-मनमोहन कुमार आर्य
वैदिक धर्म एवं संस्कृति ज्ञान-विज्ञान, सत्य, तर्क एवं युक्तियों पर आधारित है। वैदिक धर्म संसार का सबसे प्राचीनम धर्म होने सहित प्राणी मात्र के लिये हितकर एवं कल्याणकारी धर्म है। कोई भी मत-मतान्तर इससे स्पर्धा नहीं कर सकता। संसार की समस्त सत्य मान्यतायें एवं मनुष्य जीवन की उन्नति के साधन वैदिक धर्म में सुलभ है। सभी मत-मतान्तरों में जो सत्य मान्यतायें, सिद्धान्त व विचार हैं, वह सब वेदों के हैं और जो अविद्यायुक्त बातें हैं वह उनकी अपनी हैं। महर्षि दयानन्द (1825-1883) द्वारा वेद एवं धर्म का सत्यस्वरूप प्रस्तुत करने के बाद विश्व के सभी मत-मतान्तर अप्रसांगिक हो गये हैं। इसे उन्होंने अपने सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ में सिद्ध किया गया है। लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व महाभारत युद्ध के बाद वेदों का पठन-पाठन बन्द हो जाने और समाज के ज्ञानी व पण्डित वर्ग के आलस्य, प्रमाद व स्वार्थों में फंस जाने के कारण वेदों का उचित रीति से अध्ययन-अध्यापन न होने से धर्म एवं संस्कृति का यथार्थ स्वरूप विलुप्त हो गया था। इसी कारण देश व समाज में अज्ञान व अन्धविश्वास उत्पन्न हुए और मत-मतान्तरों का आविर्भाव, सत्य ज्ञान के न होने के कारण से, हुआ। इसी कारण देश गुलाम हुआ एवं देशवासियों को नाना प्रकार के दुःख उठाने पड़े। महर्षि दयानन्द ने सन् 1863 ई0 में अपने अपूर्व पुरुषार्थ से वेदों का यथार्थ व सत्य ज्ञान प्राप्त कर उसका देश-देशान्तर में प्रचार किया। वेदों का अध्ययन वेदांगों की सहायता से ही किया जा सकता है। वेदांगों में शिक्षा, व्याकरण एवं निरुक्त आदि ग्रन्थों के अध्ययन का सर्वाधिक महत्व है। महर्षि दयानन्द ने वेदांगों की शिक्षा अपने विद्यागुरु स्वामी विरजानन्द सरस्वती जी से मथुरा में प्राप्त की थी। इसके अध्ययन से ही वैदिक धर्म व संस्कृति का उद्धार हो सकता है। महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ के तीसरे समुल्लास में वेदों के अध्ययन सहित वैदिक शिक्षा पद्धति की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की है जिससे शिक्षा प्राप्त कर मनुष्य धार्मिक, चरित्रवान, देशभक्त तथा विद्वान बनता है। इसी शिक्षा पद्धति के आधार पर ऋषि दयानन्द के भक्त स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती जी ने सन् 1902 में हरिद्वार के कांगड़ी ग्राम में इतिहास का सुप्रसिद्ध गुरुकुल कांगड़ी स्थापित किया था। इस गुरुकुल के अतीत का यश आज भी विद्यमान है जो अनेक विद्वानों के लिखे ग्रन्थों में सुरक्षित है। इसी गुरुकुलीय पद्धति को आदर्श मानकर ऋषि दयानन्द के अनेक भक्तों ने देश के विभिन्न भागों में गुरुकुलों की स्थापना कर उनका संचालन किया व कर रहे हैं। आज भी देश में लगभग 200 गुरुकुल संचालित हो रहे हैं। ऐसा ही एक प्रसिद्ध गुरुकुल ‘श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, पौन्धा-देहरादून’ है। गुरुकुल का पता है दून वाटिका-2, निकट नन्दा की चैकी, ग्राम पौन्धा, पत्रालय पौन्धा, थाना प्रेमनगर, तहसील विकासनगर, जिला देहरादून, पिनकोड 248007, राज्य उत्तराखण्ड।

