जम्मू एवं कश्मीर में पीडीपी के नेताओं ने कहा है कि पीडीपी और भाजपा के बीच अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है, लेकिन जैसा प्रतीत होता है उसके मुताबिक अब इसमें थोड़ा ही संदेह रह गया है कि दोनों पार्टियों का गठबंधन अंतिम सांस नहीं गिन रहा है।

पिछले दिनों पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बीच हुई कथित गुप्त वार्ता से महबूबा की प्रधानमंत्री से मुलाकात का मार्ग प्रशस्त नहीं हुआ, जो केसरिया ब्रिगेड के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के स्पष्ट संकेतों को जाहिर करता है।

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और जम्मू-कश्मीर के प्रभारी राम माधव ने कहा कि जम्मू एवं कश्मीर में सरकार पूर्व शर्तो पर आधारित नहीं हो सकती है। विश्वास शर्तो पर आधारित नहीं होता है।

राम माधव ने नई दिल्ली में कहा कि हकीकत यह है कि मुफ्ती साहब के निधन के बाद भी पीडीपी ने अभी तक किसी को औपचारिक तौर पर मुख्यमंत्री पद के लिए नामित नहीं किया है। हालांकि यह कश्मीर से नई दिल्ली तक हर कोई जानता है कि नामित व्यक्ति कौन है।

माधव ने कहा कि मुख्यमंत्री पद के लिए नामित होने के बाद महबूबा अपनी मांगें रख सकती हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री केंद्र के समक्ष अमूमन अपनी मांगें रखते ही हैं।

उन्होंने कहा कि महबूबा को विनम्रता के साथ यह स्पष्ट संकेत दे दिया गया है कि या तो वे ‘हमारी शर्तो’ पर शपथ ग्रहण करें, अन्यथा भूल जाएं।

ज्यों ही राममाधव का यह बयान जारी हुया, पीडीपी के संस्थापक सदस्य और वरिष्ठ नेता मुजफ्फर हुसैन बेग, जो पीडीपी-भाजपा गठबंधन के पक्ष में हैं, ने पार्टी का बचाव करते हुए संवाददाताओं से कहा कि संवाद में गड़बड़ी हुई है। हमने कोई नई शर्त नहीं रखी है, बल्कि पूर्व निर्धारित शर्तो पर ही समय सीमा की बात कही है।

उधर, पीडीपी के प्रवक्ता नीम अख्तर ने कहा कि गतिरोध का तात्पर्य यह नहीं है कि वार्ता खत्म हो गई। यह हमारे लिए झटका है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वार्ता का अंत हो गया है।

महबूबा शनिवार को पहली उड़ान से श्रीनगर पहुंच गईं। प्रधानमंत्री मोदी से उनकी मुलाकात नहीं हो सकी और इसी बीच राम माधव की यह टिप्पणी सामने आ गई।

वहीं, भाजपा-पीडीपी के बीच गतिरोध का उपहास उड़ाते हुए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ऊमर अब्दुल्ला ने ट्वीट कर कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि वह स्वयं नहीं जानतीं कि केंद्र से उन्हें क्या चाहिए? उनकी मांगें भी अस्पष्ट हैं। यदि वह गठबंधन के पूर्व निर्धारित एजेंडे पर आगे बढ़ना चाहती थीं तो इसे छह साल में लागू किया जाना था। फिर इसमें समय सीमा को लेकर क्या समस्या है?

उमर ने आगे कहा कि देखिये, अब किस प्रकार महबूबा कहेंगी कि उनकी पार्टी ने कुछ नया नहीं मांगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू एवं कश्मीर को नीचा दिखाया।

Join the Conversation

1 Comment

Leave a Reply to Himwant Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  1. राजनीति में १ और १ मिल कर दो हो सकते है, ११ भी और सुन्य भी.