न गांधी का देश न अन्ना हजारे का गांव

3
193

जावेद उस्मानी

पूरे देश मे भ्रष्टाचार की गूंज है । अरब देशो मे हुए आन्दोलन के बाद देश मे भ्रष्टाचार की चर्चा चरम पर हैं ।

आम आदमी से लेकर देश के मुखिया तक सभी या तो की दुहाई दे रहे है या अपनी सफाई दे रहे हैं । रिश्वत खाने वाले की अपनी डफली है रिश्वत देने वाले का अपना राग है । पर दोनो के सुर ताल एक है । हर एक अपनी नजर मे ईमानदार है क्योकि उसके पास ऐसा करने की कोई निहायत ठोस वजह है या कोई मजबूरी है । भ्रष्टाचार ने आम लोगो की अंतरात्मा को बंधक बना लिया ,ऐसा क्यो हुआ ? इसकी चर्चा न सदन में हैं न सड़क पर है क्योकि हर एक को बेनकाब होने का भय है इसलिए बहस केवल उन मसलो पर है जो बटवारे के झगड़े के चलते किसी दिल जले की वजह से सामने आ चुकी है । लोकतंत्र की इ्रकाई तक के अंतरमन मे राज कर रहे भ्रष्टाचार पर सर्वत्र चुप्पी है । काला धन वापसी वाले बाबा भी मौन है और अन्ना हजारे भी चुप हैं। इसी बिगड़ी जमात को लेकर वे समाज परिवर्तन करना चाहते है । इसी का फायदा उठाकर, येद्दियुरिप्पा साहब ने ईमानदारी की नई कसौटी तय कर दी है जिसके पास विदेशी बैक खाता नही है वो ईमानदार है । विदेशो मे काम करने वाले लाखो भारतीयो के पास विदेशो मे बैक खाता है । विदेशो मे पॄाई करने वाले लाखो भारतीय विद्यार्थियो के पास विदेशो मे बैक खाता है । आरोपो से घिरे ,कर्नाटक के मुख्यमंत्री येद्दियुरिप्पा की नजरो मे संभवतया ऐसे लोग कुछ बेईमान किस्म के है, क्योकि उनके पास विदेशो मे बैक खाता है। किसी अफसर ,कर्मचारी , कारोबारी और राजनितिज्ञ का विदेशो मे बैक खाता नही होना उसकी ईमानदारी का सबूत नही है ।ण देशी खाता धारको के पास से भी करोड़ो अरबो की बेहिसाब संपति है देशी लाकरो से अरबो रुपये बरामद किये जा चुके हे । पुर्व केन्द्रीय मंत्री सुखराम का तकिया , मध्यप्रदेश के उच्चाधिकारी जोशी दंपति का बिछौना , छत्तीसग़ के आला अफसर बाबुलाल अ्रग्रवाल के पास से बरामद फर्जी बैक खाते , पंजाब के लोकसेवा आयोग के पुर्व अध्यक्ष राजिदर पाल सिद्वू नोटो से भरा और एम सी आई के चैयरमैन केतन देसाई का सोनो से भरा लाकर सब देश मे ही मिले ।नीचे से उपर ऐसे लोग भी अपराधी प्रवृति के है जिनका बैक मे कोई खाता ही नही है, या खाते मे काली कमाई नही जमा है । नामी गिरामी इनामी डाकूओ का कोई बैक खाता नही रहा है , इसका अर्थ यह नही है कि वे शरीफ शहरी है ? और ऐसे लोगो की हर स्तर पर भरमार है चपरासी से लेकर मंत्री तक , सरकार के अन्दर भी और सरकार के बाहर भी हर जगह , भ्रष्टाचार का इकबाल बुलंद है । पर्देदारी और मूल विषय से भटकाने के लिये येद्दियुरिप्पा की भांति, अन्यो के पास भी तर्को की कमी नही है । पूर्व केन्द्रीय मंत्री कलमाड़ी और राजा जैसी हस्तियो की दलीले भी उनसे जुदा नही है पकड़ मे आने से पहले यह भी अपने आप को किसी से कम ईमानदार नही मानते थे । अब अदालती फैसले तक भी इन्हे बेइमान नही कहा सकता है वे सिर्फ आरोपी है मुल्जिम नही है । भारतीय जनता पार्टी कलमाड़ी और कांग्रेस येद्दियुरिप्पा के मामले को लेकर एक दूसरे को आईना दिखा रहे है । 2 जी स्पेक्ट्रम के मामले मे एनडीए और यूपीए आमने सामने है एक दूसरे से जबाब तलब कर रहे है। हाइड एंड शोक का खेल नयी बोतल मे पुरानी शराब की तरह चल रहा है ।हाल मे प्रधानमंत्री ने सी बी आई को ताकीद की है कि भ्रष्टाचारियो को बख्शा नही जाये चाहै वे कोई भी हो ऐसे बयान देने की नौबत ही क्यो आयी सी बी आई का काम बख्शना नही है अपराधी को पकड़ना है यही उनका स्वाभाविक कार्य है । इस बयान से साफ है कि या तो सी बी आई का रास्ता सही नही है या हुकुमरान गलत है । 