ना काहू से दोस्ती ना काहू से वैर

डॉ. राजीव कुमार रावत

downloadराहुल जी का मैं फैन हूं सिर्फ एक मायने में कि ये महात्मा मोहन दास करमचंद गांधी जी के सच्चे अनुयायी है क्योंकि गांधी जी का आजादी मिलने के बाद कथन था कि कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए यह सत्ता के लिए नहीं बनी थी और अब आजादी मिल गई है इस लिए अब इसकी कोई आवश्यकता नहीं है और राहुल गांधी अपनी अधकचरी विदूषकी बुद्धि से कांग्रेस का मटियामेट करने का जी जान से प्रयास कर रहे हैं- मैने सुना है कि वे एम फिल हैं- अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में -पर दिन रात लगे हैं देश में सामाजिक संबंधों एवं सौहार्द को मिटाने में ….. भगवान से प्रार्थना है कि उनकी तपस्या सफल हो और कांग्रेस समूल नष्ट हो जाए जिस प्रयास में वे भूखे प्यासे रहकर लगे हैं। राहुल जी के वचनों पर तो हर चैनल पर चीड़ फाड़ हो रही है उसका तो क्या कहना…….पता नहीं कौंन विद्वान इनका भाषण लिख रहा है..कहां है दिग्गी राजा, शकील जी, अल्वी जी, रीता जी और न जाने कितने जी हुजूर…… । क्या राहुल जी पर कोई केस चलाया जा सकता है देश और सरकार और प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा को हवा में उड़ा देने के लिए.. देखिए भाषा देखिए.. विधेयक बकवास है.. मेरी भी हत्या हो सकती है…..एक नहीं दो बार कह रहा हूं… अरे भैया आपकी यह हालत है मानसिक असुरक्षा की तो देश में फिर कौंन सुरक्षित है..सीमा पर खड़ा अपने खानदान का इकलौता सद्यः विवाहित वह नौजवान तो किसी से शिकायत नहीं करता… न वह बाप कभी शिकायत करता जिसने गांव में अपने जन्मे बच्चे का अभी मुंह तक नहीं देखा और तिरंगे में लिपटा जिसका शव उसके गांव पहुंचता है…….क्या आईबी, सीबीआई रॉ के प्रमुख पता करके देश को बताएंगे कि कौंन सा अधिकारी राहुलजी को रिपोर्ट करता है.. किस हैसियत से और क्या उस अधिकारी को सर्विस कंडक्ट के अंतर्गत चार्ज शीट किया जाएगा… .कांग्रेस में चाटुकार थूकी बलगम को भी सिक्का सिद्ध करने में माहिर हैं। अच्छा ही हुआ राहुल जी के इस बचकानेपन का खामियाजा देश को ज्यादा नहीं भुगतना पड़ रहा है वरना यदि ये कहीं केन्द्रीय मंत्री होते तो पता नहीं कितने राज जिन्हें मंत्री पद एवं गोपनीयता की शपथ लेके अपने तक ही सीमित रखता है, ये ऐसे ही उजूल फिजूल रैलियों में बताते फिरते। जो भी नुकसान होगा कांग्रेस का होगा जो कि उनके चमचों की ही फौज है किसी के साथ खेलें चाहे कंधे पर चढ़कर, चाहे किसी को घोड़ा बनाकर……चाहें किसी के कान पकड़ें,…. चाहें किसी की दाढी नौंचे – मालिक का बेटा है सौ नखरे सहने ही होंगे… सत्ता सुख इन्ही सब के लिए तो मिल रहा है…..क्या हुआ जो इज्जत नहीं है पर जिन्हें सत्ता की मलाई चाहिए, मात्र सुखी जीवन चाहिए वे अपने भाग्य में थोडी सुविधाएं और रोटी तो जुगाड़ कर लेते हैं किन्तु सम्मान को गिरवी रख कर और दिन- प्रतिदिन अपमान ही उनका अभिषेक बनता है क्योंकि उनकी अपनी न कोई योग्यता होती है और न क्षमता न विश्वसनीयता- और न उनकी कोई इच्छा होती है वे तो मात्र सत्ताधीश की सनक की कठपुतली होते हैं जो भी करना है वह पीछे से मदारी कर रहा है और उन के वश में वही करना है और उनके जीवन में और कुछ नहीं होता है- बस वह मंच होता है जितनी बाजीगरी कर सकते हैं वे उस मंच से ही कर सकते हैं- कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेसियों का है जो विचारे मिसमिसाते तो बहुत होंगे पर क्या करें – शरद पवार, तारिक अनवर, पी ए संगमा बनकर भी तो आखिर उसी चौखट पर नाक रगड़ने आना पड़ा। कांग्रेसी संस्कृति में तो ऐसे ही झूंठ बोलकर बरगलाने की परंपरा रही है-याद करिए वी पी सिंह जी की जेब में बोफोर्स दलालों के नाम हुआ करते थे। क्योंकि अब कांग्रेस का असली इतिहास और पाप-पुराण सोशल मीडिया के द्वारा सबके सामने आने लगे हैं, इनका नकली आभामंडल अब काला पड़ने लगा है, देश उसके भीतर झांकने लगा है इसलिए ये सोशल मीडिया पर लगाम लगाने की सोचते रहते हैं क्योंकि यह बिकाऊ नहीं हैं बाकी साधनों पर तो इनका काफी कुछ अधिकार और दबाव बना हुआ है। (कल की रैली में इनके माइक के पोडियम पर लिखा था— कगंरेस– बड़ा दुख हुआ -वाह रे देश)