गुरुकुल से मोबाइल नं0 9411106104 पर सम्पर्क कर गुरुकुल एवं पठन-पाठन विषयक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। ईमेल arsh.jyoti@yahoo.in पर भी सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सकता है। गुरुकुल की वेबसाइट है www.pranwanand.org. इस प्रसिद्ध गुरुकुल की स्थापना 4 जून सन् 2000 को आचार्य हरिदेव जी, आचार्य गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली द्वारा की गई है। आचार्य हरिदेव जी ने बाद में संन्यास ले लिया और अब वह स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध है। गुरुकुल की स्थापना के समय आर्यसमाज की प्रसिद्ध विभूतियां स्वामी ओमानन्द सरस्वती, झज्जर एवं स्वामी दीक्षानन्द सरस्वती जी उपस्थित थी। हमारा सौभाग्य है कि हम भी अपने कुछ साथियों प्राध्यापक अनूप सिंह तथा श्री धर्मपाल सिंह जी आदि के साथ इस आयोजन में उपस्थित थे। गुरुकुल गौतमनगर, दिल्ली के 20 वर्षीय युवा स्नातक आचार्य धनंजय जी को गुरुकुल का आचार्य बनाया गया था। वर्तमान में भी आचार्य डा0. धनंजय ही गुरुकुल का आचार्यत्व कर रहे हैं। आचार्य चन्द्रभूषण शास्त्री गुरुकल के अधिष्ठाता हैं। गुरुकुल में डा. यज्ञवीर जी, श्री शिवकुमार वेदि तथा श्री शिवदेव आर्य जी आदि निष्ठावान आचार्य अध्ययन कराते हैं। गुरुकुल ‘‘श्रीमद्दयानन्द वेदार्ष महाविद्यालय न्यास, 119 गौतमनगर, नई दिल्ली-110049’’ के द्वारा संचालित होता है। गुरुकुल अपनी स्थापना के दिवस से ही निरन्तर प्रगति के पथ पर आरुढ़ है। शिक्षण का प्रकार महर्षि दयानन्द जी द्वारा उपदिष्ट व प्रेरित आर्ष पद्धति है। गुरुकुल शिक्षण हेतु श्रीमद् दयानन्द आर्ष विद्यापीठ, झज्जर एवं उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार से सम्बद्ध है। मान्यता की दृष्टि से गुरुकुल स्वतन्त्र वा स्वायत्तशासी संस्था है। गुरुकुल में वर्तमान समय में लगभग 125 छात्र अध्ययन कर रहे हैं। यह छात्र शास्त्री, मध्यमा तथा प्रथमा शिक्षा के छात्र हैं। गुरुकुल 1.82 एकड़ भूमि में स्थित है। इस भूमि का पट्टाभिलेख सदैव काल के लिए गुरुकुल के नाम पर है। गुरुकुल में कुल 45 कक्ष उपलब्ध हैं जिनमें यज्ञशाला, तीन मंजिला विशाल वेदभवन, पुस्तकालय, लक्ष्य-वेधशाला, कार्यालय, गोशाला, कम्प्यूटर कक्ष, विद्यार्थियों का छात्रावास, अतिथि कक्ष आदि सम्मिलित है। यह भी बता दें कि यह गुरुकुल साल के ऊंचे वृक्षों से आच्छादित एक टापू जैसे स्थान पर स्थित है जहां से पर्वतों की रानी मसूरी के दर्शन होते हैं। गुरुकुल के पूर्व में एक बरसाती नदी है। यहां का वातावरण प्रदुषण रहित होने सहित अत्यन्त मनोरम, चित्ताकर्षक एवं प्रभावशाली है। इस पुण्य भूमि में पं0 राजवीर शास्त्री, डा0 वेदप्रकाश श्रोत्रिय, डा0 रघुवीर वेदालंकार, डा0 सोमदेव शास्त्री मुम्बई, डा0 ज्वलन्त कुमार शास्त्री, चै0 मित्रसेन, सांसद सुमेधानन्द जी, आचार्य पं0 युधिष्ठिर जी आदि विद्वानों व आचार्यों का पदार्पण होता रहा है व अनेक शीर्ष जीवित विद्वान एवं देशी विदेशी ऋषि-भक्तजन उत्सवों व अन्य अवसरों पर आते रहते हैं। गुरुकुल ने दो वर्ष पूर्व आचार्य डा. धनंजय जी के संयोजकत्व में देश के सभी गुरुकुलों का एक महासम्मेलन आयोजित किया था जो अत्यन्त सफल रहा। हमारा सौभाग्य है कि हम गुरुकुल की सभी गतिविविधयों में एक श्रोता के रूप में भाग लेते रहें हैं और हमने यहां पधारने वाली सभी महनीय हस्तियों के दर्शन किये हैं। 

