नक्सलियो पर भी हो सर्जीकल स्ट्राइक

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डा रवि प्रभात
सुकमा में हुए नक्सली हमले में 25 जवानों की शहादत से देश स्तब्ध है,हमारे वीर शहीदों की शहादत का यह कोई पहला अवसर नही है।लगातार अंतराल पर कश्मीर से लेकर सुकमा तक भिन्न प्रकृतिक आतंकियों द्वारा हमारे जवानों पर कायराना हमले जारी हैं।एक के बाद एक बड़ा घाव ये खुनी दरिंदे हमे दे रहे हैं, जिससे पूरे देश की आँखे अश्रुसिक्त तो हैं ही परन्तु उनमे आक्रोश की एक तपिश भी है।
चारो तरफ से यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या हमारे जवानों की जान इतनी सस्ती है कि कभी भी,कोई भी घात लगाकर वार कर जाएगा और हम चुप रहकर अगले हमले की प्रतीक्षा करने लगेंगे।
इन सारे सवालों का जवाब केंद्र सरकार को देना होगा।नक्सली आतंक जिसे वर्तमान सरकार ने वामपंथी उग्रवाद की संज्ञा दी है, देश में साठ के दशक से पनपा और अपनी गहरी पैठ वनवासियों और वन बहुल क्षेत्रों में बनाई।
मुझे नही लगता कि इस विषय में किसी को कोई संदेह शेष है कि अपने आरम्भ के दिनों में जिन उद्देश्यों को लेकर नक्सलवादी आंदोलन शुरू किया था उससे काफी दूर भटक चुका है,कई बड़े नक्सली नेता भी इस तथ्य को स्वीकार कर चुके हैं।अब नक्सलियो के सीधे सम्बन्ध विदेशी शक्तियों से हैं, इनका मकसद भारत राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने का है।इस लड़ाई में ये लोग बच्चो और महिलाओं को भी ढाल बनाने से नहीं चूकते,देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों का भी एक ख़ास तबका शहरो में नक्सलियो के लिए चंदा,समर्थन,कानूनी मदद,सरकार पर कठोर कार्यवाही न करने का दबाव और थिंक टैंक के रूप में नक्सलियो की मदद करने में लगा हुआ है।
इन सारी परिस्थितियों के मद्दे नजर सरकार को नक्सलवाद से निबटने के लिए अपनी रणनीति में पर्याप्त रूप से परिवर्तन करने आवश्यकता है, अभी इस सरकार के पास 2 साल का समय बाकी है।अगर सरकार अपने इस कार्यकाल में नक्सलियो से देश को मुक्त कराने का यशस्वी कार्य कर पाए तो यह सरकार देश के लिए अविस्मरणीय बन जायेगी।
मैं अपने इस लेख के माध्यम से मोदी सरकार से आह्वान करना चाहता हूँ कि कांग्रेसमुक्त-भारत की कल्पना को जनता ने अपना लिया है,वह इसे स्वयं साकार करेगी ,अब सरकार को नक्सल-आतंक मुक्त भारत के सपने को साकार करने के लिए कटिबद्ध हो जाना चाहिए।
आतंक मुक्त भारत बनाने का कठोर संकल्प लेकर सशक्त रणनीति के साथ मैदान में उतरे तभी कुछ सार्थक परिवर्तन होगा।
पिछली सरकारों ने नक्सलवाद को भी वोट बैंक की तरह देखा और व्यवहार किया।लेकिन अब पिछली सरकारों की ढुल मूल नीति का पूर्णतः परित्याग आवश्यक है, साथ ही शहरी नक्सलियो पर भी लगाम कसने की आवश्यकता है।
मजबूरी और बेबसी वर्तमान नेतृत्व पर फबती नहीं है, देश के पूर्वगृह सचिव एल सी गोयल साहब ने 2015 में बस्तर के इलाको में सेना के कैम्प स्थापित करने की सलाह सरकार को दी थी लेकिन उस पर भी कोई विचार सरकार ने नही किया।