 

राहुल जी उस गैंग डॉन की तरह हैं जिसके पुरखों ने हजारों लाखों कुकर्म और अत्याचार कर उस गिरोह को खड़ा किया हो और अगली संतति का कोई अंधेर नगरी चौपट राजा वाला वारिस उस सोने की लंका को स्वयं ही आग लगाने के काम करे- स्वयं भी तरे और पुरखों का भी उद्धार करे । पिछले 65 सालों से कांग्रेस ने जो कुछ किया है वह देश और दुनिया के सामने हैं- इसमें मैं कोई विचार नहीं दूंगा क्योंकि सब की अपनी अपनी राय हो सकती है। मैं सिर्फ एक बात कह सकता हूं कि आज कांग्रेस के जहाज में दिमाग, दिल और स्वाभिमान की भावना रखने वाला कोई यात्री नहीं हैं जो यह कह सके कि इस वेवकूफ,भौंदू मंदबुद्धि चालक से हमें बचाओ वरना नाश हो जाएगा– पर जैसा हिन्दी कामेडी फिल्मों में देखते हैं कि किसी प्राइमरी स्कूल में ग्राम प्रधान का या हैड मास्टर का भोंदू कम दिमाग का बच्चा होता है, वह सबको हंसाता रहता है अपनी वेवकूफियों से–पर डर और स्वार्थपूर्ति के कारण कोई उसके विरुद्ध कुछ नहीं बोलता.. और बोले भी तो किससे— जिसका बेटा है उससे…उसमें हंसने वालों की स्वार्थसिद्धि तो उसकी वेवकूफी से ही रो रही है…. ऐसा ही कांग्रेस के साथ हो रहा है।

