नवीन के ‘राजधर्म’ पर भारी पडता अमेरिकी प्रमाणपत्र : समन्वय नंद

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kandhamal1अमेरिका अपने आप को पूरे दुनिया का पहरेदार समझता है। कहां क्या ठीक हो रहा है, और क्या गलत हो रहा है इसकेसंबंध में अपनी टिप्पणियां प्रदान करना अपना नैतिक दायित्व समझता है। कुछ सालों से वह इंटरनेशनल फ्रीडम रिपोर्ट प्रस्तुत कर इसकी घोषणा करता है। इस रिपोर्ट में वह विभिन्न देशो में मजहबी स्वतंत्रता की स्थिति के बारे में उल्लेख करता है। मजहबी स्वतंत्रता का अर्थ अमेरिका की ह्ष्टि में एक विशेष मजहब ईसाइयत की स्वतंत्रता है। अमेरिका की दृष्टि में चर्च को पूरे विश्व को पूरा मतांतरित करने का पूरा अधिकार है और अगर किसी देश मेंचर्च के इस अवैध मतांतरणका विरोघ होता है तो फिर वहां मजहबी स्वतंत्रता बाधित होता है, ऐसा माना जा सकता है।

वैसे अमेरिका का इतिहास मजहबी स्वतंत्रता के बारे में हमेशा दोहरा आचरण का रहा है। अमेरिका धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में हमेशा पाखंड करता है। वह इस तरह के दिखावा एक निश्चित सीमा तक करता है। ओशो केमामले में अमेरिका ने क्या किया वह किसी से छुपी हुई नहीं है। अमेरिका के इस तरह के रिपोर्ट को बाहरी हस्तक्षेप माना जा सकता है। चीन अमेरिका के इस तरह के रिपोर्टोंविरोध भी करता है और स्वयंभी अमेरिका के काले कारनामे संबंधी रिपोर्ट प्रकाशित करता है। भारत सरकार इसके खिलाफ क्यों प्रतिक्रिया नहीं प्रदानकरती तथा नपुंसकतापूर्ण नीति जारी रखती है. यह महत्वपूर्ण प्रश्न है। वैसे इस विषय पर अलग सेचर्चा करने की आवश्यकता है।

अमेरिका द्वारा जारी इस रिपोर्ट में उड़ीसा के नवीन पटनायक सरकार की प्रशंसाकी है कि उन्होंने कंधमाल मामलेमें काफी अच्छा कार्य किया है और ईसाइयों को सभी प्रकार की सुविधाएंप्रदान की। इस रिपोर्ट के विभिन्न समाचार माध्यमों में प्रकाशित होने के बाद बीजू जनता दल के नेता फूले नहीं समा रहे हैं। राज्य के राजस्व मंत्री हैं सूर्य नारायण पात्र। जबइस मामले में टीवी चैनलों को साक्षात्कार प्रदान कररहे थे तब उनके चेहरे से प्रसन्नता स्पष्ट झलक रही थी। उन्होंने कहा कि अब उन्हें अमेरिका का सर्टिफिकेट मिल चुका है। अबअमेरिका ने भी कह दिया है कि नवीन पटनायक श्रेष्ठ है। उनकी खुशी से एक चीज और लग रही थीकि वह अमेरिकी सर्टिफिकेट प्राप्त करने के लिए वह बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। लेकिन अब उन्हें प्रमाण पत्र मिल गया है। अब सब कुछ ठीक हो गया है।

शायद नवीन पटनायक सरकार सोच रही थी कि उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे अमेरिका के नाराज होने की आशंका हो। ऐसे में इस सर्टिफिकेट को देने में अमेरिकाइतनी देरी क्यों कर रहा था।

