नववर्ष का संकल्प गरीबों की सेवा 

डा. राधेश्याम द्विवेदी
ऊर्जा का नवीनीकरण :- 2018 का नया साल आ गया। नववर्ष हम सभी के लिए नई उमंगे, नया उत्साह लेकर आता हैं। हमें एक नया वादा अपने आपसे करना चाहिए कि हम अपने माता-पिता, अध्यापक, मालिक-सेवक,छोटे-बड़े भाई-बहन, दादा-दादी, नाना-नानी, मित्र-पड़ोसी, प्रकृति-पशु-पक्षी एवं अन्य सभी से दोस्ती व सदाशयता बनाए रखेंगे और सभी का सदैव ध्यान भी रखा करेंगे। आज हर किसी के परिवार में जीवन यापन के लिए सुख सुविधाओं की भरमार है लेकिन गरीब और असहायों को पूछने वालों की कमी आ चुकी है। नए साल की शुरुआत के अवसर पर अपनी ऊर्जा का नवीनीकरण करने और कुछ पुरानी इच्छाओं और संकल्पों को पूरा करने का बढ़िया मौका है। स्वास्थ्य, परिवेश में व्यवस्था, कोई नया और सुरुचिपूर्ण काम, आर्थिक नियोजन, और ऐसे ही बहुत से मोर्चों पर लोग कुछ-न-कुछ नया करने का सोच-विचार करते हैं। नया साल जिंदगी को बुहारने-चमकाने का बेहतरीन बहाना है।
सदाचार का पालन :– हम यह प्रण ले कि हम एक साल तक किसी को रिश्वत नहीं देंगे। हमारे द्वारा ट्रैफिक के नियमों का ठीक से पालन करने पर जीवन में बदलाव आ सकता है। अगर हम न घूस लेते हैं और न ही किसी को देते हैं, तो हम हर भ्रष्ट राजनेता या सरकार की आंख में आंख डालकर हम कह सकते हैं कि ‘मैं एक व्यक्ति के रूप में आपसे बेहतर हूं।’ हम दूसरे समुदायों के लोगों के बारे में अभद्र बातें नहीं करेंगे। हम गरीबों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करेंगे जैसे कि उनका कोई अस्तित्व ही न हो । हम यथासंभव उनकी मदद करने की कोशिश करेंगे। हमें अपने घर की खिड़की पर चिडियों के लिए दाना-पानी रखना चाहिए। अपने पड़ोस में मौजूद हर पेड़ को बचाने के लिए संघर्ष करना चाहिए। हम यह प्रण ले सकते कि हम सीढियों पर या लिफ्ट में पान चबाकर नहीं थूकेंगे या भीड भरी ट्रेनों या बसों में महिलाओं के साथ छेडखानी नहीं होने देंगे।
उद्देश्य :- संसार में जितने भी उत्सव, पर्व और शुभ दिन हैं, उन सबका मूल उद्देश्य हमारी जड़ता को तोड़कर उसे गतिशील बनाना होता है। ये पल हमारी एकरसता को भंग करके उनमें एक नया रंग भरते हैं, ताकि हमारी आंतरिक ऊर्जा अपने पूरे जोशोखरोश के साथ अपने काम में लग सके। आज हमारे लिए उत्सव अंधविश्वासों का पालन करने तथा त्यौहार खाने-पीने और खरीददारी करने तक सीमित रह गये हैं। नया साल भी लगभग इसी में शामिल हो गया है। शुभकामनाएँ देने और खा-पीकर, मौज-मस्ती करने तक सीमित हो गया है । यदि इस मौज-मस्ती से अपने में नई ऊर्जा का संचार नहीं होता, तो हमको समझ लेना चाहिए कि हमारे लिए नया वर्ष मनाना व्यर्थ है।