एक तो हमें युवराज, शहजादा, राजकुमार जैसे शब्दों के प्रयोग के विरुद्ध होना चाहिए…आज देश और दुनिया में न कोई राजा है न कोई रानी है न कोई वारिस है -आज के लोकतंत्र में… हां अभी जनता उतनी जागरुक नहीं है जितनी 60 सालों मे लोकतंत्र में परिपक्तवता आ जानी चाहिए थी.. पर निराश होने का भी परिदृश्य नहीं है….जिस दिन हम अपने स्वार्थों एवं क्षुद्रताओं से ऊपर घर, गांव, समाज, राज्य और राष्ट्र की सोचने में सक्षम हो जाएंगे उस दिन हम इन स्वार्थी चाटुकारों एवं अक्ल के पैदलों को अपना रहनुमा मानना बंद कर देगे। अमेरिका की विदेश मंत्री को लंदन में कार पार्किंग का जुर्माना देना पड़ा… जब ऐसे दिन आएंगे तो देश का भाग्य भी सुधरेगा। पिछले 40-50 वर्षों में एक धारणा घर कर गई है देश और समाज में कि इन बलशालियों, राजनीतिज्ञों, सत्ताधीषों, भृष्टाचारियों आदि का कुछ नहीं बिगड़ता…और हम भौतिकवाद एवं सुखों की चाह में आदमी नहीं रह गए हैं – हर तरह के समझौते करना और डरना मौत से लेकिन हर पल मरना सीख गए हैं.. लेकिन अब दिन फिर रहे हैं …..कुछ स्वनामधन्य भगवान जेल में हैं…… अब बस उतना अंतर और आना है कि जनता अपने आस पास हो रहे भ्रष्टाचार और अनाचार के विरुद्ध बोलने का साहस कर सके…क्या हम नहीं जानते कि कौंन क्या है…. पर हम सब मूलतः स्वार्थी एवं भ्रष्टाचारी हैं और मौकाटेरियन हैं- अवसरवादी- पाखंडी-झूंठे– इसलिए हमारी सरकार और नेतृत्व भी ऐसा ही होगा न –मेरे भैया कहते हैं कि कापुरुषः क्षार जलम् पिवन्ति…कायर पुरुष ही खारा पानी पीते रहते हैं- पुरुषार्थी तो अपना नया कुआ खोद लेता है…राममनोहर लोहिया जी कहते थे कि जिन्दा कौमें पांच साल इन्तजार नहीं करती… कायरों का नेतृत्व कायर ही करेगा न… या जैसे हम हैं वैसा ही नेता होगा न… जिस दिन हम साहसी बनेंगे.. कष्टों के कारण सुविधाओं के आगे नहीं मिनमिनाएंगे… तब हमारा नेतृत्व निखरा हुआ मिलेगा…. हां मोदी में कुछ गुण हैं… इसीलए विरोधी बौखलाए हुए हैं और हिडविकेट हो रहे हैं…किन्तु—- परिवर्तन हमारे अपने बदलने से आएगा।