नक्सलवाद मोदी सरकार के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन चुका है, हर हालत में नक्सलियो की कमर तोड़नी ही होगी।सरकार को नक्सलियो के गढ़ माने जाने वाले इलाको में सेना के केम्प स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।सेना के केम्प स्थापित होने से नक्सलियो पर दबाव पड़ना शुरू होगा।नक्सलवादियों के ट्रेनिंग केम्पो की अत्याधुनिक ड्रोन प्रणाली से निगरानी शुरू करनी होगी,जिससे पुख्ता जानकारी मिलने पर वायुसेना से सटीक हमला कर नक्सलियो को अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाया जा सके। यह सर्जिकल स्ट्राइक की तर्ज पर भी किया जा सकता है। सरकार को इस तरह के हमलों से भी बिलकुल झिझकने की आवश्यकता नही है क्योंकि नक्सलियो के मानवाधिकारों के चिंता की जरूरत अब हमें नही है,पहले हमें अपनी सेना और जनता के मानवाधिकारों की रक्षा करनी होगी। आतंकवादियों और नक्सलियो में कोई अंतर करने की भी जरूरत अब दिखाई नही देती, ये लोग देश से युद्ध छेड़ने वालों का संगठित गिरोह मात्र है।लोकल इंटेलिजेंस को भी मजबूत करना होगा,नक्सलियो की गतिविधि, धन तथा हथियार प्राप्त करने के रास्तों को पूरी तरह बंद करने कारगर रणनीति बनानी पड़ेगी।
विशेषज्ञो का मानना है कि सरकार द्वारा लगातार किये जा रहे प्रयासों से नक्सली संगठन बौखलाहट में हैं,पिछले दिनों गृहमंत्रालय ने 5 हजार किमी से ज्यादा सड़क निर्माण की मंजूरी नक्सल प्रभावित 44 जिलों में दी है,जिस पर काम आरम्भ हो चुका है।इन क्षेत्रों में सड़क बनने से सरकार की पहुँच उन गाँवों तक हो जायेगी जहाँ विकास के अभाव में नक्सली आम ग्रामीण को देश के खिलाफ गुमराह करने में सफल हो जाते हैं।
सुकमा का हमला भी ऐसी ही एक सड़क के निर्माण को बाधित करने के लिए किया गया है।
सरकार का मानना है कि इन सभी क्षेत्रों में सड़क की कनेक्टिविटी हो जाने पर बिजली,पानी,अस्पताल स्कूल जैसी मूलभूत सुविधाओं को गाँवों तक पहुंचाना आसान हो जाएगा तथा ग्रामीण लोगो को सरकार की उनके प्रति वास्तविक सदाशयता का आभास हो सकेगा।उनके जीवन स्तर में सकारात्मक परिवर्तन होगा और वे लोग सरकार नक्सलियो के देश विरोधी प्रोपेगेंडे के चंगुल से बाहर आ सकेंगे। इसके परिणामस्वरुप स्वाभाविक तौर पर नक्सलियो के लिए स्थानीय सहयोग में कमी आएगी,जिसके चलते ये लोग कमजोर होकर ध्वस्त होने के कगार पर पहुंच जाएंगे।सरकार के इन प्रयासों का लाभ पिछले दिनों देखने में आया जब पिछले वर्ष सबसे अधिक 1400 से ज्यादा नक्सलियो ने आत्मसमर्पण किया।
सरकार की इस सोच का देश भी समर्थन करता है,अपने देश की जनता को नारकीय भयभीत जीवन से निकालना ही होगा परंतु देश की भावना यह भी है कि इस लम्बी प्रक्रिया के साथ साथ सरकार नक्सली संगठनों पर बलपूर्वक इस कदर नकेल कसे कि ये लोग बार बार हमारे सैनिकों और निर्दोष जनता का खून न बहा सकें।
मोदी सरकार को देश संवेदनशील सरकार के तौर पर देखता है, देश पाकिस्तान पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक भी नही भूला है।आज फिर से कुछ ऐसे मजबूत कदमो की अपेक्षा है जिससे नक्सलियो और उनके शहरी समर्थकों की भी रूह काँप उठे और हमारे शहीद सैनिकों के परिवारों के साथ न्याय हो सके।

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