भयाक्रांत होने की आवश्यकता नहीं आबादी के सर्वे पर!

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लिमटी खरे

आर्टिकल 370 के बाद जम्मू एवं काश्मीर राज्यों का विखंडन एवं पुर्नगठन फिर नागरिकता संशोधन कानून के बाद अब नेशनल पापुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) को लेकर देश भर में जमकर बहस छिड़ी दिख रही है। एनपीआर को लोग एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) और नागरिकता संशोधन कानून से जोड़कर भी देख रहे हैं। इसको लेकर तरह तरह के भ्रम और अफवाहें सोशल मीडिया पर पसरी दिख रही हैं, जबकि एनपीआर को बहुत ही सामान्य शब्दों में समझा जा सकता है कि यह भारत में रह रहे लोगों की रिहाईश को सरकारी रिकार्ड में दर्ज किए जाने से ज्यादा और कुछ भी नहीं है। ब्रितानी हुकूमत के दौर में भी इस काम को किया जाता था, पर तब इसको जनगणना और जातिगत जनगणना के रूप में किया जाता था। विडम्बना ही कही जाएगी कि हुक्मरानों और विपक्ष के द्वारा स्थिति को पूरी तरह स्पष्ट नहीं किए जाने से भ्रम की स्थिति बन रही है। जितना विरोध अभी देखने को मिल रहा है उतना विरोध इसके पहले शायद ही कभी देखने को मिला हो।

हाल ही में केंद्र सरकार की कैबनेट कमेटी (मंत्रिमण्डल समिति) के द्वारा एनपीआर के लिए मंजूरी देने के बाद एक बार फिर बवाल खड़ा होता दिख रहा है। लगभग आठ हजार पांच सौ करोड़ रूपए खर्च किए जाकर इस कार्यक्रम को अगले वित्त वर्ष के आरंभ होते ही चालू कर दिया जाएगा। इसके पहले 2010 में यह काम किया गया था। इसके बाद 2015 में इसे अद्यतन (अपडेट) किया गया था। अब 2021 में इसे किया जाना निश्चित किया गया था।

2015 में जब इसे अद्यतन किया गया था तब संभवतः इसलिए बवाल नहीं हुआ क्योंकि 2015 के पहले आधार बनवाना जरूरी किया गया था, एवं लोगों को लगा था कि यह आधार के लिए अद्यतन किया जा रहा है। वर्तमान में आर्टिकल 370, जम्मू काश्मीर का पुनर्गठन, नागरिकता संशोधन कानून के बाद अचानक ही इसके लिए कैबनेट की सहमति से अब इन सारी बातों से जोड़कर लोग एनपीआर को देखते नजर आ रहे हैं। दरअसल, यह गलत समय पर उठाया गया कदम माना जा सकता है। है तो यह सामान्य प्रक्रिया जो हर दस सालों में की जाती है पर वर्तमान में चल रहे माहौल को देखते हुए इस पर लोगों का ध्यान जाना स्वाभाविक ही है।

नेशनल पापुलेशन रजिस्टर अर्थात एनपीआर से भयभीत होने की कतई जरूरत नहीं है। यह सामान्य प्रक्रिया है जो हर दस सालों में की जाती है। इसमें कुछ ज्यादा नहीं महज इतना ही होता है कि सरकार के द्वारा अपने आंकड़ों में लोगों की रिहाईश को दर्ज किया जाता है। इस काम को पहले भी किया जाता रहा है। सरकारी नुमाईंदों के द्वारा घर घर जाकर लोगों को ब्यौरा कागजों मे दर्ज किया जाता है। इसके तहत आबादी का राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार किया जाएगा। इसके बाद आरंभ होगा देश की जनगणना का काम।

देखा जाए तो केंद्र सरकार को इस तरह के फैसले लेने के पहले सर्वदलीय बैठक बुलाकर स्थिति को स्पष्ट करते हुए आम सहमति बनाई जाना चाहिए थी। सबसे ज्यादा विवाद एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून को लेकर मचा है। इन दोनों ही मामलों में अगर सरकार के द्वारा सर्वदलीय बैठक बुलाकर आम सहमति बनाने के प्रयास किए जाते तो निश्चित तौर पर बवाल खड़ा नहीं होता। इसके अलावा इसके मेरिट्स और डीमेरिट्स पर विचार करने के लिए सरकार को समय मिल जाता, वस्तुतः ऐसा हुआ नहीं।

देश में नागरिकता का सबसे बड़ा प्रमाण भारत में जन्म लेना ही माना जा सकता है, किन्तु आज प्रौढ़ हो चुकी पीढ़ी के द्वारा शायद ही कभी जन्म प्रमाण पत्र लेने की सुध रही हो। आज भी बुजुर्गों से पूछा जाए कि उनका जन्म कब हुआ था तो वे सर खुजाते हुए कहते मिल जाएंगे कि अम्मा बताती थीं, कि हल्का पानी गिर रहा था और पूनो (पूर्णिमा) की रात थी। इस तरह से जन्म की तिथि को हिन्दू तिथियों और मौसम के हिसाब से बताने वालों की तादाद बहुतायत में होगी। उन्हें यह भी याद न होगा कि उनका जन्म कितने बजे हुआ था!