एक बात और –मोदीवादियों को भी बहुत ज्यादा उल्लासित होने की जरुरत नहीं है कि दूसरे की वेवकूफी से उन्हें लाभ मिल जाएगा… ये ज्यादा बड़े वेवकूफ हैं…. एक तो चुनाव आते-आते मोदी ही इतने बड़वोल बोल चुके होंगे कि लोग उनके ढोल की पोल समझ जाएंगे–और इनके पास कोई उल्लेखनीय पूंजी नहीं है, बस यह इतना दिखाने में दिन-रात एक कर रहे हैं कि हम उनसे थोड़ा कम पापी है– जैसे डिटोल का या हारपिक का विज्ञापन आता है — सारे कीटाणुओं का नाश दिखाते हुए दो चार रेगते हुए दिखाए जाते हैं ….. और मैंने जितना ढोंग और पाखण्ड आरएसएस के नीचे के तबके के भोंपुओँ में देखा है – अपनी आंखों से अपने जीवन में- उससे मैं बहुत निराश हूं और उससे मुझे लगता है कि मोदी के आने से भी कुछ नहीं बदलने वाला, पहले तो आना नहीं है और आ भी गए तो बहुत कुछ नहीं बदलेगा, हम एक देश के रुप में रातों-रात क्या सभ्य नागरिक बन जाएंगे — क्या रातोंरात पुलिस वाला दस रुपये लेकर ट्रक, ट्रैक्टर छोड़ने वाला सिपाही रजनीकांत के आदर्श फिल्मी अवतार में रुपांतरित हो जाएगा… क्या नमो जपते ही.. बाबू , अफसर. सचिव,… संतरी, मंत्री.. सब सदाचारी हो जाएंगे… राजा हरिश्चन्द्र के अवतारी हो जाएंगे……क्या मोदी आते ही आपातकाल लगा देंगे– क्या राष्ट्रभक्ति की गंगा बहा देंगे,..नदियों, जलाशयों, पोखरों में गणेश, दुर्गा, रावण और घर का कचरा फैंकना जुर्म बना देंगे…क्या मंदिर-मस्जिद से उठने वाले भयंकर धार्मिक उन्माद पर अंकुश लगा देगें.. क्या बिगड़ौलों की नई बाइक की गति 90 से घटाकर सुरक्षित 40-45 करा देंगे….. क्या गंगा यमुना को पवित्र करा देंगे… पाकिस्तान से युद्ध छेड़ देंगे और कश्मीर को पाक से छीन लेंगे….. हमारे गली मुहल्ले साफ हो जाएंगे….सड़कें बन जाएंगी…. महानगरों में भीड़ कम हो जाएगी…. विना रिश्वत के काम होने लगेंगे … क्या होगा… बंग्ला देश को सबक सिखा देगे…आतंकवादी शिविरों पर प्रहार करेंगे… मंहगाई एक दिन में खत्म हो जाएगी –किसान को उपज का सही दाम मिलेगा.. जमीन का जलस्तर ऊपर आ जाएगा…जंगल कटना बंद हो जाएंगे…जेबकतरे जेब काटना बंद कर देगें..मोबाइल चोरी नहीं होंगे…रेलगाडियों मे भीड़ कम हो जाएगी… टीटी पैसे लेके सीट नहीं देगा…मैस में खाना अच्छा मिलेगा…. प्याज 10 रुपये किलो आ जाएगी ..पेट्रोल 27 रुपये (पाकिस्तान के बराबर) हो जाएगी… सारे जमाखोर तिहाड़ में जमा हो जाएंगे… आखिर ये भी तो चुनाव सब उनके चंदे से ही लड़ रहे हैं..सूची लंबी है..एक पंक्ति में कहें तो क्या जी न्यूज चैनल पर आने वाली सौ सुर्खियों की ब्रेकिंग लाइन बदल जाएंगी…जब राजनीतिक दलों में कुछ उत्तरदायित्व एवं पवित्रता की बात आई तो क्यों नहीं भाजपा और साफ सुधरा सुगंधित संघ सबसे पहले आगे आए यह कहते हुए कि हां हम आरटीआई के अंतर्गत आना चाहते हैं .. हम अपनी आय-व्यय का पूरा सच्चा हिसाब देने को तैयार हैं…क्योंकि सच्चे अंदर से नहीं हैं बस सच्चे दिखने का स्वांग करना ही चाहते हैं और यही करना जानते हैं….. अधिकांश को एक घर और परिवार चलाने का तक तो अनुभव नहीं है- देश क्या खाक चलाएंगे… भाजपा और संघ की सबसे बड़ी अविश्वसनीयता यही है कि ये अपने हरामतत्व को भी रामतत्व सिद्ध कराने के लिए हर सितम कर जाते हैं….यहां तक कि आत्मघाती हो जाते हैं और त्यागियों, शहीदों, बलिदानियों की फेहरिस्त में शामिल होने के लिए एक सुसाइड नोट लिख जाते हैं….।