गुरुकुल से ‘‘आर्ष-ज्येाति” नामक एक उच्च कोटि की मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी किया जाता है। जून माह का अंक एक वृहद विशेषांक होता है। गुरुकुल के ही एक सुयोग्य ब्रह्मचारी, शिक्षक एवं पत्रिका प्रकाशन सम्बन्धी कम्प्यूटर विद्या में निष्णात श्री शिवदेव आर्य आचार्य धनंजय जी की के मार्गदर्शन एवं आर्थिक पोषण में पत्रिका के प्रकाशन का दायित्व संभालते हैं। गुरुकुल में संगोष्ठियों का भी आयोजन किया जाता है। वाग्वर्धिनी सभा एवं प्रकाशन विभाग भी गुरुकुल में कार्यरत है। अनेक पुस्तकें एवं व्याकरण ग्रन्थ गुरुकुल के द्वारा प्रकाशित किये जा चुके हैं। 

शिक्षणेतर गतिविधियों के अन्तर्गत निकटवर्ती स्थानों में प्रचार हेतु वेद प्रचार वाहन ‘श्रुति संवाहिका वाहन’ गुरुकुल में उपलब्ध है जिसका उपयोग किया जाता है। गुरुकुल द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में वेद प्रचार का कार्य भी किया जाता है। स्थानीय वैदिक संस्थाओं में आयोजित होने वाले वृहद-यज्ञों में गुरुकुल के ब्रह्मचारी वेदपाठ करते हैं। संस्कारों का प्रशिक्षण देने के लिये समय-समय पर आर्य पुरोहित निर्माण व प्रशिक्षण शिविर लगाये जाते हैं। यथा अवसर रक्तदान शिविर भी लगाये जाते हैं। वार्षिकोत्सव के अवसर पर आर्य वीर दल का राष्ट्रीय शिविर भी लगाया जाता है। 

गुरुकुल के छात्र, स्नातक व आचार्यगण विभिन्न क्षेत्रों में अपने-अपने स्तर पर महर्षि दयानन्द तथा वेदों के सिद्धान्तों के अनुरूप वेद प्रचार में लगे हैं। यहां के छात्र अपनी योग्यता एवं क्षमता के अनुरूप समाज में शिक्षा एवं धर्म के ध्वज को धारण किये हुए हैं। यहां के छात्रों ने राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय खेलों में भी भाग लिया है। छात्र दीपेन्द्र वायु सेना में कार्यरत है और इसने एशियन खेलों में निशानेबाजी में रजत पदक प्राप्त कर देश एवं गुरुकुल का नाम प्रसिद्ध किया है। इस युवक का आगामी ओलम्पिक खेलों में भी चयन हो चुका है जोकि गुरुकुल के लिए गौरव की बात है। 

गुरुकुल से शिक्षित छात्र विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं राज्य सरकार के शिक्षण संस्थानों में सहायक आचार्य, प्राध्यापक, प्रधानाचार्य एवं शिक्षक आदि पदों पर सेवारत हैं। योगक्षेत्र में भी यह अपनी सेवायें दे रहे हैं। निशानेबाजी के माध्यम से भी गुरुकुल के छात्र देश में गुरुकुल का नाम उज्जवल कर रहे हैं। वैदिक सिद्धान्तों का प्रचार व प्रसार गुरुकुल के छात्रों का मुख्य उद्देश्य है जिसे वह अनेक प्रकार से करते हैं। 