1मई को चंद महानगरो मे लोगो ने रैलिया निकालकर भ्रष्टाचार पर निशाना साधा पर लोकपाल विधेयक को लेकर चर्चा का केन्द्र बन चुकी जन समिति के बारे मे भी कुछ की राय है कि ’ हमाम मे सब नंगे है ’। बहस चल रही है कि कौन सच्चा है ? जबाब दिया जा रहा है कि ,अपने सिवा सब के सब झूठे हैं । राजनैतिक दुनिया और नौकरशाही की दुनिया तो पहले ही गिरावट की शिकार हो चुकी है । उनकी देखा देखी कारोबारी भी बिगड़ चुके है । और आम आदमी अपने इन रहनुमाओ से बहुत कुछ सीख चुका है ,अब उसकी नकल नही कर रहा है बल्की उसके जैसा बनने की होड़ में है । समाजवादी चिंतक स्व0 मधुलिमए सार्वजनिक जीवन मे नैतिकता के लोप की गहरी चिन्ता थी पर उनकी आवाज भ्रष्ट समाज के नक्कारखने मे तूती बनकर रह गयी । महात्मा गांधी साधनो की शुचिंता के पैरवीकार थे व्यक्तिगत जीवन में भी पवित्रता के प्रबल हिमायती थे पर देश ने गांधी और उनकी बातो को भूलकर अपने आप को ही भूला दिया है । नतीजतन हमारी लालच की भूख इतनी  बढ़ गयी कि हम अपने भविष्य को खाने लगे है । हमारी नजरो के ऐन नीचे हो रही लूट तक हमे दिखाई नही देती है । देश के भविष्य के भविष्य निर्माण मे मदद करने के लिये दिया जाने वाला मध्याहान भोजन भी इससे अछूता नही है। हम अपने नौनिहालो के हक के दाने तक से ,अपने लोभी पेट को भरने मे मशरुफ है । बच्चे को चावल से कार्बोहाइड्रेड तो मिल रहा है पर दाल की प्रोटीन गायब है सब्जी की विटामीन नदारत है बच्चे कुपोषण के शिकार है पर न कोई देखने वाला है न कोई सुनने वाला है । अब मध्यांहन भोजन के काम पाने के लिये सस्ते राशन दुकान चलाने वाले की तरह रिश्वत देनी पड़ती है । शिक्षक जो समाज की नींव है वे स्वंय हर अवसर को मे बदलने से नही चूकते है । जब नींव को ही दीमक लग जाये तो ईमारत की मजबूती की आशा व्यर्थ है । अपने लक्ष्य साधने के लिए हर कोई रिश्वत दे रहा है ,ले रहा है। वोट के लिए मतदाता और काम के लिये राजनेता । इसे लोगो ने अपने जीवन का हिस्सा बना लिया है । अगर भूले से कोई विरोध करे तो तो उसे इतनी चालाकी और बेदर्दी से समाप्त कर दिया जाता है कि अन्य कोई आवाज उठाने , सामने आने से डरता है। इसलिए आज देश मे भय है भूख है, भ्रष्टाचार हैं, इसे किसी पार्टी , किसी सरकार , किसी वर्ग से जोड़ना बेमानी है । अंग्रेजी सल्तनत को देश से बाहर करने वाले अगुवा अपने लोगो से जीत नही सके और पूरी तरह हार गये । निहीत स्वार्थो की बेदी पर हमारे उच्च संस्कार ,संस्कृति और कर्म होम हो चुके है । हमारा देश ,ऐसा देश बन चुका है जहां बहुत कुछ है लेकिन व्यक्तिगत और सार्वजनिक ईमानदारी नगष्य है । व्यक्तिगत ईमानदारी और सार्वजनिक ईमानदारी एक ही सिक्के के दो पहलू है । एक दूसरे के पूरक है और वास्तविक विकास के लिये दोनो जरुरी है। लोकतंत्र मे व्यक्तिगत ईमानदारी भी उतनी ही जरुरी है जितनी सार्वजनिक ईमानदारी । अब सवाल लोकतंत्र मात्र का नही बल्की मानवीय मुल्यो के बचाव का है । महात्मा गांधी के देश मे और अन्ना हजारे के गांव मे भी ।चारो ओर दलदल ही दलदल है ऐसे मेब चने की एक ही संभावना है कि हम जिस भ्रष्टाचार के गर्त्र मे गहरे धसे है ,एक लंबी सांस लेकर उस गर्त से उठने का प्रयास करे , क्या होगा कानून बनाकर ,इन्क्वायरी करवाकर जबकि न कानून बनाने वाले उसका पालन करवाने वाली कार्यपालिका ,विधयिका ,न्यायपालिका कोई भी 100 फीसदी से मुक्त नही हे कोई नेक नीयती से काम करने वाला सामने आना चाहे तो अन्य लोग ग़े मुर्दे उखाड़ लाएगे आप खुद चोर हो , तब प्रश्न यह है कि इस देश मे जहां हर सक्षम अक्षम आचरण कर रहा है तो वह वर्तमान , किस क्रांति से विहीन वर्तमान मे बदल जाएगा कौन सा ऐसा जादू है कि यह व्यवस्था एकदम शुद्व नैतिकता में बदल जाएगी या कम से कम एक मानवीय व्यवस्था मे तो बदल ही जाएगी सिवा इसके कि हम एक अरब लोग एक साथ अपना अंर्तमन बदल दे कि आचरण नही करेगे, मगर क्या कोई दंड कोई भय कोई दमन ,कोई युक्ति कोई नीति कोई धर्म कोई वचन इस सहज उपलब्ध पैसे के लोभ को छुड़वाने मे सफल होगा ? हां जब बहुल वर्ग एकजूट होकर आचपण करने वाले वर्ग का सम्मान करना और पैसे को सलाम करना छोड़ देगा