क्या मोदी के आते ही देश वैदिक कालीन हो जाएगा… घरों में ताले लगना बंद हो जाएंगे… भाई- भाई, हिन्दू-मुस्लिम प्रेम की ज्योति हो जाएंगे- घरों में, देश में प्रेम प्रकाश फैलेगा—- सब जगह विकास ही विकास होगा … दिखेगा…सर्वेभवन्तु सुखिनः…होगा……क्योंकि ऐसा कोई सपना पूरा नहीं होने जा रहा है। इसलिए मेरा मानना है कि हमें थोड़ा सा व्यवहारिक चिंतन करना आना चाहिए कि बदलाव कैसे आता है- क्रांति और बदलाव में अंतर होता है, भारत जैसे यथास्थितिवादी एवं स्वार्थी देश में क्रांति का डीएनए ही नहीं है – हां यह सच है कि सामाजिक, राजनीतिक बदलाव ऐसे किसी एक व्यक्ति के पीछे नहीं आता है पर उसके प्रति अतिउत्साह अथवा अति निराशा भी हमारी आंखों पर पट्टी बांध देती है और अपेक्षाओं पर कोई नहीं खरा उतर सकता, इतने विशाल देश की इतनी विविधताओं की इच्छा को कोई पूरा नहीं कर सकता…क्योंकि मूलतः हम सब स्वार्थ एवं कपट से भरे हैं पर दूसरे के कपट एवं स्वार्थ की ओर चिल्ला-चिल्ला कर सबका ध्यान अपनी ओर से हटाने की कला में माहिर हैं। प्रधानमंत्री और दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपाई मुंहचाई सारे चैनलों की सामग्री बन गई । एक स्टैंड लेके चल सकते थे कि आप हमें बहुमत दीजिए और चुने हुए प्रतिनिधि फैसला करेंगे…पर अपनी धोती की लपटें दिख नहीं रही दूसरे का भूसा जल रहा है इस बात पर हल्ला मचा रहे है। हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा सुनाते हैं कि दो मास्टर साइकिल पर जा रहे थे। एक की साइकिल की चेन उतर गई तो वह उतरकर ठीक करने लगा.. दूसरे ने रुककर कहा कि क्या हुआ चेन उतर गई के.. तो दूसरा चेन चढाने में आई खिसियाहट में बोला- तो के हो ग्या पिछले साल तेरी भी तो छोरी भाग गई थी. (इसे वे ही समझ सकते हैं जिन्होंने चेन चढ़ाई हो- खासतौर पर बहुत जल्दी जाने के समय ऐसा हुआ हो)……बस यही भाजपा कर रही है…..यही संघ के नीचे के स्तर के स्वनामधन्य स्वयंसेवक करते हैं…विना दायित्वों के आलोचना.—-क्योंकि सरकार चलाने का न अनुभव है और न नेतृत्व करने के लिए संघर्ष की जिजीविषा……भाजपा के पास कोई पूंजी नहीं है उपलब्धियों की और न राजनीतिक चरित्र की एक अलग छाप जिसे वह दिखा सके-….बस दिखाना यह चाहते हैं कि हमें सिंहासन सौंप दो तो हम बहुत अच्छे शासक बनेंगे… कोई गोद में ले जाकर इन्हें सिंहासन पर बस बिठादे……आखिर इनके राज में क्या नहीं हुआ..या तो इन्होंने कहीं भी कोई काम लीक से हट कर दृढ़ता से किया होता तब हम उस पर विश्वास करते– यदि ये अजहर मसूद को नहीं छोडते.. यशवंत सिंह जी मेहमानों की तरह उस आतातायी को विदा करने न जाते,— उसके बजाए चार मिग-23 जाते .. जगुआर जाते..अग्नि मिसाइल जाती….क्या होता 250 नागरिक और एक एयर इंडिया का जहाज नष्ट हो सकता था—तो क्या तब से लेके अब तक हम अपने 250-300 नागरिक नहीं खो चुके…. और कायरों की सी मौत……क्या कुछ कम खोया है हमने…..देश ने….?

