नरेन्द्र मोदी का आत्मविश्वास ही उनकी सफलता है – डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

Narendra_Modiपिछले दिनों देश भर से पत्रकारों का एक दल गुजरात गया था । सभी पत्रकार हिन्दुस्थान समाचार संवाद समिति से ताल्लुक रखने वाले थे । गुजरात की विकास गाथा को , जिसकी आज देश में सर्वाधिक चर्चा होती है,स्वयं देखना भी इस पत्रकार दल का उद्देश्य था । आख़िर आँखों देखी और कानों सुनी में अन्तर तो होता ही है । पत्रकार की कोशिश आँखों देखी को ही प्रमाण मानने की होती है ।’ आंखिन देखी’करने के बाद इस पत्रकार दल को चार मई को गान्धीनगर में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को मिलना भी था । मुझे लक्ष्मीनारायण भाला जी का फ़ोन शायद एक मई को आया कि क्या आप भी चार मई को अहमदाबाद चल सकते हैं ? भाला जी हिन्दुस्थान समाचार के मार्गदर्शक हैं और उन्होंने भी भाग्य में यायावरी वृत्ति पाई है । लिखने पढ़ने की इल्लत उन्होंने भी पाल रखी है जो पत्रकार का धर्म है । चार मई को सायं सात बजे गान्धी नगर के सर्किट हाउस में नरेन्द्र मोदी से अनौपचारिक बातचीत थी । हिमाचल की स्थानीय बोली में कहें तो गप्पशप थी । वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर त्रिखा भी मौजूद थे ।

मोदी का आत्मविश्वास लाजवाब है । उनके बोलने के लहजे और जिसको अंग्रेज़ी वाले बाड़ी लैंग्वेज कहते हैं , उससे वह साफ़ झलकता है । मुझे अभी तक ध्यान है , १९९८ में जब हिमाचल प्रदेश में सरकार बनने वाली थी , राज्यपाल भाजपा को सरकार बनाने के लिये निमंत्रित नहीं कर रही थी । कांग्रेस और भाजपा किसी के पास भी स्पष्ट बहुमत नहीं था । लेकिन पंडित सुखराम के समर्थक विधायकों को मिला कर भाजपा का पलड़ा भारी था । परन्तु राज्यपाल मान नहीं रही थी । पंडित सुखराम अधीर हो रहे थे । उन्होंने ग़ुस्से में कहा ,ये भाजपा वाले कुछ नहीं कर पायेंगे , नरेन्द्र मोदी को बुलाया जाये , वे ही यहाँ भाजपा की सरकार बनवा सकते हैं और कोई नहीं । उस समय तक वे न मोदी को मिले थे और न ही उन्हें व्यक्तिगत तौर पर जानते थे । मोदी गुजरात के चुनावों के सिलसिले में वहां थे और सुखराम उनका टैलीफोन तलाश रहे थे । ‘मोदी कर सकते हैं’ इसी विश्वास के चलते सुखराम अहमदाबाद में मोदी को ढूंढ रहे थे । मोदी का यही आत्मविश्वास गुजरात के विकास के पीछे की मूल शक्ति है । गान्धीनगर की बातचीत में भी उनका यही आत्मविश्वास झलक रहा था ।

