राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आतंकवादी नहीं राष्ट्रवादी संगठन है

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नीरज कुमार दुबे

 

पिछले कुछ समय से संघ परिवार को लगातार आड़े हाथ ले रहे कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द को स्थापित करने के बाद अब ‘संघी आतंकवाद’ शब्द को स्थापित करने में जी जान से जुट गये हैं इसके लिए उन्होंने 30 जनवरी 2011 को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के दिन बयान दिया कि संघ के आतंकवाद की शुरुआत महात्मा गांधी की हत्या से हुई। इससे दो दिन पहले ही दिग्विजय ने एक नई कहानी प्रस्तुत कर देश के विभाजन के लिए जिन्ना की बजाय सावरकर को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि ‘दो राष्ट्र’ के सिद्धांत का विचार सबसे पहले वीर सावरकर ने रखा था जिसकी वजह से देश का बंटवारा हुआ। इससे पहले दिग्विजय ने मुंबई एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की मौत को अप्रत्यक्ष रूप से भगवा संगठनों के साथ जोड़कर विवाद खड़ा कर दिया था और बाद में उन्होंने यह सुबूत तो दिया कि उनकी करकरे से फोन पर बात हुई लेकिन वह बात क्या थी यह साबित करने में वह विफल रहे। दरअसल इन सब बयानों के जरिए उन्होंने आतंकवाद के मुद्दे पर संघ को कठघरे में खड़ा करने की जो चाल चली थी उसमें वह काफी हद तक सफल रहे थे।

यह सब उस संघ को बदनाम करने की बड़ी साजिश का हिस्सा है जोकि प्रखर राष्ट्रवादी संगठन है और मंत्रिमंडल की विभिन्न समितियों से भी ज्यादा गहनता के साथ आंतरिक सुरक्षा, राष्ट्रीय एकता और आपसी सद्भावना जैसे विषयों पर चर्चा करता है और मुद्दों के हल की दिशा में काम करता है। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि देश या समाज पर किसी भी विपत्ति के समय उसके साथ खड़े होने वाले इस संगठन के साथ इस समय भाजपा के अलावा कोई खड़ा नहीं दिखाई दे रहा। यह बात सभी जानते हैं कि दिग्विजय संघ विरोध की जो धारा बहा रहे हैं उसके पीछे उनकी कोई बड़ी राजनीतिक मंशा है। संघ के लिए सुखद बात यह है कि आप चाहे कितने भी आॅनलाइन फोरमों पर होने वाली चर्चा को देख लीजिए, शायद ही कोई दिग्विजय की बात से इत्तेफाक रखता हो। लेकिन यह भी सही है कि संघ को वह समर्थन खुले रूप से नहीं मिल पा रहा है जिसका वह हकदार है।

संघ को घेरने की रणनीति बनाते रहने में मशगूल रहने वाले दिग्विजय की बांछें तब और खिलीं जब कुछ समय पूर्व समझौता ट्रेन विस्फोट मामले की चल रही जांच के लीक हुए अंशों में दक्षिणपंथी संगठन अभिनव भारत के नेता असीमानंद और संघ नेता इंद्रेश कुमार का नाम कथित रूप से सामने आया। इसके बाद ता दिग्विजय ने अब संघ पर हमला और तेज करते हुए आरएसएस पर देश में संघी आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया है। दिग्विजय ने संघ प्रमुख मोहन भागवत से पूछा है कि अगर संघ आतंकवाद नहीं फैला रहा है तो इन मामलों में पकड़े जाने वाले लोगों के तार आरएसएस से क्यों जुड़े हुए मिलते हैं? दिग्विजय ने तो भाजपा की राज्य सरकारों पर भी कथित संघी आतंकवादियों को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए उदाहरण दिया कि समझौता विस्फोट मामले के आरोपी असीमानंद ने गुजरात में जाकर शरण ली थी। दिग्विजय वर्षों पहले से ही संघ पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह अपने कार्यकर्ताओं को बम बनाने का प्रशिक्षण देता है। यह सब कह कर दिग्विजय न सिर्फ आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का पक्ष मजबूत कर रहे हैं बल्कि एक राष्ट्रवादी संगठन को आतंकवाद के साथ जोड़कर ‘महापाप’ भी कर रहे हैं। यह पूरी कवायद आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई से ध्यान भटकाएगी।

