नैतिक मूल्य मानवता की पहचान होते हैं

naitik mulyaडा. राधेश्याम द्विवेदी
असंतोष, अलगाव, उपद्रव, आंदोलन, असमानता, असामंजस्य, अराजकता, आदर्श विहीनता, अन्याय, अत्याचार, अपमान, असफलता अवसाद, अस्थिरता, अनिश्चितता, संघर्ष, हिंसा यही सब घेरे हुए है आज हमारे जीवन को.व्यक्ति में एवं समाज में साम्प्रदायिकता, जातीयता, भाषावाद, क्षेत्रीयतावाद, हिंसा की संकीर्ण कुत्सित भावनाओं व समस्याओं के मूल में उत्तरदायी कारण है मनुष्य का नैतिक और चारित्रिक पतन अर्थात नैतिक मूल्यों का क्षय एवं अवमूल्यन.नैतिकता का सम्बंध मानवीय अभिवृत्ति से है, इसलिए शिक्षा से इसका महत्त्वपूर्ण अभिन्न व अटूट सम्बंध है. कौशलों व दक्षताओं की अपेक्षा अभिवृत्ति-मूलक प्रवृत्तियों के विकास में पर्यावरणीय घटकों का विशेष योगदान होता है. यदि बच्चों के परिवेश में नैतिकता के तत्त्व पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हैं तो परिवेश में जिन तत्त्वों की प्रधानता होगी वे जीवन का अंश बन जायेंगे. इसीलिए कहा जाता है कि मूल्य पढ़ाये नहीं जाते, अधिग्रहीत किये जाते हैं.देश की सबसे बड़ी शैक्षिक संस्था-राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के द्वारा उन मूल्यों की एक सूची तैयार की गयी है जो व्यक्ति में नैतिक मूल्यों के परिचायक हो सकते हैं. इस सूची में 84 मूल्यों को सम्मिलित किया गया है.
नैतिकता आचरण की संहिता हैं:-वास्तव में, नैतिक गुणों की कोई एक पूर्ण सूची तैयार नहीं की जा सकती, तथापि संक्षेप में हम इतना कह सकते हैं कि हम उन गुणों को नैतिक कह सकते हैं जो व्यक्ति के स्वयं के, सर्वांगीण विकास और कल्याण में योगदान देने के साथ-साथ किसी अन्य के विकास और कल्याण में किसी प्रकार की बाधा न पहुंचाए. विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि नैतिक मूल्यों की जननी नैतिकता सद्गुणों का समन्वय मात्र नहीं है, अपितु यह एक व्यापक गुण है जिसका प्रभाव मनुष्य के समस्त क्रिया- कलापों पर होता है और सम्पूर्ण व्यक्तित्व इससे प्रभावित होता है. वास्तव में नैतिक मूल्य/नैतिकता आचरण की संहिता है. हमें इस बात को भली भांति समझना होगा कि नैतिक मूल्य नितांत वैयक्तिक होते हैं. अपने प्रस्फुटन उन्नयन व क्रियान्वय से यह क्रमशः अंतयक्तिक/ सामाजिक व सार्वभौमिक होते जाते हैं.एक ही समाज में विभिन्न कालों में नैतिक संहिता भी बदल जाती है. नैतिकता/नैतिक मूल्य वास्तव में ऐसी सामाजिक अवधारणा है जिसका मूल्यांकन किया जा सकता है. यह कर्तव्य की आंतरिक भावना है और उन आचरण के प्रतिमानों का समन्वित रूप है जिसके आधार पर सत्य असत्य, अच्छा-बुरा, उचित-अनुचित का निर्णय किया जा सकता है और यह विवेक के बल से संचालित होती है.
