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निगाहें - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
स्टेशन की सीढियां चढ़ते हुए हर रोज़ रास्ता रोक लेती हैं कुछ निगाहें अजीब से सवाल करती हैं और मैं नज़रें बचाते हुए हर बार की तरह आगे बढ़ जाता हूं ऐसा लगता है जैसे एक बार फिर ईमान गिरवी रख कर भी अपना सब कुछ बेच आया हूं और…