नव संवत्सर पर इड़ा, मही, सरस्वती को नमन

नव संवत्सर
नव संवत्सर
नव संवत्सर
नव संवत्सर

विमलेश बंसल ‘आर्या’

 

नमन तुम्हें हे नव संवत्सर,
नमन तुम्हें हे आर्य समाज।
नमन तुम्हें हे भारत माता,
नमन तुम्हें हे प्रिय ऋषिराज।।
नव संवत् की चैत्र पंचमी,
आर्य समाज बनाया था।
गहन नींद से जगाकर ॠषि ने,
सत्य का बोध कराया था।।
पीकर विष पत्थर खा खाकर,
पुनः किया हमको आगाज़॥
नमन तुम्हें हे……
थे हम आर्य यहीं के वासी,
आर्य संस्कृति थी अपनी|
विश्व गुरु था देश हमारा,
वैदिक संस्कृति जग जननी।

आओ हम संकल्प सभी लें ,
सफल करें ऋषि की आवाज||

नमन तुम्हें हे……
घर घर जाकर यज्ञ रचाकर,
हर घर को महाकाना है।
निज संस्कृति से अपने बच्चों,
को संस्कार दिलाना है।
आर्यावर्त बनेगा फिर से,
विमल वेद सिर धारें ताज||
नमन तुम्हें हे……
बुझ न पाये ज्योति हमारी,
चिंतन हमको करना है|
आलस छोड़ें कमर कसें ,
माँ वंदन हमको करना है|
तन- मन -धन  सब कर दें अर्पण,
अमरपुत्र बनकर के आज||
नमन तुम्हें हे……

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