डॉ. देवेंद्र दीपक के साहित्य सूक्तियों की भरमार है। इन सूक्तियों में जीवन-दर्शन छिपा हुआ है। इन पर बड़े स्तर पर शोध होना चाहिए। उनकी रचना या लेखन में सांस्कृतिक और सामाजिक उन्मेष के साथ सामाजिक समरसता है। ये बातें बिहार लोकसेवा आयोग के सदस्य और महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो. (डॉ.) अरुण कुमार भगत ने कहीं। उन्होंने कहा कि समाज को ‘पानी से नहाया हुआ व्यक्ति स्वच्छ होता है और पसीने से नहाया व्यक्ति शुद्ध होता है’ और ‘अपनी कलम से खाई नहीं कुआं खोदो, ताकि लोगों की प्यास बुझे’ जैसे विचार देने वाले डॉ. दीपक निश्चित ही काव्य पुरुष हैं। उक्त वक्तव्य उन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा वरिष्ठ साहित्यकार, राष्ट्र-चिंतक एवं काव्य-पुरुष डॉ. देवेन्द्र दीपक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आयोजित राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में कहीं।

देवेंद्र दीपक के साहित्य में जीवन दर्शन की भरमार : प्रो. अरुण कुमार भगत

प्रो. भगत ने कहा कि आपातकाल के दौरान शासकीय सेवा की दहशत की सींखचों में घिरे होने के बावजूद कलम की धार कम नहीं होने दी। उन्होंने अपनी रचना के आईने में लोकतंत्र के दमन को उकेरा। आपातकाल पर लिखने वालों में वे अग्रणी रहे। इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने कहा कि देवेन्द्र दीपक जी का रचना संसार वैदिक संस्कृति और इतिहास का प्रतिनिधित्व करता है। यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है। इसलिए हमारा दायित्व है कि उसे सामने लायें। यह कार्योत्सव एक साहित्योत्सव है।

इससे पहले स्वागत-वक्तव्य देते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य-सचिव एवं वरिष्ठ शिक्षाविद् प्रो. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि यह बहुत सौभाग्य की बात है कि 90वीं जयंती मनाने का सौभाग्य मिल रहा है। उन्होंने अपनी रचनात्मकता से प्रभावित किया है। धारा के विपरीत हमेशा खड़े रहे हैं। वे मेरे जैसे छोटे और नौजवान को भी बिठाकर सीखते थे। कार्यक्रम के वक्ता और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने कहा कि डॉ. दीपक एक ऐसे वृक्ष हैं जिनकी काव्य, गद्य, शासकीय और शिक्षकीय गुण शाखाएं हैं। उनके शिक्षकीय गुण का जितना बखान किया जाए कम है। उन्होंने अपनी रचना ‘मास्टर धर्मदास’ के जरिए एक शिक्षक की पीड़ा और छात्र के प्रति उसके स्नेह को बताया है। उन्होंने कहा कि डॉ. दीपक वर्तमान और आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा के सागर हैं।

मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के पूर्व निदेशक प्रो. नंदकिशोर पांडेय ने कहा कि समकालीन कवियों में देवेन्द्र दीपक शामिल हैं। जिन विषयों पर कवि माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा, रतौना में बूचडखाना खुलने के ख़िलाफ़ लगातार लिखा, उसी मध्यप्रदेश की धरती से देवेन्द्र दीपक ने ‘गौ उवाच’ लिखा। उन्होंने गद्य और पद्य लेखन को एक भारतीयता दृष्टि दी है।

हिंदुस्तानी एकेडमी, प्रयागराज के अध्यक्ष प्रो. उदय प्रताप सिंह ने बतौर मुख्य वक्ता कहा कि यदि रचना रचनाकार में परिवर्तन लाती है तो वह सही मायने में रचना है। सरकारी नौकरी करते हुए उन्होंने आदिवासियों की आवाज को पद्य के जरिये सामने रखा है। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेश के कुलाधिपति डॉ. प्रकाश सी. बरतूनिया ने कहा कि उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं देखा। उन्होंने सद्भावना के लिए काफी काम किया है। उन्होंने अस्पृश्यता पर काफी लिखा है। उन्होंने अपनी रचना के माध्यम से समाज के हासिये पर रह रहे लोगों में आत्मविश्वास को बढ़ावा दिया है। इस सत्र का संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ. सारिका कालरा ने किया।

संगोष्ठी का दूसरा सत्र डॉ. देवेन्द्र दीपक के गद्य-साहित्य पर केंद्रित रहा। इस सत्र में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश के निदेशक डॉ. विकास दवे ने बतौर विशिष्ट वक्ता कहा कि जो देवेन्द्र दीपक जी ने कहा, वह किया। उन्होंने बाल विमर्श करते हुए परिवार विमर्श भी किया। उन्होंने सिंहासन को हमेशा चुनौती देने का कार्य किया है। इस मौके पर मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी-विभाग के डॉ. मृगेंद्र राय ने कहा कि उनके साहित्य का अध्ययन करते हुए मैंने महसूस किया कि उन्होंने खुद को तपाया है। वहीँ डॉ. बिनय षडंगी राजाराम ने कहा कि डॉ. देवेन्द्र दीपक का साहित्य सांस्कृतिक व पौराणिक लेखन में पाठकों को बाँध कर रखने की क्षमता है। द्वितीय सत्र के अद्यक्षता प्रो. कुमुद शर्मा ने की। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि देवेन्द्र दीपक जी अपनी आस्थाओं, मूल्यों और संस्कृति के प्रति बहुत ही प्रतिबद्ध रहे हैं जो उनकी साहित्य यात्रा में परिलक्षित होता है। इस सत्र का सञ्चालन संजीव सिन्हा ने किया।

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