शिक्षा में शिक्षार्थी बोध नहीं:-आधुनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता, महत्त्व अनिवार्यता व अपरिहार्यता को इस बात से सरलता व संक्षिप्ता में समझा जा सकता है कि संसार के दार्शनिकों, समाजशात्रियों, मनोवैज्ञानिकों शिक्षा शात्रियों, नीति शात्रियों ने नैतिकता को मानव के लिए एक आवश्यक गुण माना है.खेद का विषय है कि हमारी शिक्षा केवल बौद्धिक विकास पर ध्यान देती है. हमारी शिक्षा शिक्षार्थी में बोध जाग्रत नहीं करती वह जिज्ञासा नहीं जगाती जो स्वयं सत्य को खोजने के लिए प्रेरित करे और आत्मज्ञान की ओर ले जाये, सही शिक्षा वही हो सकती है जो शिक्षार्थी में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों को विकसित कर सके.नैतिकता मनुष्य के सम्यक जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है. इसके अभाव में मानव का सामूहिक जीवन कठिन हो जाता है. नैतिकता से उत्पन्न नैतिक मूल्य मानव की ही विशेषता है. नैतिक मूल्य ही व्यक्ति को मानव होने की श्रेणी प्रदान करते हैं. इनके आधार पर ही मनुष्य सामाजिक जानवर से ऊपर उठ कर नैतिक अथवा मानवीय प्राणी कहलाता है. अच्छा-बुरा, सही गलत के मापदण्ड पर ही व्यक्ति, वस्तु, व्यवहार व घटना की परख की जाती है. ये मानदंड ही मूल्य कहलाते हैं. और भारतीय परम्परा में ये मूल्य ही धर्म कहलाता है अर्थात ‘धर्म’ उन शाश्वत मूल्यों का नाम है जिनकी मन, वचन, कर्म की सत्य अभिव्यक्ति से ही मनुष्य मनुष्य कहलाता है अन्यथा उसमें और पशु में भला क्या अंतर? धर्म का अभिप्राय है मानवोचित आचरण संहिता. यह आचरण संहिता ही नैतिकता है और इस नैतिकता के मापदंड ही नैतिक मूल्य हैं. नैतिक मूल्यों के अभाव में कोई भी व्यक्ति, समाज या देश निश्चित रूप से पतनोन्मुख हो जायेगा. नैतिक मूल्य मनुष्य के विवेक में स्थित, आंतरिक व अंतः र्स्फूत तत्त्व हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में आधार का कार्य करते हैं.
व्यक्ति से विश्व तक विस्तार:- नैतिक मूल्यों का विस्तार व्यक्ति से विश्व तक, जीवन के सभी क्षेत्रों में होता है. व्यक्ति-परिवार, समुदाय, समाज, राष्ट्र से मानवता तक नैतिक मूल्यों की यात्रा होती है. नैतिक मूल्यों के महत्त्व को व्यक्ति समाज राष्ट्र व विश्व की दृष्टियों से देखा समझा जा सकता है. समाजिक जीवन में तेज़ी से हो रहे परिवर्तन के कारण उत्पन्न समस्याओं की चुनौतियों से निपटने के लिए और नवीन व प्राचीन के मध्य स्वस्थ अंतः क्रिया को सम्भव बनाने में नैतिक मूल्य सेतु-हेतु का कार्य करते हैं. नैतिक मूल्यों के कारण ही समाज में संगठनकारी शक्तियां व प्रक्रिया गति पाती हैं और विघटनकारी शक्तियों का क्षय होता है.नैतिकता समाज सामाजिक जीवन के सुगम बनाती है और समाज में अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण रखती है. समाज राष्ट्र में एकीकरण और अस्मिता की रक्षा नैतिकता के अभाव में नहीं हो सकती है. विश्व बंधुत्व की भावना, मानवतावाद, समता भाव, प्रेम और त्याग जैसे नैतिक गुणों के अभाव में विश्व शांति, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, मैत्री आदि की कल्पना भी नहीं की जा सकती.
