नासूर बनता “बंग्लादेशी घुसपैठियों” का आतंक

बंग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के आतंक की अनेक दर्दनाक घटनाओं के समाचार आते रहते है। इसी संदर्भ में एन.सी.आर. के आधुनिक नगर नोएडा में 12 जुलाई को घटित अराजक घटना का कुछ विवरण यह है कि नोएडा के सेक्टर 78 की महागुन मार्डन सोसाइटी में अपनी पत्नी हर्षिता सेठी व एक आठ वर्षीय बेटे के साथ मर्चेंट नेवी के एक कैप्टन मितुल सेठी रहते है। उनके यहां दिसम्बर 2016 से एक जोरा बीबी नामक 30 वर्षीय बंग्लादेशी मुस्लिम महिला घरेलू काम करती आ रही है/थी। परंतु उनके घर से पिछले 2-3 माह से 1-2 नोट व कुछ और छुटपुट वस्तुऐं गायब होने लगी थी। जब 1-2  दिन पहले दस/सत्रह हज़ार रुपये चोरी हुए और उसका आरोप नौकरानी पर लगा कर पूछताछ की तथा पुलिस में शिकायत की बात करी तो वह वहां से भाग कर किसी अन्य टॉवर के फ्लैट में बीमारी का बहाना कर छिप गई । रात भर जब जोरा अपने घर नही पहुँची तो उसके पति अब्दुल ने पुलिस में इसकी सूचना दी। यह बात अन्य काम करने वाले उस बस्ती के सभी घरेलू नौकर व नौकरानियों को पता चल गई। जिसके फलस्वरूप 12 जुलाई को प्रातः 6 बजे जोरा का पति बस्ती से सैंकड़ो लोगों की भीड़ लेकर इस सोसाइटी में पहुँचा और पूरी भीड़ ने वहां घंटों आतंक मचाया। सोसायटी के सारे निवासी घबराहट में अपने अपने फ्लैटों से बाहर नही निकले और इसप्रकार उन्मादी भीड़ घरों में लूटमार व तोड़फोड़ करने में लग गई जो कि इन धर्मांधों के लिए सामान्य बात है। लेकिन कैप्टन सेठी तो इतने अधिक घबरा गये कि उन्होंने अपने को व परिवार को बाथरुम में छिपा कर बचाया। वहां के लोगों को किसी अपराधी के पक्ष में खड़े होकर इस तरह की अराजकता का कोई आभास ही नही था। वैसे इस कांड से शिक्षा लेते हुए कुछ सोसाइटी वालों ने झुग्गियों में रहने वाले बंग्लादेशियों से काम न कराने का निर्णय किया।
परंतु यह घटना सामान्य नही है। आप सभी को स्मरण होगा कि  23 मार्च  2016 की रात को विकासपुरी, दिल्ली में भारत-बंग्ला देश के बीच हुए क्रिकेट मैच में भारत की जीत पर दिल्ली निवासी डॉ.पंकज नारंग द्वारा जश्न बनाये जाने के बाद उपजे एक छोटे से विवाद पर कुछ धर्मान्धों ने उनको दर्दनाक मौत दी थी। क्या वह अकस्मात था ?  नहीं, वह जिहादी मानसिकता की उपज थी। इसी प्रकार नोएडा में हुए इस हिंसक प्रदर्शन को धर्मान्धों का जिहाद कहना गलत नही होगा ? केवल बम विस्फोटो द्वारा ही जिहाद नही होता, यह भी उसी का एक रुप है।
वास्तविकता यह है कि दिल्ली के पास होने के कारण नोएडा व गाज़ियाबाद आदि आतंकवादियों की शरण स्थली बना हुआ है। धनी मुस्लिम बस्तियां विशेष रुप से बंग्लादेशी घुसपैठिये इनको सहारा देते है और ये स्वयं भी विभिन्न अपराधों व आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त रहते है । वैसे तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद सहित मेरठ, मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर, अलीगढ़ , जेपी नगर, बुलंदशहर व आगरा आदि अनेक नगरों में गुप्तचर विभाग का व्योरा जांचा जाय तो अनेक जिहादी संगठनों के सक्रिय एजेंट ऐसी बस्तियों में मिल सकते है। पाकिस्तान की गुप्तचर संस्था आई.एस.