नए का अर्थ :- नए का अर्थ सब कुछ नया है। जिस प्रकार साँप अपनी केंचुली छोड़कर एक नया आवरण धारण करता है, बिल्कुल उसी तरह नये साल में हमें भी अपनी जड़-मानसिकता को छोड़कर नई मानसिकता अपनानी चाहिए। हमारे यहाँ होली के त्यौहार की तरह नए वर्ष को बड़े अच्छे ढंग से व्यक्त करना चाहिए। होलिका दहन में लोग अपने घर का कूड़ा-कचरा डाल देते हैं। जो कुछ भी पुराना और जो व्यर्थ हो चुका होता, उसको जलाकर नष्ट किया जा सकता है, ताकि नए के लिए जगह निकल सके। नए वर्ष को इसी रूप में लेंना चाहिए। जीवन किसी किराये के घर जैसा है। हम यहाँ स्थाई रूप से नहीं रह सकते। एक न एक दिन हमें यहाँ से निकाल दिया जायेगा। यदि हम किराये के घर में रहते हुए, कहीं अपना घर बनाने लगें,उससे भी बड़ा, उससे भी सुन्दर तो फिर किराये के घर को छोड़ते समय हमारे मन में कोई कष्ट नहीं होगा। बल्कि हम खुश होंगे। किन्तु यदि हमने अपना स्थाई निवास नहीं बनाया तो हम चिन्ता में पड़ जायेंगे कि अब मैं कहाँ जाऊँगा? ठीक इसी प्रकार, हमें भी किराये के घर अर्थात् इस देह को छोड़ कर अपने सच्चे घर, अपनी आत्मा की ओर प्रस्थान करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। इस जगत के साथ बनाई हुई हर आसक्ति हमारे मनोबल को थोड़ा कम कर देती है। शुरू-शुरू में भले ही हमें लगे कि यह तो छोटा-मोटा सम्बन्ध है, इसमें कोई ड़र नहीं है। ज्यों-ज्यों यह राग बढ़ता है, हम स्वयं को इसका दास बनता महसूस करते हैं। परमात्मा से सम्बन्ध कुछ और तरह का होता है। परमात्मा में विश्वास होने से प्रेम व करुणा जैसे गुणों में वृद्धि होती है। हम मधुर वचन बोलने लगते हैं तथा सत्कर्म करने लग जाते हैं। परमात्मा या गुरु से अनुराग हो तो इस जगत की पराधीनता कम हो जाती है और हम स्वावलम्बी बन जाते हैं।
नव-वर्ष को पावन दिवस जैसा मनाएं :- पुराने जमाने में, नव-वर्ष को पावन दिवस माना जाता था। लोग मंदिरों,मस्जिदों, चर्चों व गुरुद्वारों में जा कर, अपने कल्याण हेतु प्रार्थना-सभा आदि में भाग लेते थे और सत्कर्म करने के लिए शक्ति-याचना करते थे। अनाथालय व बृद्धाश्रम में जाकर दरिद्र-नारायण के मुख में भोजन के दो-चार ग्रास खिलाते तथा अन्य दान-धर्म करने के लिए इस शुभ दिन चयन करते थे। आज इस दिन की पवित्रता लुप्त हो गई है और शराब पी कर, नाचने-गाने का अवसर होकर रह गया है। जब लोग इसका सही अर्थ भूल कर, खोखला उत्सव मनाते हैं तो वो छिलके खाकर फल को फेंक देने जैसी बात करते हैं। जो संस्कार हमें मनुष्य बनाते हैं उन्हें हमें भुलाना नहीं चाहिए। हमारे मन में नयेपन और आशा की भावना का निर्माण होता है। यदि हम निरंतर अपने तथा जगत के कल्याण-कार्यों में लगे रहते हैं तो हमें नयेपन, जोश और उत्साह का प्रतिक्षण अनुभव होता है। इसलिए हमें चाहिए कि हम वर्तमान का सदुपयोग करें और आज का काम कल पर न टालकर पूरी तरह से सद्कर्म करने में लग जाएँ। जगत को प्रेम तथा आनन्द सहित देखने का प्रयत्न करें।