जातिवाद की जड़ो ने देश की नैतिकता व सुचिता को तार-तार कर दिया:-दिल्ली में अन्ना का फैक्टर तथा बिहार में जातिवाद की जड़ो ने देश की नैतिकता व सुचिता को तार-तार कर दिया है। बचा-कुचा काम तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार ने करने की ठान रखी है।उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव ने राजनीति में नौतिकता का पूर्णतः अधःपतन कर ही दिया है। सपा व बसपा का वोटबैंक अब स्थिर नही रहा। अन्य क्षेत्रीय दलों ने बारी-बारी से जनता को जो धोखा दिया है, उसका खामियाजा इनको भुगतना पड़ा है। बिहार चुनाव के होने पर ये गैर भाजपा तथा गैर कांग्रेस को कमजोर कह-कह करके अनेक उल्टे-सीघे मुद्दे व हथकण्डे अपनाकर, इन्होने भाजपा को शिकस्त देने में सफलता प्राप्त कर ली है। यही सब कुछ उत्तर प्रदेश में भी दोहराने की भी योजना बनती दिख रही है।उत्तर प्रदेश में एक षडयंत्र के तहत पंचायत चुनाव में खुले आम मत खरीदने के प्रयास किये गये। नोट,कपड़े, साड़ियां तथा कम्बल आदि खुले आम बंटे हैं। इस खरीद फरोख्त में अनेक जगह हिंसक घटनाये भी हुई हैं।जहां खरीद-फरेाख्त सफल नहीं हुआ वहां साम, दाम, दण्ड तथा भेद की नीति अपनाकर अपने पक्ष में करने की सारी औेपचारिकता निभाई गयी। विपक्षी भाजपा, बसपा तथा कांग्रेस चिल्लाते रहे और चुनाव सकुशल मानते हुए सम्पन्न करा लिये गये।
टी. एन. शेषन जैसा चुनाव आयुक्त:- राजनीति की खत्म होती सुचिता अभी तो अच्छा लग रहा हैं, लेकिन 2017 में जब विधानसभा चुनाव होगा तो हर पार्टी के पैर के नीचे जमीन खिसक जाएगी। जो बीज सपा ने इस छोटे से चुनाव में बो रखे हैं उसकी फसल उस समय तक अपनी जड़े जमा लेगी। फिर यदि कोई टी. एन. शेषन जैसा चुनाव आयुक्त ही इस रोग से निजात दिला पायेगा। अन्यथा सब कुछ दिखावटी ही रह जाएगा । इसी प्रकार ग्राम प्रधान, ब्लाक प्रमुख तथा पंचायत अध्यक्ष का चुनाव भी सम्पन्न कराये गये हैं। यदि उत्तर प्रदेश में सर्वे कराके देखा जाय तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि पंचायत अध्यक्ष कोई आम आदमी नहीं हो सका है। या तो यह किसी मंत्री या विधायक का परिवारी जन होगा या रिश्तेदार । यही नहीं इन अध्यक्ष को विधान परिषद के माध्यम से राजनीति में प्रवेश कराया जा रहा है। जिस प्रकार बिहार में श्री लालू प्रसाद जी के दस पास बेटे को उप मुख्यमंत्री का पद मिल जाता है। उसी प्रकार राजनेता उत्तर प्रदेश में अपने अपने पाल्यो व रिश्तेदारों को महिमा मण्डित कराने में लगे हुए है। फिर इसके लिए वे किसी को गाली भी दे सकते हैं। किसी उम्मीदवार को जेल या थान्हें में चुनाव अवधि में नजरबन्द भी करा सकते हैं अथवा अपनी पार्टी के शसस्त्र संगठनों से मारपीट तथा हत्या तक करा सकते हैं। इन चुनावों में कितनी हिंसाये इसी लिए होती हैं कि इन्हें माननीयों का संरक्षण प्राप्त रहता है और कानून को कोई डर नहीं रहता है। आज के युग में किसी भी नौकरशाह में इतनी हिम्मत नहीं कि वह इन माननीयों के विरुद्ध एक शब्द भी बोल सकें। आखिर उन्हें मन माफिक पोस्टिंग तो यही माननीय ही दिलाते हैं। कोई खेमका या दुर्गाशक्ति नागपाल या अमिताभ बनने की भूल क्यों करेगा ?
