लालू यादव की राजनीति हांफ रही है…भावनाओं में बह रही है…आज ऐसा लग रहा है मानो वो पूरी तरह से टूट चुके हैं…एक अगस्त यानी मंगलवार को उनके संवाददाता सम्मेलन से ऐसा लगा कि बिहार में महागठबंधन नहीं टूटा बल्कि उनकी भावनाओं व सब्र के पुल पर बना बांध टूटकर बह गया और वो चाहकर भी उसे बचा न सके. उन्होंने नीतीश कुमार से दोस्ती को पुरानी-पुरानी बातें जनता को बताने लगे…मैंने नीतीश कुमार के लिए ये किया, वो किया. मैंने उसे नेता बनाया. वो पलटूराम है. भस्मासुर है आदि-आदि.
बहरहाल इसमें कोई संदेह नहीं कि आज नीतीश कुमार की जो छवि है, वो लालू यादव की ही देन है. आज नीतीश कुमार को विकास-पुरुष लालू ने ही बनाया. आज नीतीश कुमार बिहार में यदि सत्ता के पर्याय बन गये हैं तो उसके जिम्मेवार भी लालू यादव ही हैं. लालू ने ही नीतीश कुमार को बिहार में राजनीति की मजबूरी का नाम दिया. यह लालू ही थे, जिन्होंने नीतीश कुमार को अपनी छवि गढ़ने का मौका दिया क्योंकि जनता ने लालू यादव को अपनी छवि गढ़ने का अवसर नीतीश से पहले दिया था. लगभग पंद्रह साल का समय दिया जिसे उन्होंने जात-पात, सांप्रदायिकता, तानाशाही, चाटुकारिता, नस्लवाद, परिवारवाद व भ्रष्टाचार की भट्ठी में झोंक दिया.
आज न तो सन 74 में जाने की जरुरत है और न ही जयप्रकाश-लोहिया-कर्पूरी के सिद्दांतों की दुहाई देने की जरुरत है…क्योंकि आज की सियासत का एकमात्र लक्ष्य सत्ता है इसलिए थोड़ा फ्लैश बैक यानी 90 के दशक में जाएं तो लालू-नीतीश की राजनीति को समझने में आसानी होगी. यह समझना आसान होगा कि महज दो या तीन प्रतिशत जाति का नेतृत्व करनेवाले नीतीश कुमार बारंबार मुख्यमंत्री की गद्दी कैसे हासिल कर ले रहे हैं. ऐसी कौन-सी मजबूरी है जो हर कोई उनसे गठबंधन कर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करता है. किसने बनायी उनकी छवि एक ईमानदार प्रशासक व एक कुशल राजनीतिज्ञ की…तो इनसब का जवाब एक ही है. वो शख्स कोई दूसरा नहीं बल्कि लालू प्रसाद यादव ही है, जिन्होंने नीतीश की छवि को गढ़ने का काम किया. साफ व स्पष्ट शब्दों में कहें तो अगर आज लालू न होते तो नीतीश की प्रासंगिकता भी खतरे में पड़ जाती. मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि जबतक लालू यादव की राजनीति जिंदा है तबतक नीतीश कुमार की गद्दी सुरक्षित है…
आज लालू प्रसाद यादव ने बिहार के विकास हेतु एक प्रतिशत भी काम किया होता तो उन्हें टीवी के सामने इस तरह सफाई नहीं देनी पड़ती और सफाई भी कैसी कि मैंने नीतीश को नेता बनाया. मैंने उसको हमेशा परेशानियों से उबारा लेकिन आज अगर पूछा जाए कि इन पंद्रह सालों में आपने बिहार के लिए क्या किया तो उनकी बोलती बंद हो जाएगी और वो बगले झांकने लगेंगे. आज वो अपना कोई ऐसा एक काम बताते, जिसे लोग याद करके उनका नाम लेते.