मोदी अपने किये कार्यों के बारे में बात कर रहे थे । उनका आग्रह था कि गुजरात में आने वालों को यहाँ कि ‘किडज सिटी’ ज़रुर देखनी चाहिये । प्रदेश में बच्चों के भविष्य को लेकर उनकी क्या कल्पना है , यह उससे पता चलता है । इसके साथ ही वे प्रदेश में स्थापित बाल विश्वविद्यालय के बारे में बता रहे थे । बच्चों को लेकर , उनके विकास और भविष्य को लेकर मोदी उत्साह से लबरेज़ हैं । जो पत्रकार किडज सिटी देख कर आये थे , वे भी उससे खासे प्रभावित ही लग रहे थे । बच्चों को हर हालत में स्कूल जाना चाहिये , यह मोदी का सपना है । लेकिन मोदी नौकरशाही के बलबूते सपने देखने के आदी नहीं हैं । उनका कहना है कि जिन दिनों स्कूलों में प्रवेश होता है , उन दिनों सारी सरकार सचिवालय छोड़ कर गाँवों में डेरा जमाती है । मोदी ने नौकरशाही को भी सपने लेने सिखा दिया है । किसी ने पूछ लिया कि आप नौकरशाही से यह सारा कैसे करवा लेते हैं ? मोदी का कहना था कि मैंने बाबुओं के बीच अरसे से जमी हुई हायरार्की की भावना को समाप्त कर दिया है । अब वे कर्मचारी नहीं , कर्मवीर हैं । सच भी है । मोदी के साथ चलना है तो कर्तव्यों का नया पहाड़ा पढ़ना होगा । देखे गये सपनों को धरती पर उतारने की कला सीखनी होगी । मोदी का कहना है कि मैं किसी भी बैठक में किसी अधिकारी से यह नहीं पूछता कि आपने यह काम क्यों नहीं किया ? मैं सदा यही पूछता हूँ कि पिछले दिनों जो सबसे अच्छा काम किया है , वही सभी को सुनाओ । इससे सुनाने वाले की उर्जा और सीमा दोनों का पता चल जाता है। मोदी सब की सीमा और सब की उर्जा को पहचान गये हैं ।

सौर उर्जा और पवन उर्जा को लेकर मोदी अपनी सरकार की योजनाओं के बारे में बता रहे थे । विकास का रहस्य उर्जा में छिपा हुआ है । भविष्य उसी का है , जिसके पास उर्जा है । सूर्य भगवान और पवन देवता इस उर्जा के अनन्त भंडार हैं । मोदी गुजरात को उर्जा संकट से निजात पाने के लिये इसी सूर्य देवता और पवन देवता की आराधना में जुटे हुये हैं । मेरी इच्छा हुई कि मैं पूछूँ कि कहीं तीस्ता सीतलबाड इसके कारण भी आपको साम्प्रदायिक न कह दे । हिन्दु देवताओं की साधना ! लेकिन मोदी जिस तन्मयता से प्रदेश में उर्जा उत्पादन के ग़ैर पारम्परिक तरीक़ों के बारे में बता रहे थे , मैंने टोकना उचित नहीं समझा ।

मोदी विकास की बात भी करते हैं और उन्होंने गुजरात में विकास किया भी है । लेकिन आखिर उनकी विकास की अवधारणा है क्या ? यह सब से बडा प्रश्न है । विकास किसके लिये ? विकास की दिशा और स्वरुप क्या हो ? विकास की इसी अवधारणा को लेकर हम में से किसी ने मोदी से प्रश्न किया । ऐसा ही प्रश्न बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने भी मोदी से किया था । उन्होंने मोदी का नाम नहीं लिया था , लेकिन इशारा स्पष्ट था । नीतिश कुमार ने उत्तर भी स्वयं ही दिया कि बिहार का विकास माडल देश के लिये बेहतर है । वे कहना यह चाह रहे थे कि गुजरात का विकास माडल देश के लिये हितकर नहीं है । जो मोदी को और किसी तरीक़े से निपटा नहीं पाते , जिनमें साम्यवादी सबसे आगे हैं , वे कहते हैं मोदी का विकास माडल , विकास का पूँजीवादी माडल है जिससे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को लाभ मिल रहा है । मोदी ने स्पष्ट किया , मैं विकास उसी को मानता हूँ जिसका लाभ समाज के पायदान पर खड़े अन्तिम व्यक्ति तक पहुँचे । महात्मा गान्धी और दीनदयाल उपाध्याय भी इसी को विकास की अन्तिम कसौटी मानते थे ।मोदी का कहना था कि मैं केवल ऐसा मानता ही नहीं बल्कि सुनिश्चित भी करता हूँ । जिस विकास का लाभ अन्तिम व्यक्ति तक न पहुँचे वह विकास है ही नहीं और जो विकास धारणक्षम नहीं है , वह विकास नहीं बल्कि विनाश है । मैंने अनेक राजनेताओं का इंटरव्यू लिया है । सभी अपने किये कामों की कथा सुनाते हैं । लेकिन वह सुनाना लोक सम्पर्क अभियान का हिस्सा लगता है । मोदी जब कथा सुना रहे थे , तब लग रहा था मानों वे अपने घर की कथा सुना रहे हों । मोदी गुजरात की कथा नहीं सुना रहे थे , अपने भीतर को कैनवास पर उतार रहे थे । जिसको इन्वालबमैंट कहते हैं , वह मोदी की ,गुजरात को लेकर देखी जा सकती है । वे गुजरात में राजनीति नहीं कर रहे , लगता है एक मिशन की पूर्ति कर रहे हैं । गुजरात के लोग उनके लिये केवल मतदाता नहीं बल्कि उनके अपने परिवार के सदस्य हैं । एक पत्रकार ने प्रश्न करते हुये कोई आँकड़ा ग़लत बोल दिया । मोदी ने तुरन्त उसे ठीक कर दिया । उन्होंने किसी सचिव या पुस्तक की सहायता नहीं ली । गुजरात की स्थिति उनकी उँगलियों पर नाचती है ।

