देश में वर्षों से विवाद में रहे राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का मामला आपसी सहमति से सुलझने की उम्मीदें एक बार फिर बढ़ गई हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस विवाद से जुड़े सभी पक्षों को कहा कि ये मामला धर्म और आस्था से जुड़ा हुआ है और बेहतर होगा कि दोनों पक्ष बैठ कर आपसी सहमति से ये मामला सुलझा लें। जरूरत पड़ने पर मध्यस्थता से कोर्ट ने इनकार नहीं किया है।
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत ने बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि ये मुद्दा बेहद संवेदनशील है साथ ही धर्म और आस्था से जुड़ा हुआ है। ऐसे में इस मुद्दे का हल अगर कोर्ट से बाहर मिल-बैठकर आपसी सहमति से निकाला जाए तो ठीक रहेगा। अदालत ने कहा कि अगर ज़रूरत पड़ी तो कोर्ट इसमें मध्यस्थता के लिए तैयार है।

अदालत की इस टिप्पणी पर सरकार और बीजेपी की मिली-जुली प्रतिक्रिया आई है। जबकि आरएसएस ने कहा है कि अंतिम फैसला धर्मसंसद करेगी।

वहीं दूसरे पक्ष यानि बाबरी मस्जिद समिति के संयोजक जफरयाब जिलानी ने अदालत के बाहर किसी तरह के हल से इंकार किया है। मुस्लिम धर्मगुरुओं ने भी सर्वोच्च अदालत पर अपनी आस्था जताई है।

दरअसल अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का विवाद दशकों पुराना है। हिंदुओं की मान्यता के अनुसार अयोध्या की विवादित जमीन भगवान राम की जन्मभूमि है और बाबर के कार्यकाल में यहां पर मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई, जबकि मुसलमानों के मुताबिक इस विवादित स्थल पर बाबरी मस्जिद भी मौजूद है।

अगर इस स्थल के इतिहास पर नज़र डालें तो 1949 में भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। दोनों पक्षों ने अदालत में मुकदमा दायर किया, जिसके बाद यहां ताला लगा दिया गया।

1984 में विश्व हिंदू परिषद ने इस जगह पर मंदिर बनाने के लिए हिंदुओं का एक अभियान शुरू किया। वर्ष 1989 में निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और कई दूसरे याचिचाकर्ताओं की याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि विवादित स्थल के मुख्य द्वारों को खोल देना चाहिए और इस जगह को हमेशा के लिए हिंदुओं को दे देना चाहिए।

सरकार ने जब कोर्ट के आदेश की तामील की तो हिन्दू-मुस्लिम तनाव बढ़ने लगा। सालों तनातनी के बीच 6 दिसंबर, 1992 में विवादित मस्जिद को भीड़ ने तोड़ दिया, पूरे देश में दंगे फैले, जिसमें करीब 2,000 लोग मारे गए। जांच के लिए लिब्राहन आयोग का गठन किया गया।

2003 में उच्च न्यायालय के आदेश पर भारतीय पुरातत्व विभाग ने विवादित स्थल पर 12 मार्च, 2003 से 7 अगस्त, 2003 तक खुदाई की, जिसमें प्राचीन मंदिर के प्रमाण मिले।
जून 2009 में लिब्राहन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें बाबरी मस्जिद विध्वंश के कारणों को उजागर किया गया था।

सितंबर 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि अयोध्या की विवादित जगह को तीन हिस्सों में बांटा जाए। जिसमें मुस्लिम संगठन को एक तिहाई हिस्सा, हिंदू संगठन को दूसरा हिस्सा, जबकि निर्मोही अखाड़े को तीसरा हिस्सा दिया जाए। मुख्य स्थल जहां बाबरी मस्जिद थी, उसे हिंदू संगठन को दिया गया था, जिसे मुस्लिम संगठनों ने चुनौती दी।

मई 2011 में हिंदू और मुस्लिम संगठनों के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।

तब से ये मसला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। चूंकि केंद्र और राज्य में बीजेपी की सरकार है और अगर 2014 के लोकसभा चुनाव और हाल ही में राज्य में चुनाव जीती बीजेपी के मैनीफेस्टो की बात करें, तो इसमें संविधान की सीमा के अंदर राम मंदिर बनाने के लिए सभी कोशिशें करने की बात कही गई है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी इस मसले पर हिंदू और मुस्लिम संगठनों के बीच अदालत के बाहर मध्यस्थता करने की कोशिश की थी, लेकिन दोनों ही पक्षों ने मध्यस्थता से इंकार कर दिया था। दरअसल भारतीय जनता पार्टी का मत रहा है कि मध्यस्थता और अदालत के बीच से ही मंदिर बनाने का रास्ता निकल सकता है।