संसार में करोड़ों लोग जन्म लेते हैं और नियति के शाश्वत नियम के मुताबिक अनंत में विलीन हो जाते हैं लेकिन उनमें से कुछ ऐसे भाग्यवान लोग होते हैं, जो परलोकगमन के बाद भी अपने व्यक्तित्व, कृतित्व और निष्ठा की छाप छोड़कर सदा के लिए अमर हो जाते हैं। ऐसे ही थे   राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक गौऋषि की  उपाधि से विभूषित संघ के अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख रहे ओमप्रकाश जी। ओमप्रकाश जी का जाना संघ परिवार ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र की अपूर्णीय क्षति है। उनका पूरा जीवन समाज को समर्पित रहा। उन्होंने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण मातृभूमि के हित में लगाया और अंत में महर्षि दधीचि की परम्परा का निरवाह करते हुए देहदान कर अमर हो गये। वह समर्पण और ध्येय निष्ठा के जीवंत प्रतीक थे। उत्तर प्रदेश में संघ कार्य को सर्वव्यापी बनाने में उनकी महती भूमिका थी। प्रचारक रहते हुए हजारों कार्यकर्ता ओं को संघ कार्य में लगाने और सैकड़ो प्रचारकों को गढने का काम किया। मथुरा में पढाई के दौरान संघ से जुड़े तो जीवन पर्यन्त जुड़े ही रहे। राष्ट्र को परमवैभव के शिखर पर ले जाने के उद्देश्य से संघ कार्य के लिए एक बार घर छोड़ा तो वापस ही नहीं लौटे। आज उत्तर में संघ कार्य का जो विराट रूप दिख रहा है उसके पीछे ओमप्रकाश जी जैसे तपस्वी प्रचारकों की ही मेहनत का परिणाम है। साथ ही वह बडे ही पारखी वयक्ति थे। भविष्य के कार्यकर्ताओं और प्रचारकों को पहचानने की उनमें अदभुत क्षमता थी। पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान मे राज्य पाल कल्याण सिंह जैसे संघर्षशील कार्य कर्ता की पहचान कर उन्होंने संघ से जोडा। उन्होंने कल्याण सिंह को पहले मित्र स्वयं सेवक और फिर कार्य करता बनाया। उन्हें संघ का वर्ग कराने के बाद तहसील कार्यवाह बनाया। ओमप्रकाश जी के बारे में संघ के चौथे सरसंघचालक रज्जू भैया उदाहरण देते थे कि कल्याण सिंह को संघ के वर्ग में ले जाने के लिए ओमप्रकाश जी तीन दिन लगातार कल्याण सिंह हल चलाते व ओमप्रकाश उनके हल के पीछे पीछे चलते रहे।  आगे चलकर कल्याण सिंह ने राजनीति में कीर्तिमान स्थापित किया। ओमप्रकाश का जन्म हरियाणा के पलवल जिले में सन् 1927 ई. में हुआ। आपकी शिक्षा दीक्षा मथुरा में हुई। सन् 1947 ई. में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने। आप अतरौली (अलीगढ़) के तहसील प्रचारक रहे। तत्पश्चात 1957 से 67 तक बिजनौर के जिला प्रचारक रहे फिर बरेली के जिला प्रचारक होकर मुरादाबाद एवं कुमाऊं विभाग प्रचारक 1978 तक रहे। 1978 से पश्चिम उत्तर प्रदेश के प्रांत प्रचारक रहे। तब उत्तर प्रदेश में केवल दो ही प्रान्त थे। तदुपरांत उत्तर प्रदेश के क्षेत्र प्रचारक और फिर संयुक्त क्षेत्र प्रचारक रहे। आप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सहसेवा प्रमुख भी रहे। आपने क्षेत्र प्रचारक रहते लखनऊ में विश्व संवाद केंद्र भवन, पीजीआई के निकट माधव सेवा आश्रम एवं मथुरा में पं. दीनदयाल धाम का निर्माण कराया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन राव भागवत ने अपने शोक संदेश में कहा कि ओमप्रकाश जी का जाना हम लोगों के लिए मन में वेदना की टीस उत्पन्न करने वाली घटना है। 