राजनीतिक मेधावी दिग्विजय अपने बयानों के जरिए सामंजस्य बनाने की कला भी बखूभी जानते हैं वह जहां भाजपा और संघ परिवार पर रोजाना नए तरीके से निशाना साधते हैं वहीं सरकार खासकर केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी आड़े हाथों लेते रहते हैं। पहले उन्होंने नक्सल समस्या से निबटने की रणनीति को लेकर चिदम्बरम की कार्यशैली पर सवाल उठाए तो अब मौत की सजा पाए कैदियों की अपील पर एक समय सीमा में निर्णय करने की बात कह कर अफजल गुरु और अजमल कसाब की फांसी में जानबूझकर देरी करने के भाजपा के आरोपों को भी हवा दी। ऐसे बयानों से दिग्विजय कभी कभार खुद अपनी ही पार्टी को भी परेशानी में डाल देते हैं लेकिन वह जो ‘लक्ष्य’ लेकर चल रहे हैं उसे देखते हुए पार्टी आलाकमान भी उनके विरुद्ध सख्त रुख अख्तियार नहीं करता क्योंकि उसे पता है कि जो काम वर्षों से कोई कांग्रेस नेता नहीं कर पाया वह मात्र कुछ महीनों में दिग्विजय ने कर दिखाया है। यह कार्य है संघ को आतंकवाद से जोड़ने का। दिग्विजय अपने बयानों के जरिए संघ को संदिग्ध बना देना चाहते हैं और इसके लिए ऐसे बयान देते हैं जिससे कि लोगों का ध्यान आकर्षित हो।

बहरहाल, अब देखना यह है कि दिग्विजय की सियासत अभी और क्या गुल खिलाती है या और क्या क्या विवाद खड़े करती है लेकिन इतना तो है ही कि उन्होंने संघ के सामने कई दशकों में पहली बार कोई बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।

5 COMMENTS

  1. Satyanash kar gai महात्मा & chacha ban kar, ab jo कमी रह gai , सत्यानाश karane ki vo yuvraj puri कर dengai………………………

    pata नहीं इनका BHARAT ne ? karza dena hai …………………..

  2. कुते भौकें हजार हाती चले बजार. संघ के पास कई रास्ते है. पहला रास्ता हिदुत्व का है जो कहता है की विविधता ही जीवन है. हिन्दुत्व वैचारिक विविधता मे विश्वास रखता है जिस पर आज संघ चल रहा है. दुसरा रास्ता वह है जो ईसाईयत ने चुना है – सारे विश्व को अपने रंग मे रंग लो चाहे जो भी कुकृत्व करना पडे. तिसरा रास्ता वह है जो ईस्लाम ने चुना – जो बात ने माने उसे कत्ल कर दो. संघ को यह सोचना है की कौन जितेगा. मेरा मानना यह है की जो हिंसा के मार्ग पर है वह हारेगा.

    सनातन सोच वैचारिक विविधता की है. हिंसा का वहा कोई स्थान नही है. आने वाले समय मे विश्व को गुरु देने का सामर्थ्य सिर्फ हिन्दुत्व मे है. वह मार्ग शांती और सह-अस्तित्व का है. स6घ के लिए वह मार्ग ही उचित है.

