नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई निदेशक आलोक कुमार वर्मा की याचिका पर बृहस्पतिवार को सुनवाई शुरू कर दी। इस याचिका में वर्मा ने जांच एजेन्सी के निदेशक के रूप में उनके अधिकार छीनने और उन्हें अवकाश पर भेजने के सरकार के फैसले को चुनौती दी है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसफ की पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन वर्मा की ओर से दलीलें पेश कर रहे हैं।

बहस शुरू करते हुये नरीमन ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 19 सर्वोपरी है, ऐसी स्थिति में अदालत याचिका की सामग्री के प्रकाशन पर रोक नहीं लगा सकती है। इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘‘ अगर मैं कल रजिस्ट्री में कुछ पेश करता हूं तो इसका प्रकाशन किया जा सकता है।’’ इस संबंध में उन्होंने इसी मुद्दे पर शीर्ष अदालत के 2012 के फैसले का भी हवाला दिया।

अधिकारों से वंचित करके अवकाश पर भेजे गये केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक आलोक कुमार वर्मा ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय में दलील दी कि उनकी नियुक्ति दो साल के लिये की गयी थी और इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता। यहां तक कि उनका तबादला भी नहीं किया जा सकता।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ के समक्ष वर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरीमन ने कहा कि उनकी नियुक्ति एक फरवरी, 2017 को हुयी थी और ‘‘कानून के अनुसार दो साल का निश्चित कार्यकाल होगा और इस भद्रपुरूष का तबादला तक नहीं किया जा सकता।’’