यदि हम उस समय साहस दिखाते जिस दिन रुबिया के बदले हमने तीन गोलियां चलाई होती….और वह राजा ठाकुर कहलाने वाले नौटंकीवाज झूंठे जिन्होंने कभी अपना अंगूठा चीर कर लालबहादुर शास्त्री जी का तिलक किया था—-घुटने टेक कर अपने गृहमंत्री रुबिया के अब्बाजान को मिठाई खिला रहे थे अपनी कायरता की सफलता की….लेकिन देश के हारने का कोई गम नहीं था….ऐसा ही मोदी तबका मुझे नजर आता है किसी भी मौके पर इनका कोई साहस या शौर्य सामने नहीं आया—बस लंबे चौड़े भाषण हैं..कविताएं हैं… और कुछ नहीं। कारगिल में लगभग दो वर्ष सेना पड़ी रही पर एक कदम आगे नहीं रख पाए—- तब तो इनके साहस का कुछ पता चलता… मौके पर हर जगह पिलपिले सिद्ध हुए हैं और वीरों में नाम लिखाना चाहते हैं….आज मोदी हल्ला मचाते हैं गुजरात का….. गुजराती तो बैसे ही शांत होता है विकास प्रेमी होता है.. व्यापारी मानसिकता है… पैसे वाला है… निश्चित ही मोदी की कुछ करामात है और उसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए… पर यह भी सोचना चाहिए कि देश गुजरात नहीं है… राष्ट्रीय परिदृश्य बहुत विविध है.. यहां सनसनी फैलाई तो जा सकती है, लोग आंखों पर विठा तो सकते हैं लेकिन उतारते भी बहुत जल्दी हैं… याद करिए राजीव गांधी को…. इतना बहुमत तो आपको मिलने से रहा……..राजीव गांधी के नाम से याद आया कि एक हुआ करते थे उनके आदरणीय पिताजी…क्या कोई राहुल जी से उनके दादाजी का नाम पूछ सकता है—-जनरल नालेज चैक हो जाएगी…….और यह मुन्ना आंखों में आंसू भर-भर कर दादी-पिताजी की कहानी सुना रहा है (मृत्यु का उपहास नहीं उड़ा रहा हूं वह जिन परिस्थितियों में हुई उनके प्रति संवेदनाएं हैं, दुख है) क्या इन्हें यह भी पता है कि इनके दादाजी के साथ क्या हुआ था…… उनका अंतिम समय कितने कष्ट का था जबकि उनके ससुर देश के प्रधानमंत्री थे और पत्नी- दो बच्चों के साथ प्रधानमंत्री निवास में रहती थीं.. जिस समय मात्र 48 साल के फिरोज को दिल का दौरा पड़ा…. उनकी श्रीमती जी केरल गई हुईं थी महिला सम्मेलन में— जबकि कमला नेहरु की सबसे ज्यादा सेवा देश-विदेश में उनकी बीमारी के दिनों मे फिरोज ने ही की थी..— ऐसे कृतघ्न संस्कारों एवं संवेदनशून्यता के साथ ये नकली शहादत वाले क्या देश के कष्टों एवं दुश्वारियों को समझ पाएंगे…. क्या इन्होंने कभी भूख महसूस की है… क्या इन्होंने कभी खेत में झाड़ू लगाई है.. दाना कहां पैदा होता है देखा है… या कहेंगे कि चीनी के पेड लगाओ .. रोटी नहीं तो ब्रेड खाओ ….क्या खेत में हल चलाया है…. क्या कभी भारतीय शहर की सड़कों पर रिक्शे या तांगे में बैठ कर जान की बाजी लगाई है…क्या देखा है कि चार-चार दिन जून के महीने में बिजली नहीं आती…..क्या किसी पैसेंजर रेल में बैठकर नरक के दर्शन किए हैं…क्या किसी भी शहर के नाले किनारे पर रेंगती लगभग 40-50 करोड जीव जंतुओं की जनसंख्या को भारतीय शरीर में देखा है..क्या किसी पुलिस थाने में आंखे झुकाए गए हैं मात्र कंपकंपाते सच की मोमबत्ती लेकर उस कालराज्य में जहां अन्याय के अंधड़ चल रहे हों…..न्याय मांगने ।

मित्रो, यह चुनावी डेंगू का समय है मुझे भी लगता है रात कोई मच्छर काट गया है… वाकी नतीजे आप निकालते रहना… मुझे और कई काम हैं……..उम्र में छोटे होने से मैं मोदी जी का व्यक्ति और अग्रज के रुप में सम्मान करता हूं और छोटे होने के कारण राहुल जी से स्नेह..बस एक बात है कि राहुल जी थोड़ा मंदबुद्धियों जैसा तुतलाना छोड़ें और मोदी जी हर बात पर बड़बोल कर बात का बतंगड़ बनाना- थोथा चना-बाजे घना..देश सब जानता है.. वरना अटल जी की सरकार पुनः नहीं आई, यह किसी को सपने में भी गुमान था और किसी राजनीतिक पंडित ने कल्पना भी नहीं की थी कि कांग्रेस की सरकार फिर बन जाएगी….बात व्यक्ति की नहीं, व्यक्तित्व की है, वाणी के अस्तित्व की है कि आपके लिए अपने ही कहे हुए का क्या अर्थ है…प्रत्यक्षतः नीति कोई भी दल और व्यक्ति गलत नहीं बनाता किन्तु बात सफलता मिलने के बाद के व्यवहार और कार्यों की है इसलिए बात किसी नीति की नहीं नीयत की है… जिसमें देश का भला हो ऐसा कुछ हो..हो क्या रहा है है दोनों के ही पास कुछ खास नहीं बस दूसरे को नीचा दिखाने में सारा समय खर्च कर रहे हैं…. पता नहीं लोग क्यों सुनने पहुंच जाते हैं कोई काम-धाम नहीं है क्या …मैने कुछ भाषण चाव से देखे हैं पर मुझे कोई कारगर योजना पर बात करता कोई नजर नहीं आ रहा है, एक दौड़ सी चल रही है बस, और उसमें आगे वाले को टंगड़ी मारके गिराना है बस। मेरी कोई राजनीतिक विचार धारा नहीं है और ना किसी का भक्त या अंधभक्त, न विरोधी,ना चमचा,ना दुश्मन बस खरी-खरी सबको और इसलिए “ना काहू से दोस्ती ना काहू से वैर”।

