नेशनल हेराल्ड मामले में आयकर विभाग द्वारा कांग्रेस पार्टी को यह नोटिस दिए जाने पर कि कांग्रेस पार्टी को दी गई टैक्स-छूट वापस क्यों न ली जाएं? इसको कांग्रेसाध्यक्ष सोनिया गांधी ने बदले की भावना से की गर्इ्र कार्यवाही बताया है। उनका यह भी कहना है कि नई सरकार राजनीतिक दुर्भावना से उनकी, उनके बेटे और कांग्रेस के अन्य नेताओं को निशाना बना रही है। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि सरकार के इस तरह के कदमों से न सिर्फ हमें मदद मिलेगी, बल्कि सत्ता में वापसी के लिए भी रास्ता खुलेगा।
उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने नेशनल हेराल्ड प्रकरण में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और दूसरे कांग्रेस के दूसरे नेताओं को बतौर अभियुक्त 07 अगस्त को न्यायालय में पेश होने को कहा है। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी याचिका में यह आरोप लगाया है कि एशोसियेेट जर्नल्स के अधिग्रहण के लिए कांग्रेस ने सोनिया गांधी की कंपनी यंग इण्डिया लिमिटेड को 90 करोड़ का प्रतिभूति ऋण दिया था। खैर सोनिया गांधी जो कहे अदालत ने प्रथम दृष्टया उन्हें आरोपी माना है, ऐसे में आयकर के कदम को कैसे अनुचित कहा जा सकता है? अब सोनिया भले यह खुशफहमी पाले कि इस तरह से जैसे 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापिसी हो गई थी, ऐसे ही उनकी भी वापिसी हो जाएंगी। लेकिन शायद उन्हे पता नहीं कि तबकी और अबकी परिस्थितियों में जमीन-आसमान का फर्क है। तब जनता पार्टी चार दलों को मिलाकर बनाई गई थी। जिसमें आपस में बहुत गुटबाजी और झगड़े थे। सच्चाई यह है कि गुटबाजी और झगड़े होते हुए भी यदि जनता पार्टी में विभाजन न होता तो भी इंदिरा गांधी की वापसी संभव नहीं थी। दूसरा, उस समय कांग्रेस भले चुनाव हार गई थी, पर उसका जनाधार कायम था। हरिजन, आदिवासी और अल्पसंख्यक मतों का कांग्रेस पर एकाधिकार जैसा था। आज के 44 की तुलना में उस समय कांग्रेस के 150 सदस्य लोकसभा में जीते थे। बड़ी बात यह कि इंदिरा गांधी का साहसिक और गतिशील नेतृत्व कांग्रेस को प्राप्त था।
उसके उलट आज केन्द्र में सत्ता भले ही एनडीए की हो, पर लोकसभा में भाजपा को पूर्ण बहुमत प्राप्त है। भाजपा के अंदर औेर एनडीए में भी नरेन्द्र मोदी को कोई चुनौती देने वाला तो दूर आज की स्थिति में तो ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता। जनता पार्टी का शासन जहां मात्र ढाई साल चला था, वह इस शासन को पांच वर्ष पूरे चलने में दूर-दूर तक कोई अंदेशा नहीं है। 1977 में जनता पार्टी के सत्ता में आने पर इंदिरा गांधी के सत्ता में वापिसी का एक कारण यह भी था कि चौधरी चरण सिंह ने बगैर सोचे-समझे इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करवा दिया था, जिसे न्यायालय ने उचित नहीं माना था। पर आज तो न्यायालय स्वतः सोनिया गांधी को अभियुक्त मान रही है। जहां तक आयकर के कार्यवाही का सवाल है, वहां यह स्पष्ट है कि यदि कांग्रेस पार्टी इस तरह से 90 करोड़ रुपये व्यापारिक उद्देश्यों के लिए दे सकती है, तो उसे आयकर से छूट का अधिकार कैसे? अब यदि आयकर की नोटिस मात्र से सोनिया गांधी को सत्ता में वापसी दिख रही है। तब तो उन्हें हरसंभव प्रयास कर जेल चले जाना चाहिए, क्योकि तब उनकी सत्ता में वापिसी सुनिश्चित हो जाएंगी। श्रीमती सोनिया गांधी को यह पता होना चाहिए कि यह सच है कि इतिहास अपने आप को दुहराता अवश्य है, पर यंत्रवत तरीके से नहीं। उन्हें पता होना चाहिए कि ‘वह दिन हवा हुए जब पसीना भी गुलाब था।’ उन्हें सत्ता में वापिसी का सपने न देखकर यह चिंता करनी चाहिए कि कांग्रेस का अस्तित्व कैसे कायम रहे ?
संभवतः वह केन्द्र सरकार को इस तरह से डराने का भी उपक्रम कर रही है कि यदि हमारे और हमारे कुनबे के अवैध और भ्रष्ट कृत्यों को लेकर कार्यवाही की गई तो जनता इसे बदले की भावना से भी की गई कार्यवाही मानकर उन्हें पुनः सत्ता में बिठा देंगी। पर असलियत में मिर्जा गालिब की तर्ज पर यही कहा जा सकता है –
‘हमको मालुम है जन्नत की हकीकत गालिब।
पर दिल को बहलाने को ये ख्याल अच्छा है।’
मुहं बचाने के लिए इस से अच्छा व राजनीतिक जवाब और हो ही क्या सकता था ?राजनीति में हर आरोपी इसी प्रकार के बयान देता है अभी तो यह नहीं कहा कि कानून अपना काम करेगा यह सरकार की ओर से दे दिया गया