उत्तम मुखर्जी
 झारखण्ड के धनबाद जिले में है गजलीटांड़। 26 सितम्बर 1995 को कतरी नदी का रौद्र रूप यहां देखने को मिला था। पूरी नदी गजलीटांड़ माइंस में समा गई थी। अब उस हादसे को 26 साल पूरे हो गए हैं। कतरी के रौद्र रूप और प्रलयंकारी बारिश के कारण उस दिन धनबाद कोयलांचल स्तब्ध हो गया था। कुल 79 लोग काल कवलित हुए थे। अकेले गजलीटांड़ में 64 खनिकों की जलसमाधि हुई थी। 26 साल बाद कई प्रश्न ऐसे हैं जो अनुत्तरित रह गए। इन सवालों के जवाब में छिपा है कोयलांचल का भविष्य।मसलन गजलीटांड़ हादसे में केंद्र सरकार ने जस्टिस एसके  मुखर्जी की अध्यक्षता में कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का गठन किया था। लम्बी सुनवाई हुई। खुद मज़दूर नेता स्व. राजेन्द्र प्रसाद सिंह इसमें एसेसर थे। फिर कोर्ट ने क्या कहा ? कोर्ट का क्या नतीजा निकला? गजलीटांड़ ही क्यों? चासनाला, बागडिगी, नाकदा… जहां-जहां मजदूरों का निधन-यज्ञ चला.. क्या हुआ? थाने में FIR हुआ। कल्पेबल होमिसाइड के तहत IPC की धारा 304 का मामला दर्ज हुआ। क्या एक भी अधिकारी..जिम्मेवार लोग जेल गए? फिर खान सुरक्षा के लिए गठित देश की सबसे बड़ी संस्था खान सुरक्षा महानिदेशालय DGMS का क्या मतलब? क्या साज़िश के तहत इसे पंगु बनाया जा रहा? अब तो अधिकांश माइंस आउटसोर्स पर है। अधिकांश लोग अकुशल…ठेके पर। फिर तो भयावह हादसे के इंतज़ार में हमें रहना है। एक काम मैनेजमेंट ने किया। कोल कम्पनी की बुनियाद थी भूमिगत खदान। उसे  ही दफ़न कर दिया।
जस्टिस मुखर्जी के साथ कई बार मुझे बातचीत का मौका मिला था। अखबारों में इंटरव्यू को स्पेस भी मिला था। उन्होंने कहा था, ‘हम भोंक सकते हैं ; काट नहीं सकते’हुआ भी वैसा ही। किसी का कुछ नहीं बिगड़ा। और तो और गजलीटांड़ हादसे में चंद शव कुछ समय के बाद निकालकर फ़ाइल क्लोज कर दी गई। शायद बचाव व राहत से आसान और सस्ता डेथ डिक्लेअर कर मुआवज़ा देना होता है।
DGMS  तब क्या है? किसलिए है? गजलीटांड़ हादसे का अंदेशा हमने पहले ही जताया था।मजदूरों ने 6 नम्बर पिट में पानी रिसाव की बात कही थी। DGMS मौन रहा। फिर पूरी कतरी समा गई। हमने इस पर दो महानिदेशक एके रूद्र और भास्कर भट्टाचार्य दा से बातें की थी। रुद्र कुछ बताते कि एक DG कैप्टन बीएन सिंह ही घूस के साथ पकड़े गए।भास्कर दा की भी समंदर में डूबकर मौत हो गई। एक और घोटाला की बात सामने आई।एक अधिकारी ने आत्महत्या कर ली।  वरिष्ठ पत्रकार व वर्तमान *राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश जी के कहने पर इस पर मैंने स्टडी की।इस हादसे के बाद BCCL की स्थिति चरमराती चली गयी। कोलफील्ड को पहले *डायन आग* ने ग्रास में लिया फिर *तबाही का पानी* दुःखद बात यह है कि देश को ऊर्जा देनेवाले, रौशन करनेवालों का दर्द किसी ने महसूस नहीं किया। गजलीटांड़ जैसा हादसा कभी राष्ट्रीय आपदा घोषित नहीं हुआ।गजलीटांड़ हादसे में एक सवाल यह भी उठा कि मृतकों में कोई EXECUTIVE नहीं था। रात के अंधेरे में खदानों में जान देने के लिए शायद मज़दूर ही आसान हैं।एक सवाल यह भी उठना लाजिमी है कि कतरी में जो बांध बनाया था, उस जांच की क्या हुई? इस प्रश्न से भी सरकार बच नहीं सकती है कि जिस कतरी की भयावहता को बेचकर अधिकारी, नेता, ठीकेदार ने महल खड़े किए वह कतरी अब कहां है? उसका रौद्ररूप अब अतीत का किस्सा कैसे बन गया? आखिर कहां खो गई कतरी चंचलता? किसने लील ली *कतरी, कमारी, कारी, चितकारी, खोदो नदियों की कलकल आवाज़?*
प्रश्न यह भी उठता है जहां प्रतिमाह अरबों की लूट है। कोयले की लूट पर हिस्सा के लिए गोलियां चल रही। बम विस्फोट हो रहे। ज़िंदा लोग लाशों में तब्दील हो रहे वहां मजदूरों के माइंस में उतरने के लिए कोयले के भाप से चलनेवाली लिफ़्ट आज भी क्यों है ?देश की बिजली का 80 प्रतिशत हिस्सा कोयला से मिलता है। देश में कोकिंग कोल की ज़रूरत का आधा हिस्सा धनबाद की BCCL देती है। फिर भी मजदूरों की ज़िंदगी में अंधेरा पसरा हुआ है। जब BCCL में पौने दो लाख कामगार थे, तब वे सरप्लस थे। आज 40 हजार से नीचे सिमट गए। फिर भी सरप्लस है। माफिया राज और कार्य संस्कृति के अभाव के कारण कम्पनी आज तबाह हो चुकी है।आग, भूधसान और पानी से तबाह रत्नगर्भा धरती की यह कहानी है। ये सारे सवाल आज तैर रहे हैं। इन सवालों के अंदर छिपा है समृद्ध कोलफील्ड का सुनहरा भविष्य।

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