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डॉ. राजीव कुमार रावत
सामाजिक, राजनीतिक एवं भारतीय परिवार व्यवस्था, मानवीय संबधों के छुपे सचों को उजागर न कर समझने की, जीने की मजबूरी के विषयों में गहरी रुचि ने विविध विधाओं का अध्ययन कराया और अनुभव समृद्ध किया साथ ही व्यक्तित्व को मुखर बनाया और रोजी-रोटी की तलाश ने बहुत नचाया । हिंदी और राजनीति शास्त्र में परास्नातक. राजनीति शास्त्र में पीएच.डी, मानव संसाधन में एमबीए कर हिंदी- अंग्रेजी अनुवादक, कार्यक्रम संचालक आदि भूमिकाओं में दायित्व निर्वहन के साथ परिवार में टाइमपास के आनंद का गहरा शौक और राजनीतिक, समसामयिक, साहित्यिक, राजभाषा, प्रशासन संबंधी विषयों पर एक समग्र समालोचनात्मक दृष्टि से लेखन एवं विमर्श।

7 COMMENTS

  1. यह लेख भड़ास निकालने कि कला का उत्तम उदहारण है लेखक ने मध्यमवर्गीय शिक्षित लोगों की भावनाओं का काफी हद तक यथार्थ चित्रण किया है और वर्त्तमान भृष्ट नेतृत्व के लिए साधारण भारतीयों के चारित्रिक दोषों को उचित ही उत्तरदायी ठहराया है एक दो बातों में मेरा लेखक से मतभेद है मोदी के सत्ता में आने से लेखक ने जो काल्पनिक अपेक्षाएं अपूर्ण रहने कि बात कही है उसमें लेखक के विवेक का शिथिल होना स्पष्ट दीखता है मोदी तो मनुष्य हैं वैसी अपेक्षाएं तो केवल भगवान् विष्णु के अवतार लेने पर ही पूरी हो सकती है .लग्ता है कि घोर निराशा ने लेखक के चिन्तन को भतका दिया है.( यदि मुलायम सिन्घ,मायावती ,ममता य जयललिता को च्होर दिया जाय) अभी हमारे सामने दो विकल्प हैं या तो राजवंश( मैन सोच समज्ह कर इस शब्द क प्रयोग कर रहा हून ) का शासन चलता रहे जो लेखक स्वयं नहीं चाहते हैं या फिर मोदी को अवसर दिया जाए। यदि मोदी जैसा स्वच्छा शासन गुजरात को पिछले १०/१२ वर्ष में देते रहे हैं लगभग वैसा ही सारे भारत में दे सकें तो देश का सौभग्य होगा। यह सही है कि भाजपा में भी भ्रष्ट लोग हैं पर नेतृत्व यदि मोदी के हाथ होगा तो शासन तंत्र भी ठीक रहेगा ऐसी आशा करना अनुचित नहीं है। शिवराज सिंह रमन सिंह आदि अच्छे नेता भी भाजपा में हैं।सभी जानते हैं कि नेतृत्व के गुण अथवा दुर्गुण शीर्ष से चलकर नीचे प्रभाव डालते हैं ।आज के परिवेश मेन मोदिजि को पर्याप्त बहुमत से विजयी बनानाही सर्वश्रेश्थ विकल्प है