हां, उनके समर्थक व चाहनेवाले बोल सकते हैं कि उन्होंने सामाजिक न्याय के क्षेत्र में बहुत काम किया. पिछड़ों को सामाजिक व राजनीतिक तौर पर अगड़ा बनाया. एक खास जाति को राजनीति के दांव-पेंच सिखाये. तो क्या सत्ता का अर्थ यही निकाला जाये कि वह एक खास जाति के लिए सियासी अखाड़े से ज्यादा कुछ नहीं…
जिस दौर में कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु सिलिकन वैली बना रहे थे, उस दौर में आप बिहार में चरवाहा विद्यालय खोल रहे थे. आपने अपने बच्चों का एडमिशन तो अंग्रेजी स्कूल में कराया. तेजस्वी को दिल्ली के डीपीएस में पढ़ने भेजा. मिसा भारती को डॉक्टर बनाने के लिए कई प्रकार के तिकड़म किए. लेकिन बिहार के बच्चों का भविष्य गर्त में ढकेल दिया. अपने वोट बैंक के चक्कर में सामाजिक समरसता को खा गये. मुस्लिम-यादव समीकरण के बलबूते बिहार के सत्ता पर आजीवन काबिज रहने का बेजोड़ सियासी फॉर्मूला बनाया. अगड़ों को गाली देकर पिछड़ों के दिलों-दिमाग में बैलून की तरह हवा भरने का काम किया लेकिन आये दिन आपके कारनामों व बेतुके फैसलों ने एम-वाई समीकरण का किला ध्वस्त कर दिया या यू कहें कि यदुवंशियों के एक गुट ने आपसे किनारा करना शुरू कर दिया जिसका भरपूर फायदा नीतीश कुमार ने उठाया.
विकास एक ऐसी चिड़िया का नाम है जिसे हर जाति-संप्रदाय के लोग अपने घरों की टहनियों पर बैठा हुआ देखना चाहते हैं…यादव व मुस्लिम भी विकास चाहते हैं. अपने बच्चों के लिए शिक्षा चाहते हैं. उन्हें पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनना देखना चाहते हैं. विकास का दूसरा पर्याय कुछ नहीं हो सकता. आपने संवाददाता सम्मेलन में बिल्कुल सही बोला कि नीतीश कुमार को नेता बनानेवाले आप ही हैं. आपके दौर की राजनीति से आजिज आकर ही लोगों ने नीतीश कुमार को चुना. बिहार का वो काला अध्याय कोई नहीं भूल सकता जब यहां पर आपके समय में अपहरण ने उद्योग का रूप ले लिया था. आपराधिक चरित्र के लोगों के लिए यह एक पेशा बन गया था. खासकर बिजनेसमैन व डॉक्टरों को निशाना बनाया जाता था.
चाहे सीवान हो या फिर आरा-छपरा, चाहे जहानाबाद हो या फिर गया-औरंगाबाद, चाहे पटना हो या फिर बाढ़-मोकामा-लखीसराय, चाहे बेतिया हो या फिर मोतिहारी-मुजफ्फरपुर-गोपालगंज, चाहे सहरसा हो या फिर पूर्णिया-अररिया-फारबिसगंज कहने का तात्पर्य है कि उस वक्त बिहार का कोई ऐसा जिला नहीं था जहां किसी-न-किसी बाहुबली की समानांतर सत्ता न चलती हो. परोक्ष व अपरोक्ष रूप से आपने उनलोगों को बढ़ावा देने का काम किया.
तत्कालीन दौर में न जाने कितनी जातीय सेनाओं का गठन हुआ. हर गांव में अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लोगों ने बंदूकें उठा लीं. संगीनों के साये के बीच मासूमों ने रात गुजारी. महज सत्ता पर काबिज रहने के लिए आपने अपने ही बिहार में अराजकता का माहौल बना दिया. चारों तरफ हर जाति-वर्ग-संप्रदाय में भय का एक वातावरण पैदा कर दिया गया. पुलिस-प्रशासन व कानून-व्यवस्था को छुटभैये नेताओं द्वारा अंगूठा दिखाना फैशन बन गया. बहुत हद तक आप आपने अपने समर्थकों के बीच यह संदेश देने में कामयाब भी हुए कि जबतक सत्ता पर मैं काबिज हूं तभी तक तुमलोग सुरक्षित हो और अब वह यही मैसेज अपने समर्थकों में देना चाहते हैं कि मेरे बाद तुम्हारी सुरक्षा कोई कर सकता है तो वो है, तेजस्वी यादव. तेजस्वी के चेहरे को आगे कर वो अपनी पार्टी व बिहार की भावी राजनीति का रणनीति बनाने में जुटे हैं.
दूसरी ओर नीतीश कुमार आम-अवाम के दिलोंदिमाग में इस बात को पैबस्त कर चुके हैं कि जबतक मैं कुर्सी पर काबिज हूं तभी तक कानून-व्यवस्था का राज संभव है. जीतनराम मांझी व महागठबंधन की सरकार में जाने-अनजाने ऐसा देखने को मिला कि सरकार में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है, भले ही ऐसा दिखाना नीतीश समर्थकों द्वारा सोची-समझी रणनीति का हिस्सा ही क्यों न हो…!