भले ही डोनाल्ड ट्रम्प पेरिस समझौते से अमेरिका को बाहर निकालने के लिए पर्यावरण विरोधी कहे जाते हों, लेकिन ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि बराक ओबामा के आख़िरी शासन काल के मुकाबले ट्रम्प के शासन काल में ज़्यादा क्षमता के कोयला बिजली संयंत्रों को रिटायर किया गया।
वहीँ चीन में साल 2020 में 38.4 गीगावॉट के नए कोयला संयंत्रों को कमिशन किया गया। दूसरे शब्दों में चीन ने पिछले साल स्थपित कुल वैश्विक क्षमता (50.3 गीगावॉट) का 76 फ़ीसद कर लिया। और इसी के साथ चीन 2020 में कुल प्रस्तावित (87.4 गीगावाट GW) नए कोयला संयंत्रों के के 85 फ़ीसद हिस्सेदार बन गया।
अब, जब बिडेन प्रशासन ने अमेरिकी बिजली क्षेत्र को 2035 तक डीकार्बनाइज करने का आह्वान किया है, वहां ये जानना हैरान करता है कि ट्रम्प के चार साल के कार्यकाल के दौरान कोयला संयंत्र की सेवानिवृत्ति, ओबामा के दूसरे कार्यकाल के 48.9 GW, से बढ़कर 52.4 GW हो गई थी। ध्यान रहे कि साल 2035 तक मौजूदा बिजली क्षमता (976.6 गीगावॉट) का एक तिहाई (233.6 गीगावॉट) रिटायर होना है।
वहीँ यूरोपीय यूनियन (EU27) में, स्पेन की अगुवाई में, कोयला बिजली संयंत्रों के रिटायरमेंट का आंकड़ा 2019 के 6.1 GW से बढ़कर 2020 में 10.1 GW के रिकॉर्ड तक पहुंच गया। स्पेन ने अपने कोयला बेड़े के आधे हिस्से (9.6 GW के 4.8 GW) को सेवानिवृत्त कर दिया पिछले साल।
दरअसल पिछले साल वैश्विक स्तर पर नए संयंत्रों की कमीशनिंग 50.3 गीगावॉट तक गिर गई। यह गिरावट 2019 के मुकाबले 34 फ़ीसद है और इसकी वजह रही कोविड-19 महामारी के कारण हुई मंदी और परियोजनाओं में हुई देरी।
इन बातों का ख़ुलासा हुआ आज जारी 7वीं वार्षिक बूम और बस्ट रिपोर्ट से। रिपोर्ट पर नज़र डालें तो पता चलता है कि भारत में फ़िलहाल कोयला बिजली क्षमता 2020 में सिर्फ 0.7 GW बढ़ी। जहाँ 2.0 GW कमीशन हुए, वहीँ 1.3 GW डीकमीशन या रिटायर हुए।
बांग्लादेश, फिलीपींस, वियतनाम और इंडोनेशिया के 62.0 गीगावॉट की कोयला बिजली की कटौती करने की योजना की घोषणा के बाद ये कहना गलत नहीं होगा कि एशिया में कोयला संयंत्रों की विकास पाइपलाइन ढह रही है। ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (GEM) का अनुमान है कि इन चार देशों में नीतियों के चलते बस 25.2 गीगावॉट कोयला बिजली उत्पादन की क्षमता बचेगी। महज़ पांच साल पहले, 2015 में वहां 125.5 गीगावॉट की योजना से 80 फ़ीसद की गिरावट है।
GEM की कोयला कार्यक्रम निदेशक, क्रिस्टीन शीयरएर, ने कहा, “2020 में हमने अनेक देशों को अपने भविष्य की ऊर्जा योजनाओं में कोयला बिजली की मात्रा में कटौती करने की घोषणा करते देखा। हम शायद दुनिया भर के ज़्यादातर भागों में सबसे अंतिम कोयला संयंत्रों योजनाओं को देख रहे हैं।”
CREA की प्रमुख विश्लेषक, लॉरी माइलायवेर्टा, ने कहा, “जर्मनी और पोलैंड की कुल कोयला बिजली क्षमता के बराबर, दर्जनों नई कोयला बिजली परियोजनाएं पिछले साल चीन में घोषित की गई थीं। ये परियोजनाएं 2030 से पहले देश के पीक उत्सर्जन के लिए और 2060 से पहले कार्बन न्यूट्रलिटी तक पहुंचने की प्रतिज्ञा का एक प्रमुख परीक्षण हैं। उन्हें रद्द करने से देश उस कम कार्बन विकास को ट्रैक पर ले जाएगा जो नेतृत्व का कहना है कि वह आगे बढ़ना चाहता है।”
GEM के अलावा रिपोर्ट के सह-लेखक सिएरा क्लब, सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA), क्लाइमेट रिस्क होराइज़ंस, GreenID (ग्रीनआईडी) और Ekosfer (एकोस्फेर) हैं।

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