मीनू कुमारी
बेहतर स्वास्थ्य हासिल करना नागरिकों का मूलभूत अधिकार है। सरकार का यह कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के स्वास्थ्य संबंधी सभी सुविधाएं उपलब्ध कराए। इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारें कर्इ स्तर पर सराहनीय कदम उठा रही हैं। हालांकि कुछ राज्यों में अभी भी यह संतोषजनक स्थिति में नहीं पहुंच सका है। फिर भी राज्य की सरकारों द्वारा अपने स्तर पर उठाए जा रहे कदम महत्वपूर्ण हैं। कभी देश के पिछड़े राज्यों शामिल बिहार ने विकास की नर्इ अवधारणा को जन्म दिया है। राज्य के लगभग सभी क्षेत्रों में विकास देखने को मिला है। सरकार ने विशेषकर जिन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा ध्यान दिया है उनमें स्वास्थ्य सेवा भी शामिल है। विगत कुछ वर्षों में बिहार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। इसके लिए सबसे ज्यादा ध्यान प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर दिया गया है। जहां सरकार ने जमीनी स्तर से योजनाओं को अमल में लाना शुरू किया है। प्राथमिक चिकित्सालयों, जिला चिकित्सालयों और राज्यस्तरीय चिकित्सालयों का उन्नयन कर उन्हें आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है। पूरे राज्य में एम्बुलेंस सुविधा के साथ ही चलंत चिकित्सा वाहनों की व्यवस्था की गर्इ है। इसके अलावा निजी भागीदारी के माध्यम से सरकारी अस्पतालों में एक्सरे यूनिट, पैथोलाजी जांच केन्द्र, अस्पताल रख रखाव सेवाओं, ब्लड स्टोरेज सेन्टर, ब्लड बैंक और चिकित्सा इकार्इ की व्यवस्था की गर्इ है।
ग्रामीण क्षेत्रों में भी सरकार की स्वास्थ्य नीति सराहनीय है। राज्य के पिछड़े ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा सुविधा का विस्तार और सुदृढ़ीकरण करने के कर्इ सफल कार्यक्रम क्रियानिवत किए गए हैं। इसके लिए राज्य के सभी प्रखंडों में आवश्यरक रूप से एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना को अनिवार्य बनाने पर जोर दिया गया है। उनमें से अब तक 480 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में 24 घंटे सुविधा उपलब्ध कराने का दावा भी किया गया है। स्वास्थ्य प्रक्षेत्र में गुणात्मक सुधार लाने के लिए बिहार सरकार ने राष्ट्री्य तथा अंतरराष्ट्रीबय स्तर की कर्इ गैर सरकारी स्वंयसेवी संस्थाओं के साथ समझौता भी किया है। सरकार के इन प्रयासों का ही नतीजा है कि सरकारी अस्पतालों में उपचार के लिए पहले जहां औसतन सिर्फ 39 रोगी प्रतिमाह उपसिथत होते थे, वहीं अब यह संख्या 5000 प्रतिमाह हो गर्इ है। स्वास्थ्य सुधार की दिशा में सरकार की पहल सराहनीय कही जा सकती है। परन्तु अब भी इसमें कर्इ स्तरों पर खामियां हैं। पिछले 7-8 वर्षों के शासन के दौरान स्वास्थ्य मिशन नितीश सरकार की पहली प्राथमिकता जरूर है लेकिन कर्इ जिलों में इसमें सुधार की रफ्तार काफी धीमी है। जिसके लिए सरकार को कमर कसने की जरूरत है। विशेषकर बाढ़ पीडि़त क्षेत्रों में इसकी पारदर्शिता में कुछ खामियां दिखार्इ देती हैं। ऐसा ही एक क्षेत्र है मधुबनी सिथत बिस्फी ब्लाक जो मैथिली और संस्कृत के विश्व। प्रसिद्ध कवि विद्यापति की जन्मभूमि भी है।
बिहार के एतिहासिक शहर दरभंगा से लगभग 35 किमी दूर इस गाव में आज भी लोग स्वास्थ्य की मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। सरकार द्वारा चलायी जा रही योजना के तहत प्रत्येक गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना अनिवार्य है। परंतु बिस्फी गांव इस बुनियादी सुविधा की उपयोगिता से वंचित है। लोगों को स्वास्थ्य लाभ के लिए अपने क्षेत्र से कोसों दूर जाना पड़ता है। ऐसे में महिलाओं को विशेषकर गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान किन कठिनार्इयों का सामना करना पड़ता है इसका केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है। चिंता का विषय यह है कि यह क्षेत्र बाढ़ ग्रसित है। ऐसे में इस प्राकृतिक आपदा के समय यहां होने वाली स्वास्थ्य संबंधी कठिनार्इ से पार पाना अब भी हिमालय पर चढ़ार्इ से भी ज्यादा दुष्कसर साबित होता है। स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी का असर सबसे ज्यादा बच्चों पर नजर आता है। गांव के अधिकतर बच्चे उचित स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में कुपोषण का शिकार होते जा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार द्वारा स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं से संबंधित बातें केवल भाषणबाजी है बलिक इस संबंध में काफी प्रयास भी किए जा रहे हैं। राज्य सरकार द्वारा किशोर-किशोरियों के लिए शुरू की गर्इ नर्इ पीढ़ी स्वास्थ्य गारंटी कार्यक्रम योजना सराहनीय है। जिसके तहत 14 वर्ष की आयु तक के सभी छात्र- छात्राओं और 18 वर्ष तक की किशोरियों को स्वास्थ्य जांच और स्वास्थ्य कार्ड की सुविधा उपलब्ध कराना अन्य राज्यों के लिए मार्गदर्शक साबित हो सकता है। जिसमें कुपोषण और बालिकाओं में ऐनिमिया जैसे गंभीर रोगों को समाप्त करने की उनकी मंशा को दर्शाता है। परंतु जब तक इन प्रयासों को धरातल पर पूर्ण रूप से क्रियान्वित नहीं किया जाता है तब तक इसमें सफलता की उम्मीद नहीं की जा सकती है। (चरखा फीचर्स)