समुद्री सतह पर नासा की नजर – रामनयन सिंह

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भयंकर तूफानों से बचाव के लिए नासा ने एक एनिमेशन सिस्टम विकसित किया है, जो समुद्री सतह के तापमान को विभिन्न रंगों में प्रदर्शित करेगा। नासा स्पेस फ्लाइट सेंटर द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार इस एनिमेशन डिस्प्ले से तूफान के बारे में सूचना देने वाली प्रणाली को काफी लाभ पहुंचेगा। रिपोर्ट के अनुसार 80 डिग्री फॉरेनहाइट या इससे ज्यादा तापमान वाली समुद्री सतह को येलो, ऑरेंज और रेड कलर से दर्शाया जाता है। उल्लेखनीय है कि तापमान के ये आंकडे एडवांस माइक्रोवेव स्कैनिंग रेडियो मीटर द्वारा लिए जाते हैं और इस एनिमेशन को प्रत्येक 24 घंटे में अपडेट किया जाता है। जैसा कि हम जानते हैं कि समुद्री सतह के गर्म होने से चक्रवात या तूफानी बवंडर पैदा होते हैं, जो समुद्री किनारों पर भयंकर तबाही मचाते हैं। नासा द्वारा प्राप्त आंकडों के अनुसार मैक्सिको की खाडी में समुद्री जल सतह का तापमान 80 डिग्री फॉरेनहाइट (जून के आखिरी दिनों में) से ज्यादा था और मौसम विज्ञानियों ने इन आंकडों का जमकर उपयोग किया। गौरतलब है कि समुद्री तल का 80 फॉरेनहाइट से ज्यादा तापमान होने पर समुद्री दबाव भयंकर तूफान में बदल सकता है।

क्या जीवन धूमकेतु से आया!
पृथ्वी पर जीवन का प्रारंभ कैसे हुआ? क्या पृथ्वी पर जीव अंतरिक्ष से आए या इसकी शुरुआत समुद्री किनारों पर स्माल मॉलिक्यूल के जरिए हुई। जो भी हो, लेकिन पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिकों के बीच अभी भी मतभेद हैं। साइंस पोर्टल न्यू साइंटिस्ट में प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत धूमकेतु के जरिए हुई। ब्रिटेन की कार्डिफ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक चंद्र विक्रमसिंघे ने कहा कि धूमकेतु पर सूक्ष्म जीवों की मौजूदगी पहले से ही थी और धूमकेतु के जरिए ये जीव पृथ्वी पर आए। उन्होंने कहा कि यही वजह है कि पृथ्वी के निर्माण के लगभग 4.5 अरब वर्ष बाद पृथ्वी पर जीवन तेजी से पनपा। विक्रमसिंघे के अनुसार यह थ्योरी अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के डीप इंपैक्ट प्रोब से भी प्रमाणित होती है। उल्लेखनीय है कि डीप इंपैक्ट प्रोब के लिए धूमकेतु टेम्पेल 1 को जुलाई, 2005 में एक प्रोजेक्टाइल के जरिए ब्लास्ट किया गया था। विस्फोट के दौरान वैज्ञानिकों ने धूमकेतु के अंदर से गीली मिट्टी बाहर निकलते देखा था। विक्रमसिंघे ने कहा कि इससे प्रमाणित होता है कि धूमकेतु के भीतर कभी गर्म द्रव मौजूद थे और इसकी वजह रेडियो एक्टिव आइसोटोप थे, जो इन्हें हीट करते थे। रिपोर्ट के अनुसार गीली मिट्टी में वे आवश्यक परिस्थितियां मौजूद थीं, जो सिंपल ऑर्गेनिक मॉलिक्यूल को जटिल बॉयोपॉलिमर्स में बदलने में सहायक थीं। यही नहीं, विक्रमसिंघे व उनके सहयोगियों का तर्क है कि धूमकेतु में मौजूद गीली मिट्टी की काफी मात्रा भी इस थ्योरी को बल देती है कि पृथ्वी पर जीवन अंतरिक्ष से आया। उन्होंने कहा कि पृथ्वी के शुरुआती दिनों में जीव महज 10,000 घन किलोमीटर में ही पनपे, जबकि सिर्फ एक 10 किलोमीटर चौडे धूमकेतु में इस तरह की परिस्थितियां 1000 घन किलोमीटर मौजूद थीं। हालांकि, ऐसे धूमकेतु बाहरी सोलर सिस्टम में अनगिनत थे।

रामनयन सिंह

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