गुरुकुल की समस्त व्यवस्था दान में प्राप्त धनराशि से की जाती है। गुरुकुल को उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी हरिद्वार एवं राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान से केवल 2 शिक्षकों के निमित्त आंशिक सहयोग उपलब्ध हो रहा है। गुरुकुल की कुछ आवश्यकतायें हैं। गुरुकुल के छात्रों के लिये भोजनालय एवं पाकशाला भवन निर्माण की तत्काल आवश्यकता है। छात्रों को कक्षाओं में अध्यापन के लिए कक्षों की आवश्यकता है। छात्रों के स्वास्थ्य निर्माण के लिये व्यायाम के साधनों की भी आवश्यकता है। दानी महानुभाव आर्थिक सहयोग देकर गुरुकुल की सहायता कर सकते हैं। 

गुरुकुल के अधिकारी अनुभव करते हैं कि सरकार गुरुकुल पर विशेष ध्यान दे व इससे सहयोग करें जिससे आर्ष शिक्षा के माध्यम से वैदिक वांग्मय का अनुशीलन व इस पर अनुसंधान कार्य किया जा सके। सरकार से आर्थिक एवं शैक्षणिक सहयोग की आवश्यकता है। गुरुकुल का सुझाव है कि सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा एवं प्रान्तीय सभाओं के माध्यम से गुरुकुलों की स्वायत्ता भंग किये बिना सरंक्षण होना आवश्यक है। शैक्षणिक स्तर के उच्चादर्श लक्ष्य की प्राप्ति के लिये पठन-पाठन की रचनात्मकता, आर्ष ग्रन्थों के प्रकाशन, वैदिक वांग्मय का अनुशीलन आदि कार्य आवश्यक हैं। गुरुकुलों के संरक्षण हेतु धनी-मानी संभ्रान्त परिवारों का अपनी सन्तानों को गुरुकुलों में पढ़ाना आवश्यक है। इससे गुरुकुल में सुधार होकर देश के धनिक वर्ग में अपनी सन्तानों को गुरुकुलों में पढ़ाने का वातावरण उत्पन्न होगा जैसा कि वर्तमान में अंग्रेजी शिक्षा के प्रति बना हुआ है। गुरुकुल में शिक्षित सन्तानें माता-पिता की वृद्धावस्था में उनकी सेवा करके उन्हें सुख प्रदान कर सकते हंै, इसकी सम्भावना गुरुकुलीय प्रणाली में ही सर्वाधिक है। परिवार को संयुक्त व एकजुट रखने में भी गुरुकुलों से शिक्षित युवापीढ़ी अधिक उपयुक्त रहती है। 

गुरुकुल के प्रमुख अधिकारियों में प्राचार्य पद पर आचार्य डा0 धनंजय जी (मोबाइल नं0 09411106104) हैं। अन्य अधिकारी वही हैं जो ‘‘श्रीमद्दयानन्द वेदार्ष महाविद्यालय न्यास, 119 गौतमनगर, नई दिल्ली-110049’’ के अधिकारी हैं। गुरुकुल सुव्यवस्थित रूप से संचालित हो रहा है। 

हम इस गुरुकुल से इसकी स्थापना के दिवस से जुड़े हुए हैं। हमने इसके सभी कार्यक्रमों एवं उत्सवों में भाग लिया है। बीच-बीच में भी हम गुरुकुल जाते रहते हैं। गुरुकुल उन्नति के पथ पर अग्रसर है। अतीत में गुरुकुल ने अनेक उपलब्धियां प्राप्त की हैं। यह गुरुकुल देश का एक आदर्श एवं सफलतम गुरुकुल बने, यह हमारी ईश्वर से कामना है। 

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