मोदी: चुनावी सफलता और हिन्दी

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-डॉ. मधुसूदन-
modiji

वडोदरा में हिन्दी भाषण:

मोदीजी ने, ऐतिहासिक जीत के पश्चात, वडोदरा में मतदाताओं का आभार व्यक्त करनेवाला भाषण हिंदी में प्रारंभ किया, तो कुछ श्रोताओं ने उन से गुजराती में बोलने का आग्रह किया। ऐसे प्रसंग पर मोदी जी, यदि मतदाताओं ऋण चुकाने, गुजराती में बोल देते तो शायद ही कोई उसे अनुचित मानता। पर भारत माता के इस पुत्र ने ऐसा नहीं किया।

प्रादेशिकता से ऊपर उठी हुयी राष्ट्रीय दृष्टि:

इस अवसर पर, मोदीजी ने जिस चतुराई का और राष्ट्रीय वृत्ति का परिचय दिया; उससे मैं हर्षित हुए बिना न रह सका। क्या किया उन्होंने? उन्होंने नम्रतापूर्वक, हाथ जोड़कर, श्रोताओं से कहा कि “आप ही (वडोदरा की जनता) ने मुझे मत देकर, सारे देश का बना दिया है। कुछ धैर्य रखिए।” और ऐसा कहकर हिंदी में बोलना अबाधित रखा। श्रोताओं के प्रेम भरे आग्रह उपरांत, मतदाताओं को ही, गौरवान्वित करते हुए, अनुमति माँग कर, उनका आभार व्यक्त किया और हिंदी में बोलना अबाधित रखा। यह मेरे लिए, अतीव हर्ष की बात है।
वैसे बोलनेवाले शायद न हो, पर गुजरात में हिंदी समझनेवाले बहुत हैं। समझ प्रायः सभी जाते हैं। और फिर वडोदरा की नगरी कुछ पढ़ी लिखी भी है।
मैं यहाँ उनकी प्रादेशिकता से ऊपर उठी हुयी राष्ट्रीय दृष्टि को अधोरेखित करना चाहता हूँ।

अचरज:

उनकी इस राष्ट्रीय दृष्टि को, किसी समाचार पत्र ने आज तक कैसे, उजागर नहीं किया? क्या यह सत्य इतना नगण्य था? प्रादेशिकता को उजागर कर, सस्ती राजनीति प्रोत्साहित करनेवाले समाचार तो बहुत पढ़े जाते हैं। प्रादेशिकता ने राष्ट्रीयता को निगल रखा है। ऐसा राष्ट्रीयता का परिचय देनेवाला बिन्दू भी समाचारों से ओझल हो गया। पर, मेरे मत में, मोदी जी पहले ही उनकी स्पष्ट राष्ट्रीय दृष्टि के कारण सम्मान्य थे, पर इस घटना ने मेरी दृष्टि में वे और भी ऊंचे उठ गये। सोचिए; कितना बड़ा अंतर है, एक ओर ममता, जयललिता, चिदम्बरम, इत्यादि प्रादेशिक नेता और दूसरी ओर राष्ट्रीय दृष्टि रखनेवाले मोदीजी ? क्या ममता, जय ललिता या चिदम्बरम से ऐसी दृष्टि की अपेक्षा की जा सकती थी?
वैसे, मोदी जी का नेतृत्व समन्वयवादी है। संघर्ष को भी समन्वय से मिला लेता है। पर उनके लिए, समन्वय से भी ऊंची वरीयता राष्ट्रनिष्ठा की ही होगी। यही मेरे लिए विशेष है। इसी के कारण धीरे-धीरे ६५ वर्षों का अँधेरा भी छँटेगा।

चुनावी सफलता और हिन्दी:

