूर्ण संसार को यह दिखला दिया कि वह किसी भी तरह के आतंकवाद के सख्त खिलाफ है,और वह अभी भी उग्रवादियों के सफाए के लिए अभियान चलाने लगा है, इससे चीन की भी काफी किरकिरी हो रही है। विदेशी भूमि पर सैनिक कार्रवाई से भारतवर्ष के विरूद्ध सक्रिय पाकिस्तान सहित सभी विदेशी उग्रवादी गुटों में डर. भय और दहशत का स्पष्ट संदेश गया है कि भारतीय सेना कहीं भी और कभी भी ऐसी सफल कमाण्डो कार्रवाई कर सकती है तथा आतंकवादियों के सफाए के लिए उसे अपनी सीमाओं से आगे जाने में कोई हिचक नहीं होगीयह पूरी तरह से राष्ट्रीय प्रतिक्रियावादी आपरेशन था।

 उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की डर, भय व दहशत में केन्द्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर के द्वारा म्यांमार में सैनिक अभियान के पश्चात् दिए उन वयानों ने आग में घी काम किया जिनमें मंत्रीद्वय ने अलग-अलग वक्तव्यों में म्यामांर में सेना के अभियान की प्रशंसा करते हुए कहा था कि यह एक शुरुआत है और इस अभियान को विशेष बलों ने पूरी तरह से स्वयं अंजाम दिया। केन्द्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने म्यामांर अभियान को बदली सोच का परिचायक करार देते हुए पाकिस्तान पर चुटकी लेते हुए कहा था कि जो लोग भारत के नए रूख से भयभीत हैं, उन्होंने प्रतिक्रिया व्यक्त करनी शुरू कर दी है। अगर सोच के तरीके में बदलाव आता है, तब कई चीजें बदल जाती हैं, आपने पिछले दो-तीन दिनों में ऐसा देखा है कि उग्रवादियों के खिलाफ एक सामान्य कार्रवाई ने देश में सम्पूर्ण सुरक्षा परिदृश्य के बारे में सोच को बदल दिया है। केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर का कहना था कि यह आतंकवाद से निपटने में भारतवर्ष की रणनीति में बदलाव का प्रतीक है और मेरा मानना है कि यह समय की जरूरत है और पूरा देश यह चाहता था और इसी कारण से लोगों ने केन्द्र में एक मजबूत सरकार को मतदान किया है। राठौर का कहना था कि तुम्हारी यह सोच है कि आतंकी कारवाई कर तुम अपने क्षेत्र में चले जाओगे तो तुम्हें कोई पकड़ेगा नहीं, यह संदेश बहुत महत्वपूर्ण है कि हम तुम्हें निशाना बनायेंगे चाहे तुम कहीं भी रहो। हमें विश्व के किसी भी स्थान पर भारतीयों पर हमले अस्वीकार्य हैं और प्रभावी गुप्तचरी के आधार पर हम अपने चुने हुए स्थान और समय पर सर्जिकल स्ट्राइक हमले करेंगे। सेना के पास मजबूत क्षमता है और उसे एक मजबूत नेता की जरूरत थी, जो ऐसे कड़े निर्णय कर सके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे सख्त और कड़े निर्णय लेने में सक्षम व मजबूत नेता हैं। उन्होंने स्पष्टतः कहा कि प्रधानमंत्री की मंजूरी के बाद सेना ने म्यांमार में यह कार्रवाई की है। यह उग्रवादियों की आदत बन गई थी कि वे सेना या अर्द्धसैनिक बलों अथवा देश के नागरिकों पर हमले करते थे और उसके बाद भागकर सीमापार स्थित अपने सुरक्षित पनाहगाह में शरण ले लेते थे, क्योंकि उन्हें इस बात का भरोसा था कि भारतीय सशस्त्र बल वहाँ तक उनका पीछा नहीं करेंगे। उन सभी के लिए अब बिल्कुल स्पष्ट संदेश है, जो हमारे देश में आतंकवादी इरादे रखते हैं, यह यद्यपि अभूतपूर्व है, तथापि हमारे प्रधानमंत्री ने एक बहुत ही साहसिक कदम उठाया और म्यांमार में कार्रवाई के लिए मंजूरी दी ।यह नि:संदेह तौर पर उन सभी देशों को एक संदेश है, जो आतंकवादी इरादे रखते हैं, चाहे वे पश्चिम हों या वह विशिष्ट देश जहाँ हम वर्तमान समय में गए। यदि देश में भी ऐसे समूह हैं, जो आतंकवादी इरादे रखते हैं तो हम उन्हें निशाना बनाने के लिए सही समय और स्थान का चयन करेंगे।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी मणिपुर के चंदेल जिले में सेना के जवानों पर हुए आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निन्दा की है. और सरकार की कारर्वाई पर पूर्ण सहमति व्यक्त करते और सैनिकों की प्रशंसा व उत्साहवर्द्धन करते हुए जनरल दलबीर सिंह को भेजे अपने संदेश में कहा है कि मुझे आतंकी हमले से गहरा दुःख पहुँचा है। ड्यूटी पर तैनात सुरक्षा बलों पर बारम्बार होने वाले ऐसे हमलों से कड़ाई से निपटा जाना चाहिए, मैं सभी सम्बंधित प्राधिकरणों का इस जघन्य हमले के जिम्मेदार लोगों को न्याय के कटघरे तक लाने और मणिपुर राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए मिलकर काम करने का आह्वान करता हूँ।

 पूर्णतः सफल इस सैनिक कारर्वाई से भारतीय सैनिकों का मनोबल भी निश्चित रूप से बढ़ा है। सैन्य अभियान के महानिदेशक मेजर जनरल रणबीर सिंह ने कहा कि कि यह पहली बार हुआ है कि भारतीय सेना ने सीमा पार कमाण्डो कार्रवाई की है, जो आतंकवाद के खिलाफ सक्रिय पहल का द्योतक है। उन्होंने कहा कि सीमा और सीमावर्ती राज्यों पर अमन चैन सुनिश्चित करते हुए हमारी सुरक्षा, संरक्षा व राष्ट्रीय एकता के प्रति किसी भी खतरे से कड़ाई से निबटा जाएगा।

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अशोक “प्रवृद्ध”
बाल्यकाल से ही अवकाश के समय अपने पितामह और उनके विद्वान मित्रों को वाल्मीकिय रामायण , महाभारत, पुराण, इतिहासादि ग्रन्थों को पढ़ कर सुनाने के क्रम में पुरातन धार्मिक-आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक विषयों के अध्ययन- मनन के प्रति मन में लगी लगन वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन-मनन-चिन्तन तक ले गई और इस लगन और ईच्छा की पूर्ति हेतु आज भी पुरातन ग्रन्थों, पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन , अनुसन्धान व लेखन शौक और कार्य दोनों । शाश्वत्त सत्य अर्थात चिरन्तन सनातन सत्य के अध्ययन व अनुसंधान हेतु निरन्तर रत्त रहकर कई पत्र-पत्रिकाओं , इलेक्ट्रोनिक व अन्तर्जाल संचार माध्यमों के लिए संस्कृत, हिन्दी, नागपुरी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ में स्वतंत्र लेखन ।

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