वीरेन्द्र सिंह परिहार
अभी देश के एक प्रख्यात टी.बी. चैनल ने एक जनमत-सर्वेक्षण किया, जिसमें कई बाते सामने आई। पहली बात तो यह कि केन्द्र में बैठी यू.पी.ए. सरकार की स्वीकार्यता काफी कम हो चुकी है। घोटालों-दर-घोटालों और सुरक्षा की तरह बढ़ती मंहगाई के चलते यह स्वाभाविक ही है। दूसरा महत्वपूर्ण निष्कर्ष उक्त जनमत सर्वेक्षण का यह था कि प्रधानमंत्री पद के लिए देश के 42 प्रतिशत लोगों की पसन्द गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी है। नरेन्द्र मोदी की उपलब्धियों को देखते हुए यह बात भी स्वाभाविक ही कही जाएगी। लेकिन इसमें महत्वपूर्ण तथ्य यह कि इस देश के तीस प्रतिशत मुसलमान भी नरेन्द्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री देखना चाहते है।
यह बात निःसन्देह बहुत से लोगों के लिए अप्रत्याशित एवं आश्चर्यजनक हो सकती है। क्योकि 2002 के गुजरात दंगों के समय से ही नरेन्द्र मोदी को मुसलमानों का हत्यारा या-यों कहां जावे कि बतौर शत्रु प्रचारित किया जाता है। स्थिति यह होती है कि एक मुख्यमंत्री बतौर जैसे ही नरेन्द्र मोदी के उपलब्धियों की चर्चा कही से शुरू होती है, वैसे ही इस देश के तथाकथित धर्म-निरपेक्ष कहे जाने वाले लोग नरेन्द्र मोदी की उपलब्धियों की ढंकने के लिए उन्हे मुसलमानों को बतौर संघारक चिल्लाने लगते है। स्थिति तो यहां तक हुई कि जब अन्ना हजारे ने गुजरात के विकास के संदर्भ में नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा कर दी, तो यही तथाकथित धर्मनिरपेक्ष उनके ऊपर कुछ इस अंदाज मंे हमला कर बैठे कि जैसे उन्होेने कोई बड़ा अपराध कर दिया हो। देववंद दारूल-उलूम यूनिवर्सिटी के कुलपति गुलाम मो. वास्तनवी को तो नरेन्द्र मोदी की तारीफ करने के चलते अपनी कुलपति की कुर्सी भी गॅवानी पड़ी।
यह सब बाते तो इस देश की वोट राजनीति के चलते अपनी जगह पर है। क्योकि ऐसेे तत्वों को यह लगता है कि इस तरह से वह नरेन्द्र मोदी को मुस्लिमों का शत्रु बताकर मुसलमानों को सिर्फ नरेन्द्र मोदी से ही नही देश का प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा से भी दूर रख सकेेगें। और इस तरह से देश के मतदाताओं के 15 प्रतिशत मुसलमानों को वोट बैंक बतौर अपने साथ रख सकेगें। लेकिन उपरोक्त जनमत-सर्वेक्षण से यह पता चलता है कि देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों की जो सोच हो, स्वतः मुसलमानों के ठेकेदारों का जो कहना हो, पर आम मुसलमानों के एक बड़ें वर्ग की सोच ऐसी नही है। क्योकि यदि तीस प्रतिशत मुस्लिम मतदाता नरेन्द्र मोदी के पक्षधर है, तो इसके बड़ें मायने है। बड़ें मायने इसलिए कि स्वतः भाजपा के पक्ष में भी कभी 5 से लेकर 10 प्रतिशत से ज्यादा मुसलमान कभी नही रहे। यहां तक कि उदार छबि वाले और निहायत लोकप्रिय अटल बिहारी बाजपेयी को भी शायद ही इतने बड़े प्रतिशत में मुस्लिम मतदाताओं का कभी समर्थन मिला हो।
ऐसी स्थिति में यदि मुसलमानों के घोर-शत्रु प्रचारित करने किए जाने वाले नरेन्द्र मोदी को यदि तीस प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन है, तो इसका बड़ें मायने है।एक बड़ा निहितार्थ तो यह है कि अब मुस्लिम मतदाता का मानस बदल रहा है। अब वह मुल्ला-मौलबियों एवं कट्टरपंथियों के इशारे पर चलने को तैयार नही है। अब वह कृतित्व के आधार पर अपना फैसला करना चाहता है। ऐसा हो भी क्यो न? आखिर में जब सच्चर कमेटी की रिपोर्ट यह कहती है, पूरे देश की तुलना में गुजरात का मुसलमान सबसे अधिक बेहतर स्थिति में है, तो इसका मतलब स्पष्ट है कि दुष्प्रचार अपनी जगह पर है, पर एक बात तय है कि चाहे हिन्दू हो या मुसलमान या और कोई और भी समुदाय उनकी समस्याओं का एक मात्र समाधान ईमानदार एवं प्रतिबद्ध राजनैतिक नेतृत्व में ही है।, जिसके सबसे बड़ें प्रतिमान आज की स्थिति में नरेन्द्र मोदी है। यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि दंगा-ग्रस्त गुजरात सन्2002 से सतत नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एक शांति का टापू बनकर उभरा है।
ऐसी स्थिति में यह बेहतर होगा कि नरेन्द्र मोदी को अब गुजरात के फलक से बाहर लाया जावे, और गुजरात की तर्ज पर देश के विकास और समृद्धि का गुरूतर दायित्व उन्हे भाजपा की ओर से सौंपा जावें। निःसन्देह यदि भाजपा ने ऐसा निर्णय लिया तो भारतीय मतदाता इस निर्णय को एक सकारात्मक कदम के रूप में स्वागत करेगें।