हर्षोल्लास का पर्व :– नव-वर्ष का आगमन सदा हर्षोल्लास का अवसर होता है, जो हम सबके दिलों में आशा तथा उत्साह का संचार करता है। परमात्मा से प्रार्थना है कि नए वर्ष में समस्त विश्व के लोगों में भरपूर शान्ति, सद्भाव व समृद्धि बनी रहे। पिछले वर्ष में बहुत सी दुखद घटनाएँ घटित हुईं। सौकड़ो लोग आतंकवादियों की गोलियों के शिकार हुए। इन दुःखद घटनाओं के बाद सम्भलना और इतने दुःख में खुश रहना आसान नहीं होता। उदास रहना भी तो कोई समाधान नहीं है। आशा का दामन छोड़ देने पर तो हम किसी परकटे पंछी जैसे हो जायेंगे। जिस प्रकार एसा पंछी उड़ान नहीं भर पाता, ठीक उसी प्रकार हम भी जीवन के आकाश में ऊँचे नहीं उड़ पाएंगे। हमें अपने मनोबल को टूटने नहीं देना चाहिए। लक्ष्य के प्रति हमारे मन में प्रेम होगा तो आगे बढ़ते रहने तथा लक्ष्य की प्राप्ति की प्रेरणा मिलेगी। पीड़ा में हम कमजोर नहीं पड़ेंगे और मिठास बनी रहेगी। बच्चे के साथ प्यार और उसे बाँहों में लेने की भावना ही है, जो एक माँ को प्रसव-काल तक बच्चे का बोझ उठाये रखने और प्रसव की भारी पीड़ा सहने की शक्ति प्रदान करती है। लक्ष्य के प्रति हमारा प्रेम ही, हमें सब विघ्न-बाधाओं का सामना करने की शक्ति प्रदान करता है। नया वर्ष याद दिलाता है कि इस दुनियाँ में हमने एक साल और गंवा दिया और अब मेल-मिलाप में एक साल और कम हो गया है। मृत्यु तो अवश्यम्भावी है एक न एक दिन जरूर आएगी । यदि हमने आध्यात्मिकता को भली प्रकार से जाना है तो हमें जरा भी डर महसूस नहीं होगा। हम हर चीज को सही-सही देख सकेंगे।
जीवन के लक्ष्य:- किसी पौधे का जीवन तब परिपूर्ण होता है जब वह अंकुरित होता है, फूलता-फलता है। जब एसा होता है तो इसकी सुन्दरता का लाभ सारे विश्व को होता है। सच तो यह है कि जब यह मुरझाता भी है, तब भी मिट्टी और आगामी पीढ़ियों को पोषण देता है। हम प्रार्थना करें कि हमारे जीवन से भी यूं ही सब लाभान्वित हों। यदि हम सार्थक जीवन जीना चाहते हैं तो इन छ: चीजों का ध्यान रखना चाहिए –
1. दूसरों की सहायता का अवसर न गंवाएं :- दूसरों की सहायता करने से केवल उन्हीं के दिलों को नहीं, हमें भी खुशी मिलती है। उदाहरण के लिए, यदि हम किसी अनाथ बच्चे को खाना खिलाएं तो बच्चे की भूख तो शांत होगी ही, हम उसके चेहरे पर प्रसन्नता के दर्शन भी कर सकेंगे। उस बच्चे की प्रसन्नता को देख कर, हमें बहुत संतोष होगा।
2. कठोर शब्दों से परहेज :- नए वर्ष में हम किसी के साथ कठोर शब्दों का प्रयोग न करें। किसी की निन्दा न करें। सब से प्रेम मोहब्बत से पेश आएं। कठोर शब्दों से हमारे मन तथा दूसरों की शान्ति भंग होती है।
