गरीब जनता पर निर्मम प्रहार कर रहे हैं नक्‍सलवादी

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-श्रीराम तिवारी

४०-४५ साल पहले नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ नक्सल संघर्ष आज आधे भारत में फ़ैल चुका है. छतीसगढ़, झारखंड, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की सरकारें इस पर अपने-अपने ढंग से रणनीति निर्धारित करती रही हैं. कई बार प्रतिक्रांतिक कार्यवाही के लिए प्रशासकीय संसाधनों की बदतर तस्वीर भी प्रचार माध्यमों से जनता को प्राप्त हुई है. दंतेवाड़ा, लालगढ़ की घटनाओं में महज इतना फर्क है कि दंतेवाड़ा में जहाँ नक्सलवादियों ने असावधान ७५ अर्धसैनिक बलों को काट डाला तो लालगढ़ में ममता के किराये के पिठ्ठुओं ने नक्सलवादियों-माओवादियों के नाम पर आम गरीब जनता पर निर्मम प्रहार किये.

दक्षिणपंथी, वामपंथी और मध्‍यमार्गी मीडिया ने अपने-अपने नजरिये से नक्सलवाद पर लिखा है. बहस-मुसाहिबे, सेमिनार हुए हैं. बाज मर्तवा एक आध ने नक्सलवादियों के ख़ूनी आतंक को क्रांति का शंखनाद भी बताया है और उसका खामियाजा भी भुगता है.

नई पीढ़ी के शहरी युवाओं के दिमाग में नेट के जरिये और संचार माध्यमों से नक्सलवाद के बारे में दिग्भ्रमित अधकचरी सूचनाएँ ठूंसी जा रही हैं. उधर अरुंधती, स्वामी अग्निवेश और महाश्वेता देवी जैसे तथाकथित बुद्धिजीवी भी माध्यम मार्ग के अहिंसावादी शांतिकामी वामपंथ को नीचा दिखने के लिए नक्सलवाद का उटपटांग समर्थन कर रहे हैं.

वर्तमान दौर की महाभ्रष्‍ट पूंजीवादी व्यवस्था में एक तरफ समृद्धि के शिखर पर अम्‍बानियों की भोग लिप्सा बढ़ती जा रही है दूसरी ओर अभाव और दीनता का सारे देश में बोलबाला है. इस कठिन स्थिति में आदिवासी अंचलों से, वनांचलों में हिंसात्मक स्वर गूंजने लगे हैं.

घोर अभाव में भी एन–केन-प्रकारेण अपनी आधी-अधूरी शिक्षा से असहाय, असफल, दिशाहीन, भटका हुआ नौजवान-नंगे भूंखे रहकर मर जाने की अपेक्षा क्रान्तिकारी जिजीविषा की खोज में उधर पहुँच जाता है जहाँ से लौटना नामुमकिन हो जाता है. उसे जब क्रांति के सब्‍जबाग दिखाए जाते हैं तो वह घोर धर्म भीरु या अहिंसक होने के वावजूद वर्ग शत्रुओं की कतारों पर टूट पड़ता है जिसने एक बार उस मांड का दाना पानी पी लिया, वह उधर से वापिस नहीं लौट सकता. या तो क्रांति की चाह में उत्सर्ग को प्राप्त होगा या अपने ही साथियों की गोलियों का शिकार हो जायेगा.

भारत में इस रास्ते से क्रांति कभी नहीं आ सकती। महान जनवादी साहित्यकार हरिशंकर परसाई ने भारत में वामपंथ के तीन भेद माने हैं. इसका बड़ा ही रोचक व्यंगात्मक आलेख भी उन्होंने लिखा था. किसी मित्र ने उनसे जब साम्यवाद के भारतीय तीनों भेदों का खुलासा चाहा तो उन्होंने चाय की केतली का उदाहरण दिया. उनका मानना था कि केतली की गरम-गरम चाय जब सीधे केतली से ही हलक में उतार ली जाये तो इसे नक्सलवाद कहते हैं. जब चाय को टोंटी से गर्म-गर्म हलक में उतारी जाए तो माकपा कहते हैं …और चाय को प्लेट में डालकर बहस में खो जाएँ चाय ठंडी हो जाये और उसमें मख्खी भी गिर जाये फिर पी जाये तो सी पी आई कहते हैं.

8 COMMENTS

  1. अप जैसे विद्वान के द्वारा हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद कपूर साहब…………….

