मोदी का साक्षात्कार

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अनिल अनूप
नववर्ष के पहले दिन प्रधानमंत्री मोदी का साक्षात्कार टीवी चैनलों पर प्रसारित किया गया। प्रधानमंत्री का यह संपूर्ण साक्षात्कार एएनआई समाचार एजेंसी की संपादक स्मिता प्रकाश ने लिया था। संभवतः साक्षात्कार कुछ दिन पहले लिया गया था, क्योंकि प्रधानमंत्री ने ही ‘आयुष्मान भारत’ योजना के आंकड़े पुराने उद्धृत किए थे। बहरहाल प्रधानमंत्री मोदी का चुनाव वर्ष में प्रथम साक्षात्कार अपने आप में उनकी सार्वजनिक साफगोई है। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण और राष्ट्रीय मुद्दों पर खुलासे किए, अपने स्पष्टीकरण दिए और उनका सम्यक विश्लेषण भी किया। माना जा सकता है कि देश का कुहासा छंटा होगा, कई भ्रांतियां टूटी होंगी और प्रधानमंत्री की भावी योजनाओं की थाह भी मिली होगी। पहली बार प्रधानमंत्री मोदी ने साफगोई से कहा कि अयोध्या के राम मंदिर पर फिलहाल अध्यादेश जारी नहीं किया जाएगा। संवैधानिक तरीके और मर्यादाओं से ही समस्या का समाधान निकल सकता है। यदि आवश्यकता हुई, तो कानूनी प्रक्रिया के बाद ही अध्यादेश पर विचार किया जा सकता है। इस साफगोई के जरिए प्रधानमंत्री ने संघ परिवार की अध्यादेश लाने या कानून बनाने की लगातार मांग को खारिज कर दिया है। अलबत्ता संघ ने प्रधानमंत्री के कथन को ‘सकारात्मक’ जरूर माना है। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस को राम मंदिर के रास्ते में रोड़ा करार दिया और आग्रह किया कि कांग्रेस अपने वकीलों को रोके कि वे अदालत में हस्तक्षेप न करें। अब यह सवाल है कि 2019 के चुनाव से पहले राम मंदिर का निर्माण शुरू होगा या नहीं अथवा इस आस्थामय और भावनात्मक मुद्दे को अनसुलझा ही रहने दिया जाएगा? प्रधानमंत्री मोदी ने गांधी परिवार पर पहली बार इतना स्पष्ट और तगड़ा हमला करते हुए कहा है कि चार पीढि़यों तक देश पर राज करने वाले आज जमानत पर बाहर हैं और वह भी पैसों की हेराफेरी के कारण…। राफेल विमान सौदे पर उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर व्यंग्य कसा-‘उन्हें बहुत ज्यादा बोलने की बीमारी है, तो मैं क्या कर सकता हूं।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि राफेल में व्यक्तिगत तौर पर आरोप उनके खिलाफ नहीं हैं। वह संसद में सब कुछ खुलासा कर चुके हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति बयान दे चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने रही-सही कसर पूरी कर दी है। अब उन्हें कितनी भी गालियां दी जाएं, कितने भी आरोप मढ़े जाएं, उन्होंने सब कुछ स्पष्ट कर दिया है। 2019 के चुनावों के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी ने राहुल गांधी के साथ मुकाबला स्वीकार न करते हुए नया समीकरण दिया है-जनता बनाम महागठबंधन। प्रधानमंत्री ने खुद को जनता के प्यार और आशीर्वाद का प्रतीक माना है। उनकी यह सोच भी सामने आई है कि लहर मोदी की नहीं होती, बल्कि जनता की आकांक्षाओं और उम्मीदों की होती है। जनता 2019 में भी चुनाव की दिशा और एजेंडा तय करेगी।  बेहतर रहा कि प्रधानमंत्री ने नोटबंदी और जीएसटी सरीखी आर्थिक नीतियों का भी बचाव किया। वह इन्हें राजनीतिक धक्का नहीं मानते, बल्कि पहली बार दावा किया है कि अब 500 से अधिक चीजों पर टैक्स ‘जीरो’ फीसदी है। हमने करों को एकीकृत किया है और यह करने में केंद्र सरकार के साथ सभी राज्य सरकारों के वित्त मंत्री भी हैं। फैसले सामूहिक तौर पर लिए जा रहे हैं। कारोबारियों के एक तबके को कुछ झेलना पड़ा है, लेकिन उसे भी तर्कसंगत और फायदेमंद बना रहे हैं। प्रधानमंत्री ने यह भरोसा भी देश के साथ साझा किया है कि भारत सरकार ने जिन देशों के साथ संधियां की हैं, अब उनके नतीजे सामने आएंगे और एक दिन काले धन को देश में वापस आना ही होगा। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री ने यह साफ नहीं किया कि 15 लाख रुपए प्रत्येक नागरिक के बैंक खाते में जमा होने का सच क्या है? हमने 2013 में वह रैली कवर की थी, जिसमें नरेंद्र मोदी ने कहा था कि यदि सारा काला धन देश में वापस आ जाए, तो हरेक नागरिक के खाते में 15-15 लाख रुपए यूं ही आ सकते हैं। कांग्रेस ने इसकी भाषा बदल कर राजनीतिक मुहावरा बना लिया और भाजपा या मोदी सरकार ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। न जाने क्यों…? प्रधानमंत्री ने सर्जिकल स्ट्राइक, पाकिस्तान से लेकर किसान और कर्जमाफी, महंगाई और मध्यवर्ग, भीड़ की हिंसा और राजनीतिक हत्याओं आदि पर बहुत कुछ बोला। महत्त्वपूर्ण यह रहा कि हाल की तीन राज्यों में चुनावी हार से भाजपा का काडर और नेतृत्व जरा सा भी हतोत्साहित नहीं हैं। प्रधानमंत्री ने आत्मचिंतन और चर्चा की बात कही, लेकिन त्रिपुरा, असम, कश्मीर, हरियाणा के स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा की जीत का उल्लेख भी किया। प्रधानमंत्री मोदी ने एक महत्त्वपूर्ण खुलासा किया कि रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे उर्जित पटेल बीते 6-7 महीने से इस्तीफा देने को कह रहे थे। उन्होंने लिखित में भी दिया था, लिहाजा किसी भी राजनीतिक दबाव की बात सरासर गलत है। अब देश के सामने प्रधानमंत्री की सोच और एजेंडा स्पष्ट हैं, लिहाजा उनका आकलन कर निर्णय लिया जा सकेगा कि देश अब भी उनमें भरोसा रखता है या कोई अन्य विकल्प की तलाश में है।