  3. १. ले. कर्नल श्रीकांत पुरोहित:
    ” उन्हें सबसे पहले नवंबर 2008 में मुंबई एटीएस ने मालेगांव विस्फोट के आरोप में गिरफ्तार किया।”
    २. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर:
    “एटीएस का दावा है कि प्रज्ञा मुंबई में मुस्लिम आतंकियों द्वारा ट्रेन में किए विस्फोट से दुखी थीं, जिसमें बड़ी संख्या में हिंदू मारे गए थे।” (श्रीमान दुखी तो मैं भी था और देश के अन्य लोग भी तो क्या….)
    ३. स्‍वामी असीमानंद:
    “हाल ही में उन्होंने कथित रूप से बम विस्फोट की कुछ घटनाओं में हाथ होना कबूला है।” (केवल दबाव में लिए गए एक बयान से कुछ नहीं होता इसे साबित भी करना होता है अब अगर मैं कहूँ की मैंने अमुक व्यक्ति को अमुक हथियार से मारा है तो केवल इस आधार पर न्यायालय मुझे सजा नहीं दे सकता इसके लिए उस अमुक हथियार का मिलना भी जरूरी है उसपर मेरी उँगलियों के निशान भले ही न हो लेकिन इस बात का प्रमाणित होना भी जरूरी है की उसे मैंने ही ख़रीदा था या वो मेरा ही था या मैंने ही उसे चुराया था दुर्भाग्य से ऐसे कोई भी तथ्य अब तक सामने नहीं आये है )
    ४. सुनील जोशी:
    “कहा जा रहा है कि जोशी का अजमेर और मक्का मस्जिद ब्लास्ट में हाथ था और संघ के कुछ लोगों ने उनकी हत्‍या कराई।”
    “डायरी से संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार और राम माधव के मोबाइल नंबर मिले थे। स्वामी असीमानंद और योगी आदित्यनाथ का नंबर भी इसमें था।” (वह क्या सबूत पेश किया है आपने सौभाग्य से उसमे देश के प्रधानमंत्री का फोन नंबर नहीं था नहीं तो आप लोग न जाने क्या क्या ……………)
    ५. इन्द्रेश कुमार:
    “राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इस प्रमुख नेता पर अजमेर ब्‍लास्‍ट का मास्टर माइंड होने का आरोप है।” (अब तो सचमुच साबित हो गया कि इन्द्रेश कुमार ही मास्टर माइंड थे )
    ६. संदीप दांगे:
    ” समुदाय विशेष के खिलाफ साजिश रचने का आरोपी।”
    ७. देवेंद्र गुप्ता:
    “इस पर सुनील जोशी, संदीप दांगे और कालसंगरा का सहयोग करने का आरोप है।”

    “इनके अलावा शिवम धाकड़, लोकेश शर्मा, डॉ. अशोक, योगी आदित्यानाथ, राजेश मिश्रा और सुधाकर धर द्विवेदी पर धमाकों में सहयोग करने का आरोप है।”
    श्रीमान अहतशाम ‘अकेला’ जी ऐसा लिखेंगे तो अकेले ही रहेंगे केवल लिखने से झूठ को सच साबित नहीं किया जा सकता आरोप आरोप केवल आरोप कृपया बताये तथ्य क्या है आपके अनुसार अब मुक़दमा चलाने कि जरूरत ही क्या है श्रीमान अहतशाम ‘अकेला’ जी ने ढूध का ढूध और पानी का पानी कर दिया है अब सीधे इन लोगो को फाँसी दे ही दी जानी चाहिए
    (धन्यवाद श्रीमान अहतशाम ‘अकेला’ जी)

  4. प्रिय दुबे जी!
    आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती !
    और स्वार्थी को कही दोष नहीं दीखता!
    ये बात आज आपने साबित कर दी
    “संघ के आतंकवाद की शुरुआत महात्मा गांधी की हत्या से हुई” (ये एक कड़वा सच है )
    असीमानंद और इंद्रेश कुमार के तार भी संघ से जुड़े हैं ये भी दुनिया जानती है
    मक्का मस्जिद धमाका, गोवा ब्लास्ट, अजमेर धमाका, समझोता एक्सप्रेस कांड सभी के तार संघ से जुड़े हैं, और आरोपियों को शरण देने में भी भगवा संगठन सबसे आगे रहते हैं!
    (आपकी चिंता है की–)
    “संगठन के साथ इस समय भाजपा के अलावा कोई खड़ा नहीं दिखाई दे रहा”
    एक कहावत है की “जब गीदर की मौत आती है तो, वो गाँव की तरफ दौरता है”
    अब भगवा लहर बंद हो गई है संघ के चेहरे से नकाब उठने लगा है, ताबड़तोड़ संघ के गुर्गे फसते जा रहे हैं , और दुनिया हकीका जन चुकी है-