  2. अभिषेक जी आपका कथन बिलकुल सही है और मार्क्स वाद पर सार्थक टिप्पणी है. संसार में यह विचार जहां भी गया वहाँ विध्वंस, विनाश, रक्तपात और घृणा को ही इसने फैलाया. निर्माण इस विचार से संभव नहीं, इसका इतिहास इस बात का प्रमाण है.चीन और रूस में हुआ विकास साम्यवाद की सफलता नहीं, उसकी विफलता के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं. पूजीवाद को अपना कर ही वे आर्थिक प्रगति की रास्ते पर बेध रहे हैं. पर यह रास्ता भी अंत में विनाश की और ही तो ले जस्ता है. दुर्दशा का सहकार बन रहा अमेरिकी समाज इसका प्रमाण है.
    – भाई तिवारी जी प्रसन्नता की बात है की आप एक लेखक के रूप में विचारों को अभिव्यक्ति दे रहे हैं. पर ज़रा संभल कर, डा. चतुर्वेदी जी की तरह उपेक्षा के कूड़ेदान में पाठकों द्वारा फैंके जाने से बचने के liye waam panthee purwaagrahon w kattar pnth से bache rahen, यह meraa winamra sujhaaw है.

  3. “हिंदुत्व एवं वामपंथ”
    वामपंथ का चिंतन करते समय हमारे देश में बहुधा सतही बातचीत होती है ज्यादा से ज्यादा भारत-चीन-रूस की कम्युनिस्ट पार्टियों के कार्यकलापो के आधार पर टिका टिप्पणी होने लग जाती है पर अमूमन वामपंथ के मूल विचार की अनदेखी कर दी जाती है या उसके प्रति ग्रीन या आदर भाव से देखा जाता है पर विचारात्मक समालोचना अधूरी रह जाती है |
    मुझे नहीं पता किसने किया अनुवाद पर कम्युनिस्ट या “लेफ्टिस्ट” का सही अनुइवाद “वामपंथ नहीं है क्योकि ”
    वामपंथ” एक प्राचीन भारतीय पध्धति है जिसके द्वरा शिव-शक्ति की उपासना की जाती है जिसका कम्युनिस्ट विचार से कोई योग नहीं रहा है अत: यहाँ पर जिस वामपंथ की समालोचना की जाएगी वो पूर्णत विदेशी विचार है |
    आंशिक रूप से ही सही पर हम मन सकते है की वर्तमान के कम्यूनिस्टो का मूल आधार कार्ल मार्क्स है,कार्ल मार्क्स एक विचारक हो गए है जिन्हौने सिथति को देख कर समझ कर अपनी बुध्धि के हिसाब से चिंतन किया था की एक एसा समाज बने जहा सभी समान हो,राज्य न हो,सर्वहारा की तानाशाई हो ,धर्म-इशवर-विवाह जैसे बुज्रवा बाते न हो ,राज्य का रहना अगर अनिवार्य हो तो सभी पर राज्य सत्ता का ही नियंत्रण हो जो सर्वहारा की हो शोषित-मजदूर वर्ग की हो अदि|और ये सभ चीजे प्राप्त करने के ,लिए उसने जो उपाय दिया वो था ”
    क्रांति”,जिसे लेनिन-TaTarski-स्टालिन माओ अदि ने रक्त रंजित बनाया था|
    जब कार्ल मार्क्स ने देखा की vyashti “punjipati” samashti “मजदूर” वर्ग का shoshan करने को udhat हो rahe है unake लिए majaduro की नहीं apane labh की ही padi है tab उसने विचार किया की kyo न isi kranto हो जो is punjipati वर्ग को ukhad कर usaki jagah
    “मजदूर” वर्ग की tanashahi sthapit कर de ,matalab “samashti” के लिए vyshti” का balidan करने को ही उसने “samajwaad ” nam दिया|
    lekin samshti या vyshti में sambhdh kya है वो use तो kya pure pashchim को ही समझ में नहीं aya.
    pashchim के log ये mankar chalate है की vyktiyo का योग ही समाज है usaki कोई svtantr सत्ता नहीं है jabki hindu चिंतन kahata है की समाज bhi एक ikayi है jivant सत्ता है जैसे vykti एक ikayi है tabhi हो keval भारत ने apane dsh को mata mana use jivant ikayi का drja दिया jabaki pashchim ने manushy के vykti nisht की paribhash में उसके “arathik” vykti tak ही simit कर दिया ये ही “हिंदुत्व” v वामपंथ” के bich gahara matabhed sharu hota है ,वामपंथ samet pura pashchim विचार manav को keval “arathik” आधार पर vibhajit karata है v tukado tukdo में arthik yantrikaran के भाव को ही manav manata है|
    manushy को “arth” की nigah से देखा isliye unka “manushy ” jivit chaitanyvat सत्ता न हो कर matr bhoutik arathik manushy हो gaya isake dushparinam ये huve की unhoune अपनी unnati v avanati के paimana “dhan ” को sidh किया जो dhan kamane की doud में pichhad gaya वो uanki najaro में “backwrd” हो gaya और us hod में age badhane के लिए alag alg tarike nikale jane lage वो chahe naitk drishti से bhale ही upayukt न हो lekin अपनी bhoutik ichchhao की purti का sadhna ban pane के karan pashchim को svikary huve,pashichim के ने manushy को या तो “yantrik manav” mana या “vaigyanik manav” या fir “samajik pashu ” matr के रूप में jana.
