एक समय था जब लोगों का सपना नौ से पांच की बढ़िया नौकरी हो तो जिंदगी की गुजर-बसर आराम से हो जाए। लेकिन समय बदला, नौकरी की इच्छा करने वालों का रुझान बदला और बाजार बदला जिसके चलते नौ से पांच की यह स्वप्न नौकरी करने का अंदाज भी बदल गया।
फलस्वरुप अब लोग और कंपनियों दोनों ने ही काम करने-करवाने के नए तरीके इजाद कर लिये हैं। इनमें पार्ट-टाइम, फ्रीलांस, संविदा पर, अस्थायी तौर पर और स्वतंत्र संविदा पर काम करने की ओर रुझान बढ़ रहा है। शोध संस्थान मैनपावर ग्रुप के एक अध्ययन ‘नेक्स्ट जेन वर्क’ में यह बात सामने आई है।
रपट में कहा गया है कि भारत और मेक्सिको जैसे उभरते बाजारों में फ्रीलांस, संविदा और अस्थायी कर्मचारी के तौर पर काम करने को लेकर स्वीकार्यता बढ़ी है और करीब 97% कार्यबल इसी प्रकार कार्य करता है। यह अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे परिपक्व बाजारों की तुलना में कहीं अधिक है।
हालांकि रपट में जर्मनी, नीदरलैंड और जापान को नयी पीढ़ी की कामकाजी तरीकों (नेक्सट जेन वर्क) का सबसे प्रतिरोधी देश बताया गया है।
इस वैश्विक अध्ययन में 12 देशों के 9,500 लोग शामिल हुए। इनके अनुसार नयी पीढ़ी नौ से पांच की नौकरी के मुकाबले संतुलित और लचीलेपन वाली नौकरी को ज्यादा पसंद करती है।
भारत में इस सर्वेक्षण के लिए 785 लोगों के नमूने का उपयोग किया गया। इसमें 85% से ज्यादा लोगों ने नयी पीढ़ी के कामकाजी तरीकों को अपनी पसंद बताया।
मैनपावर ग्रुप के चेयरमैन एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी जोनास प्राइसिंग ने कहा कि पिछले 10 से 15 सालों में नौकरी के अवसरों में वृद्धि भी गैर-पारंपरिक तरीके के रोजगारों में हुई है।
( Source – PTI )