साथ साथ, एक दूसरी अप्रत्यक्ष सच्चाई भी उजागर करना चाहता हूँ। हिंदी से ही, जुड़ी हुयी एक और सच्चाई है,जिसको किसी समाचार ने भी विशेष महत्व दिया हो, ऐसा पढा नहीं है। वो है, मोदी जी की, चुनावी सफलता के पीछे, उन के हिन्दी प्रयोग का गौण पर अति महत्त्वपूर्ण योगदान।
इस अप्रत्यक्ष सच्चाई की ओर, शायद आपका ध्यान न गया हो। ऐसी अनदेखी सहज संभव है, और आप भी उन की सफलता को केवल गुजरात के विकास, और भ्रष्टाचार रहित शासन जैसे और अनेक कारण गिनाते रहे; पर हिंदी में उन्हों ने जो प्रचार किया, वह भूल जाएँ। यह शायद आपके, ध्यान में तब तक नहीं आता, जब तक इस सत्य को कोई उजागर कर के न दिखाए।
मैं स्वयं, मोदी जी के चुनावी अभियान की सफलता का एक अति मह्त्त्वपूर्ण पर गौण कारण उनके हिंदी प्रयोग को मानता हूँ। मोदी जी गुजरात से बाहर, गुजराती में, ऐसा प्रचार कर ही नहीं सकते थे।
उनकी चुनावी सफलता में, विकास, भ्रष्टाचार रहित पारदर्शी शासन, और अन्य अनेक विकास कार्यों का योगदान अवश्य है, पर हिंदी-भाषी प्रदेशों में उनका हिंदी में अभियान चलाना; अभियान-यात्राएं (रैलियाँ) निकालना इत्यादि का प्रचण्ड योगदान मैं मानता हूँ।
अंग्रेज़ी बोलनेपर, हिंदी क्षेत्र का मतदाता, उनसे बिलकुल ना जुड़ता, न आत्मीयता का अनुभव करता।हिंदी ही मतदाता के चेतस को भावना से जोड सकती है। और भावनासे जुड़े बिना मत प्राप्त करना असंभव। अंग्रेज़ी हमें भावना की गहराई से, हृदय तल से, जोडने में असमर्थ है।अंग्रेज़ी कृत्रिमता की भाषा है। मोदी जी का चुनाव अभियान अधिकतर हिंदी के कारण सफल हुआ।
यह दिवाल पर लिखा अतिस्पष्ट संदेश, समाचार पत्रों ने कैसे पढा नहीं? और जुड़ी हुयी, सच्चाई यह भी है कि हिंदी बहुल क्षेत्र को जीते बिना, आप बहुमति नहीं प्राप्त कर सकते। और प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। इसलिए, कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता (लोकसभा) का मार्ग उत्तर प्रदेश से होकर निकलता है। अन्य हिंदी भाषी प्रदेशों को भी उपेक्षित नहीं किया जा सकता।

चिदम्बरम, जयललिता, ममता, या राहुल।

अब आप ताड़ गए होंगे कि क्यों किसी और पक्ष ने अपना प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी पहले से घोषित नहीं किया? उनके पास, हिंदी में प्रचार करने वाला कुशल प्रत्याशी था ही नहीं। शहजादे की योग्यता का प्रश्न था। वह पैरों पर खड़े-खड़े सोचकर बोल भी नहीं सकता। चिदम्बरम, ममता, जयललिता तो हिंदी जानते नहीं। और भी कोई मोदी को टक्कर देने योग्य दिखाई नहीं देता था। यही सब सोचकर, कोई पर्याय जब नहीं उपलब्ध हुआ तो, उलटे भाजपा को अपना प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने पर दोष दे रहे थे। ये कांग्रेस की, अपनी दुर्बलता को छिपाने का पारदर्शी कारण आप भी ताड ही गए होंगे।

क्या अंग्रेज़ी में प्रचार सफल हो सकता था?

