नैतिकता का मज़ाक

NETA

      गत १० जुलाई को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया था – निचली अदालत से दो या दो साल से अधिक अवधि की सज़ा पाने वाले सभी जन प्रतिनिधियों की संसद और विधान सभा की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी तथा हिरासत या जेल में रहकर कोई भी व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ पाएगा। यह फ़ैसला संसद और विधान सभाओं में हत्या, बलात्कार, रिश्वत या अन्य गंभीर अपराध के घोषित अपराधियों के संसद या विधान सभाओं में बेरोकटोक पहुंचने और कानून बनाने में उनकी हिस्सेदारी को ध्यान में रखते हुए संविधान के प्रावधानों के अन्तर्गत लिया गया था। देश की आम जनता ने सर्वोच्च न्यायालय के इस अभूतपूर्व फ़ैसले पर अपनी हार्दिक प्रसन्नता व्यक्य की थी। एक आस बंधी थी कि अब लोकतंत्र  के सर्वोच्च मन्दिरों में अपराधी नहीं पहुंच पायेंगे। फ़ैसले की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि कैबिनेट ने  सर्वसम्मत निर्णय से सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले को पलटने का निर्णय ले लिया। दिनांक २२ अगस्त को केन्द्रीय मंत्रीमंडल ने दागी संसदों और विधायकों को तोहफ़ा देते हुए यह निर्णय लिया कि निचली अदालत से दो साल या उससे अधिक की सज़ा मिलने पर भी न तो सांसद-विधायकों की सदस्यता रद्द होगी और न ही हिरासत या जेल में रहने पर उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगेगी। प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय के इस आशय के फ़ैसले को पलटने के लिए कैबिनेट ने जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन संबन्धी प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। सरकार के इस फ़ैसले पर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी सहमति पहले ही दे रखी है। जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन के इस विधेयक का सर्वसम्मति से लोक सभा और राज्य सभा में पास होना तय है।

संसद और विधान सभाओं में अपराधियों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि वे जब चाहें अपने पक्ष में संविधान में संशोधन कराके अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं। आम जनता की भावनाओं का हमारी सरकार और हमारी संसद इतनी बेशर्मी से खुलेआम गला घोंटेगी, इसकी अपेक्षा नहीं थी। लेकिन मर्यादा और नैतिकता की सारी सीमाएं लांघ चुकी इस सरकार से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है? Party with a difference की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी की इस बिल को पास करने के लिए दी गई सहमति और भी आश्च्चर्यजनक है। नरेन्द्र मोदी अब किस मुंह से घूम-घूमकर नैतिकता की दुहाई दे पायेंगे? भाजपा के सांसद नरेन्द्र मोदी की हवा निकालने पर आमादा हैं। वे यह नहीं चाहते हैं कि देश का नेतृत्व एक ईमानदार और उच्च नैतिक मूल्यों से संपन्न नेता के पास जाय। इस विधेयक के समर्थन में लालू, मुलायम, मायावती, सोनिया आदि घोषित दागी नेता एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देंगे, यह तो प्रत्याशित था; लेकिन लाल कृष्ण आडवानी और अरुण जेटली भी उसी पंक्ति में खड़े हो जायेंगे, इसकी कही से भी उम्मीद नहीं थी। अब यह सिद्ध हो गया है कि सभी राजनीतिक दल और सारे नेता एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। अपनी तन्ख्वाह और अपने भत्ते बढ़ाने के लिए सारे सांसद किस तरह एकजूट हो जाते हैं, यह पहले भी देखा जा चुका है। ऐसा विधेयक बिना किसी चर्चा के संसद में दो मिनट में पारित हो जाता है।

सरकार में बैठे नेताओं और मौनी बाबा को तनिक भी सद्बुद्धि हो, तो वे संशोधन विधेयक लाने के पूर्व जनमत संग्रह करा लें। उन्हें जनता की राय मालूम हो जायेगी। लेकिन ऐसा करने की हिम्मत किसी में है क्या? कैबिनेट, सांसद और विधायकों के इन कृत्यों से देश की जनता का विश्वास इन जनतांत्रिक संस्थाओं से कही उठ न जाय। जनता का अविश्वास कालान्तर में लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। लेकिन इसकी चिन्ता ही किसे है? सब आज की मलाई चाटने में व्यस्त हैं।

