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नयन विच निहारिका ! - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
नयन विच निहारिका, दिखाती अपनी छटा; अधर अमृत की वर्षा, हर्ष ज्योतिर्मय घटा ! छिटकती छवि की आभा, नज़र की विपुल विधा; रिझाती ऋतम्भरा, हुए शिशु स्वयम्वरा ! पिंगला इड़ा क्रीड़ा, सुषुम्ना स्मित मना; झाँकती विश्व लहरियाँ, झूल कर माँ की बहियाँ ! श्वाँस हर आहट पा के, प्राण की…