डॉ. वेदप्रताप वैदिक
झारखंड की सरकार अपनी विधानसभा में एक ऐसा कानून ला रही है, जो धर्मांतरण के गलत तरीकों पर रोक लगा देगा। झारखंड जैसे प्रांत में तो ऐसा कानून अब से 70 साल पहले ही बन जाना चाहिए था, क्योंकि जिन प्रांतों में आदिवासियों की संख्या ज्यादा है, गरीबी है, अशिक्षा है, असमानता है, वहीं ईसाई मिश्नरी अपना अड्डा जमा लेते हैं। वे लोगों को लालच देते हैं, शिक्षा और चिकित्सा की चूसनियां लटकाते हैं, उनकी शादियां करवाते हैं, उन्हें तरह-तरह की सुविधाएं देते हैं और बदले में उनका धर्म छीन लेते हैं। उन्हें ईसाई बना लेते हैं। यदि वे बाइबिल पढ़कर और ईसा मसीह के महान चरित्र से प्रभावित होकर ईसाई बनें तो किसी को भी कोई एतराज क्यों हो लेकिन अपनी संख्या बढ़ाने के लिए पादरी लोग जो तिकड़में करते हैं, वे घोर अनैतिक होती हैं। वे ईसा के उपदेशों को शीर्षासन करवा देती हैं। यदि ईसा मसीह आज जिंदा हों और अपने चेलों के ये कारनामे उन्हें पता चलें तो वे अपना माथा ठोक लेंगे। उनके इन अनैतिक और अधार्मिक कार्यों पर रोक लगाने के लिए ही मप्र, उप्र. गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हिमाचल और ओडिशा में पहले से ही कानून बने हुए हैं। झारखंड में पिछले दस साल में ईसाइयों की जनसंख्या 30 प्रतिशत बढ़ गई है जबकि मुसलमानों की 29 और हिंदुओं की 21 प्रतिशत बढ़ी है। साढ़े तीन करोड़ की आबादी में वहां 27 प्रतिशत आदिवासी हैं। झारखंड में किसी व्यक्ति का धर्मांतरण लालच या डर दिखाकर करनेवाले को तीन साल की सजा और 50 हजार रु. जुर्माना होगा। यदि वह व्यक्ति कोई आदिवासी, अनुसूचित, महिला या अवयस्क हुआ तो यह सजा चार साल की होगी। जो स्वेच्छा से धर्मांतरण करना चाहे, उसे जिलाधिकारियों को पूर्व सूचना देनी होगी। यह कानून इसलिए अच्छा है कि यह सब पर एक समान लागू होगा। कोई किसी को जबर्दस्ती या लालच देकर ईसाई से मुसलमान या हिंदू भी नहीं बना सकेगा। इसीलिए जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उनकी दाल में कुछ काला है। जो लोग इस तरह के धर्मांतरण के पक्षधर हैं, वे अराष्ट्रीय भी हैं, क्योंकि उन्हें इस कुकर्म के लिए विदेशों से प्रचुर पैसा मिलता है। वे धनदाता राष्ट्रों के ज्यादा वफादार होते हैं। वास्तव में भारतीय संसद को इस संबंध में कड़ा कानून बनाना चाहिए। यह धर्मांतरण पर नहीं, उसके गलत तरीकों पर रोक है।