चिदम्बरम प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनकर, तमिलनाडु के बाहर ऐसा सफल प्रचार तमिल में तो कर ही नहीं सकता। तो फिर उसका प्रचार, उत्तर-प्रदेश या अन्य हिंदी बहुल क्षेत्र में सफल होता तो किस भाषा में होता ? जब तमिल प्रजा भी मात्र ७% की जनसंख्या रखती है।
तमिलनाडु के बाहर, अंग्रेज़ी में प्रचार होता तो उत्तर प्रदेश का मतदाता भावना से उनसे जुडना और भी कठिन था।

अंग्रेज़ी हमें भावना से जोड़ती नहीं है।

अंग्रेज़ी द्वारा भारत का कोई भी मतदाता भावना से जुडना नितान्त असंभव। और सोचिए कि क्या जयलालिता तमिल में और ममता बंगला में ऐसा प्रचार कर सकती थीं? ये राज्यों के चुनावों की बात नहीं है। ये प्रधानमंत्री पद के चुनाव का प्रचार था।

लिखके रखिए।
आप अधिकतम जनता से कभी अंग्रेज़ी में जुड़ नहीं सकते। कभी नहीं। आपका चुनाव प्रचार अधिकतम सामान्य जनता तक अंग्रेज़ी में कभी पहुंचा नहीं सकते; न और किसी प्रादेशिक भाषा में।
मोदीजी की सफलता का एक ही विशेष कारण मैं उनकी हिंदी मानता हूँ।
जब आपको अधिकाधिक मतदाताओं से जुडना है, तो, बिना हिंदी कोई पर्याय नहीं।
अंग्रेज़ी के भक्तों को विशेष टिप्पणी के लिए आमंत्रित करता हूँ।

19 COMMENTS

    • How many of them, were contesting election as declared P M candidates before election?
      Please read the newer article on Devanagari and Roman. It relates to your arguments. You may comment on that article. Thanks

  1. परमादरणीय मधुसूदन जी,
    आपका विश्लेषण, तार्किकता व पैनी दृष्टि का मैं कायल हूँ। अक्सर आपको पढ़ता हूँ। काश ! सही मायने में हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा बन पाती। मैं तो उस दिन के इंतज़ार में हूँ, जब सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय हिंदी में सुनाए जाएँगे, देवनागरी में उसकी प्रतिलिपि मिलेगी। आपका सादर अभिवादन।
    हिंदी का सिपाही।

    • हिंदी प्रेमी उमेश्वर जी, नमस्कार।
      आप के विचारों का मैं भी सह-भागी हूँ।
      दुर्भाग्य से, नेतृत्व के महाकाय ऐतिहासिक दोष का कुफल हम भोग रहे हैं।
      एक परम्परा जब आपाद-मस्तक बदल जाती है, तो, पुनर्स्थापना करना, असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो जाता है।
      आगे कभी आलेख सोचता हूँ।
      मैं तर्काधारित प्रमाणों के कारण,मानता हूँ,कि,हिंदी भारत के लिए २ से ३ गुना प्रगतिकारक है। १०-१५ वर्ष पहले नहीं मानता था; आज निःसंदेह मानता हूँ।
      समस्या ऊपर से ही नहीं, नीचे से भी सुलझानी होगी। कानून के साथ साथ, जन जागृति भी चाहिए। और जन जागृति भी जनता को सक्रिय बनाने से ही प्रोत्साहित होगी। यह परस्पर सामाजिक माध्यमों को भी प्रभावित करने से संभव होगा।
      आलेख का विषय है यह।
      अनुरोध: आप “परमादरणीय” शब्द प्रयोग ना करें।
      मैं भी हिंदी का सेवक ही कहला सकता हूँ। -धन्यवाद
      मधुसूदन