आई. का नेटवर्क भी इन क्षेत्रों में अधिक सक्रिय हो तो कोई आश्चर्य नही ? हमें यहां यह अवश्य ध्यान देना चाहिये कि वर्षों से बंग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की झुग्गीयां व अन्य घनी मुस्लिम बस्तियों में आतंकियों और अपराधियों को पकड़ने व जाँचपडताल करने के लिए जाने वाली पुलिस पर ये लोग आक्रामक हो जाते है, जिससे प्रशासन इनके विरुद्ध कोई भी वैधानिक कार्यवाही करने में असमर्थ होता है। अतः देश में सक्षम कानून व्यवस्था होने के उपरांत भी सामान्यतः इन क्षेत्रों में मुस्लिम एकजुटता व हिंसक मानसिकता के भय से सुरक्षाकर्मी जाने से बचते ही नही घबराते भी है, जोकि सामान्य जन को भी स्वीकार नही। आखिर ऐसी विकट परिस्थिति में “कानून का राज्य” प्रभावहीन क्यों होता है एक गंभीर समस्या बनती जा रही है ? परंतु अपने कुछ आर्थिक लाभ व सत्ता सुख के लिए इनके पहचान पत्र, राशन कार्ड, पासपोर्ट व आधार कार्ड आदि बनवाने में हमारे अधिकारियों व नेताओं की भागीदारी को नकारा नही जा सकता। अतः इन बंग्लादेशी मुसलमानों की गतिविधियों की सघन जांच होनी चाहिये और संभव हो सकें तो वापस इनको वापस बांग्लादेश भेजने की व्यवस्था होनी ही चाहिए । आज नही तो कल दिल्ली सहित अनेक नगरों में इसप्रकार की आतंकी घटनाएं बढ़े तो अतिश्योक्ति नही  होगी ? जबकि पश्चिम बंगाल , आसाम व बिहार आदि में तो इनका हिंसात्मक तांडव थमने का नाम ही नहीँ लेता । वहां की राजनीति में इन घुसपैठियों की भूमिका धीरे धीरे विराट रुप लेने से राज्य सरकारों के गठन में इनकी सक्रियता बढ़ना राष्ट्रघाती हो रहा है।
सामान्यतः हम अपने शत्रुओं को पहचानते ही नही और उन्हें अपने घरों,कार्यालयों फैक्टरियों आदि में बड़ी सरलता से नौकरी भी देते है। फलस्वरुप कुछ वर्ष पूर्व के समाचारों के अनुसार लगभग 15 हज़ार करोड़ रुपया प्रति वर्ष भारत में बसे ये घुसपैठिये बंग्लादेश भेजते आ रहें है। क्या बंग्लादेशी नौकरों और भारतीय स्वामियों का यह संघर्ष हिन्दू समाज व राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये क्या कोई सार्थक संदेश दे पायेगा ?  हिंदुओं की सहिष्णुता, उदारता व शांतिप्रिय अहिंसक मानसिकता इन मुस्लिम जिहादियों की हिंसात्मक आपराधिक प्रवृत्ति पर अंकुश लगा पायेगी ? जबकि हम सभी को मानव समझते है, परंतु इस्लाम में गैर मुस्लिम काफ़िर होता है। उसके विरुद्ध कोई भी अपराध उनके धर्म में क्षमा योग्य है औऱ उन्हें ऐसा करने से जन्नत मिलती है। अतः जब उनका उद्देश्य स्पष्ट है तो वह तो अवसर ढूंढ कर आघात करेंगे ही। उनका संख्याबल व उनकी एकजुटता ही उनकी शक्ति है। देश के मानवतावादी , सेक्युलर व देशद्रोही इनको इस्लाम के बहाने उकसाने में पूरा सहयोग देते है और हमको अहिंसा व शांति के चंगुल में फंसा कर भ्रमित करते रहते है ।
जिस प्रकार नोएडा की महागुन सोसायटी में इन जिहादियों ने जो बर्बरता की है उसको अगर कठोरता से नही निपटाया गया तो बहुत बडी भूल होगी और भविष्य और भयंकर होगा। केंद्र व राज्य में मोदी जी व योगी जी के होते हुए यह दुःसाहस अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण है।मोदी जी के 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही सीलमपुर (दिल्ली) से कुछ बंग्लादेशी मोदी जी के भय से वापस अपने देश जाने लगें थे परंतु जब बंग्लादेशियों को बाहर निकालने का आह्वान  “चुनावी जुमला” रह गया तो पुनः घुसपैठ करते आ रहें है। अभिप्राय यह है कि अगर ऐसी घटनाओं के संकेत को समझों और अपने घरों व अन्य प्रतिष्ठानों में इन बंग्लादेशी और जेहादी तत्वों का कार्यहेतु प्रवेश वर्जित करो नही तो इनके भरण पोषण होते रहने से जो शक्ति इन्हें मिलती है उससे ये आपराधिक गतिविधियों से हमें हमारी धरती पर ही अनेक प्रकार से हानियां पहुँचा कर जिहाद के लिए सक्रिय रहेंगे।

विनोद कुमार सर्वोदय

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