आपको रामचरित मानस का वह प्रसंग बहुत अच्छे से याद होगा जब मां सीता की खोज में हनुमान जी समुद्र पार कर लंका जा रहे थे और रास्ते में उनकी भेंट सुरसा से हुई थी। सुरसा उन्हें अपना आहार बनाने के लिए आतुर थी। लेकिन वह जैसे ही अपना मुंह खोलती, हनुमान जी अपना आकार बढ़ाकर दोगुना कर लेते। इसके बाद सुरसा भी अपना मुंह बढ़ाकर हनुमान जी से दोगुना कर लेती। यह सिलसिला जब खत्म नहीं हो रहा था तो हनुमानजी ने एक नई रणनीति अपनाई। तुलसीदास जी इस प्रसंग का वर्णन करते हुए कहते हैं, “जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा॥ सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।।” अगर मैं कहूं कि मिशन तिरहुतीपुर का पूरा रोडमैप हनुमान जी की इसी रणनीति पर आधारित है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।

वास्तव में आज की व्यवस्था को बड़ा बनकर नहीं, बल्कि छोटा बनकर, या यूं कहें कि सूक्ष्म बनकर ही वश में किया जा सकता है और उसे बदला जा सकता है। जटिल व्यवस्थाओं का विकल्प रातोंरात किसी एक कारण, घटना या प्रयास के चलते खड़ा नहीं होता। यह देखने में आता है कि प्रायः बड़े बदलावों के पीछे का मूल कारण बहुत ही छोटा होता है। समय बीतने के साथ परिस्थितियां हर अगले कारण को पिछले कारण से अधिक महत्वपूर्ण और बड़ा बनाती जाती हैं। Edward Lorenz द्वारा प्रतिपादित Butterfly Effect (Chaos Theory) के द्वारा इस बात को बहुत अच्छे से समझा जा सकता है।

इसी बात को एक और विद्वान जॉन गॉल की मशहूर किताब- Systemantics: How Systems Work and Especially How They Fail में भी समझाया गया है। इसमें लेखक कहता है कि यदि आप किसी जटिल और विशाल व्यवस्था का विकल्प खड़ा करना चाहते हैं तो आपको उसके समानांतर दूसरी जटिल और विशाल व्यवस्था खड़ी करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। ऐसा प्रयास कभी भी सफल नहीं हो सकता। उसकी असफलता 100 प्रतिशत सुनिश्चित है।

जॉन गॉल आगे कहता है, “एक सरल और सफल प्रणाली ही धीरे-धीरे विकसित होते हए किसी जटिल किंतु सफल प्रणाली के जन्म का कारण बनती है। जब किसी जटिल प्रणाली को एक ही बार में शुरू से लेकर अंत तक डिजाइन किया जाता है तो वह कभी भी कारगर नहीं हो सकती। बाद में इसे सुधार कर भी कारगर नहीं बनाया जा सकता। आपको यदि एक जटिल और कारगर प्रणाली बनानी है तो उसकी शुरुआत हमेशा एक छोटी और सरल प्रणाली से ही करनी पड़ेगी।”

संक्षेप में कहें तो शुरुआती पहल का सूक्ष्म और सरल होना ही मिशन तिरहुतीपुर की मुख्य रणनीति है। इसके अंतर्गत तिरहुतीपुर की सीमा के भीतर एक ऐसा माड्यूल विकसित करने की योजना है जो बहुत ही सरल किंतु प्रभावी हो। यह मॉड्यूल भौगोलिक दृष्टि से छोटा किंतु विषय की दृष्टि से व्यापक होगा। उसमें ग्रामीण जीवन के सभी आयाम समाए होंगे। इन आयामों को 9 सेक्टर्स में बांटा गया है जो इस प्रकार हैं- 1. मीडिया, 2. सार्वजनिक जुटान, 3. आधारभूत निर्माण, 4. संगठन, 5. शिक्षा, 6. कृषि, 7. गैर कृषि उत्पादन, 8. व्यापार और 9. सेवा क्षेत्र। प्रत्येक सेक्टर में अलग-अलग प्रोजेक्ट्स है जिनकी संख्या 100 से अधिक है। इन सभी सेक्टर्स और प्रोजेक्ट्स को अपने में समेटे हुए मिशन का पहला मॉड्यूल बरगद के बीज जैसा होगा। आकार में बहुत छोटा लेकिन अपने अंदर विशाल वृक्ष की संभावना छिपाए हुए।

