नई दिल्ली, 23 फरवरी। ”एक सुंदर समाज की रचना करने में मीडिया प्रारंभ से ही लगा हुआ है। मीडिया के कारण ही मानव अधिकारों के बहुत सारे संवेदनशील मामले सामने आए हैं। मानवाधिकारों की रक्षा करना पत्रकारिता की प्रतिबद्धता है।” यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में व्यक्त किए। इस आयोजन में देशभर के अनेक विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया।

प्रो. द्विवेदी ने कहा कि मानवाधिकार सभी के लिए समान हैं, लेकिन इसका वास्तविक लाभ उसे ही मिल पता है, जिसके पास पर्याप्त जानकारी अथवा संसाधन उपलब्ध हैं।

प्रो. द्विवेदी के अनुसार मीडिया ने यह साबित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है कि एक प्रजातांत्रिक देश में पद और सत्ता के आधार पर इंसानों में भेद नही किया जा सकता। सभी मनुष्य समान हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया ने वर्तमान संदर्भ में एक नई संस्कृति को विकसित करने की कोशिश की है, जिसे हम सशक्तिकरण की संस्कृति भी कह सकते हैं।

प्रो. द्विवेदी ने कहा कि भारत में मीडिया की भूमिका हमेशा सकारात्मक रही है। मानव अधिकारों को लेकर मीडियाकर्मी ज्यादा संवेदनशील हैं। मानवाधिकारों से जुड़े कई प्रमुख विषयों को मीडिया लगातार उजागर कर रहा है, जिसके कारण समाज में जागरुकता पैदा होती है।

आईआईएमसी के महानिदेशक के अनुसार मानवाधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मीडिया को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ती है। प्रो. द्विवेदी ने तथ्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि दुनिया भर में 1990 से लेकर आज तक मानवाधिकारों की रक्षा के अपने प्रयासों के दौरान लगभग 2500 से ज्यादा पत्रकार अपनी जान गंवा चुके हैं। वर्ष 1992 से 2018 के बीच 58 पत्रकार लापता हुए हैं। लेकिन इन सबके बावजूद पत्रकार न केवल मानवाधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, बल्कि उनके संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभा रहे हैं।

कार्यक्रम के अंत में प्रो. द्विवेदी ने विद्यार्थियों के प्रश्नों का उत्तर भी दिया।

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