हिमालय से व्यक्तिगत साधना छोड कंधमाल के दुर्गम इलाके में वनवासियों के सामाजिक-आर्थिक- सांस्कृतिक उत्थान के कार्य में गत 4 दशकों से लगे स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की जन्माष्टमी के दिन हत्या कर दी गई थी। स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती का मानना था कि भूखे को भोजन प्रदान कर उसके धर्म छीन लेना धर्म नहीं बल्कि अधर्म है। इसलिए वह चर्च के मतांतरण का विरोध कर रहे थे। उनकी हत्या हुए एक साल से अधिक समय हो चुका है। उड़िसा सरकार ने हत्यारों व मुख्य षडयंत्रकारियों को गिरफ्तार नहीं किया है। ऐसे में नवीन पटनायक सरकार सोच रही थी कि उनकी सरकार ने तो साल से अधिक समय बीत जाने के वावजूद दोषियों को गिरफ्तार नहीं किया है। अगर उनको सरकार गिरफ्तार करती तो शायद अमेरिका नाराज हो जाता और प्रमाण पत्र प्रदान नहीं करता। केवल इतना ही नहीं मतांतरण का विरोध कर रहे वनवासियों को तो उनकी सरकार ने जेल में डाल दिया है। इससे भी अमेरिका को प्रसन्नता होनी चाहिए थी।

कंधमाल में वनवासियों के भोलेपन का फायदा उठा कर चर्च प्रेरित ईसाइयों ने उनकी भूमि पर कब्जा जमा लिया है। उनके जमीनों को वापस दिलाने के लिए सरकार ने कुछ भी नहीं किया है। इसके अलावा कई ईसाई फर्जी जनजाति सर्टिपिकेट बनवा कर जनजातियों के लिए आरक्षित नौकरियां व अन्य सुविधाओं पर कब्जा किया हुआ है। वनवासियों द्वारा इस तरह के लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर अनेक बार ज्ञापन दिया गया है। लेकिन सरकार ने इस मामले में भी किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की है। स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती के हत्यारों को पकडने की बात हो, वनवासियों की जमीनों पर चर्च प्रेरित लोगों के कब्जा को हटाने की बात हो या फिर वनवासियों की नौकरियों को ईसाइयों द्वारा हडपने की बात हो, किसी मुद्दे पर राज्य सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जिससे अमेरिका नाराज हो। तो फिर अमेरिका सर्टिफि केट प्रदान क्यों नहीं कर रहा है। इस प्रश्न पर बीजद के नेताओं का चिंतित होना स्वाभविक था।

सिर्फ इतना ही नहीं राज्य सरकार द्वारा ईसाइयों के लिए खोले गये पुनर्वास केन्द्रों में बम बनाया जा रहा है। इस तरह के तीन मामले पुलिस में दर्ज किये गये हैं। एक मामले में तो बम बनाते समय एक व्यत्तिा की मौत भी हो गई थी। यह बम क्यों बनाया जा रहा था, किसके खिलाफ इस्तमाल करने के लिए बनाया जा रहा था और इसके पीछे पूरा षडयंत्र क्या था उसे बेनकाब करने के लिए मांग हो रही थी। लेकिन राज्य सरकार ने ऐसा नहीं किया और मामले को दबा दिया। अगर इस पर कार्रवाई की जाती हो तो ना अमेरिका नाराज होता, लेकिन सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है।

और एक बात है। उड़ीसा में छल, बल व प्रलोभन से किये जा रहे मतांतरण को रोकने लिए एक कानून है। अमेरिका इस तरह के कानूनों को घृणा की दष्टि से देखता है। अमेरिका का स्पष्ट मानना है कि यदि इस तरह की कानून रहेंगे तो चर्च उसकी ‘ फसल’ कैसे काटेगा , भेड की तरह लोगों को खरीद कर उनके गले में सलीव कैसे लटकाएगा। इसलिए अमेरिका इस तरह के कानूनों का तीव्र विरोध करता है। लेकिन उड़ीसा में इस तरह के कानून तो हैं। इसमें नवीन पटनायक या बीजद के नेताओं का भला क्या दोष है। इसे आसानी से हटाया भी तो नहीं जा सकता। इसलिए नवीन पटनायक सरकार ने इसका एक रास्ता निकाला है। यह रास्ता काफी सरल है। कानून को रहने दीजिए, लेकिन उसे लागू नहीं किया जाएगा। राज्य सरकार ने यही किया। मतांतरण धडल्ले से चल रहा है। सरकार द्वारा कानून का कार्यान्वयन नहीं किया गया। इससे भी अमेरिका को प्रसन्नता होनी चाहिए थी। इतने सब किये जाने के वाबजूद सर्टिफिकेट प्रदान करने में इतनी देरी क्यों हो रही थी।