निहित स्वार्थ के वशीभूत होकर नेता बेलगाम:-एक समय था जब गांव के या क्षेत्र के असरदार लोगों को लोग पकड़कर उनकी सिपारिश कर उन्हें सरपंच या मुखिया निर्विरोध चुन लिया करते थे। और मुखिया भी पूरी ईमानदारी से अपना कम आम जनता का ज्यादा ही ख्याल रखते थे। मुखिया का निर्णय हर कोई मानता था। यहां तक कि उससे या समाज से गरीब पिछड़े की मदद भी दी जाती थी। कोई ना तो कोर्ट कचहरी जाता था और ना ही पुलिस थान्हें जाना पड़ता था। परन्तु जब से पंचायतों तथा स्थानीय निकायों को वित्तीय अधिकार तथा अनुदान मिलने लगा। लोगों की नीयत में खोट आने लगा है। अब लोग विना श्रम के सरकारी धन के बन्दर बांट के लिए ही इन चुनावों को अपने आन, बान तथा शान की तरह मानने लगे है।अपने निहित स्वार्थ के वशीभूत होकर वर्तमान समय में नेता बेलगाम हो चुके हैं। वे मनमानी वह सब कुछ बक रहे हैं जो दूसरों को सोलह आने चिढाने वाला हो। उन्हें उनके हाई कमानों ने पूरा का पूरा छूट दे रखा है। आज एक छोटे कद का नेता छोटी बात करता नहीं देखा जाएगा। हर छोटी से छोटी घटना को मोदी का नाम लेकर बदनाम किया जाता हैं। एक छोटे प्रदेश दिल्ली का मुख्य मंत्री श्री केजरीवाल हर बात में मोदी जी को चुनौती देते नजर आता है। कांग्रेस नेता श्री राहुल गांधी की स्क्रिप्ट में मोदी के अलावा कोई दूसरा कान्टेन्ट खोजने पर भी नहीं मिलेगा। जहां भाजपा की सरकार होगी, वहां की हर किसी छोटी घटना में इन्हें देखा जा सकेगा, परन्तु जहां उनकी अपनी कांग्रेस की सरकार रहेगी वहां वह झांकने तक नहीं जाएगे। और ना ही कोई राजनीतिक मुद्दा उन्हें व उनके स्क्रिप्ट राइटर को सूझेगा। यही हाल श्री आजम खां साहब की भी है। वे हर एक आतंकवादी घटना को मोदी से जोड़कर देखने लगते हैं। चाहे मोदी की पाकिस्तान यात्रा हो या अन्य कोई विदेशी यात्रा ,विपक्षियों के चश्में का पावर कुछ इतना वढ़ जाता है कि वे भूत वर्तमान की कम भविष्य के कपोल कल्पित दृश्य ज्यादा देखने लगते है। देश के बुद्धजीवी ,इन्साफ पसन्द , न्यायपालिका के प्रबुद्ध विद्वानों तथा लोकतंत्र के चैथे स्तम्भ मीडिया का रोल इस संक्रमित काल में ज्यादा बढ़ जाता है। उन्हें भारत की परम्परा व नौतिकता को देखते हुए इसके सामने आने वाले आसन्न खतरे को भांपना चाहिए तथा एसा प्रयास करना चाहिए कि विश्व गुरू की जो महिमा पहले से भारत ने अर्जित कर रखी है, वह ना तो समाप्त होने पाये ओर ना ही उसमें किसी प्रकार का दाग लगने पाये। इसके लिए हर भारतवासी का यह कर्तव्य ओर धर्म बन जाता है कि वह अपने छोटे-छोटे स्वार्थ को तिलांजलि देते हुए राष्ट्र और राज्य के आम लोगों के व्यापक हितों को प्रथम वरीयता दे।

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