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  1. अनिल अनूप जी द्वारा युगपुरुष मोदी के साक्षात्कार के वृत्तांत में लिखे निबंध की कुछ एक पंक्तियाँ पढ़ मैं उनके कथन, संवैधानिक तरीके और मर्यादाओं से ही समस्या का समाधान निकल सकता है पर रुक सोचता हूँ कि क्या यह वही हिंदुत्व के आचरण का उदाहरण है जिसके चलते आज पाश्चात्य विकसित राष्ट्रों में सभ्य समाज की स्थापना हो पाई है| भले ही वहां हिंदुत्व के आचरण को अनुशासन व कुशल न्याय व विधि व्यवस्था से ही क्यों न पहचाना गया हो, सदियों से भारत की संस्कृति, भारतीय शास्त्र अथवा भारतीय दर्शन की ओर बाट जोहते उन्होंने कुछ तो सीखा होगा! चार दशकों से संयुक्त राष्ट्र अमरीका में रहते और देश विदेश का भ्रमण करते मैंने सदैव अपने हिन्दू होने पर गर्व किया है और सोचता हूँ आज बहुसंख्यक भारत में हिन्दू के ही हिंदुत्व को क्योंकर मात्र घिनौना शब्द बना दिया गया है? सभ्य समाज में भी बुराई होती है लेकिन अच्छाई प्रधान-कारक होने पर बुराई को नियंत्रण में लाया जाता है, फिर बहुसंख्यक भारत में सहिष्णु हिंदु में नहीं बल्कि उसके हिंदुत्व में कैसे और क्योंकर केवल बुराई ही दिखाई गई है? सोचिये!

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