लेकिन अब अंतत: अमेरिका का सर्टिफिकेट नवीन पटनायक को मिल गया है। इससे बीजद के नेता काफी प्रसन्न हैं। बीजद नेताओं के मनोकामना पूर्ण हो गई है।

वास्तव में देखा जाए तो उपरोक्त मामले ने एक गंभीर षडयंत्र का पर्दाफाश किया है। इस मामले में माओवादी व अमेरिका एक ही पक्ष में खडे दिखाई दे रहे हैं। माओवादी अमेरिका को साम्राज्यवादी बताते हैं और उनके खिलाफ संघर्ष का आह्वान करते हैं। लेकिन स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या के मामले में दोनों एकजुट हैं। माओवादियों व अमेरिका के बीच मतभेद हो सकते हैं लेकिन जब भारतीयता को समाप्त करने की बात आती है तो वे एकजुट हो जाते हैं। .यह केवल उड़ीसा के लिए नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए एक टेस्ट केस है।

वर्तमान में नवीन पटनायक सरकार को अमेरिकी सर्टिफिकेट प्राप्त हो चुका है। अमेरिका ने इसके माध्यम से नवीन पटनायक सरकार को शाबाशी दी है तथा आगामी दिनों में अपना कार्य उसी रुप में निभाने के लिए अप्रत्यक्ष संकेत भी दिये हैं। बीजद भी सर्टिफिकेट प्राप्त कर अपने आप को धन्य मान रहा है। ऐसे में आगामी दिनों में स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती के हत्यारों को पक डे जाने की संभावना कम है। वनवासियों की जमीनें वापस मिलना तथा उनके लिए नौकरियों पर कब्जा जमाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की संभावना भी कम है।

 

इस तरह मतांतरण का मार्ग को प्रशस्त किया गया है। इसके लिए अमेरिका भी सामने आया है। नवीन सरकार ने अपने पूर्व के कदमों से स्पष्ट किया है कि मतांतरण करवाने के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। सेवा के आड में मतांतरण करवा रहे गैर सरकारी संगठनों पर रोक नहीं लगाया जाएगा। वे अपना काम बिना रोक टोक के करेंगें। यदि आवश्यक हुआ तो माओवादी भी अपना कारनामा दिखाऐंगे। मतांतरण व गौहत्याका विरोध करने वालों को धमकी भरे पत्र दिये जाएगें और बाद में उनकी हत्या की जा सकती है।

लेकिन ऐसी स्थिति में कंधमाल के वनवासी असहाय हैं। वे बिचारे क्या करेंगें। उनकी मांग वे किसके सामने रखेंगें। उन्हें अपनी जमीनें कैसे वापस मिलेंगी। उनके लिए आरक्षित नौकरियों व अन्य सुविधाओं पर जिन्होंने कब्जा जमाया हुआ है उसके खिलाफ कार्रवाई कैसे होगी। उनकी ओर से बोलने के लिए कोई ‘अमेरिका ’ नहीं हैं , न उनके लिए कोई ‘माओवादी’ हैं। पूर्व में जब उनके साथ अन्याय होता था ते वे एक संत के पास जाते थे और वह संत उन्हें अन्याय का प्रतिकार करने के लिए साहस प्रदान करता था। लेकिन उस संत स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्याकर दी जा चुकी है। इन भोले भाले वनवासियों को न्याय प्रदान करना जिसके सांवैधानिक दायित्व जिसराज्य सरकारका है वह अमेरिकी सर्टिफिकेटप्राप्त करने के बाद उसको गले में लटका कर घूम रही है और अपने आप को धन्य मान रही है। यही सबसे बडा दुर्भाग्य है।

2 COMMENTS

  1. Excellent article. Keep it up, Samamvay!

    -Ajai Srivastava
    Associate Professor of Journalism
    Himachal Pradesh University
    Shimla

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