नींद हमे जब ना आती है
चलती घड़ी रुक सी जाती है।
कलम उठाकर लिखना चाहूँ
भूली बीसरी याद आती है।
कलम जब कभी रुक जाती है
नींद कंहा फिर तब आती है।
कोई कहानी मुकम्मल होकर
जब काग़ज पे उतर आती है,
नींद नैन में बस जाती है।
शब्द कभी कहीं खो जाते हैं
भाव रुलाने लग जाते हैं
किसी पुराने गाने की लय पर
कोई कविता जब बन जाती है।
नींद हमें फिर आ जाती है।
राह में जब रोड़े आते है,
चलते चलते थक जाते हैं
पैरों में छाले पड़ जाते
ऐसे सपने हमें आते है,
कोई नई कहानी तब
सपनो में ही गढ़ी जाती है,
नींद चौंक कर खुल जाती है।