नीतिश कुमार भारतीय परम्पराओं का अपमान क्यों करते हैं ?

nitishडा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार २७ दिसम्बर को पटना में बाल लीला गुरुद्वारा में गये थे । यह बिहार का ऐतिहासिक गुरुधाम है । नवम गुरु श्री तेग़ बहादुर जी जब पूर्वोत्तर भारत के प्रवास पर गये थे तो अपने परिवार को पटना में ही छोड़ गये थे । पटना में ही श्री गोविन्द सिंह जी की जन्म हुआ , जो कालान्तर में दश गुरु परम्परा में दशम गुरु हुये । उनका बाल्यकाल पटना में ही बीता था । बाद में उनकी स्मृति में वहाँ के श्रद्धालुओं ने उनके जन्म स्थान पर गुरु धाम का निर्माण किया , जो बाल लीला गुरुद्वारा के नाम से विख्यात है । यहां बिहार के लोग ही नहीं बल्कि देश भर के लोग श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते हैं । गुरुधामों में जब श्रद्धालु आते हैं तो सम्मान से सिर ढक लेते हैं । वैसे भी जब लोग अपने से बड़े या पूज्य व्यक्ति के पास जाते हैं तो सम्मान प्रदर्शित करते हुये सिर ढक लेते हैं । ये ऐसी परम्पराएँ नहीं हैं , जिनके बारे में नीतिश कुमार को पता न हो , क्योंकि नीतिश कुमार बिहार में ही पैदा हुये हैं और यहाँ की परम्पराओं को बख़ूबी जानते हैं । इसके बावजूद नीतिश कुमार ने २७ अगस्त को बाल लीला गुरुद्वारा में सिर ढकने से इन्कार कर दिया । वे जनवरी २०१३ को भी इसी गुरुनानक में आये थे । तब उन्होंने स्वयं ही सिर ढक लिया था , लेकिन इस बार अनुरोध करने पर भी उन्होंने ऐसा नहीं किया । जन भावनाओं को उन्होंने जानबूझकर कर ठेस पहुँचाई है , लेकिन यह किस्सा अकेला और पहला नहीं है । इससे पहले भी वे जन भावनाओं का सार्वजनिक उपहास उड़ा चुके हैं । सूर्य ग्रहण के समय कुछ खाना उचित नहीं माना जाता । लेकिन पिछली बार नीतिश कुमार ने सूर्य ग्रहण के समय मीडिया के लोगों को बुला कर सार्वजनिक रुप से बिस्कुट खाये ताकि मीडिया उसका प्रसारण भी कर सके । सवाल यह नहीं है कि नीतिश कुमार इन आस्थाओं और परम्पराओं में विश्वास रखते हैं या नहीं । उनको पूरा अधिकार है कि वे इनमें विश्वास करें या न करें । यदि किसी का इस मान्यता में विश्वास नहीं है तो वह सूर्य ग्रहण के समय कुछ भी खायेंगे ही । लेकिन जानबूझकर कर उसका प्रदर्शन करने का अर्थ उन लोगों को ठेस पहुँचाना है , जो उस में विश्वास करते हैं । नीतिश कुमार का इन परम्पराओं का उपहार उड़ाना एक प्रकार से अपने अहंकार , दम्भ और सत्ता का प्रदर्शन करना ही कहा जायेगा ।

जिस महापुरुष ने देश और धर्म की ख़ातिर अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया , अपने पिता और चारों पुत्रों को राष्ट्र की बलिवेदी पर बलिदान कर दिया , उस महापुरुष की स्मृति के प्रति सम्मान प्रकट करने से इन्कार करना , केवल अहंकार ही नहीं ब्ल्कि कृतघनता भी कही जायेगी । ये वही लोग हैं , जो बाबर की कब्र पर और हुमायूँ के मक़बरों पर सिजदा करने में लज्जा महसूस नहीं करते , लेकिन गुरुधाम में सिर पर कपड़ा रखने से इनका स्वास्थ्य बिगड़ जाता है । इस देश में तथाकथित पंथनिरपेक्षियों की एक नई फ़सल तैयार हुई है , जिसे इस देश की परम्पराओं का अपमान करने में सुकून मिलता है और इस देश पर आक्रमण करने वालों के मकबरों पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुये झिझक नहीं होती ।

