नेपाल की धर्मनिरपेक्षता पर सवालियाँ निशान

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विश्व का एक मात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल अब धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य  हो गया है.तकरीबन सात साल के जद्दोजहद के बाद नेपाल में भी राजतंत्र के  पतन के बाद गणतंत्र का उदय हुआ है.239 साल पुराना राजवंश 2008 में खत्म कर दिया गया था.तब से ही नेपाल को इस दिन का बेसब्री से इंतजार था.नए संविधान की घोषणा होते हुए जिस प्रकार से हिंसा का माहौल समूचे नेपाल में देखा जा रहा है यह चिंताजनक है.कहीं ख़ुशी से पटाखें छोड़े जा रहें,लोग सड़को पर हाथ में राष्ट्रीय झंडा लिए अपने इस गणतंत्र के लागू होने का जश्न मना रहें .अगर हम नेपाल के नए संविधान को देखे तो उन सभी कानून ,नियम कायदे है जो किसी गणतंत्र राज्य के लिए होने चाहिए.नेपाल के राष्ट्रपति राम बरन यादव ने नए संविधान लागू होने की घोषणा की.इस संविधान का सकारात्मक पक्ष पर गौर करें तो एक दो बातें सामने आती है मसलन नेपाल का गणतंत्र संस्थागत हुआ है संघीय ढांचे को भी मूर्त रूप दिया गया है.नेपाल के संविधान को ज्यादा विस्तृत न करते हुए संविधान सभा ने संविधान को छोटा रखना  ही सही समझा है.संविधान सभा ने नेपाल के संविधान को 37 खंड,304 आर्टिकल व 7 अनुसूचियां को स्वीकृति प्रदान की है.जिसके सभी जातियों, भाषाओं को मान्यता दी गई है.इसके साथ ही जो सात नये राज्य गठित किये गये है.उन्हें अपनी राज्य भाषा चुनने का भी अधिकार प्रदान किया गया है.नए कानून के तहत धर्मपरिवर्तन गैरकानूनी होगा तथा पिछड़ी समुदाय के लोग दूसरी जाती को नहीं अपना सकते अगर ऐसा करते है तो उसे कानून का उलंघन माना जायेगा.नेपाल को दुनिया का एक मात्र हिन्दू राष्ट्र कहा जाता था लेकिन अब नेपाल भी भारत की तरह धर्मनिरपेक्ष व लोकतांत्रिक हो गया.परन्तु इस बात पर भी जोर दिया गया है कि सनातन धर्म की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य होगा व गाय को राष्ट्रीय पशु बनाया गया है. जो धर्मनिरपेक्षता पर सवालियाँ निशान लगाता है.अगर एक बात पर गौर करे तो नेपाल धर्मनिरपेक्ष तो हो गया लेकिन  दूसरी तरफ जगह –जगह साम्प्रदायिक तनाव, हिंसा व विरोध इस बात की पुष्टि करतें है कि इस नए संविधान को पूरी नेपाल की जनता एकमत से स्वीकार नहीं कर रही संविधान समावेशी रूप देने में वहां की संविधान सभा की सभी कोशिशें विफल रही है.नेपाल के दक्षिणी तराई से लेकर पश्चिमी इलाकें में नेपाल को सात राज्यों में बांटने के प्रस्ताव को  लेकर हिंसक प्रदर्शन हो रहें है.दक्षिणी नेपाल के मधेसी और थारू समुदाय के लोग वर्षों से अपने लिए अलग राज्य की मांग कर रहें थे मगर संविधान सभा ने इनकी मांगो को दरकिनार कर दिया है.अभी तक इस हिंसा में 40 लोग अपनी जानें गवां चुके है,संविधान सभा को इनकी मांगो पर विचार करने की जरूरत है नहीं तो आने वाले दिनों में जिस प्रकार भारत से  तेलंगाना के गठन को लेकर व्यापक हिंसा व आंदोलन हुए थे ऐसे स्थिति आने से पहले नेपाल सरकार को इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है ताकि नेपाल में कोई और क्षति न हो, ये साल नेपाल के लिए वैस ही त्रासदी भरा रहा है.बहरहाल, सवाल ये उठता है कि मधेसी समुदाय नाराज क्यों है ? अगर सवाल की तह में जाएं तो मधेसी लोगो की नराजगी की मुख्य वजह ये है कि वहां का  इलाका मैदानी है व सभी संसाधनों ये युक्त है.अब यहाँ भी पहाड़ी लोग भारी तादाद के रहने लगें है जिससे उनके व्यापार क्षेत्र में पहाड़ियों ने अतिक्रमण कर लिया है जिसके कारण उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.मधेसी समुदाय ने नेपाल सरकार पर अपने समुदाय की उपेक्षा करने का आरोप  भी लगाया है तो वही दूसरी तरफ आरपीपी –एन और आरपीपी  संगठनों  ने भी इस संविधान का पुरजोर विरोध किया है. नए संविधान के मुताबिक जो राज्य बनेंगे सभी राज्यों की सीमा भारत को स्पर्श करेगी.नेपाल भारत का पड़ोसी देश है अगर वहां हिंसा होती है तो नेपाल के लिए ही नहीं वरन भारत सरकार के लिए भी चिंता का विषय है.क्योंकि सीमा से लगे नेपाली इलाकों में हिंसा बढने से इसका असर भारत पर भी पड़ेगा.भारत और नेपाल के बीच सदियों से सांस्कृतिक और भौगौलिक संबंध रहें है.वहां की संस्कृति हमारी संस्कृति से काफी हद तक मिलती –जुलती है खास करनेपाल सीमा से सटे बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगो से तो पारिवारिक संबंध भी है इसलिए भारत सरकार को इस बात की भी  चिंता है कि बड़ी संख्या में लोग अपनी जान बचाने के लिए भारत आयेंगे.इसपर नेपाल सरकार ने सक्रियता दिखाते हुए भारत से सटे इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है ताकि हिंसा की आग भारत में न फैले. जाहिर है की अगले माह बिहार विधानसभा चुनाव होने है और इस समय भारत सरकार  किसी भी प्रकार का जोखिम लेना नहीं चाहेगी,नतीजन भारतीय विदेश मंत्रालय ने नेपाल के संविधान की घोषणा के बाद अपना असंतोष जाहिर किया तथा नेपाल ने नेताओं से सभी समुदायों को साथ लेकर चलने की अपील भी की है गौरतलब है कि इससे पहले भी जब नेपाल भूकंप की त्रासदी झेल रहा था तब सबसे पहले भारत ने ही नेपाल सरकार को हर संभव मदद का किया था.बहरहाल, 26 जनवरी 1950 भारत में संविधान लागू किया गया था तब सभी ने एकमत से संविधान को समावेशी बताया था लेकिन  नेपाल का संविधान कहने को तो धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य हो गया लेकिन जनता  को एकमत करने में असफल रहा है.

 

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