3. साधना जारी रखें :- मन्त्र-जप तथा ध्यानाभ्यास जैसी अपनी साधनाओं को एक दिन के लिए भी न छोड़े। इसे निरन्तर जारी रखें। इन दैनिक साधनाओं द्वारा अन्तःकरण में रोजाना जमने वाले मल की शुद्धि होती है और उत्साह एवं शान्ति प्राप्त होते हैं।
4. सत्संग में भाग लें :- थोड़ी देर ही सही, किन्तु प्रतिदिन सत्संग करने का प्रयास करें। शास्त्रों का अध्ययन तथा महात्माओं का सान्निध्य आदर्श सत्संग हैं। ऊल-जलूल सांसारिक बातों में हम समय बर्बाद कर देते हैं। उसी समय का सदुपयोग, हम प्रेरणादायक पुस्तकें पढ़ने में करें।
5. अन्तःरण की शुद्धि करते रहें :- गुरु या परमात्मा से प्रतिदिन अन्तःकरण की शुद्धि तथा सत्कर्म करने हेतु शक्ति के लिए हार्दिक प्रार्थना करें। साधना में प्रगति चाहिए तो विनम्रता व भक्तिभाव बहुत आवश्यक हैं। हमें विनम्र बनने का व्रत ले लेना चाहिए क्योंकि विनम्रता होगी तो हम सहज ही कृपा के पात्र बन जायेंगे।
6. सदा मुस्कुराते रहें :- परमात्मा ने हम सबको चेहरा प्रदान किया है। अब उसके माध्यम से प्रेम या क्रोध अभिव्यक्त होता है , वह हम पर निर्भर करता है। यदि हम सदा मुस्कुराते रहेंगे तो बाकी लोग भी हमारे साथ मुस्कुरा उठेंगे। हमारे अंदर यदि प्रेम व शान्ति होगी तो दूसरों में भी यही भाव जागृत होंगे। फिर सारा वातावरण ही आनन्द से भर जायेगा। इस प्रकार, इस नए वर्ष में हम अपने परिवार, अपने देश और विश्व के फलने-फूलने में प्रेमपूर्वक अपना सहयोग दे सकेंगे। इसी प्रार्थना के साथ हम नए वर्ष में प्रवेश करें।

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  1. डॉ. राधेश्याम द्विवेदी जी द्वारा प्रवक्ता.कॉम पर प्रस्तुत नए अथवा पुराने लेखों को कभी कभी फिर से पढ़ने का आनंद तो लेता ही रहता हूँ लेकिन अच्छे आचरण का दैनिक अनुसरण कर पाने में न केवल नव वर्ष के दिन बल्कि जब कभी कोई चाहे “नववर्ष का संकल्प गरीबों की सेवा” को दिग्दर्शन पुस्तक की भांति पढ़ अपनी दिनचर्या में अनुशासन का लाभ उठा सकता है|

    बचपन में एक गीत सुना था, “बड़े प्यार से मिलना सब को दुनिया में इंसान रे, न जाने किस वेश में बाबा मिल जाएं भगवान् रे” और न जाने क्यों मैं सदैव परिचित, अपरिचित छोटे बड़ों को आप कह संबोधित करते आया हूँ| विशेष बात तो यह है कि मनुष्य के अस्तित्व का सम्मान होना चाहिए| मेरा महत्वपूर्ण दृष्टिकोण स्वयं अपने लिए विश्वास और प्रेम हैं और इस कारण मैं दूसरों के विश्वास और प्रेम का आदर करता हूँ| सहानुभूति दूसरों के साथ मिल कर होती है लेकिन परानुभूति हमारे चरित्र का वह अंग है जो हमारे आचरण में ओरों के प्रति उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने में सुख शांति मिलती है| अति सुन्दर लेख के लिए डॉ. राधेश्याम द्विवेदी जी को मेरा धन्यवाद!

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