  2. सभी टिप्पणीकार –सर्व श्री madhu ji, डॉ. शर्मा जी, आ. विश्वमोहन जी, मोहन गुप्ता जी, प्रशान्त होले जी, डॉ. प्रतिभा सक्सेना जी, डॉ. धनाकर ठाकुर जी, और अभिषेक उपाधाय।
    सभी ने समय निकाल कर मात्र आलेख पढा ही नहीं, साथ टिप्पणी के लिए अतिरिक्त समय भी दिया।
    आपका शतशः धन्यवाद करता हूँ।
    इसी प्रकार अनुग्रह करते रहें।

  3. आदरणीय मधुसूदन जी,
    आपका आलेख स्वत: प्रमाणित ,अकाट्य और तर्कसंगत है । आपके विचारों से मेरी पूर्णरूपेण सहमति है । राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति समर्पित आपका ये आलेख सदा की भाँति पठनीय और सराहनीय है ।
    सादर,
    शकुन्तला बहादुर
    ————————————————-
    इ मैल से आया हुआ यह संदेश, बिना काट छाट ऊपर प्रस्तुत है।
    विदुषी शकुन्तला जी को संदेश के लिए कृतज्ञता सह धन्यवाद।—मधुसूदन

  4. चरण स्पर्श,

    यह लेख यहाँ प्रकाशित होने के पूर्व आपके ही श्री मुख से आपके ही निज निवास पर एक-एक शब्द, पंक्ति का भावार्थ सहित आनंद लेने का सौभाग्य पूर्व सप्ताह मुझे प्राप्त हुआ !

    इतना ही कहूँगा की इस सर्वाधिक महत्वपूर्ण छिपे कारण की ओर अभी तक किसी लेखक का ध्यान नहीं गया, ध्यानाकर्षण हेतु हार्दिक आभार !

    उत्कृष्ट होगा यदि यह लेख का अंग्रेजी भाषांतर अंग्रेजी पत्रिका, समाचार पत्र के माध्यम से अंग्रेजीदां लोगों तक भी पहुंचे, शायद कुछ का ह्रदय परिवर्तन हो सके शोध परक इस लेख से !

  5. Vadodara ME UNHE gUJARATEE ME HEE BOLNAA CHAHIYE THAA .-
    aNY PRANTON ME hINDEE ME.JO UNHONE THEEK KIYAA.
    sHAPATH SANSKRIT ME LENEE CHAHIYE THEE.
    bHART KEE SABHE EBHASHAYEN APNEE HAIN -PAR HAR BHASHA AKAA APNAA STHAN HAI.

    • हिन्दी को राष्ट्रभाषा पदपर स्थापित करने के आंदोलन का श्रीगणेश –दो गुजराती, एक बंगाली, और एक मराठी सज्जन द्वारा हुआ था। २ गुजराती==> दयानन्द सरस्वती, और गांधीजी; १ बंगाली==> बंकिमचन्द्र चटर्जी; और १ महाराष्ट्री ===लोकमान्य तिलक थे।{संदर्भ: अधूरी क्रान्ति-सम्पूर्णानन्द}
      मुरारी बापु तुलसी रामायण पर गुजरात में, प्रवचन करते हैं। तुलसीदास जी की भाषा हिंदी ही मानता हूँ। समझाते गुजराती में, कभी कभी हिन्दी में अनजाने फिसल भी जाते हैं।स्व. पाण्डुरंग शास्त्री आठवले के प्रवचन भी काफी मूलतः हिंदी में हैं। यही प्रवचनों की दृश्य श्राव्य (विडियो) अनेक केंद्रोंमें प्रसारित होती है। भाग्य मानता हूँ, कि, हमारे पास हिन्दी है। और शब्द दात्री (जननी) संस्कृत, और निर्दोष लिपि देवनागरी है।
      पर आप के मत का आदर करता हूँ। टिप्पणी देते रहें। धन्यवाद।

      • Mujhe lagta hai kee Hindi kee bat karnewale Keshwchandra sen pahle the.
        Tulseedas kee bhashaa Awadhee hai Hindi nahee.
        Adhuna sampark bhasha ke roop me jis Hindi kaa vyavhar ho rahaa hai vah(Sanskritnishth ) Hinde nahi (urdu bharee) Hindee hai.