    ब्रिटिश अखबार ‘द गार्जियन’ ने तो १९ जनवरी को प्रकाशित एक लेख में यहां तक कहा है कि भारत में अल्पसंख्यकों को लेकर इतना ज्‍यादा भेदभाव है कि सरकार बहुसंख्यक हिंदू कट्टरपंथी तत्वों द्वारा पैदा किए जा रहे खतरे को भांप नहीं पा रही है। यही नहीं, अखबार ने यह कहते हुए भारत सरकार की नीति और साख पर भी सवाल खड़ा किया है कि सरकार ने स्‍टूडेंट्स इस्‍लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) को तो बैन कर दिया है, पर राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) को काम करने की खुली छूट दे रखी है।

    ‘हिंदू आतंकवादी’ के रूप में गिरफ्तार कुछ प्रमुख चेहरों को जानिए।

    ले. कर्नल श्रीकांत पुरोहित:
    पुरोहित सेना की खुफिया जानकारियां जमा करने वाली इकाई मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई) में पदस्थ थे। उन्हें सबसे पहले नवंबर 2008 में मुंबई एटीएस ने मालेगांव विस्फोट के आरोप में गिरफ्तार किया। रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय को भेजे एक एमएमएस के आधार पर उनकी गिरफ्तारी हुई। उपाध्याय भी मालेगांव ब्लास्ट में आरोपी हैं।

    साध्वी प्रज्ञा ठाकुर:
    प्रज्ञा ठाकुर शुरू से ही हिंदूवादी संगठनों, जैसे दुर्गा वाहिनी, आरएसएस, राष्ट्रवादी सेना आदि से जुड़ी रहीं। चार्जशीट के मुताबिक मालेगांव ब्लास्ट में इस्तेमाल हुई मोटरसाइकिल पहले प्रज्ञा ठाकुर के नाम थी, जिसे उन्होंने 2004 में एक आरएसएस कार्यकर्ता को बेच दिया था। एटीएस का दावा है कि प्रज्ञा मुंबई में मुस्लिम आतंकियों द्वारा ट्रेन में किए विस्फोट से दुखी थीं, जिसमें बड़ी संख्या में हिंदू मारे गए थे। इसी का बदला लेने के लिए प्रज्ञा ठाकुर ने मालेगांव ब्लास्ट को अंजाम देने में प्रमुख भूमिका निभाई।

    स्‍वामी असीमानंद:
    गुजरात के शबरी धाम में आरएसएस के सहयोगी संगठन वनवासी कल्याण आश्रम के प्रमुख। कई धमाकों की योजना बनाने में अहम भूमिका निभाने के आरोपी। असीमानंद की कार्य शैली आक्रामक रही है। 1997 में गुजरात के डांग में अपने भाषण में उन्होंने कहा कि हमें हर हाल में हिंदू धर्म की रक्षा करनी है, जिस पर मुस्लिम आतंकवादियों और ईसाई मिशनरियों से खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने कहा कि हमें बम का जवाब बम से देने के लिए तैयार रहना चाहिए। असीमानंद 1997 में हिंदू धर्म के प्रचारक के रूप में डांग गए थे। गुजरात के आदिवासी बहुल डांग जिले में स्वामी असीमानंद के आने के बाद से ही मिशनरियों पर हमले की कई घटनाएं हुईं। असीमानंद ने पूरे जिले में हिंदू से ईसाई बने आदिवासियों को वापस लाने के लिए कई कार्यक्रम किए। फरवरी 2006 में धर्मांतरण का एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें भाग लेने वाले प्रमुख लोगों में आरएसएस प्रमुख के सुदर्शन, मोहन भागवत के अलावा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए। हाल ही में उन्होंने कथित रूप से बम विस्फोट की कुछ घटनाओं में हाथ होना कबूला है। असीमानंद को पिछले साल 19 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था। असीमानंद का असल नाम जतिन चटर्जी है और वह हरिद्वार में स्वामी नबा कुमार सरकार नाम से रह रहे थे। वह छद्म नाम से विदेश भागने की फिराक में थे। हालांकि ऐसा करने से पहले सीबीआई के हत्थे चढ़ गए।