मिशन के रोडमैप में सात वर्षों की कार्ययोजना है। इस दौरान जिस कार्यपद्धति को अपनाया जाएगा, उसे प्रबंधन की भाषा में OODA Loop (Observation, Orientation, Decision, Action) कहते हैं। मूल रूप से इसे एक अमेरिकी पायलट John Boyd ने विकसित किया था, लेकिन अब इसका हर जगह इस्तेमाल होता है। इस पद्धति में उक्त चारों क्रियाओं को एक समय चक्र (लूप) में बार-बार दोहराना होता है। मिशन के संदर्भ में यह लूप तीन तरह का होगा- पहला एक सप्ताह का, दूसरा तीन महीने का और तीसरा सात साल का। दूसरे शब्दों में कहूं तो यहां 7 दिन का सेकंड, 3 महीने का मिनट और 7 वर्ष का घंटा होगा। व्यवस्था परिवर्तन के लिए प्रयास करते समय इसी घड़ी का इस्तेमाल किया जाएगा।

सुविधा की दृष्टि से अभी मैं केवल सात वर्ष के लूप का विवरण दे रहा हूं जो 2020 के दशहरा से शुरू होकर 2027 के दशहरा तक पूरा होगा। इस बीच OODA Loop की सभी चारों क्रियाएं निष्पादित की जाएंगी। यद्यपि इन क्रियाओं की समय सीमा में ओवरलैपिंग की संभावना हमेशा रहेगी, फिर भी उनका निर्धारित समय इस प्रकार हैः

(क). ऑब्जर्वेशन- (2020-22)- सबसे पहले गांव को उसकी समग्रता में देखने, समझने और उससे संवाद स्थापित करने का काम होगा। यह प्रक्रिया तिरहुतीपुर से शुरू होगी किंतु धीरे-धीरे इसमें देश भर के कई गांव शामिल किए जाएंगे, जिसमें से एक गांव आपका भी हो सकता है। इस दौरान मिशन स्वयं को एक पत्रकार और शोधार्थी की भूमिका में ही सीमित नहीं रखेगा, बल्कि वह उस वैज्ञानिक की भूमिका भी निभाएगा जो एक निष्कर्ष तक पहुंचने के पहले ढेर सारे प्रयोग करता है। मिशन के छोटे-छोटे प्रयोग कुछ इस तरह डिजाइन किए गए हैं और किए जाएंगे कि उनके द्वारा अलग-अलग प्रोजेक्ट्स की ग्राउंड टेस्टिंग हो सके। इस चरण के लिए Peter Sims की किताब Little Bets को एक तरह से मिशन ने अपना गाइड मान लिया है।

(ख) ओरिएंटेशन- (2022-24) इन दो वर्षों में मिशन अपने आदर्श मॉड्यूल को पूरी समग्रता के साथ तिरहुतीपूर में लागू करेगा। इस दौरान सभी 9 आयामों से जुड़े विविध प्रोजेक्ट्स को इस प्रकार लागू किया जाएगा कि उनके सम्मिलित प्रभाव से गांव के स्तर पर व्यवस्था परिवर्तन का लक्ष्य एक हद तक पूरा हो जाए। अगर ऑब्जर्वेशन वाले चरण में छिटपुट प्रोजेक्ट्स की टेस्टिंग होगी तो ओरिएंटेशन वाले चरण में मिशन अपने मॉड्यूल को उसकी समग्रता में परखने का प्रयास करेगा। हालांकि इस चरण में यह प्रयोग केवल तिरहुतीपुर और आस-पास के कुछ गांवों तक ही सीमित रहेगा।

(ग) डिसीजन- (2024-25) 2024 के अंत तक मिशन अपने मॉड्यूल को अच्छे से जांच-परख के उसे पूरी तरह से तराश चुका होगा। इसके बाद मिशन उन तमाम संभावनाओं और अवसरों की तलाश करते हुए वे सभी निर्णय लेगा जिससे उसका माड्यूल देश भर के गांवों में लागू किया जा सके।

(घ) ऐक्शन- (2025-27) इस दौरान देश के प्रत्येक 127 इको-एग्रो क्लाइमेटिक जोन में कम से कम एक मॉड्यूल को पाइलट मॉड्यूल मानते हुए लागू करने का प्रयास किया जाएगा।

उपर्युक्त टाइमलाइन और संभावनाएं प्रबंधन के आधुनिकतम सिद्धांतों के अनुरूप हैं। तथापि जर्मनी (प्रशिया) के पहले चीफ आफ स्टाफ – Field Marshal Helmuth von Moltke की उस मशहूर कोटेशन का उल्लेख यहां प्रासंगिक है जिसमें वह कहता है – No battle plan ever survive the first contact with the enemy. अर्थात हम किसी योजना को ज्यों लागू करते हैं, उसकी कमियां उजागर होने लगती हैं और हमें उसमें कुछ नया जोड़ने या घटाने की जरूरत महसूस होती है। मिशन तिरहुतीपुर का रोडमैप इतना लचीला है कि वह इस सत्य को आसानी से झेल सकता है।

इस बार इतना ही। अगली बार एक अभिशाप की चर्चा करेंगे जिससे मिशन को सबसे बड़ा खतरा है। इसी दिन इसी समय- रविवार 12 बजे। तक तक के लिए अनुमति दें। नमस्कार।

विमल कुमार सिंह

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