      • Paandurang Shashtri earned his livelihood in Gujarat by learning nukta and shirorekha free Gujanagari script the way other Hindi saints did.

        Gandhiji was in favor of simple script but Nehru decided to write Mogul Urdu in brahminical/priestly Devanagari script.

        What happened to three languages state formula?

        Since most Devanagari scripted languages(Magahi,Mathili,Bhojpuri etc) are fading away under the influence of Hindi/Urdu ,a regional state may learn Hindi in their native script or in India’s simplest nukta and shirorekha free Gujanagari script through script converter.

    • Dr. Thakur.
      Namaskar Tippani Dalate Rahie.
      Hamen Rashtra Bhasha ki Bhi Avashyakata hai.
      Prashna (1) Gujarat Aur Maharashtra Aapas men kis Bhasha men Vyavahar Karenge?
      (2) Kashmir aur Panjab; (3) Tamilnadu aur Karnatak ityadi Pradesh AAPAS MEN KIS BHARATIYA -BHASHA MEN patra Vyavahaar karen?
      vahi Hamari Rashtra Bhasha hogi.
      Sanskrit aaj Sambhav nahin hai.
      madhusudan

  6. दरअसल, मोदी जी का सारे भारत में हिन्दी में भाषण, उनकी अभूतपूर्व जीत से भी अधिक, महत्वपूर्ण सिद्ध होगा; अधिक ऐतिहासिक भी सिद्ध होगा।

    न केवल हिन्दी, वरन सभी भारतीय भाषाएं अंग्रेजी के पैरों तले दबी जा रही थीं, सभी लोग न केवल अंग्रेजी की गुलामी सहर्ष स्वीकार कर रहे थे, वरन उस पर गर्व का अनुभव कर रहे थे।
    उन्होंने अंग्रेजी के पैरों तले दब रही हिन्दी को सम्मानपूर्वक सिंहासन पर ला दिया है; और इस तरह सारी भाषाों को सम्मान दिलवाया है।।
    अब हिन्दी तथा भारतीय भाषाों के भी अच्छे दिन आ रहे हैँं।

  7. आपकी गहन अन्वेषी दृष्टि ने उन तथ्यों को पकड़ लिया जिन पर सामान्यतः ध्यान नहीं जाता .मोदी जी का व्यक्तित्व और कृतित्व सार्वदेशिक हो सका इसके मूल में यही सच है कि जनसुलभ भाषा में भरपूर अपनत्व और राष्ट्रहित की भावना भर जो संवाद स्थापित किया उसे लोगों ने खुले मन से ग्रहण किया ..इस व्यापक दृष्टि और सर्वसुलभ भाषा के कारण एक प्रान्त विशेष के न रह कर वे भारत के अपने हो सके – सबके मनों में छा सके ,: देशी भाषा में अपनी सहज और निश्छल अभिव्यक्ति के कारण ही सबको बिलकुल अपने लगे ..

  8. Thank you for your wonderful observation and nationalistic comments which are well appreciated all over and beyond Hindusthan.
    I was all along happy to see that Modijee chose to use Hindi to communicate with the people at large and he could give them the message directly because people from kashmir to Kanya kumari and in our Islands all understand Hindi.
    This has been one of the major contributing factor for the success of BJP and Modijee.
    I must express the most dangerous situation in Hindusthan that English is killing all our languages because nobody speaks in one language at a time he or she speaks in a mixture of languages let it be at individual level,at group level, in class room,in parliament, in offices, in assembly, in seminars, in judiciary, in tvs, radios, serials, films,press conferences, newspapers. This a suicidal situation for us in our country.
    We want pure milk, pure gold, pure butter, purity in everything but not in language.
    Worst of all our religious leaders also suffer from this infectious disease.
    This is like a cancer destroying our languages and we are not able to express boldly and effectively with clear views and compromise with ourselves is a tragedy.
    JIS KO NIJ BHASHA TATHA NIJ DES PAR ABHIMAN HAI,
    VAH NAR NAHI NAR PASU NIRA HAI AUR MRITAK SAMAAN HAI.