    सुनील जोशी:
    मध्य प्रदेश में देवास के रहने वाले सुनील जोशी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता थे, जिनकी 2007 में हत्या कर दी गई। कहा जा रहा है कि जोशी का अजमेर और मक्का मस्जिद ब्लास्ट में हाथ था और संघ के कुछ लोगों ने उनकी हत्‍या कराई। असीमानंद के मुताबिक कथित तौर पर जोशी ने हैदराबाद, अजेमर और समझौता एक्सप्रेस में हुए धमाकों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जोशी से असीमानंद की मुलाकात प्रज्ञा सिंह ने सन् 2003 में कराई थी। सुनील जोशी का ताल्लुक एक गरीब परिवार से था। उसकी प्राथमिक शिक्षा संघ संचालित विद्यालय में हुई थी। बाद में वह संघ का जिला प्रचारक बन गया। वह कट्टर हिंदुत्ववादी बन गया था। उसके संपर्क में संघ कार्यकर्ता संदीप डांगे और रामचंद्र कालसांगरा गहरे आए। तीनों में गहरी दोस्ती हो गई। इन तीनों ने कई बार दंगे भड़काने की कोशिश की। जोशी की मौत के बाद सीबीआई की टीम ने देवास पहुंचकर पुलिस से उनकी डायरी और उसके द्वारा बनाए रेखाचित्र हासिल किए। ये जोशी की हत्या के बाद उसकी जेब से पुलिस ने बरामद किए थे। डायरी से संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार और राम माधव के मोबाइल नंबर मिले थे। स्वामी असीमानंद और योगी आदित्यनाथ का नंबर भी इसमें था।

    इन्द्रेश कुमार:
    राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के इस प्रमुख नेता पर अजमेर ब्‍लास्‍ट का मास्टर माइंड होने का आरोप है। तीन प्रमुख अभियुक्तों असीमानंद, लोकेश शर्मा और शिवम् धाकड़ ने सीबीआई के सामने इस बात की पुष्टि की है। इंद्रेश पर कई धमाकों के लिए पैसे जुटाने का भी आरोप है। वह खुद इसे अपने खिलाफ साजिश बताते रहे हैं।

    संदीप दांगे:
    इंदौर के शाजापुर जिले में आरएसएस के प्रचारक थे। सुनील जोशी और राम चंद्र कालसंगरा के अजीज दोस्त और समुदाय विशेष के खिलाफ साजिश रचने का आरोपी।

    देवेंद्र गुप्ता:
    बिहार के मुजफ्फरपुर में आरएसएस का विभाग प्रचारक था। इस पर सुनील जोशी, संदीप दांगे और कालसंगरा का सहयोग करने का आरोप है।

    इनके अलावा शिवम धाकड़, लोकेश शर्मा, डॉ. अशोक, योगी आदित्यानाथ, राजेश मिश्रा और सुधाकर धर द्विवेदी पर धमाकों में सहयोग करने का आरोप है।

    (धन्यवाद प्रवक्ता)

  5. दिग्विजय की सुनता कौन है और जो सुनता भी है वो विश्वास नहीं करता इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है

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