आलोक कुमार ,
२०१२ के विधान -सभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में २१९ सीटों पर चुनाव लड़ी थी नीतीश जी की पार्टी जनता दल यूनाइटेड …. नतीजा क्या था ? इस पर गौर फरमाने की जरूरत है ….
सभी २१९ सीटों पर जमानत जब्त
कुल प्राप्त वोट २७०३०३
वोट प्रतिशत ०.३६ प्रतिशत ….
ऐसे में एक बार फिर से २०१७ के ‘ अखाड़े ‘ में ताल ठोकते नजर आ रहे हैं नीतीश कुमार l इस बार भी ऐसा होते नहीं दिखता है कि “पिछले चुनाव के परफॉर्मेंस से कुछ बेहतर करने जा रही है नीतीश जी की पार्टी और न ही बड़े ‘वोट-कटवा’ के रूप में उभरने जा रही है l” जिस जाति – विशेष के वोट के दम पर ताल ठोका जा रहा है वो भी नीतीश जी के साथ खड़ा नहीं दिखता , इस जाति-विशेष के मतदाता भी ‘अपना दल’ के दो धड़ों के बीच बंटे हैं l मतदाताओं से सीधे – संवाद और जमीनी हकीकत के यथार्थवादी – विश्लेषण के पश्चात वर्तमान में जो तस्वीर उभर कर आती है उसे देखते हुए ज्यादा उम्मीद इसी बात की है कि “जनता दल यूनाइटेड को पिछली बार से भी कम वोट – प्रतिशत हासिल होगा l”कोई मजबूत और प्रभावशाली संगठन नहीं है, मतदाताओं तक कोई सीधी – पहुँच नहीं है नीतीश जी की पार्टी की उत्तरप्रदेश में l सतही तौर पर देखने से बिहार से पहुँच कैम्प करने वाले बिहारी नेताओं के भरोसे यूपी जैसे जटिल – दंगल में कूदना अतिशय महत्वाकांक्षा के सिवा कुछ और नहीं दिखता लेकिन मुझे इस राजनीतिक – पटकथा की पृष्ठ-भूमि में कुछ और ही दिखता है l
आईए आगे इसकी ही व्याख्या करते हैं और मूल – कहानी को समझने – समझाने की कोशिश करते हैं ….
ऐसा हो नहीं सकता कि नीतीश जी जैसा अनुभवी व मंजा हुआ राजनेता जमीनी हकीकत को जान या समझ नहीं रहा होगा !! जहाँ तक मेरी समझ जाती है उसके मुताबिक खुद को नरेंद्र मोदी को काउंटर करने वाला सबसे बड़ा चेहरा साबित करने की कवायद का ही हिस्सा है नीतीश जी का ये निर्णय l इस निर्णय के पीछे छुपा एक और अहम पहलू है , जिसेकिसी भी एंगल से नजरंदाज नहीं किया जा सकता … गौर करने वाली बात है कि “ नीतीश अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कर चुके हैं और महागठबंधन के सबसे बड़े घटक दल राजद के बगैर यूपी चुनावों में जा रहे हैं l राजद की राजनीतिक व पारिवारिक मजबूरियाँ हैं l इसका फायदा उठाते हुए नीतीश अपने चुनावी – अभियान की रैलियों में सीधे तौर पर मुलायम सिंह यादव और अखिलेश सरकार को निशाने पर ले रहे हैं l ये साफ तौर पर राजद पर दबाब बनाने एवं टेम-गेम की राजनीति की सोची – समझी रणनीति है l” यहाँ देखा जाए तो एक बात साफ समझ में आती है कि “ लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद का सीधे तौर पर यूपी चुनावों में नहीं जाना व्यावहारिक निर्णय है l राजद का उत्तरप्रदेश में अपना कोई संगठनात्मक और वोट-बैंक का आधार नहीं है और पारिवारिक संबन्धों के कारण भी लालू यादव समाजवादी पार्टी के सामने किसी भी प्रकार की सीधी चुनावी लड़ाई का हिस्सा नहीं बनना चाहते l चुनावी – राजनीति के नजरिए से ही देखें तो मुलायम और उनकी पार्टी को चुनौती देने वाली किसी भी मुहिम का हिस्सा बन लालू यादव अपने आधार बिहार के यादव वोट – बैंक के बीच भी कोई नकारात्मक संदेश का संचार नहीं होने देना चाहते l लालू शायद इस बात को भली – भांति समझते हैं कि “राजनीति में किसी भी प्रकार भ्रम की स्थिति कायम होने का सीधा असर वोट-बैंक पर पड़ता है l” इसे समझने के लिए ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है “ बिहार विधानसभा चुनाव अभियान के शुरुआती दौर में मुलायम सिंह जी की पार्टी भी महागठबंधन का हिस्सा थी लेकिन चुनावों की तिथि की घोषणा के ऐन पहले समाजवादी पार्टी ने खुद को महागठबंधन से अलग भी कर लिया और महागठबंधन के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार भी खड़े किए l इस के बावजूद अपने चुनावी -अभियान के दौरान लालू यादव ने अपने किसी भी वक्त्व्य या भाषण के माध्यम से मुलायम सिंह यादव या उनकी पार्टी के खिलाफ किसी भी प्रकार के विरोध व सीधे – हमले से परहेज किया l शायद लालू यादव जानते थे कि ऐसा करने से यादव – मतदाताओं के बीच नकारात्मक संदेश जाएगा और भ्रम की स्थिति में प्रतिक्रियावादी वोट – बिखराव हो सकता है l”
चुनावी – राजनीति की इन सारी बारीकियों को समझते हुए ही लालू यादव उत्तरप्रदेश के चुनावी – दंगल में सीधे शरीक होते नहीं दिखते और इन्हीं परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए मुलायम विरोध के माध्यम से नीतीश लालू को टेम करने और उन ओर दबाब बनाने का प्रयास करते दिख रहे हैं l नीतीश शायद ये मान कर चल रहे हैं कि मुलायम – फैक्टर के कारण लालू ‘Catch 22’ की स्थिति में रहेंगे और बिहार की सरकार में रहने की मजबूरीयों के कारण उत्तरप्रदेश के चुनावों का माइलेज ले राष्ट्रीय राजनीति में अपने ‘एग्रेसिव कम-बैक’ के प्रयासों को कम से कम तत्काल के लिए ही विराम देंगे l