1980 से समय समय पर उनका सानिध्य मुझे मिलता रहा। उनकी सरलता व करूणा शत्रु को निरवाह बनाने वाली स्वभाव की वृत्ति किसी के मन को प्रभावित किये बिना नहीं रहती थी।  गो संवर्धन और गौ पालन गतिविधि के स्वरुप की बुनियाद जिस अथक परिश्रम और लगन के साथ उनके द्वारा रची गयी उसका कोई सानी नहीं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने शोक संदेश में ओम प्रकाशके अवसान पर उनकी स्मृतियों को सादर नमन करते हुए कहा कि उन्होंने सदैव भारत की सनातन संस्कृति की रक्षा की और संवर्धन के लिए अपना जीवन समर्पित किया। सनातन धर्म के पवित्र प्रतीकों के प्रति उनके मन में श्रद्धा और सम्मान का भाव स्पष्ट दिखाई देता था। गौ एवं गौवंश संरक्षण और संवर्धन के लिए उनके द्वारा किया प्रयास सदैव स्मरणीय रहेगा। 
भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश ने कहा कि गौ ऋषि की उपाधि से विभूषित असंख्य कार्यकर्ताओं के प्रेरणास्रोत अनेक संगठनों के जन्मदाता एवं मार्गदर्शक गीता में वर्णित कर्मयोगी के गुणों के साक्षात स्वरूप एवं संघ के आदर्श प्रचारक ओमप्रकाश जी थे। अखिल भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी ने कहा कि गौ सेवा के कार्य को संपूर्ण देश में एक अलग पहचान आपने दी। हमारे लिए निरन्तर प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे। 
गौ सेवा के क्षेत्र में किये गये कार्यों की वजह से ही उन्हें गौ ऋषि की उपाधि मिली थी। इसके अलावा वह प्रकृति प्रेमी थे। सह सेवा प्रमुख रहते हुए उन्होंने जहां देशभर में सेवा प्रकल्पों की बड़ी श्रंखला खड़ी की वहीं प्रकृति संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था प्रकृति भारती जैसे संगठनों को पल्लवित पुष्पित करने का काम भी किया। उनकी प्रेरणा से देशभर में तमाम गौशालाएं संचालित हुईं। वैसे हमारा ओमप्रकाश जी से परिचय 2010 में हुआ। लखनऊ रहने के दौरान भारती भवन जाने पर अक्सर शाम चाय के समय उनसे सहज मिलना हो जाता था। एक बार उनसे देशभर में गौशालाओं की स्थिति पर उनसे चर्चा करने का मौका मिला। उन्होंने इस दौरान देशमें चलने वाली तीन चार आदर्श गौशालाओं की विस्तृत चर्चा की। इनमें से नागपुर की देवलापार गौशाला और राजस्थान की पथमेड़ा धाम की गौशाला। हमें ओम प्रकाश जी ने ही बताया कि पथमेड़ा की गौशाला में एक लाख से ऊपर गाय हैं। सभी गायों के रहने की उत्तम व्यवस्था है। 
आत्मीयता की वह प्रतिमूर्ति थे। कार्यकर्ताओं से जीवंत सम्पर्क रखते थे। अक्सर उन्हें एक साथ दो — दो लोगों से दोनों कान में मोबाइल लगाकर बात करते देखा जाता था। तमाम डायरियों  व रजिस्टर का संच उनके पास था जिसमें देशभर के कार्यकर्ताओं के मोबाइल नंबर लिखे होते थे। इसी कारण देशभर से कार्यकर्ता उनसे मिलने आते थे। यही नहीं सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता और नेता उनका दर्शन करने भारती भवन आते रहते थे। सरकार की ओर से उन्हें सम्मान पूर्व के गार्ड आफ आनर दिया गया। उनके अंतिम दर्शन के लिए राज्य पाल से लेकर मुख्यमंत्री समेत विभिन्न सामाजिक व राजनीतिक दलों के कार्य करता भारती भवन पहुंचे। बृजनन्दन राजू8004664748

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