देश की परम्पराओं और राष्ट्रपुरुषों का अपमान करने की यह पहली घटना नहीं है । इससे पहले सोनिया कांग्रेस के झंडाबरदार मणिशंकर अय्यर वीर सावरकर के प्रति अपमानजनक व्यवहार का प्रदर्शन कर चुके हैं । प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो जब अफ़ग़ानिस्तान गये थे तो बाकायदा वहाँ बाबर की क़ब्र की तलाश कर वहाँ सिजदा करने पहुँचे थे । जबकि वस्तुस्थिति यह थी कि अफ़ग़ान सरकार को भी बाबर की क़ब्र तलाश करने में खाँसी मशक़्क़त करनी पड़ी थी । सवाल नीतिश कुमार की पटना के बाल लीला गुरुधाम में की गई इस राष्ट्रविरोधी हरकत का नहीं है । असली सवाल तो यह है की भारतीयता और उसकी परम्पराओं को अपमानित करने की यह ताक़त इन लोगों को कहाँ से मिलती है ? किसी परम्परा को न मानना एक चीज़ है और उसका अपमान करना बिल्कुल ही दूसरी चीज़ है । नीतिश का अपराध पहली कोटि में नहीं आता । यदि पहली कोटि में होता तब तो यह अपराध भी नहीं था । यह दूसरी कोटि में आता हैं । नीतिश अच्छी तरह जानते हैं कि गुरुधाम में नंगे सिर जाने की परम्परा नहीं है । नंगे सिर जाना अपमानजनक माना जाता है । उनको यह भी पता ही होगा कि २७ अगस्त को वे वहाँ जाकर इस परम्परा का पालन करने वाले नहीं हैं । तो क्या वे वहां इस परम्परा का सार्वजनिक रुप से उपवास उड़ाने के लिये ही गये थे , जैसा उन्होंने सूर्य ग्रहण के समय किया था ?

इस नयी घटना में वे तर्क के लिये एक बहाना ले सकते हैं कि गुरुद्वारा की प्रबन्ध समिति ने उन्हें स्वयं आमंत्रित किया था , बे बिना बुलाये वहाँ नहीं गये थे । लेकिन गुरुद्वारा प्रबन्ध समिति के लोग तो यही मान कर चल रहे होंगे कि वे वहां आने पर सभी परम्पराओं का पालन करेंगे ही । क्योंकि इससे पहले भी जब जनवरी महीने में वे इसी गुरुधाम में आये थे तो उन्होंने इस परम्परा का पालन किया था । इन दस महीनों में क्या परिवर्तन हुआ कि नीतिश कुमार ने जन परम्पराओं का उपहास उड़ाना शुरु कर दिया ? गुरु गोविन्द सिंह जी जैसे बलिदानी के स्मृति मंदिर में अपने मुख्यमंत्री होने के अहंकार का प्रदर्शन करते हुये नीतिश कुमार ने जो आचरण किया है , वह निंदनीय ही नहीं भारतीय समाज में दरार डालने वाला भी है । जिस महापुरुष के नाम से ही हर भारतीय का मस्तक झुक जाता है , उसी के जन्म स्थान पर नीतिश अपने दम्भ का प्रदर्शन कर अपनी ओछी मानसिकता का परिचय दे रहे थे । वे सभी भारतीयों का अपमान कर रहे थे ।

4 COMMENTS

  1. Nitish kumar is very selfish politician and with evil desires to remain in power and has sky high ambitions even to be a candidate for prime minister if he can get 25 to 30 Loksabha seats in 2014 general elections. He can do anything for this and unfortunately Hindus are not united so he is appeasing Muslims for their votes and for that he has given facilities for Aligarh universities to set up another universty or some institutions and further facilities for the study and teaching of Arabic for Muslims. in Bihar.
    This is a very dangerous development which will prove to be disastrous like Aligarh University as we know A.U. played a dirty game in the division or partition of India.
    Nitish is anti Hindu[ Hindu, Jain, Buddhists and Sikhs, Vanbashis]. He is Hindu by name only.

  2. भाई साहब ये स्वघोषित सेकुलर हैं, टोपी पहनने में इन्हे लज्जा नहीं आती है,(टोपी जालीदार है शर्म हवा कि तरह गुजर जाती है) क्युकी वोट बैंक नाराज हो जाएगा. गुरूद्वारे में सर ढकने में शर्म आती है, क्योंकि सिख तो इनके वोट बैंक तो हैं नहीं. शर्मनाक आचरण, भर्त्सना करने योग्य कृत्य.

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