3 COMMENTS

  1. जावेद उस्मानी साहब ,आपने सच कहा की
    “हमारी लालच की भूख इतनी बढ़ गयी कि हम अपने भविष्य को खाने लगे है ‘काश! हम इसको समझ पाते.मैंने पहले लिखा है की हम विशस सर्कल यानी दुश्चक्र में फंसे हुए हैं .अफसोस इस बात का है की हम उसे देख भी नहीं पारहे हैं.इसको एक चित्रकार ने बहुत ही अच्छे ढंग से दिखाया है.चित्र कुछ ऐसा है कि एक सांप ने दूसरे सांप का पूँछ पकड रखी है और निगलने का प्रयत्न कर रहा है.दूसरे सांप ने पलटकर पहले की पूँछ पकड ली है और वह भी पहले वाले सांप को निगलने का प्रयत्ना कर रहा है.हमारी वर्तमान अवस्था कुछ ऐसी ही लगती है.मुश्किल यह है की हम उसके परिणाम को देख कर भी अनदेखा किये जा रहे हैं,पर कब तक ?-
    मेरे एक मित्र ने एक बड़े पते की बात कही थी,की असल मुजरिम तो वे हैं जो सच्चाई और इमानदारी की सीख दे रहेहै और उससे भी बड़े मुजरिम वे चंद लोग हैं जो इस सीख पर चलने की कोशिश कर रहेहैं .वे खामः खाह देश को जल्द से जल्द रसातल में पहुँचने के मार्ग में रोड़े अंटका रहे हैं.

  2. वाकई आज भ्रस्टाचार से कोई अछूता नहीं बचा हैं पर समाज को इसकी चिंता नहीं हैं , सब अपने आप में मस्त हैं लेखक का कहना सही हैं कि लोग अपने ही भविष्य को खा रहे हैं .

  3. उस्स्मानी साहब बहुत उम्दा लेख लिखा आपने

    शुक्रिया

    कृपा करके आप लेख लिखते रहे क्योकि आज समाज को आप जैसे लोगो की सख्त जरूरत है .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here