सुषमा जैसा कोई और नहीं

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने मेरे शहर इंदौर में घोषणा की कि वे अब चुनावी राजनीति से संन्यास ले रही हैं, क्योंकि उनकी किडनी उनका साथ नहीं दे रही है। सुषमाजी के असंख्य प्रशंसकों को यह सुनकर गहरा आघात लग रहा है। मैं भी उनमें से एक हूं। सुषमा स्वराज ने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया, उसके 20 साल पहले से ही मैं काफी सक्रिय था लेकिन दिल्ली आने पर जब मैंने सुषमाजी को देखा तो मुझे लगा कि यह सुंदर, सुशील, सुसंस्कृत और अदभुत प्रतिभा की धनी लड़की किसी दिन भारत की प्रधानमंत्री बनेगी। 1999 में जब 40 सांसदों का एक प्रतिनिधि मंडल प्र. मं. अटलजी ने पाकिस्तान भेजा तो उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि मैं भी उसके साथ जाऊं और पाकिस्तान के नेताओं से सबका परिचय करवाऊं। उन दिनों सुषमा बहन दिल्ली के मुख्यमंत्री-पद से मुक्त हुई थीं। वे हमारे साथ थीं। जब मैंने उनका परिचय प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और विपक्ष की नेता बेनजीर भुट्टो से करवाया तो उनसे मैंने कहा कि ‘‘आप भारत की भावी प्रधानमंत्री से मिलिए। यह मेरी छोटी बहन है।’’ बेनजीर जब भारत आईं तो उन्होंने हवाई अड्डे से फोन करके मुझसे कहा कि आपकी ‘उस बहन’ से जरुर मिलना है। उस दिन सुषमा जी का जन्मदिन था। बेनजीर सबसे पहले गुलदस्ता लेकर उनके घर पहुंचीं। मैं आज भी यह मानता हूं कि भाजपा क्या, देश के किसी भी दल में सुषमा-जैसा कोई और नहीं है। यदि उनको विदेश मंत्री के तौर पर स्वतंत्रता पूर्वक काम करने दिया जाता तो वे पिछले चार साल में भारतीय विदेश नीति में जान फूंक देतीं। उन्होंने हिंदी आंदोलनों में बरसों-बरस मेरे साथ काम किया है। वे ही मुझे 35 साल पहले पहली बार गुड़गांव ले गई थीं, किसी सम्मेलन का उद्घाटन करने के लिए। सुषमा की स्मरण—शक्ति अद्भुत है। वे किसी कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करने मुझे बरसों पहले हरियाणा के एक दूरस्थ शहर में ले गई थीं।  पूरी रात दर्जनों कवियों के काव्य-पाठ के बाद उन्होंने बिना कागज देखे, हर कवि की पहली दो पंक्तियां सिलसिलेवार दोहरा दीं। प्रकाशवीर जी शास्त्री और अटलजी के बाद मैं सुषमा स्वराज को देश का महानतम वक्ता मानता हूं। वे भाजपा की महत्तम धरोहर हैं। कई देशों के प्रधानमंत्रियों और विदेश मंत्रियों, जिनसे सुषमा जी ने संवाद किया है, ने मुझसे उनकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। राजनीति के कीचड़ में सुषमा-जैसी सुंदर और आकर्षक महिला का आजीवन बेदाग रहना अपने आप में विलक्षण उपलब्धि है। वे चुनावों से चाहे संन्यास ले लें, लेकिन उन्हें कोई भी घर नहीं बैठने देगा। उनके राजनीतिक अनुभव, ज्ञान और विलक्षण वक्तृत्व का लाभ उठाने में भारत राष्ट्र कभी कोताही नहीं करेगा। उनके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करता हूं।

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