  9. गुप्ताजी नमस्कार।
    आपकी भावनाएँ समझ सकता हूँ।
    इस प्रकार के,बदलाव की प्रक्रियाएँ समान्तर साथ साथ चलती हैं।
    इस लिए बदलाव भी अनेक घटकों में प्रायः साथ साथ हुआ करता है; जो होना चाहिए।
    और ऐसे सारे घटक अनेक हैं। साथ साथ हम संसार से कट भी नहीं सकते।
    यह आपस में अटकी और उलझी हुयी गुत्थी है।
    इसको अनेक छोरोंसे सुधारने की (समान्तर साथ साथ चलनेवाली) विधि-प्रक्रिया भी सोची जानी चाहिए। मैं भी सोचता हूँ।
    यह रातोरात बदलनेवाली प्रक्रिया नहीं लगती।
    इसके कुछ घटक===> (१) नौकरी (२)संचार माध्यम (३)संसार के साथ व्यापारी संबंध (४)अंग्रेजी की दी हुयी हीन ग्रंथि (५)संस्कृत की अवहेलना (६)हिंदी की अवहेलना (७)अंग्रेज़ी की असीमित ढपोसली अतिशयता (८) हमारी मानसिकता (९) इत्यादि इत्यादि और उपांग भी होंगे ही जो इस समय मेरे ध्यान में नहीं आते हो। कॅल्क्युलस की भाषामें यह मल्टाय ह्वॅरियेबल फंक्शन है।
    मेरे विचार भी मेरी दृष्टि की सीमासे मर्यादित हो सकते हैं।
    इसपर कुछ अलग अलग दृष्टिकोण रखनेवाले विद्वानों का आयोग बनना चाहिए।
    और राष्ट्रकी उन्नति को लक्ष्य में रख विचारणा की जानी चाहिए।
    यह आलेख का विषय है; शायद टिप्पणी का नहीं।
    बहुत बहुत धन्यवाद। टिप्पणियाँ देते रहें।

  10. कोई भी देश तब तक स्वतंत्र नहीं समझा जा सकता जब तक बह अपनी भाषा में नहीं बोलता और अपनी भाषा का प्रयोग नहीं करता कई भाषा विंग लोगो का कहना कि विश्व में लगभग ६००० भाषाए बोली जाती हैं जिनमे से लगभग ५० प्रतिशत भाषाए निकट भबिषय में लुप्त हो जाएँगी। लुप्त होने वाली भाषाये में से एक हिंदी हो सकती हैं। क्योंकि भारतीय लोग हिंदी का प्रयोग करना पसंद नहीं करते, बोलना पसंद नहीं करते। पधार्थे के लेबल पर हिंदी नहीं लिखते बल्कि अंग्रेजी लिख्ते हैं। हिंदी फिल्मो की नामावली हिंदी की बजाय अंगेरजी में लिखी जाती हैं सिगंबोर्ड या दुकान के नाम अंग्रेजी में लिखा जाता हैं। इसलिए हिंदी के लुप्त होने के सम्भावना बढ़ जाती हैं।
    हिंदी राजभाषा अब केवल कागज़ी रिकॉर्ड में रह गयी हैं इसलिए हिंदी आजकल पिछड़ रही हैं। मोदी जी ने अपने अंधिकाश भाषण हिंदी में दिये हैं जिस से हिंदी का सम्मान बढ़ा हैं और हिंदी विरोधी लोग निरुत्षा हुए है डॉक्टर मधुसूदन जी ने अपने लेख में मोदी जी द्वारा हिंदी को महत्व देना और चुनाब में सफ़लता का अच्छा बर्णन किया हैं

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