    सत्यार्थी
    सत्यार्थी

  2. यह लेख भड़ास निकालने कि कला का उत्तम उदहारण है लेखक ने मध्यमवर्गीय शिक्षित लोगों की भावनाओं का काफी हद तक यथार्थ चित्रण किया है और वर्त्तमान भृष्ट नेतृत्व के लिए साधारण भारतीयों के चारित्रिक दोषों को उचित ही उत्तरदायी ठहराया है एक दो बातों में मेरा लेखक से मतभेद है मोदी के सत्ता में आने से लेखक ने जो अपेक्षाएं अपूर्ण रहने कि बात कही है उसमें लेखक के विवेक का शिथिल होना स्पष्ट दीखता है मोदी तो मनुष्य हैं वैसी अपेक्षाएं तो केवल भगवान् विष्णु के अवतार लेने पर ही पूरी हो सकती है अभी हमारे सामने दो विकल्प हैं या तो राजवंश का शासन चलता रहे जो लेखक स्वयं नहीं चाहते हैं या फिर मोदी को अवसर दिया जाए। यदि मोदी जैसा स्वच्छा शासन गुजरात को पिछले ९ वर्ष में देते रहे हैं लगभग वैसा ही सारे भारत में दे सकें तो देश का सौभग्य होगा। यह सही है कि भाजपा में भी भ्रष्ट लोग हैं पर नेतृत्व यदि मोदी के हाथ होगा तो शासन तंत्र भी ठीक रहेगा ऐसी आशा करना अनुचित नहीं है। शिवराज सिंह रमन सिंह आदि अच्छे नेता भी भाजपा में हैं।सभी जानते हैं कि नेतृत्व के गुण अथवा दुर्गुण शीर्ष से चलकर नीचे प्रभाव डालते हैं ।

    सत्यार्थी

  3. वाह राजीव जी, दिल का पूरा गुबार या यों कहें कि दिल कि पूरी भड़ास निकाल दी है इस लेख में छोड़ा किसी को भी नहीं है. व्यंग के साथ साथ गम्भीर लेखन और छिद्रान्वेषण भी अच्छा किया है. बहुत खूब.

    • भाईसाहब

      तभी तो नाम दिया है ना काहू से दोस्ती ना काहू से वैर

      उत्साहवर्धन के लिए आभार

      डॉ रावत

  4. Lohiya के शीस्यों के बारे में आपका क्या ख्याल है ?एक तो पशुओं का चारा खा कर जेल में पड़े है,दूसरे को सी बी आई का दर बना rahata है पर पर्धान मंत्री का सपना देखने बाज़ नहीं आते .प्रदेश तो सम्भालता नहीं desh कि बागडोर सम्भालना चाहते है. समाजवादियों, मेरा मतलब लोहियावादियों से है inake भी कर्म जनता पार्टी के वक्त देखा गया. बिहार लोहिया वादियों का garh रहा है unhone इस प्रदेश का बंटाधार करदिया है कि आतंकवादियों का यह surakshit ठिकाना बन गया है. Bahati गंगा में hath सबने धोया है.
    बिपिन कुमार सिन्हा.

    • आदरणीय बिपिन सिन्हा भाईसाहब जी

      लोहियावादियों को इसलिए इस राष्ट्रीय विमर्श में नहीं छुआ क्योंकि वे तो अपने कर्मों से ही न तो तीन में हैं, न तेरह में……..आज एक महान शिष्य जेल में हैं …. दूसरे का पूरा कुनबा कुछ समय बाद जेल में साइकिल चलाता दिखेगा….ये सब भस्मासुर जैसा वरदान पाए हैं … अपने ही अहंकार में अपने सिर हाथ रखेगे…. और अपनी परिणिति को प्राप्त करेंगे…..इसी श्रृंखला में अन्य महानुभाव भी हैं— जेपी आन्दोलन के फल-फूल और हाथी आदि से मदमस्त…… चलती चाकी देखि के रहा कबीरा रोय……

      कुछ आशा बन रही है कि सीबीआई भी एक स्वायत्त संस्था सीएजी की तरह बन जाएगी…..

      सादर

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