नेपाल: बीती ताहि बिसार दे

nepal oliडॉ. वेदप्रताप वैदिक

नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. ओली की इस भारत-यात्रा से ऐसा लगता है भारत-नेपाल घावों पर मरहम लगना शुरु हो गया है। हमारे प्रधानमंत्री ने ओली को बातों के काफी मीठे-मीठे रसगुल्ले परोस दिए। नेपाल के संविधान की सराहना कर दी, और यह भी कह दिया कि उसके अधूरे संशोधनों को पूरा किया जाए। सर्वसम्मति और सदभावना को आधार बनाया जाए। नेपाल के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजलीघर बनाने संबंधी नौ समझौते हुए। भारत सरकार ने 25 करोड़ डाॅलर देने की भी घोषणा की।

 

ओली ने भी सबसे पहले भारत की यात्रा करके यह संदेश दिया कि वे खुद भारत के विरुद्ध चीनी कार्ड नहीं खेल रहे हैं। अक्सर होता यही है कि जब भी भारत के साथ थोड़ी-सी अनबन होती है, चीन अपनी पूरियां तलने लगता है। उसने राजीव गांधी के जमाने में भी यही किया था और पिछले छह माह भी उसका यही खेल चल रहा था। नेपाली तराई में हुई घेराबंदी के दौरान चीन ने नेपाल पर डोरे डालने की बहुत कोशिश की लेकिन पांव तो हमेशा पेट की तरफ ही मुड़ते हैं। ओली और उनके मंत्रियों को राष्ट्रपति भवन में ठहराकर भारत ने उनका विशेष सम्मान किया। ओली और उनके विदेश मंत्री कमल थापा से मेरी बात हुई। वे विशेष प्रसन्न दिखाई पड़े। मुझे लगता है कि दोनों देशों के नेता अभी इसी सिद्धांत पर चल रहे हैं कि ‘बीती ताहि बिसार दे’।

 

इसीलिए मैं भी गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ना चाहता, क्योंकि दोनों पक्षों के लिए मुझे कुछ न कुछ कड़वी बातें कहनी पड़ेंगी। लेकिन एक बात बहुत स्पष्ट है कि नेपाली नेता यह भूल न कर बैठें कि भारत को खुश कर लें और अपने मधेसियों को भूल जाएं। नेपाल के युवा मधेसी खुद-मुख्तार हैं। वे भारत का समर्थन जरुर चाहते हैं लेकिन वे उसके इशारों पर नाचनेवाले नहीं हैं। यही नेपाल की जन-जातियों का है। जब तक उन्हें उनकी संख्या के अनुपात में सीटें नहीं मिलेंगी, जब तक संघात्मक आधार पर प्रांतों का सीमांकन नहीं होगा और जब तक राज-काज में उनकी ठीक-ठाक हिस्सेदारी नहीं होगी, नेपाल में अस्थिरता बनी रहेगी। अभी जो संविधान बना है, वह पिछले संविधानों के मुकाबले बहुत अच्छा है। लेकिन उसमें अभी भी कमियां हैं। नेपाली नेता यदि स्वयं अपने मसलों को हल कर लें तो भारत की दखलंदाजी करने की जरुरत ही क्यों पड़ेगी? भारत के लिए नेपाल सिर्फ पड़ौसी ही नहीं है, भातृ-राष्ट्र है। जैसी मदद भारत ने भूकंप में की थी, क्या कोई और राष्ट्र करेगा? ओली की इस यात्रा से भारत-नेपाल संबंधों का नया अध्याय शुरु होना चाहिए।

 

1 COMMENT

  1. नेपाल में आई.एन.जी.ओ. और मिडिया बहुत सक्रिय है। और मिडिया एवं आई.एन.जी.ओ. पर पश्चिमी प्रभाव है। वे लोग नेपाल में भारत विरोधी भावना फैलाने में सक्रिय रहते है। भारत के वामपंथी बुद्धिजीवी और प्रेसटीट्यूट पत्रकार का समूह भी भारत विरोधी भावना फैलाने में सहयोग करता है। भारतीय विदेश निति बनाने वाली संरचना और विदेश सेवा में भी उनका बोलबाला है।

    मोदी के लिए नेपाल के लोगो में बहुत अच्छी भावना बन गई थी, लेकिन उस नेक्सस ने उसे खराब करने का प्रयास किया है। नेपाल में जातीय, क्षेत्रीय, भाषिक आदि द्वन्द फैलाने में पश्चिमी प्रभाव वाली संस्थाए सक्रिय है, नेपाल द्वन्द से बाहर निकले, मोदी जी का सारा प्रयास इस बात पर केन्द्रीत है। नेपाल के नेताओ के मुखौटे को चीर कर देखना कठिन है, लेकिन अच्छे नेताओ को सहयोग करना चाहिए। नेपाल के भले में भारत का भी भला है। इस बात को दोनों और की सरकारे और जनता समझे।

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