आपके पास आधार कार्ड है तो आप भारत के नागरिक हैं! इस बात पर भी अनेक मत हैं। इस बारे में भी सरकार के द्वारा अब तक स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है। कहा जाता है कि आधार कार्ड के जरिए शासकीय योजनाओं में भागीदारी का अधिकार मिल जाता है। भारत की नागरिकता के लिए आवश्यक दस्तावेजों में आधार को तवज्जो न दिया जाना भी आश्चर्य जनक ही माना जाएगा। इसी बात को आधार बनाते हुए पश्चिम बंगाल की निजाम ममता बनर्जी ने दो टूक शब्दों में यह भी कह दिया है कि जब आधार को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा रहा है तो फिर गरीब गुरबे इसको लेकर कैसे अपनी नागरिकता साबित कर पाएंगे!

इस काम को करने से पश्चिम बंगाल और केरल सरकारों के द्वारा मना किए जाने के बाद अब अफवाहों का बाजार अगर गर्मा जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अभी भी समय है, केंद्र सरकार को चाहिए कि इस मसले को लेकर देश भर के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलाई जाकर उसमें इस बात को स्पष्ट करते हुए आम सहमति बनाने के प्रयास किए जाएं। जहां भाजपा या गठबंधन की सरकार है, वहां तो ठीक है पर, जहां विपक्षी दलों की सरकारें काबिज हैं वहां सरकार की दुश्वारियां बढ़ सकती हैं। इस पूरे काम के लिए हुक्मरानों को चाहिए था कि इसके लिए पहले पूरी तरह चाक चौबंद व्यवस्थाएं की जातीं, होमवर्क किया जाता, सर्वदलीय बैठकों के जरिए सहमति बनाने का प्रयास किया जाता, उसके उपरांत इसे कैबनेट में रखा जाता।

सरकार को यह बात भी साफ कर देना चाहिए कि एनपीआर को लेकर कैबनेट ने जिस प्रस्ताव को अपनी सहमति दी है, उसमें नया कुछ भी नहीं है। सब कुछ रूटीन का ही हिस्सा है। इसके पीछे वजह महज इतनी ही है कि वर्तमान में केंद्र सरकार के एक के बाद एक फैसलों से जिस तरह का माहौल बन गया है उसमें यह मुद्दा कहीं आग में घी का काम न कर जाए।

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर नागरिकता कानून के बाद एनसीआर के बारे में चर्चाओं का बाजार गर्माया था वह शायद ही किसी की नजरों से छिपा हो। सोशल मीडिया की ताकत से हुक्मरान और विपक्ष दोनों अंजान शायद न हों। जैसे ही इस बात को लेकर विरोध आरंभ हुआ वैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रामलीला मैदान में यह बात साफ करना पड़ी कि ऐसा कोई कदम केंद्र सरकार के द्वारा नहीं उठाया जाने वाला है।

एक बात समझ से परे है, कि जब संचार क्रांति के इस युग में सारी सूचनाओं, दस्तावेजों, रिकार्ड आदि को एकीकृत किया जा सकता है तब अलग अलग पंजियों के संधारण की आवश्यकता क्या है! क्या यह संभव नहीं है कि देश के प्रत्येक नागरिक से जुड़ी सारी जानकारियां एक क्लिक पर सामने आ जाएं! आज अस्पतालों में पर्ची बनाए जाते समय कंप्यूटराईज्ड पर्ची दी जाती है, पर अगर किसी मरीज का पुराना रिकार्ड देखना हो तो इसके लिए भारी मशक्कत करना पड़ता है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि देश में अफसरशाही के बेलगाम दौड़ते घोड़ों के कारण ही सारी जानकारियां एक क्लिक पर नहीं आ पा रही हैं। निजि क्षेत्र में अगर किसी कर्मचारी की जानकारी देखना हो तो कंप्यूटर पर वह एक क्लिक में उपलब्ध हो सकती है पर सरकारी सिस्टम आज भी बाबा आदम के जमाने के ही दिखते हैं।

आज जरूरत इस बात की है कि देश के हर नागरिक का सारा का सारा डाटा एक साथ रखा जाए। अलग अलग डाटाबेस रखने की जरूरत आखिर क्या है! क्या इसे यह मान लिया जाए कि नौकरशाही ही देश को चला रही है, नेता तो महज एक निमित्त मात्र ही बने हुए हैं! या नौकरशाह इक्कसवीं सदी के दूसरे दशक में जबकि विजन ट्वंटी ट्वंटी आरंभ होने वाला है तब भी इंटरनेट, कंप्यूटर और सूचना तकनीक से रूबरू नहीं हो पाए हैं!

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