मोदी का सबसे बड़ा दावा गुजरात में पर्यटन को बढ़ावा देने का है । कच्छ का रेगिस्तान तक पर्यटकों को लुभाने लगा है । पर्यटन के बौद्ध सर्किट में वे गुजरात को ले आये हैं । ज्योति ग्राम उनकी अनूठी परियोजना है , जिससे गाँवों को चौबीसों घंटे बिजली मिलती है । इसी प्रकार गाँवों वालों को भी प्रसव के समय हस्पताल की सुविधा प्राप्त हो , इसकी व्यवस्था सरकार ने की है । स्थानीय डाक्टरों को जो गाँवों में अपने औषधालय चलाते हैं , उन्हें इस प्रकार के प्रसव के लिये निश्चित प्रोत्साहन राशि दी जाती है ।

वे प्रदेश में स्थापित पेट्रोलियम विश्वविद्यालय के स्तर के बारे में बता रहे थे । प्रदेश में शिक्षा की स्थिति के बारे में बता रहे थे ।उन्होंने प्रदेश में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय स्थापित किया है , जिसमें प्रवेश लेने के लिये देश भर ज़बरदस्त प्रतियोगिता होती है । अहमदाबाद में परिवहन के क्षेत्र में बी आर टी एस अर्थात तीव्र बस परिवहन व्यवस्था चालू की है जो बहुत ही सफल हुई है । गुजरात में इस व्यवस्था कि सफलता देखते हुये मुम्बई , चेन्नै , बेंगलुरु और भुवनेश्वर में भी यह प्रयोग किया जा रहा है । गुजरात के इस प्रयोग को अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है । अहमदाबाद में सड़कें खुली और चौड़ी हैं । हमारा टैक्सी ड्राईवर ख़ुशी से बता रहा था कि मोदी ने सड़कों पर से अवैध क़ब्ज़े हटा दिये हैं । मैं अहमदाबाद आता रहता हूँ । रिक्शा में , आटो रिक्शा में मैं प्राय मोदी की निन्दा करता हूँ । रिक्शा वाला या आटो रिक्शा वाला मुझसे भिड़ जाते हैं । वे मोदी के कामों की तारीफ़ करते हैं । सबसे बढ़ तर रिक्शा वाला समझता है कि मैं उसकी अपनी निन्दा कर रहा हूँ । मोदी ने अपने आप को गुजरात से एकाकार कर लिया है ।