8 COMMENTS

  1. किसीर के ऊपर निचली अदालत से सजा होने पर भी सजा होने के बाद जरूर चुनाव लड़ने से मना होना चाहिए चाहे वह अपील पर गए हों , चाहिए पर अंडरट्रायल पर नहीं-क्योंकि झूटे मुकदमे भी काफी होते हैं—————————————————————————————————– “Party with a difference की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी की इस बिल को पास करने के लिए दी गई सहमति और भी आश्च्चर्यजनक है।”यह सिद्ध हो गया है कि सभी राजनीतिक दल और सारे नेता एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।” -” संघ की भी हालत घर के उस बूढ़े की तरह हो गई है जो बाहर के बरामदे में बैठकर सिर्फ़ टर्र-टर्र कर सकता है, बेटों की मनमानी नहीं रोक सकता।”-आपका कथन सत्य है . वैसे मैं किसी भी सी एम् के पी एम् सीधे बनाने का विरोधी हूँ – कमसे कम ५ वर्ष संसद में या राष्ट्रिय राजनीती में किसी को काम करना चाहिए –

  2. उक्त लेख कितना गरिमामय है, इसकी कसौटी इसी लेख की केवल निम्न एक पंक्ति है-

    “Party with a difference की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी की इस बिल को पास करने के लिए दी गई सहमति और भी आश्च्चर्यजनक है। नरेन्द्र मोदी अब किस मुंह से घूम-घूमकर नैतिकता की दुहाई दे पायेंगे? भाजपा के सांसद नरेन्द्र मोदी की हवा निकालने पर आमादा हैं। वे यह नहीं चाहते हैं कि देश का नेतृत्व एक ईमानदार और उच्च नैतिक मूल्यों से संपन्न नेता के पास जाय।”

    लेख के लेखक के अनुसार केवल मात्र नरेन्द्र मोदी ही एक मात्र “ईमानदार और उच्च नैतिक मूल्यों से संपन्न नेता” है! लेकिन देश के लोगों की बात तो छोडो भाजपा सांसद भी उसे नहीं चाहते!

  3. अभी ये कैबिनेट से पास हुआ है,फिर भाजपा के सांसदों की सहमति कैसे मानी जा सकती है. हो सकता है इनकी राय नहीं ली गयी हो.

  4. This is the most shameful on the part of all the political parties to behaive to go against the supreme court .
    The politicians are shameless and the nation has gone to dogs
    Shriharsha

  5. वाह नेता जी हमें आप से और कोइ आशा नहीं रखनी चाहिए, क्यों की चोर -चोर मौसेरे भाई किसी ने सही कहा है बेचारी जनता……………………………

  6. कल किसने देखा है?आज अपना है,.वैसे भी नेताओं ने अपराध की नीव इतनी गहरी गाड़ दी है कि यह पेड़ तो फूलना फलना ही है, कभी जनता ही ऊब कर जनका निपटारा करेगी.गाँधी भी अगर दुबारा आ जाएँ तो उन्हें भी इसका ओर छोर न मिलने के कारण असफल रहेंगे,और ये उन्हें भी रास्ता भटका देंगें.

  7. नहीं जानता, कि संविधान के अनुसार न्यायालय से विपरित कानून, संसद बना सकती है ?
    जो केक खाएगा, वही क्या केक को काटेगा भी?
    अपने विषय में निर्णय हमेशा अन्यों ने ही देना होता है।
    यही राम का आदर्श भी है।
    इसी लिए संविधान में संशोधन होना ही चाहिए।
    बलि राजा को दण्ड देने का समय आ गया क्या?

    भा. ज. पा. के निर्णय पर, आर एस एस का क्या, कहना है?

    • आर.एस.एस. की सुनता ही कौन है? आडवानी, जेटली या सुषमा स्वराज वर्तमान स्थिति से ही संतुष्ट हैं। मोदी की टांग खींचने में ही वे अपनी बुद्धि खर्च करते हैं। जनता और जनभावनाओं की इनमें से किसी को भी परवाह नहीं। संघ की भी हालत घर के उस बूढ़े की तरह हो गई है जो बाहर के बरामदे में बैठकर सिर्फ़ टर्र-टर्र कर सकता है, बेटों की मनमानी नहीं रोक सकता।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here