    is tarike से हम dekhate है की पूर्णत: bhotikata की niv पर khada yah कम्युनिस्ट चिंतन kitana सतही है|kya हम kah सकते है की jivan की सभी samasyaye arathik ही है??kya arth paksh sulajh jane पर सभी samsyaye samapt हो जाती है??तो isaka uttar dene के लिए कोई ज्यादा vidhvan हो ने की jarurat नहीं है sbhavat ही uttar दिया ja sakata है |
    ab विचार करते है की manushy के bare में हिंदुत्व की kya kalpna है??
    vah manushy को कोई bhotik punj नहीं balki us parameshvr का ansh-dasy savy parameshavr manata है isaka mane ये है की manav jaivik ikayi matr न hokar viagyanik manav matr न hokar,samajik pashu matr न हो कर svyam apane apame एक srvang manushy है mashin नहीं isliye tukato tukado में jodkar manushy नहीं mana ja sakata है ise.
    hindu kahata है की yadi uttrotr vridhi के krm में manv का vibhajan kare to use sharir-indri-मन-budhi-pran-amta mana ja sakata है अगर एक bhi kram pritak है तो वो manav नहीं kaha ja sakata है वामपंथ sharir v indri tak pahucha है jabaki punjivad sharir-मन-indri tak पर हमारे purvajo ने samgr रूप से chintak किया v isi panali दी जो samgrata को लिए thi|
    कम्युनिस्ट चिंतन kahata है की arth vyavstha को chalane vali mashinary का nam है राज्य or राज्य का hi kam है की वो tay kare की kya utapadan hoga हो,kya khaoge kya विचार karenge aap,राज्य ही tay karega की apka kapada kaisa हो kis vidhi से utapadan हो,kis kis को kaisa vitaran हो आदि आदि ,पर jara चिंतन kare की राज्य sab kam कर lega tab manav kya karega??usaka चिंतन avarudh हो कर keval राज्य का adesh manane का ही hoga??yane mashin की bhati kal purjo का jod keval???
    और fir ये राज्य bhi kya hoga??kuchh logo की tanashahi chahe polit byuro के nam से हो या kisi और nam से ?????
    jabaki hindu kahata है की manushy के sare tantr को chalane vala tatv dharm है अत: hindu चिंतन की ninv पर dharm adharit arth rachana khadi huyi thi,jabakisamuche pashchim ने use arth के ninv kpr khada किया|dharm shabd के “dri” dhatu का ही arth dharan-poshan-nirvah karana hota है lekin कम्युनिस्ट चिंतन naitik maryadao की avehalana कर jabrdasti से bhotik dhan ” की samanata thopata है our is tathakathit “samajvad” को lane के लिए yah tantr kisi bhi prakar के hinsatamk-anaitk sadhano के prayog को bhi manayata pradan karata है|
    aap svyam chinatan kare की hinsa-anaitikata-asaty-bhoutik lipsa पर khdi कम्यूनिस्टो की imarat kitane din tak jivit रह sakati है???
    जिसके pas paisa नहीं है o parishram करने के sthan पर paisevalo को luth le,is luther grdhi को ही वामपंथ kahate है our usaka ही najayaj bachcha है nakslvad………………

  4. आपने लिखा सही है पर समस्या के मर्म तक आप भी पहुच नहीं पाए,या आप पहुचना ही नहीं चाहते है आपकी मर्जी है लेकिन इस समस्या का मूल है वामपंथी विचार जहा जहा ये विचार है वहा वहा हिंसा है रातिम राजनीतिक हत्याए है नक्सलवाद के नाम से हो चाहे माओ वाद के नाम से हो चाहे “क्रांति” के नाम से वाम पंथ केवल केवल हिंसा सिखाता है??क्यों??

  5. कामरेड लेख बहुत ही सामयिक है चंद लोगो की अमीरी और असंख्य लोगो की गरीबी की ये खाई देश को कहीं गृह युद्धजैसे हालत मैं न धकेल दे ………….हमें संभालना होगा

  6. और जब चाय उलट कर desh को लूटने वाले लोगो के मुह पर मार diya jaye to use नाक्साल्वाद कहते hain.वे आम jantako को nahi balki लुटेरो को ख़तम कर रहे हैं.अब yah आपकी मर्जी हैं ki आप अपने को कहा pate हैं.

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