लम्बी लम्बी योजनाएँ सब सरकारें शुरु करती हैं । उसकी सफलता के आँकडें भी उपलब्ध करवा देती हैं । लेकिन ज़मीन पर इन योजनाओं के लाभ इस लिये नहीं पहुँच पाते , क्योंकि शुरु करने वाले और इनका निष्पादन करने वालों की इनमें कभी व्यक्तिगत इन्वालबमैंट नहीं होती । सरकार और मुख्यमंत्री में सदा द्वैत भाव रहता है । मोदी ने इस द्वैत को समाप्त कर अद्वैत में बदल दिया है । मोदी गुजरात के उसी प्रकार हो गये जिस प्रकार कभी कबीर ने कहा था , लाली देखन मैं गई ,मैं भी हो गई लाल । मोदी और गुजरात एकाकार हो गयें हैं । यही मोदी की सफलता का रहस्य हैं । लेकिन इस स्थिति तक पहुँचने के लिये बहुत तपस्या करनी पड़ती है । मोदी ने वह तपस्या की है । लेकिन लोग इसको कितना समझ पाते हैं , यह विवादास्पद ही रहेगा । मोदी की बातचीत में भी उनका यह दर्द झलक रहा था ।

मोदी ने सभी पत्रकारों को एक एक थैला भेंट किया है । थैले में गुजरात के विकास की कहानियाँ हैं। पंजाबी में इस प्रकार के थैले को झोला कहते हैं । जिन दिनों मैं कालिज में पढ़ता था , उन दिनों हमारे इलाक़े में नक्सलवादी आंदोलन का बहुत ज़ोर था । कालिजों में वैचारिक व बौद्धिक विषयों पर बहसें होती रहती थीं । बुद्धिजीवी होने की निशानी कन्धे पर इस प्रकार का थैला या झोला लटकाने से पूरी होती थी । आमतौर पर कामरेड ऐसा करते थे । तब मैंने भी कन्धे पर थैला लटकाने की शुरुआत की थी । कामरेड बुद्धिजीवी होने का भ्रम पाल सकता है तो जनसंघी क्यों नहीं ? भ्रम शब्द का इस्तेमाल मैंने जानबूझ कर किया है । बाद में हालात बदलते बदलते इतने बदल गये कि अब कालिजों विश्वविद्यालयों में वैचारिक विषयों पर बहसें समाप्त होते होते कैरियर और कारपोरेट जगत तक सिमट आईं । क्या कामरेड क्या जनसंघी सभी के कन्धों से थैले उतर गये और और दौड़ उस दिशा में चल पड़ी जहाँ जो जीतेगा वही जीयेगा । सरवाईवल आफ दी फिट्टैस्ट । मोदी बता रहे थे कि हमारा मूलमंत्र तो सर्वेभवन्तु सुखिन: है । यही मंत्र कल्याणकारी है । यही विकास की कसौटी है । क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कन्धे पर झोला भी लटकता रहे और विकास भी होता रहे ? तब विकास की दिशा विचार निर्धारित करेगा , बाज़ार नहीं । मैंने इतने साल बाद मोदी का दिया थैला फिर कन्धे पर लटका लिया है । मुझे कम-ज-कम इससे सुकून मिलता है । मोदी यह विश्वास करने को कहते हैं कि उनका विकास सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय है । देश के स्वर्णिम भविष्य को लेकर उनके भीतर जो छटपटाहट दिखाई देती है , वह उन पर विश्वास करने के लिये विवश करती है । शायद यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी मोदी में देश का भविष्य देख रही है । लेकिन मेरे एक पत्रकार मित्र कहते हैं यह वही युवा पीढ़ी है जो कारपोरेट जगत के पैकेज की तलाश में है । लेकिन मुझे विश्वास है मोदी इस युवा पीढ़ी को भी दिशा दे सकते हैं ताकि सर्वेभवन्तु सुखिन: के मंत्र में रंग भरे जा सकें ।

1 COMMENT

  1. Modi is the hope and future for all Indians . He is committed to work for all Indians means all Indians .
    He is for men, women and children. He is for poor and for rich, able and disabled. Those who think of minorities, appeasement and dynasty politics are the enemy of nation.
    He has proved that he is for development, technology and agriculture, common man and village and cities, progress, peace and prosperity.
    I support him and his party for all future local, state and general elections so that we can eradicate corruption and secure our borders.

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